वैदिक काल से भारत के कम जलवाले मरू क्षेत्रों में बहुलता से उगने वाला शमी
वृक्ष अनेकों धार्मिक,सामाजिक,आर्थिक एवं पर्यावरण संबंधी गाथाओं का साक्षी एवं
प्रणेता रहा है.यही वह वृक्ष है जिसमें अग्निदेव का वास रहता है और अग्नि मानवता
के विकास की प्रथम सीढ़ी है.अग्नि का सर्व हितकारी भाव रहता है,अतः यह वृक्ष भी
सर्वहितकारी भाव रखते हुए विपरीत परिस्थितियों में भी दीर्घायु एवं सामाजिक दृष्टि
से संगठन एवं शक्ति का प्रतीक है.
राजस्थान में इसे खेजड़ी,गुजरात में समी,संस्कृत
में शमी,दिल्ली में जांडी एवं चौकसा,पंजाब-हरियाणा में थांड,मध्य-प्रदेश में
बन्नी,कर्नाटक में पेरुम्बाई एवं वानस्पतिक नाम प्रोसोपीस साईनियेरा के नाम से
जाना जाता है.
शमी में अग्नि का वास होने से वैदिक काल से ही यज्ञ के लिए अरणी मंथन क्रिया
द्वारा इसकी मोटी टहनियों को रगड़कर अग्नि प्रज्वलित की जाती रही है.आज भी पारंपरिक
वैदिक पंडित यज्ञ में अग्नि आमंत्रण अरणी मंथन द्वारा ही करते हैं.स्वर्ण अग्नि का
वीर्य है और अग्नि का वास इस वृक्ष में होने से यह स्वर्ण उगलता है,ऐसा विश्वास
किया जाता है.रघुवंश में भी इस बारे में रोचक कथा का वर्णन मिलता है.प्राचीन काल
में गुरुकुल शिक्षा की पूर्णता पर शिष्य द्वारा गुरु दक्षिणा भेंट करना अति आवश्यक
था.गुरु आरुणि के आश्रम में एक बार निर्धन परिवार से कौस्तेय नामक शिष्य
आया.शिक्षा पूर्ण होने पर उसने गुरुदेव से दक्षिणा के लिए आग्रह किया.शिष्य की
स्थिति को जानते हुए गुरु ने सहर्ष गुरुकुल छोड़ने की आज्ञा प्रदान की,लेकिन
कौस्तेय अड़ा रहा कि उससे गुरु दक्षिणा ली जाए.
गुरु आरुणि ने आवेश में उससे दास लाख स्वर्ण मुद्राएं गुरु दक्षिणा के रूप में
मांग लीं.इतनी अपुल राशि का अर्जन तो उसके लिए असंभव था,अतः उसने राजा रघु के पास
जाने का निश्चय किया.राजा रघु प्रत्येक बारहवें वर्ष अपना समस्त राज्य-कोष,स्व एवं
पत्नी के वस्त्राभूषण भी प्रजा को दान कर देते थे और सादा जीवन बिताते थे.सरल जीवन
एवं उनके तप के प्रभाव से राज्यकोष पुनः स्वर्णपूरित हो जाता था.उस समय राजा रघु
अपना सर्वस्व दान कर सादा जीवन व्यतीत कर रहे थे.
कौस्तेय राजा रघु के दरबार में
पहुंचा लेकिन वहां की स्थिति जानकार अभिप्राय बताने में संकोच का अनुभव हो रहा
था.राजा रघु द्वारा बार-बार पूछने पर कौस्तेय ने अपने आने का उद्देश्य बताया.राजा
रघु ने दक्षिणा के लिए पूर्ण आश्वासित किया और धनपति कुबेर पर आक्रमण करने का
निश्चय किया.यात्रा में रात्रि में एक वन में रुके.यह शमी का वृक्ष था.इसी अंतराल
कुबेर को ज्ञात हो गया कि राजा रघु एक शिष्य की गुरु दक्षिणा के लिए आक्रमण हेतु
राह में है.उसी रात्रि शमी वृक्षों के सारे पत्ते स्वर्ण मुद्रा में परिवर्तित हो
गए और सारा वन स्वर्ण आभा से जगमगा उठा.प्रातः राजा रघु को इसकी जानकारी मिली.आक्रमण
का विचार निरस्त कर उन्होंने कौस्तेय को गुरु दक्षिणा के लिए अनुरोध किया.कौस्तेय
ने गिनकर दास लाख स्वर्ण मुद्रा ली और गुरु दक्षिणा अर्पित की.अपुल धन राशि से राजा रघु का राज्य कोष पुनः स्वर्ण पूरित हो
गया.
विजयादशमी के आस-पास घटी इस घटना के कारण आज भी अनेक राज-परिवारों में इस
वृक्ष की पूजा विजयादशमी पर की जाती है.बंगाल में दुर्गापूजा पर शमी वृक्ष की
पत्तियां स्वर्ण प्रतीक रूप में परस्पर सद्भावना के लिए वितरित की जाती हैं.इन्हें
पूजा घर,तिजोरी में शुभ प्रतीक के रूप में रखा जाता है.इसकी पवित्रता एवं महत्व को
जानते हुए पांडवों ने अज्ञातवास में इसी वृक्ष की घनी पत्तियों के बीच में अपने
दिव्यास्त्र छिपाए थे,क्योंकि इन्हें पूर्ण विश्वास था कि पवित्र वृक्ष होने के
कारण कोई इसे नहीं काटेगा और दिव्यास्त्र सुरक्षित रहेंगे.
