Thursday, December 12, 2013

रोग निवारण और संगीत

   
संगीत तरंगों का प्रभाव जड़-चेतन पर समान रूप से पड़ता है.लय और ताल में बंधे हुए स्वर प्रवाह को संगीत कहते हैं.यह गायन के रूप में स्वर प्रवाह के साथ ही जुड़ा हुआ हो सकता है और वाद्य यंत्रों की तदनुरूप ध्वनि भी संगीत में गिनी जा सकती है.गायन और वादन दोनों का सम्मिश्रण उसकी पूर्णता निर्मित करता है.गायन के साथ गुंथी हुई भावनाएं चेतना को प्रभावित करती हैं. अन्तरंग में उल्लास उत्पन्न करती हैं.गायक के मनोभाव श्रवणकर्ता के कानों में प्रवेश करके गहराई तक पहुँचते हैं और तदनुरूप स्रोत के अंतराल को प्रभावित करते हैं.चेतना क्षेत्र में इस प्रकार की हलचलें गायक के साथ उन तरंग प्रवाह को अपनाने वाले को अपने साथ चलने,उड़ने के लिए बाध्य करती हैं.

भक्ति भावना से लेकर जोश-आवेश,उत्तेजना आदि को इसी आधार पर उभारा जा सकता है.भक्ति भाव की समर्पित आत्मविभोरता  भी उस आधार पर उत्पन्न की जा सकती है.उत्थान को पतन में और पतन को उत्थान में बदलना भी इस माध्यम के आधार पर संभव हो सकता है.अपराधी को संत और संत को अपराधी बनाने की क्षमता उसमें है.नदी के प्रवाह में तिनके-पत्ते बहने लगते हैं.संगीत प्रवाह में तरंगित होने वालों की मनःस्थिति भी इसी प्रकार तैरने-डूबने लगती है.
इन्हीं विशेषताओं के कारण संगीत को शास्त्रकारों ने नादब्रह्म कहा है.शिव का ताण्डव नृत्य और महाप्रलय का दुर्धर्ष प्रकरण साथ-साथ चलते हैं.संगीत कभी चेतना के उच्च पद पर था,तब ईश्वर प्राणिधान में स्वरयोग का,नादयोग का समावेश होता था.पर अब तो बात दूसरी है.वीरभाव उभरने और आदर्शों की चेतना उत्पन्न करने वाले न कहीं गायक दिखते हैं और न उसके लिए तरसने वाले गुणी भावनाशीलों का समुदाय ही कहीं दीख पड़ता है.यह अवमानना इसलिए हो चली है कि उसमें से उत्कृष्टता का प्राण धीरे-धीरे धीमा और तिरोहित होता चला गया.


मात्र एकाकी वादन की भी अपनी महत्ता है.इस आधार पर भी सशक्त ध्वनि प्रवाह उत्पन्न होता और अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है.युद्ध काल में आगे-आगे ‘वीररस’ से भरे-पूरे गीत वादक गाते चलते थे.उससे न केवल सैनिक वरन उस प्रयोजन में काम आने वाले घोड़े-हाथी तक मस्ती में भरकर नाचने लगते थे और अपना जौहर दिखाने का प्रयत्न करते थे.दीपक राग और मेघ मल्हार जनश्रुति सर्वविदित है. 

विगत कई वर्षों से प्रयोगकर्ताओं ने रोग निवारण के लिए संगीत ध्वनि प्रवाहों की चमत्कारी विशेषता सिद्ध की है.शारीरिक और मानसिक रोगों में किन ध्वनि प्रवाहों को प्रभावी उपचार की तरह काम में लाया जा सकता है,इसकी विधा निर्धारित की गई और प्रयोजन में आश्चर्यजनक परिमाण में उपयुक्त सिद्ध हुई.आगे इस सन्दर्भ में और भी बड़ी संभावनाएं सोची जा रही हैं.समझा जा रहा है कि अन्य चिकित्सा पद्धतियों से कहीं अधिक समर्थ संगीत चिकित्सा रोगियों की असाधारण सहायता कर सकेगी.

