Thursday, May 1, 2014

पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत

              
                                      

आदि काल से ही मानव मन अपने उद्गम के विषय में जानने के लिए आतुर रहा है.मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया? आख़िर इस पृथ्वी पर जीवन कहाँ से आया ? ये तरह-तरह के जीव कैसे बने? ये सभी प्रश्न निश्चय ही गूढ़ रहस्य हैं.वैज्ञानिक,काफी समय से इस विषम पहेली का हल ढूंढने का प्रयास करते रहे हैं,जिसके परिणामस्वरूप समय-समय पर विभिन्न मत सामने आये.

वैज्ञानिक अध्ययनों के परिणामस्वरूप तीन प्रमुख विकल्पों का विकास हुआ.प्रथम विकल्प दार्शनिक एवं धार्मिक मान्यताएं हैं.दूसरे विकल्प के रूप में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर ज्ञात जैवरासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा जीवोत्पत्ति को समझाने का प्रयास किया.अंतिम विकल्प में मानव मन ने कुछ अधिक काल्पनिक हो,जीवन को ब्रह्मांड के ही किसी अन्य ग्रह की देन माना है.

प्राचीन धार्मिक मतों के अनुसार तो समस्त ब्रह्मांड एवं जीवों की रचना को ईश्वरीय देन माना गया है.यही मत,प्रायः सभी धर्मों में थोड़े बहुत फेरबदल के साथ स्वीकार्य है.

ऋग्वेद के नासदीय सूक्त का दसवां मंडल उत्पत्ति के स्रोत से संबंधित है.इसके प्रथम सूक्त में कहा गया है ....

नासदासींनॊसदासीत्तदानीं नासीद्रजॊ नॊ व्यॊमापरॊ यत् ।
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नभ: किमासीद्गहनं गभीरम् ॥१॥

पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में ऋग्वेद के इन्हीं सूक्तों का उल्लेख किया.जिसे प्रसिद्द जर्मन विद्वान मैक्स मूलर ने 'उत्पत्ति का गीत' कहा है. इसका हिंदी अनुवाद ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक के शीर्षक गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया था......

सृष्टि से पहले सत् नहीं था
असत् भी नहीं
अन्तरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या?
कहाँ?
किसने ढका था?
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहाँ था? ।।१।।

हालाँकि, छठे सूक्त में यह कहा गया है कि देवताओं की उत्पति भी सृजन के बाद ही हुई है.....

कॊ ।आद्धा वॆद क‌।इह प्रवॊचत् कुत ।आअजाता कुत ।इयं विसृष्टि: ।
अर्वाग्दॆवा ।आस्य विसर्जनॆनाथाकॊ वॆद यत ।आबभूव ॥६॥

सृष्टि यह बनी कैसे?
किससे?
आई है कहाँ से?
कोई क्या जानता है?
बता सकता है?
देवताओं को नहीं ज्ञात
वे आए सृजन के बाद
सृष्टि को रचा है जिसने
उसको जाना किसने? ।।६।।

सर्वप्रथम ग्रीक वैज्ञानिक एवं दार्शनिक अरस्तू ने इस विषय पर प्रचलित विचारधारा से अलग हटकर सोचा और परिणामस्वरूप ‘स्वतो-जनन का मत’ एक वैज्ञानिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया.इस दिशा में प्रथम महत्वपूर्ण खोज लुई पास्चर द्वारा वायुमंडल में अति सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति सिद्ध होने पर ही हुई.उसके फलस्वरूप पहले के सभी मतों को सर्वथा निर्मूल सिद्ध कर दिया.

अब तक के प्राप्त साक्ष्यों एवं अनुसंधानों के आधार पर अब यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पृथ्वी का निर्माण आज से लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व ही सौर गैसीय मेघों के संघनन के द्वारा हुआ होगा.सौर गैसीय मेघों में हाइड्रोजन एवं हीलियम पर्याप्त मात्रा में होते हैं.वैज्ञानिक क्लाईड के मतानुसार तो प्रारंभिक अवस्था में पृथ्वी पर न तो चुंबकीय शक्ति थी और न वायुमंडल जैसी कोई चीज.उस समय सौर वायु ही पृथ्वी के धरातल पर प्रवाहित होती रही होगी.बाद में ही इस प्रकार अवकारक वातावरण प्रायः 1.5 अरब वर्षों तक रहा होगा. 

वैज्ञानिकों का मत है कि जीवोत्पत्ति प्रथम चरण में,निश्चय ही अवकारक वायुमंडल में हुई होगी.साधारण कार्बनिक अणु विद्युत –घर्षण या सूर्य की पराबैंगनी किरणों की शक्ति के कारण ही संयोजित हो पाए होंगे.

पहले चरण में छोटे-छोटे सरल कार्बनिक अणु पृथ्वी की गीली सतहों पर वातावरण की गैसों के संयोजन से बने.दूसरे चरण में इन्हीं छोटे-छोटे सरल कार्बनिक अणु ने आपस में मिलकर जटिल कार्बनिक अणुओं जैसे-पेप्टाइड,नयूक्लियोटाइड एवं वासा आदि का निर्माण किया.तीसरे चरण में इयोबायोंट बने,जो बिना किसी ऊपरी झिल्ली के थे और रचना के एक कोशीय जीवों से भी सरल होंगे,परन्तु इनमें सरल विभाजन द्वारा प्रजनन शक्ति आ गई थी.चौथे चरण में प्रकाश संश्लेषण द्वारा नयूक्लियो-प्रोटीन आदि जटिल अणुओं का निर्माण हुआ.इनके विकास से ही प्रायः वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी. 

