Thursday, October 10, 2013

मंदारं शिखरं दृष्ट्वा

मंदार में समुद्र मंथन की आकृति 
मंदार में पापहरणी स्थित अष्ट कमल मंदिर  





















बिहार के भागलपुर प्रमंडल के बांका जिलान्तर्गत बौंसी प्रखंड में मंदारहिल रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में मंदार पर्वत अवस्थित है.यहाँ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में परम पावनी गंगा बहती है. इसके पूरब दिशा में चीर नदी और पश्चिम दिशा में चांदन नदी बहती है.

पुण्यभूमि मंदार क्षेत्र विष्णुपद स्वरूप है. यहाँ पदार्पण मात्र से ही मानवों में देवत्व आने लगता है. मंदार पर्वत की यह महिमा है कि जो नर - नारी मंदार शिखर के दर्शन मकर संक्रांति के दिन पवित्र पापहरणी पुष्कर में स्नान करते हैं ,साथ ही कपिला (कामधेनु) गौ और भगवान मधुसूदन के दर्शन जीवन में एक बार मंदार क्षेत्र में आकर कर लेते हैं,वे जन्म - मरण के बंधन से मुक्त होकर विष्णुपद प्राप्त कर लेते हैं.
वृहद् विष्णुपुराण में कहा गया है कि ............

"मंदारं शिखरं  दृष्ट्वा ,दृष्ट्वा वा मधुसूदनः
कामधेन्वा मुखं दृष्ट्वा ,पुनर्जन्म न विध्यते" 

जिस प्रकार देवासुर संग्राम के नायक भगवान् विष्णु से बढ़कर कल्याण करने वाले कोई देव नहीं हैं ,परम पावनी गंगा से बढ़कर मोक्ष प्रदायिनी कोई पवित्र नदी नहीं है. 'प्रणव ' जिसे 'ओंकार 'कहते हैं,से बढ़कर सिद्धि देने वाला कोई मंत्र नहीं है.उसी प्रकार मंदार सभी तीर्थों से बढ़कर मोक्ष प्रदान करने वाला तीर्थ है क्योंकि,यह भगवान विष्णु की कर्मभूमि है जो स्वर्ग तुल्य है.

स्कन्द पुराण के अनुसार भारत में 4 ही तीर्थ प्रधान हैं - मंदार ,द्वारिकापुरी,जगन्नाथपुरी और बद्रिकाश्रम.
इसमें मंदार रहस्यमय तीर्थ है. आज तक इसका रहस्य कोई भी नहीं जान सका है. मंदार तीर्थ के साथ -साथ भगवान विष्णु की कर्मभूमि भी है.यहाँ 33 करोड़ देवी देवताओं के साथ भगवान विष्णु लक्ष्मी सहित वास करते हैं .........

"तीर्थानाम् यत् परम्  तीर्थं ,बद्रिकाश्रमं उत्तमं
द्वारिकश्च जगन्नाथं , मंदारं भुवि गोपितम्"

कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता की मुक्ति के लिए मंदार में आकर श्राद्ध किया था. उसके उपरांत ही राजा दशरथ ने मंदार के पुण्य प्रताप से स्वर्ग प्राप्त किया था.

कभी चोलवंशी राजा असाध्य चर्म रोग से पीड़ित होकर समस्त तीर्थों का भ्रमण करते हुए जब मंदार वन में आए तो यहाँ उन्हें सुखद अनुभव हुआ.यहाँ के जल से स्नान करने से उनकी कुष्ठ की बीमारी दूर हो गई.मंदार की जलवायु बड़ी ही स्वास्थ्यवर्द्धक है. मंदार की चर्चा लगभग सभी धर्मशास्त्रों में है.हिन्दू धर्मग्रंथों की माला की मनका मंदार ही है.

पुरातन धर्मग्रंथों के अनुसार सागर मंथनोपरांत श्रृष्टि की प्रक्रिया में मंदार का योगदान श्रेष्ठ रहा है .विष्णु अवतार भगवान मधुसूदन के एकमात्र मंदिर तथा मंदार पर्वत के लिए बिहार का यह बांका जनपद पहचाना जाता है .पुरातत्ववेत्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि यह पर्वत नगाधिपति पर्वतराज हिमालय से भी वृद्ध है .

वाल्मीकीय रामायण,रामचरितमानस,स्कन्दपुराण,युद्धपुराण,वृहद् विष्णुपुराण,गरूड़ पुराण ,शतपथ ब्राह्मण,अमरकोष ,कुमार संभवम्,श्री चैतन्य चरितावली के अलावा उत्तर मध्यकाल के प्रसिद्द कवि भूषण ने भी मंदरांचल की चर्चा अपने सवैयों में की है .

 मंदरांचल से 5 किलोमीटर की  दूरी पर बौंसी अवस्थित है,जहाँ इस  समय भगवान मधुसूदन का मंदिर है. युद्धपुराण में तो बौंसी को वालिशानगर की संज्ञा दी गई है.मंदरांचल पर कई सौ देवालय थे जिसकी चर्चा 1933 में गोंविंद सिंह द्वारा लिखित 'मंदार महात्मय' में की गई है .