पशु-पक्षियों और जीव जंतुओं पर भी संगीत का उत्साहवर्द्धक प्रभाव देखा गया है.मछलियाँ और मुर्गियां अधिक संख्या में अधिक बड़े अंडे देने लगीं और उनसे परिपुष्ट बच्चे प्रकट होने लगे.गायों ने अधिक दूध दिया.वे अवधि से पूर्व गर्भिणी हुइऔर बच्चे देने में,दूध देने में अन्यों की अपेक्षा अग्रणी ही रहीं.यही बात अन्य पशुओं के बारे में भी देखी गयी.उसने संगीत की मस्ती में अधिक पराक्रम किया.धावकों ने दौड़ में बाजी जीती.जिन्हें संगीत के सम्पर्क में रखा गया,उनकी बुद्धिमत्ता अपेक्षाकृत अधिक विकसित हुई देखी गई.

संगीत के प्रयोगों में वनस्पतियों पर अच्छा प्रभाव पड़ते देखा गया है.घास तेजी से बढ़ी,सब्जियों में बड़े फल लगे.जिनसे लकड़ी ली जाती थी,उनकी अभिवृद्धि से मोटाई तथा मजबूती में वादन सुनने से कहीं अधिक सफल रहे.

जहाँ गायन वादन होता है,वहां उदास,निराश प्रकृति के लोगों ने भी अपने में उमंगें उठती अनुभव की हैं.ऐसे वातावरण में निराश मनों में भी आशा का संचार होता है.आदत में आश्चर्यजनक परिवर्तन आता है.संगीत कोलाहल को नहीं कहते,उसमें मधुरता,मृदुलता होनी चाहिए.कोलाहल तो कारखानों में भी होता रहता है.पर उसकी कर्कशता सीमा से अधिक इस स्तर तक पहुँचता है कि कान उन्हें सहन नहीं कर पाते. इसी प्रकार विवाह,बारातों में बजने वाले कई बार इतनी अधिक ध्वनि करते हैं कि राह चलते लोगों को भी सुनना भारी पड़ता है.

शंख,घड़ियाल,ढोल,नगाड़े भी यदि विसंगत स्वर में बजें तो उनमें कर्कशता ही प्रधान होती है.ऐसा वादन लाभ के स्थान पर हानिकारक ही सिद्ध हो सकता है.अत्यधिक शोर वाले क्षेत्रों में रहने वाले कान संबंधी बीमारियों के ज्यादा शिकार होते हैं.कई बार तो उनके मष्तिष्क को विक्षिप्तता से प्रभावित होते देखा गया है.

लाभकारी संगीत वही होता है,जो मृदुल एवं मधुर हो.कर्ण-प्रिय लगे एवं आकर्षण उत्पन्न करे.निद्रा को भगाए नहीं,वरन बुलाने में सहायता करे.वादकों का कौशल इसी में है कि वे उत्साहवर्धक,आनंददायक स्वर लहरियां उत्पन्न करें.गायकों की गरिमा इसी में है कि वे अपने गीतों को पशुता से छुटकारा दिलाने वाले और देवत्व उभारने वाले तत्वों से सराबोर रखें.जो संगीत मधुरिमा उत्पन्न करे,उसे ही सराहा जाना चाहिए.

न्यूयॉर्क के कंसर्ट पियानिस्ट और मनोवैज्ञानिक रिचर्ड कोगान भी मानते हैं कि संगीत का इस्तेमाल उपचार में हो सकता है.हिंदुस्तान टाईम्स लीडरशिप समिट में ‘द पावर ऑफ़ म्यूजिक हीलिंग’ पर बात करते हुए उन्होंने संगीत से उपचार का विस्तार पेश किया.

किसी ज़माने में आध्यात्मिक तरीके से उपचार भी लोकप्रिय था.उपचार करने वाले लोग इसके लिए ड्रम जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करते थे.संगीत सुनना या फिर संगीत यंत्र बजाना हमारे शरीर के तनाव के स्तर को कम करता है.संगीत कोर्टिसोल नामक हारमोन का सृजन करता है,जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है.इसके साथ ही दिमाग में डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का सृजन करता है.ये सृजन आनंदित करने वाली गतिविधियाँ जैसे अच्छा भोजन करने आदि के दौरान भी होता है.