पांचवें चरण  के समय तक पृथ्वी का वातावरण आज के वातावरण जैसा ही हो गया होगा तथा ऐसे ही वातावरण में वासा से ढंके व्रेनगेल बने.नयूक्लियो-प्रोटीन की प्रजनन शक्ति के कारण वे संख्या में काफी बढ़ गए होंगे.अंतिम चरण में एक पतली झिल्ली से ढंके एक कोशीय जीवों की उत्पत्ति हुई.इनमें नयूक्लियो-प्रोटीन के समान विभाजन तथा पुनर्मिलन की क्षमता थी.ये ही प्रोटोजोआ नामक समुदाय के पूर्वज में आए.

इस प्रकार प्रथम जीव का पृथ्वी पर पदार्पण हुआ.इन एक कोशीय जीवों से मनुष्य तक की उत्पत्ति,क्रमिक विकास एवं प्राकृतिक चयन की अनोखी गाथा है.

कई वैज्ञानिकों का मत है कि पृथ्वी पर जीवन ब्रह्मांड के किसी अन्य ग्रह से संक्रामक रोग के जीवाणुओं के समान ही आया होगा.सर्वप्रथम आर्हीनियस ने 1908 में इस प्रकार का सुझाव दिया उनके अनुसार जीव कण प्रकाश-किरणों के दबाब के कारण,किसी अन्य केन्द्रीय सौर-मंडल से यहाँ आए.उनकी यह परिकल्पना ‘पेसर्पमिया परिकल्पना’ कहलायी.कुछ इसी प्रकार का मत वैज्ञानिक केल्विन का भी है,जिनके अनुसार जीवन पृथ्वी पर उल्काओं के माध्यम से ही पहुंचा होगा.

धरती पर जीवन के उद्गम के स्रोत,प्राचीन जीवों के अवशेष के रूप में पुरानी चट्टानों में सुरक्षित रहे हैं. शॉक,क्विनबल्डन,वारधून ने 1968 में,सर्वप्रथम अमीनो एसिड,हाइड्रोकार्बन तथा कुछ अम्लीय वसा के अवशेष,अफ्रीका की लगभग 330 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानों से ढूंढ निकले.इसी तरह के कुछ अन्य अवशेष भी सुपीरियर झील के निकट प्राप्त 309 करोड़ वर्ष पुरानी गन फ्लीट पर्ट नामक चट्टानों तथा मध्य आस्ट्रेलिया की भी इतनी पुरानी चट्टानों से पाए.इनसे कुछ अधिक विकसित बैक्टीरिया दक्षिणी अफ्रीका की 200 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानों में पाए गए.

वर्कनल तथा मार्शल के अनुसार इस प्रकार विकसित बहुकोशीय जीवों के कारण ही शायद वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी तथा 100 करोड़ वर्ष पूर्व ही वातावरण अवकारक से बदलकर ऑक्सिकारक हो गया था.

भारत में भी इसी तरह के प्राम्भिक जीवों के अवशेष,लगभग 200 करोड़ वर्ष पुरानी धारवाड़ चट्टानों में मिले.राजस्थान के अरावली शैलों से भी कुछ शैवालीय स्ट्रोमैटोलाइट,चूने के पत्थरों में मिले.कुछ गोल तथा अंडाकार कोलिनियाँ समुदाय के शैवालों के अवशेष भी कडप्पा की चट्टानों से प्राप्त हुए.  

57 comments:

  1. सुंदर जानकारी पूर्ण आलेख |

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  2. रोचक एवं ज्ञानवर्धक आलेख.

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    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

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  4. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  5. bahut hi achha lekh aur bharat ek khoj ka shirshak geet bhi punah kanon mein gunjne laga, dhanywad.

    shubhkamnayen

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  6. सुंदर, रोचक और ज्ञानवर्धक ...

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  7. पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति वास्तव में जिज्ञासा का विषय है
    रोचक व ज्ञानवर्धक आलेख

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  8. जीवन की उत्पत्ति के विषय में इन धारणाओं से काफ़ी-कुछ समाधान होता है..

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  9. सुंदर जानकारी पूर्ण आलेख....

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  10. सुन्दर लेखन

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  11. जीवन की उत्पत्ति के विषय में आपके सुंदर जानकारी पूर्ण आलेख से काफ़ी-कुछ समाधान मिला ....

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  12. इस माहितीपूर्ण लेख के लिये आपका अनेक धन्यवाद।

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  13. बढ़िया लेखन रोचक व ज्ञानवर्धक आलेख

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  14. बढ़िया जानकारी , बधाई

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  15. रोचक एवं ज्ञानवर्धक आलेख. ...

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  16. ज्ञानवर्द्धक जानकारी देने के लिए कोटिश: आभार

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  17. अद्भुत....रोचक जानकारी, भारत एक खोज फिर से हाथों में है.

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  18. जीवन की उत्पत्ति के विषय में विस्तृत और सटीक , तथ्यात्मक लेख

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