Saturday, October 29, 2011

चिट्ठी न कोई सन्देश

'चिट्ठी न कोई सन्देश......'
दिवंगत जगजीत सिंह की यह चर्चित गज़ल आज के सन्दर्भ में भी मौजूं है.

क्या आपको याद है कि आपने आखिरी बार कब कोई चिट्ठी लिखी थी? नहीं! न. शायद याद होगी भी नहीं.
अब चिट्ठी,पत्री या डाकिया घर पर नहीं आता.लोग चिट्ठी,पत्री के महत्व को भूलने लगे हैं.और बदलने लगे हैं वो मुहावरे जो चिट्ठी,पत्री के सम्बन्ध में ही गढ़े गए थे.जैसे 'ख़त का मजमून भांप लेते हैं लिफाफा देख कर '.

रंग बिरंगे लिफाफे अलग-अलग पत्रों की श्रेणी को दर्शाते थे.गुलाबी लिफाफे को देखकर लोग सहज ही उस पत्र के महत्व को समझ जाते थे.लेकिन आज के इन्टरनेट और मोबाइल के युग में लोग चिट्ठी,पत्री लिखने जैसे वाहियात काम को दूर से ही  नमस्कार करते हैं.

हर हाथ में मोबाइल ने जिस सन्देश भेजने वाली भाषा 'हिंगलिश' को जन्म दे दिया है वह शायद ही सभी लोगों को समझ में आये.अब तो डाकिये सिर्फ पत्रिकाओं या 'सूचना के अधिकार' वाले लिफाफे लेकर आते हैं,जिसे पढ़ने से शायद ही पाने वाले को ख़ुशी होती हो.चिट्ठी लिखने वालों की भावनाओं को चिट्ठी पढ़नेवाला ही समझ सकता है.

चिठ्ठी -पत्री के महत्व को समझते हुए हिंदी सिनेमा के कई गीतकारों ने अच्छे -अच्छे गीतों की रचना की.मसलन,'लिखे जो ख़त तुझे,'फूल तुम्हें भेजा है ख़त में',फिल्म बॉर्डर का चर्चित गाना 'सन्देशे आते हैं ','नाम' में पंकज उधास का मशहूर गाना 'चिट्ठी आई है ' को कौन भूल सकता है. 

चिट्ठी,पत्री के साथ जो मनोभाव,भावना,आवेग जुड़े होते हैं वह इलेक्ट्रोनिक सन्देश में कहाँ मिल सकता है.चिट्ठी,पत्री की लिखावट को  देखकर उस व्यक्ति की मनोदशा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था.पर आजकल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास वक़्त कहाँ जो कागज के चंद टुकड़ों पर अपने दिल का हाल खोल कर रख सके.वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी चिट्ठी,पत्री को हैरत से देखा करेगी कि पहले ज़माने के लोग कागज के टुकड़ों पर सन्देश भेजा करते थे.