संगीत दिल के रोगियों के लिए भी लाभकारी है.ये उच्च रक्तचाप और आघात से रक्षा करता है.साथ ही संगीत हमें जल्दी बूढा होने से भी रोकता है.मनोचिकित्सकों ने इसलिए संगीत द्वारा रोगोपचार की शुरुआत की है. 

31 comments:

  1. आपकी बात से सहमत हूँ , बढ़िया प्रस्तुति राजीव भाई
    नया प्रकाशन -: जानिये कैसे करें फेसबुक व जीमेल रिमोट लॉग आउट

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    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

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  2. यही स्वर-लहरियां ही तो मन्त्र बन जाती हैं-
    बढ़िया प्रस्तुति -
    आभार भाई जी-

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  3. सच ही है...संगीत में शक्ति है

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  4. बहुत खूब अच्छा विषय है !

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  5. शबाब फ़िल्म की याद ताज़ा करदी आपने। संगीत चिकित्सा करता है नायक राजकुमारी की जिसे नींद न आने की बीमारी है। संगीत से पौधों की बढ़वार रफ़्तार पकड़ लेती है जड़ चेतन को समान रूप से असर करता है संगीत। हवन कुंड की अग्नि मन्त्रों की सांगीतिक ध्वनि से पैदा की जाती थी न की माचिस या किसी अन्य साधन से। भागवत पुराण में इसका ज़िक्र आया है।

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  6. शबाब फ़िल्म की याद ताज़ा करदी आपने। संगीत चिकित्सा करता है नायक राजकुमारी की जिसे नींद न आने की बीमारी है। संगीत से पौधों की बढ़वार रफ़्तार पकड़ लेती है जड़ चेतन को समान रूप से असर करता है संगीत। हवन कुंड की अग्नि मन्त्रों की सांगीतिक ध्वनि से पैदा की जाती थी न की माचिस या किसी अन्य साधन से। भागवत पुराण में इसका ज़िक्र आया है।

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  7. सांगीतिक संकीर्त्तन(श्रवण ,मंथन ,रूप ध्यान )ईश्वर के नज़दीक पहुँचने का सहज साधन है।

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  8. http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ शुक्रवारीय अंक १३/१२/१३ में आपकी इस रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे .धन्यवाद

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-12-13) को "मजबूरी गाती है" (चर्चा मंच : अंक-1460) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  10. बहुत सुंदर.... सच संगीत में तो जीवन है ...

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  11. मुझे तो अच्छा संगीत किसी मेडिटेशन की प्रक्रिया से कम नहीं लगा ... अच्छा आलेख है ...

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  12. mere liye to sangeet Oxygen hai ..
    bahut accha likha hai aapne.
    Danyawaad !

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  13. बेहद स्तरीय लेखन कर रहें हैं आप अभिनव सामाजिक विषयों पर। शुक्रिया आपकी प्रेरक -उत्प्रेरक टिप्पणियों का।

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    1. सादर धन्यवाद ! आ. वीरेन्द्र जी. आभार.

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  14. सुन्दर जानकारी से भरा आलेख है..

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  15. संगीत द्वारा रोगोपचार पर सुंदर एवं जानकारी भरा आलेख.

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  16. saadar pranaam ,
    very beautiful article on music and its health benefits,Living systems show sensitivity to specific radiant energies – be it acoustical, magnetic or electro-magnetic. As the impact of music could be easily gauged on emotions and thereby on mind, it can be used as a tool to control the physiological, psychological and even social activities of the patients .
    According to an ancient Indian text, Swara Sastra, the seventy-two melakarta ragas (parent ragas ) control the 72 important nerves in the body. It is believed that if one sings with due devotion, adhering to the raga lakshana (norms) and sruti shuddhi, (pitch purity) the raga could affect the particular nerve in the body in a favourable manner.
    ..ajay

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