Sunday, September 1, 2013

कोलाज जिन्दगी के












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अगर  हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.

कोलाज यानि ढेर सारी चीजों का घालमेल. एक ऐसा घालमेल जिसमें संगीत जैसी लयात्मकता हो ,तारतम्य हो और इससे भी अधिक एक अर्थ्वर्ता हो.

सचमुच ,जिन्दगी एक कोलाज की तरह ही तो है. सुख-दुःख की छाया ,प्रेम स्नेह ,वात्सल्य के रंग तो बिछोह , तड़पन ,उदासी के रंग भी दिखाई देते हैं. कईयों को तो जिंदगी एक शानदार रंगीन समारोह की तरह लगती है. तो किसी को जिन्दगी पहेली लगती है. जिसने जीवन के मर्म को समझ लिया वह ज्ञानी हो गया.

क्या आपने किसी पेड़ या किसी चिड़िया को रोते हुए देखा है. यह तो इंसान है जो दर्द या निराशा से रोता है. अभिव्यक्ति का माध्यम  इंसान ने अलग -अलग तरीकों से ढूंढ ही लिया है.

अंग्रेजी में एक कहावत है कि  - 'यशस्वी जीवन का एक व्यस्त घंटा कीर्तिहीन युग -युगान्तरों से बेहतर है'.
यह भी प्रश्न उठता है कि यदि सुख से दुःख ही अधिक होता तो अधिकांश लोगों के विचार बदल जाते ,क्यूंकि तब उन्हें यह मालूम हो जाता कि संसार दुखमय है तो जीवन का अर्थ क्या ?अक्सर ऐसा देखा जाता है की इंसान अपनी आयु से अर्थात जीवन से नहीं उबता.इसलिए यही अनुमान किया जाता है कि इस दुनियाँ में इंसान को दुःख की अपेक्षा सुख ही अधिक मिलता है.

जीवन को दायरों में नहीं बांधा जाना  चाहिए. हर मनुष्य तभी तक अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है,जब तक कि उसकी जीवन पद्धति किसी को कोई कष्ट नहीं पहुंचाती . विडंबना यही है की हम दुसरे के जीवन को अपने विचारों से तौलते हैं ,प्रत्येक चरित्र को वैसे ही स्थापित करते हैं ,जैसा हम चाहते हैं,उनसे व्यव्हार भी वैसा ही करते हैं,जैसा हमारा मन विचार कर पाता है.

बहरहाल ,जीवन को जीने और देखने का नजरिया  सबका अलग - अलग है, फिर भी जीवन के विविध रंग ,यानि कोलाज  हर इंसान में दृष्टिगोचर होते हैं.

आचार्य राम विलास शर्मा कहते हैं.…………
पीड़ा को उसकी प्रकृति भूल 
दुःख को भी सुख सा मधुर मान 
मैं ह्रदय लगाता बार - बार 
तेरा कोई उपहार जान.…  

35 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति राजीव जी, आपने विजेट को गलत जगह लगाया है। आप विजेट को हमसे जुड़ें विजेट के ठीक नीचे लगाएं।

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    1. सादर धन्यवाद ! मनोज जी.आभार.

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  2. बहरहाल ,जीवन को जीने और देखने का नजरिया सबका अलग - अलग है.
    सुन्दर प्रस्तुति.

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  3. जीवन को दायरों में नहीं बांधा जाना चाहिए. हर मनुष्य तभी तक अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है,जब तक कि उसकी जीवन पद्धति किसी को कोई कष्ट नहीं पहुंचाती.
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक [प्रस्तुतिकरण,आभार

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    1. सादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी.आभार.

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  5. sadar प्रणाम झा
    सार्थक लेखन

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  6. सार्थक प्रस्तुतिकरण।

    अपने किसी भी ऑनलाइन अकाउंट को डिलीट करें। अपना-अंतर्जाल
    http://apna-antarjaal.blogspot.in/2013/09/delete-any-account.html

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  7. सार्थक प्रस्तुतिकरण ......

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    1. सादर धन्यवाद ! सराहना के लिए आभार .

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    latest post नसीहत

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  9. सबका अपना अपना नजरिया है जीवन के प्रति ... ओर अपना अपना आंकलन भी ...

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  10. सार्थक-सुन्दर प्रस्तुति

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  11. सार्थक-सुन्दर प्रस्तुति

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  12. सुन्दर प्रस्तुतीकरण...
    :-)

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  13. सुन्दर प्रस्तुति राजीव जी

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    1. सादर धन्यवाद ! संजय जी. आभार .

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  14. BAHUT HI SUNDAR AUR SARTHAK PRASTUTI.............

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  15. बहुत खूब खूबसूरत प्रस्तुति ...वाह

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  16. जीवन में विविधताएं तो रहती ही है और रहनी भी चाहिए !
    सुन्दर लेख !!

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है सकारत्मक जीवन दर्शन।

    (अर्थ वत्ता ,ऊबता ,दूसरे ,)

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  18. वाह..
    आपको पढ़कर अच्छा लगा झा साहब !

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    1. सादर धन्यवाद ! आदरणीय सक्सेना जी . आभार .

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