इसका भी लिखित प्रमाण मिलता है कि सन् 1573 से 1600 के बीच बंगाल के एक पथभ्रष्ट सेनापति कालापहाड़ ने यहाँ भी उत्पात मचाकर ऐतिहासिक तथा शिल्पीय दृष्टि से उत्कृष्ट धरोहरों का भरपूर नाश किया. इसके भग्नावशेष 5 किलोमीटर की परिधि तक में सहज ही देखे जा सकते हैं .

'मंदरांचल' मंदार या मंदर शब्दों से बना है .'रामचरित मानस' में मंदार के हाथ तथा पंख इन्द्र द्वारा काटे जाने की चर्चा है. कहा जाता है कि प्रातः पूज्य देव गणपति ने 'मंदर' की  तपस्या के वशीभूत होकर इस पर्वत का नाम मंदार रख दिया .

प्राचीन काल में भी यह स्थल महातीर्थ की भांति पूजा जाता था. सन् 1505 में यहाँ कृष्णावतार चैतन्य महाप्रभु का आगमन हुआ था. वे तीन दिवसों तक यहाँ रुके थे. उस स्थल पर अभी भी उनके चरण चिन्ह हैं.वहीँ दीवार में एक शिलालेख भी है.

पौराणिक कथाओं से विदित होता है कि सृष्टि निर्माण हेतु सागर मंथन में इसी पर्वत को धुरी बनाकर बासुकी नाग को मंथन दंड के रूप में प्रस्तुत किया गया. यह भी कहा जाता है कि मंदरांचल के ऊपर भगवान मधुसूदन स्वयं विराजते हैं. बताया जाता है कि मंदार शीर्ष पर अवस्थित मंदिरों में भगवान मधुसूदन की ही पूजा होती थी.बाद में जैनियों द्वारा इसे पट्टे पर लेने के समय इन मंदिरों में चरण चिन्हों की पूजा की जाती थी .
इस दृष्टिकोण से भी आस्थावान लोगों के मध्य यह पर्वत अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है .

मकर संक्रांति के अवसर पर यह स्थल अलौकिक रश्मियों से आलोकित हो जाता है.यह सिर्फ धार्मिक सोच ही नहीं, अपितु विज्ञान का एक परम सूत्र है. इस समय मंदरांचल अमृत रश्मियों से अभिसिंचित रहता है.यह समय धार्मिक,आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक तत्वों से दृश्य - अदृश्य शक्ति प्राप्त करने का अनुभव देता है. इस समय यहाँ अधिकतर जनजातीय तांत्रिक व् उच्च कोटि के वैद्य मानव कल्याणार्थ तंत्र - मंत्र तथा औषधियों का निर्माण करते हैं .

शायद मंदरांचल अनूठा पवित्र स्थल है ,जिससे  हिंदू ,जैन और सफा धर्मावलम्बियों(सफा धर्म मानने वाले जनजातियों का एक सम्प्रदाय) की गहन आस्था जुडी हुई है.

(लाइफ पॉजिटिव, दिसंबर 2016 में प्रकाशित)

40 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना |

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    1. सादर धन्यवाद ! अजय जी . आभार .

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  2. बहुत ही खूबसूरत रचना
    आभार

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  3. बेहद अच्छी जानकारी राजीव जी आभार।

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    1. सादर धन्यवाद ! मनोज जी . आभार .

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  4. बहुत अच्छी जानकारी......... आभार...

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    1. सादर धन्यवाद ! कौशल जी . आभार .

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  5. जानकारी के लिए सादर धन्यवाद

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  6. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! जोशी जी . आभार .

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  7. नयी नयी जानकारियों का खजाना है आपका ब्लॉग :-)
    धन्यवाद ...

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  8. मंदार के बारे में बहुत सुन्दर जानकारी प्रस्तुती हेतु आभार
    नवरात्र की शुभकामनायें

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  9. बहुत सुन्दर सरल सुबोध जानकारी का खजाना है यह प्रस्तुति।

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    1. सादर धन्यवाद ! आदरणीय वीरेन्द्र जी . आभार .

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  10. राजीव भाई , अतिलाभप्रद जानकारी

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    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई . आभार .

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  11. अच्छी जानकारी

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    1. सादर धन्यवाद ! अजय जी . आभार .

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  12. bahut acchhi lagi aapki prastuti ....bhagalpur ki hoon bausi gai bhi hoon par abhi mandar parwat ke darshan nahi kar paai ab jarur jaungi .....

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  13. बहुत अच्छी एवं ज्ञानवर्द्धक जानकारी .मंदार की महिमा से परिचय करने के लिए आभार .

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  14. राजीव भाई बहुत अच्छी जानकारी मंदार पर्वत के बारे में ........ आभार...
    बहुत सुन्दर लेख
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...
    भ्रमर५

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    1. सादर धन्यवाद ! आ. भ्रमर जी . आभार .

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  15. मंदार के बारे में बहुत अच्छी जानकारी देने के लिए बधाई !

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  16. अच्‍छी जानकारी देनें के लि‍ए धन्‍यवाद

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  17. सादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी .आभार .

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  18. सादर धन्यवाद ! प्रदीप जी . आभार .

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