Thursday, May 8, 2014

कालबेलियों की दुनियां

Top post on IndiBlogger.in, the community of Indian Bloggers
कालबेलिया समाज  
कालबेलिया नृत्य 
कालबेलियों के आदि पुरुष माननाथ ने विष को पचाकर अपनी योग शक्ति की परीक्षा दी.यायावरी की जिंदगी बिताने वाले ये कालबेलिये सांप दिखाकर,जड़ी-बूटी बेचकर उदर-पूर्ति करते हैं.लेकिन जीवन के अभाव इनकी परंपरागत मस्ती और नृत्य-संगीत के प्रति दिलचस्पी को रंचमात्र भी कम नहीं कर पाए हैं.

राजस्थान के रेगिस्तान की वीरान वादियों को आबाद करने वाले कालबेलिया निराले ही आदिवासी हैं.अपने जीवन-यापन एवं भरण-पोषण के लिए संगीत को पेशे के रूप में अपनाकर इन्होंने राजस्थान की सांस्कृतिक परंपरा को कायम रखा है.यहाँ की वादियाँ इनकी स्वर-लहरियों से गूंजती रहती हैं.ये लोग स्थायी निवास बनाकर नहीं रहते बल्कि सदा घूमते रहते हैं,इसलिए घुमक्कड़ भी कहलाते हैं.

काला नाग जिसका काटा शायद ही कोई बचता है,शायद इसलिए पालतू काले नाग से भी लोग काफी दूर रहना पसंद करते हैं.लेकिन राजस्थान में एक घुमंतू आदिवासी समूह है,जो इन काले नागों को पकड़ता है,झोली में बंद करता है और उनकी सहायता से जीवन की गाड़ी खींचता है.ये आदिवासी ‘कालबेलिया’ कहलाते हैं.’काल’ अर्थात नाग,’बेलि’ अर्थात संरक्षण प्रदान करने वाले.
कालबेलिया अपना जीवन यापन करने के लिए सांप पकड़,उसे झोली में डालकर कंधे से लटकाए फिरते हैं.

वे सांप को अपने विशेष वाद्ययंत्र ‘पुंगी’ की धुन पर नचाते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हुए आटा,दाल,पैसा आदि एकत्रित करते हैं.ये लोग सांप,बिच्छू जैसे जहरील्रे जंतुओं के काटे हुए का इलाज करने के लिए जड़ी-बूटियों से बनी हुई दवाइयां भी बेचते हैं.ये निपुण संपेरे होते हैं और साँपों का व्यापार भी करते हैं.सांप से प्राप्त कुछ पदार्थों से काजल बनाकर भी बेचते हैं.

कालबेलियों का शरीरिक गठन,रंगभेद एवं कद के आधार पर माना जा सकता है कि इनकी उत्पत्ति काकेसायड के परिवर्तित रूप प्रोटो-आस्ट्रेलायड एवं निग्रायड प्रजाति के मिश्रण से हुई होगी.

कालबेलियों में यह किवदंती प्रचलित है कि एक बार जालंधरनाथ ने अपने इलमदारों को चुनौती दी कि जो इलमदार जहर पी जाएगा,वही सच्चा योगी माना जाएगा.गोरखनाथ के बारहवें शिष्य पावननाथ ने यह चुनौती स्वीकार कर ली और जहर पी लिया.जहर पी लेने के बाद भी वे जीवित रहे.इस तरह अपनी योगशक्ति की परीक्षा दी और सफल रहे.उसी दिन से उन्हें ‘कनिपाव’ कहा जाने लगा.

कनिपाव अर्थात जहर पीने वाला,मौत को जीतने वाला यानि कालबेलिया.कनिपाव ने एक संप्रदाय भी चलाया.वह पावपथ के नाम से ख्यात हुआ.इस पावपथ में जो दीक्षित हुए,वे कालबेलिया कहलाये.उन्होंने शिव को अपना आराध्य देवता माना.

कालबेलियों की टोली में स्त्री-पुरुष और बच्चों के अलावा सामान ढोने के लिए गधे,मुर्गे-मुर्गियां,कुत्ते एवं अन्य पालतू जानवर होते हैं.टोली में शिकारी कुत्ते का होना भाग्यशाली समझा जाता है.शिकारी कुत्ते जानमाल की सुरक्षा तो करते ही हैं,शिकार में भी सहायक होते हैं.पहले वे पशुओं की खालें बेचा करते थे,लेकिन अब वन्य जीवों के संरक्षण से यायावरी का जीवन बितानेवालों की आमदनी में बाधा पड़ गई है.अब ये सांप दिखाकर,जड़ी-बूटी बेचकर जीवन-यापन करते हैं.

कालबेलियों की एक अन्य उपजाति के लोग सांप नहीं पकड़ते और अधिक घूमते भी नहीं.यह उपजाति गांवों के बाहर तंबू में डेरा डाले रहती है और हाथ से चलाई जाने वाली चक्कियां बेचकर उदर-पूर्ति करती हैं.

कालबेलिया स्त्रियाँ हुनरमंद होती हैं.दैनिक जीवन में काम आने वाली चीजें ये स्वयं ही बना लेती हैं.स्वभाव से ही ये शोख और चंचल होती हैं.तरह-तरह के गहनों से सजना इनका ख़ास शौक है.इनके आभूषण अधिकतर मोतियों एवं मणियों के बने होते हैं.इन्हें ये खुद ही बनाती हैं.

कालबेलियों के गीत इनके सामान्य जीवन से संबंधित होते हैं और अधिकतर नाचते हुए गाये जाते हैं.कालबेलिया नृत्य देश-विदेशों में काफी लोकप्रिय है.मुंह ढंककर नृत्य करना इसकी विशेषता है.ये खुद को उसी तरह दर्शाते हैं,जैसा कि सांप चलते समय दिखाई देता है.