भगवान शिव,देवी दुर्गा,लक्ष्मी पूजन आदि में इस वृक्ष के फूल एवं ऋद्धि-सिद्धिदाता
गणेश को पत्तियां अर्पित की जाती हैं.इस वृक्ष की मोटी टहनियां अरणी मंथन द्वारा
अग्नि उत्पन्न के लिए प्रधान यंत्र के अलावा पतली-सूखी टहनियां भी यज्ञ समिधा का
भाग होती हैं.भगवान राम ने अपने वनवास के समय जिस झोपड़ी का निर्माण किया था उसमें
शमी वृक्ष की लकड़ियों का ही उपयोग किया गया था.
खेजड़ी के वृक्ष में फलों के रूप में फलियाँ लगती हैं जिन्हें सांगरी कहा जाता
है.इनकी स्वादिष्ट सब्जी एवं अचार बनाया जाता है.सांगरी खाने से गर्मियों में
प्यास कम लगती है.राजस्थान में सांगरी के साथ कैर की सब्जी एवं कढ़ी बनायी जाती है
जो कि मरू प्रदेश में विशिष्ट आतिथ्य के रूप में अतिथि सत्कार का भाग है.
खेजड़ी का औषधीय महत्व भी कम नहीं है.ऐसा कहा जाता है कि जिस प्रदेश में
खेजड़ी,नीम एवं आक के पेड़ पाए जाते हैं, वहां कोई बीमारी असाध्य नहीं है.खेजड़ी की
फलियाँ पौष्टिक,शीतल एवं ह्रदय रोगों के लिए हितकारी है.फूलों का रस चीनी की चासनी
के साथ महिलाओं से संबंधित रोगों में हितकारी है.इसकी फलियाँ वायु रोग,सूजन
संबंधी रोगों में तुरंत आराम देती हैं.
खेजड़ी पशु जीवन के लिए वरदान है.इसकी हरी पत्तियों में 60 प्रतिशत तक नमी पायी
जाती है.ये पत्तियां ऊंट,भेड़ एवं बकरी का प्रमुख भोजन है.इनमें लोहा,जिंक एवं
मैग्नेशियम जैसे महत्वपूर्ण तत्वों की मात्रा सर्वाधिक होती है.खेजड़ी की फली एवं
पत्तियों में वसा एवं प्रोटीन की 40-50 प्रतिशत मात्रा होती है. यह भोजन,ईंधन,निर्माण कार्य एवं
प्राकृतिक सीमा के साथ-साथ तेज गर्मियों में पशुओं को छाया प्रदान करता है.
इसकी जड़ों में छोटी-छोटी गांठ होती है जो नाईट्रोजन एकत्रित कर जमीन की उर्वरा
शक्ति को बढ़ाती है.जिस खेत में खेजड़ी के वृक्ष ज्यादा होते हैं,वहां ज्यादा उपज
होती है.कम जल वाले वीरान मरू क्षेत्रों का यह मरू प्रहरी एवं राजस्थान के के मरू
क्षेत्र वासियों की जीवन रेखा या कल्पतरु है.यह हानिकारक गैसों का अवशोषण करने की
शक्ति रखता है.रेगिस्तान में चलने वाली तेज तूफानी वेग को कम करते हुए मिटटी के
अपक्षय को रोककर,हवा से उड़कर आने वाली रेत को भी रोक कर जमा देता है.
यह वृक्ष संकटकालीन परिस्थितियों से उबरने वाला प्रकृति द्वारा दिया गया
प्रत्येक ग्रामीण के लिए एक छोटा बैंक है.इसकी आय पत्तियों द्वारा अर्जित
है.फलियाँ,बीज,लकड़ी भी आय के प्रमुख भाग हैं.इस प्रकार पौराणिक गाथाओं में स्वर्ण
मुद्रा में परिवर्तित हुई हर पत्ती वर्तमान युग में भी स्वर्ण मुद्रा ही
है,आवश्यकता है केवल संरक्षण एवं संवर्द्धन की.
आभार आदरणीय-
ReplyDeleteरोचक है यह तरु शमी, यहाँ अग्नि का वास |
यज्ञ धर्म इतिहास में, रखे जगह यह ख़ास ||
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर जानकारी !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआभार
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24 .01.2014) को "बचपन" (चर्चा मंच-1502) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
ReplyDeleteविस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व अच्छा संयोजन , कमाल का लेख राजीव भाई , धन्यवाद
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deleteविस्तृत सुंदर जानकारी ......
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteएक बेहतरीन जानकारी...
ReplyDelete:-)
बहुत उपयोगी जानकारी |दी है आपने |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर जानकारी !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत अच्छी जानकारी.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteकुछ नया जाना आज
ReplyDeleteशुक्रिया
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबढिया जानकारी। महाराष्ट्र में भी शमी वृक्ष की पत्तियां स्वर्ण प्रतीक रूप में परस्पर सद्भावना के लिए वितरित की जाती हैं। खास कर छोटी आयु के लोग अपने से बडों को ये दे कर उनसे आशिर्वाद प्राप्त करते हैं।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteखेजडी के बारे में पहली बार जाना।
ReplyDeleteशमी या खेजड़ी वृक्ष एक ही है.
Deleteअत्यंत ज्ञानवर्धक आलेख,,,
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteविस्तृत और अच्छी जानकारी दि है इस वनस्पति के बारे में ... ज्ञानवर्धक लेख ...
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