‘पणिहारी’,’इंडोणी’ और ‘शंकरिया’ सांप को मोहित करने वाली धुनें हैं,जिनके आधार पर इनके नृत्यों के नाम पड़ गए हैं.इनके अलावा ‘बीछूड़ो’,’लूर’ आदि गीत भी काफी लोकप्रिय हैं.स्त्रियाँ पुंगी के साथ सुर मिलाकर कान पर हाथ रखकर ऊँचे स्वर में गाती हैं.कंठ का सुरीलापन और वाद्यों का मधुर मोहक संगीत,नृत्य की गति को तीव्र कर देता है,इसलिए नृत्यों की गति बहुत तेज होती है.

पुंगी,खंजरी,चंग,घोरालियों आदि कालबेलियों के प्रमुख वाद्ययंत्र हैं.अपने वाद्ययंत्र ये खुद ही बनाते हैं.कालबेलियों के गीतों एवं नृत्यों में कोई धार्मिक परंपरा नहीं होती.किसी जाति,समाज,गाँव या गिरोह से संबंध नहीं होने के कारण ये निर्लिप्त होकर अपनी राय देते हैं.कालबेलियों के कई गोत्र हैं जो अधिकतर राजपूतों की जातियों के समान उच्चारित होते हैं.

कालबेलिये हिंदू धर्मावलंबी हैं.इनके द्वारा मनाये जाने वाले सभी उत्सव हिंदू रीति-नीति से मेल खाते हैं.ये गोरखनाथ,कनिपाव और शिव को आदर की दृष्टि से देखते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं.

कालबेलिये शव को जलाते नहीं,दफ़न करते हैं.कारण यह है कि ये अपने को जोगी मानते हैं और जोगी समाधि लेते हैं.खानाबदोशी जीवन से छुटकारा दिलाने के लिए इनके लिए स्थायी कॉलोनियां भी बनायीं गई हैं.आरंभ में कालबेलियों की एक संयुक्त सामाजिक इकाई थी लेकिन बदलते परिवेश में इनकी कला धीरे-धीरे कम होती जा रही है.

37 comments:

  1. राजस्थान में इन्हें खूब करीब से देखा है..... आज विस्तार से कई जानकारियां मिली ..... आभार

    ReplyDelete
  2. सुंदर जानकारी पूर्ण लेख !

    ReplyDelete
  3. आदिवासियों के पुनर्वास से मुझे खुशी होती है पर साथ में उनके कला एवं संस्कृति से महरूम होने पर दुःख भी होता है. सुंदर आलेख.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! राकेश जी. आभार.

      Delete
  4. Great information...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आलोक जी. आभार.

      Delete
  5. बहुत-सी बातें पता लगीं -आभार !

    ReplyDelete
  6. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

      Delete
  7. जानकारी पूर्ण लेख.....

    ReplyDelete
  8. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बाबा का दरबार, उंगलीबाज़ भक्त और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete


  9. ☆★☆★☆


    कनिपाव अर्थात जहर पीने वाला, मौत को जीतने वाला यानि कालबेलिया
    कालबेलियों की दुनिया की संपूर्ण जानकारी दे दी आपने तो...

    आदरणीय राजीव कुमार झा जी
    हृदय से साधुवाद स्वीकार करें ।
    सचमुच रोचक और जानकारीवर्द्धक आलेख है , जिसे पढ़ने में शुरू से अंत तक रुचि बनी रही..
    पुनः साधुवाद !


    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार


    ReplyDelete
  10. nice informative post .thanks a lot.

    ReplyDelete
  11. आपकी इस पोस्ट से कालबेलियों के बारे में विस्तृत जानकारी मिली। आपका बहुत धन्यवाद।
    साथ में ब्लॉग जगत का भी जो विविध विषयों पर जानकारी सुलभ कराता है।

    ReplyDelete
  12. कालबेलियों के बारे में विस्तार से जानकारी मिली.....बहुत बहुत धन्यवाद ...!!

    ReplyDelete
  13. ज्ञानपरक, साझा करने के लिये हार्दिक आभार।

    ReplyDelete
  14. कालबेलियों के जीवन को बहुत करीब से लिखा है आपने ... भारत के विभिन्न समाज कितनी भिन्नताओं के साथ भी पूरक है इक दूजे से ... कई बार फंतासी सी लगती हैं ये रोचक बातें ...

    ReplyDelete
  15. कालबेलियों के बारे में लाजवाब और पूर्ण जानकारी ...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया

    ReplyDelete
  16. कालबेलियों के बारे में विस्तार से कई सुन्दर जानकारियां मिली..आभार

    ReplyDelete
  17. बढ़िया व सुंदर आलेख

    ReplyDelete
  18. हमारे यहां शायद इन्हें कालबेली नही कहते हैं सामान्यतया "खेल दिखाने वाला " ऐसे बोलकर काम चला लेते हैं ! लेकिन इस से बात कोई फर्क नहीं पड़ता , बात ये है की आपने इतना सुन्दर जानकारी देने वाला लेख लिखा है ! इसके लिए बहुत बहुत बधाई और बधाई इसलिए भी की आप सदैव नए नए विषय लेकर आते हैं !

    ReplyDelete
  19. बढ़िया रचना व लेखन , राजीव भाई धन्यवाद !
    ब्लॉग जगत में एक नए पोस्ट्स न्यूज़ ब्लॉग की शुरुवात हुई है , जिसमें ये आपकी पोस्ट ब्लॉग से चुनी है , कल २७ . ६ . २०१४ को आपकी इस रचना का लिंक I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर होगा , धन्यवाद !

    ReplyDelete