भारत में बदलती ऋतुएं जीवन को नए स्पर्श दे जाती हैं.मार्च का पहला पखवारा बीतने पर वसंत ऋतु जब अपने पूर्ण यौवन की देहरी तक पहुँच जाती हैं तब सेमल के हजारों वृक्ष एक साथ खिल उठते हैं.उस समय इसकी टहनियों में पत्तियां नहीं होती,चारों ओर केवल कटोरी जैसे लाल और नारंगी फूल ही फूल दिखाई देते हैं.
जगह-जगह बर्फ जैसे सफ़ेद
फूलों वाले कैथ के वृक्ष भी मिलते हैं.हलके हरे रंग की रेशमी पत्तियों के साथ
झिलमिलाते हुए रूपहले सफ़ेद फूल वृक्षों पर गुंबद की तरह छा जाते हैं.गेहूं के
हरे-भरे खेतों के चारों ओर पानी की
नालियों के आसपास किरात के फिरोजी रंगवाले ढेरों फूल उग आते हैं.सरसों के पीले
पीले फूलों के साथ अलसी के फूल अपनी नीली छटा से प्रकृति में नया रंग भर देते हैं.
इसके
पहले शरद ऋतु में जब धरती पर कांस के दूधिया सफ़ेद फूल छा जाते हैं,उस समय किसी नदी
के किनारे धीरे-धीरे झूमते हुए ये फूल ऐसे लगते हैं जैसे सफ़ेद मलमल का कोई दुपट्टा
हवा में लहरा रहा हो. फूल-पौधों और उपवनों की खूबसूरती,नीले गुलमोहर की गहरी नीली आभा मन को प्रसन्न करने के लिए काफी हैं.
शहरों और जंगलों के बीच
पड़ने वाले गाँव और खेत मनुष्य को फूल,पौधों,हरे-भरे वृक्षों और प्रकृति की छांव
में ले जाते हैं.प्रकृति का संपर्क ही उन्हें सहज जीवन की ओर ले जाता है और वन
उपवन उनमें अनंत जीवन-शक्ति भर देते हैं.
गेहूं की लहलहाती हुई
सुनहरी बालियों के अथाह समुद्र के उस पार दूर-दूर तक फैले हुए ढाक के वृक्ष जब
फूलों से लद जाते हैं,तब ऐसा लगता है जैसे हवा में अंगारे उछाल दिये गए हों,या
पूरे जंगल में आग लग गई हो.इसलिए ढाक या पलास के इन भड़कीले वृक्षों को लोग वन की
ज्वाला भी कहते हैं.होली के अवसर पर पलास के फूलों से पीला रंग बनाया जाता है और
इसकी छटा देखते ही बनती है. मार्च के महीने में जब ढाक के पत्ते झर जाते हैं,तब
पलास के फूलों से भरी डालियाँ धरती को अनोखा सौंदर्य प्रदान करती
हैं.
प्रकृति के इस सौंदर्य से
मनुष्य का प्रेम एकतरफा नहीं है.लोककवि के आदिम मन ने बार-बार अनुभव किया है कि
मनुष्य का संग पाकर प्रकृति भी प्रसन्न हो जाती है.कवि की कल्पना है कि सावन के
महीने में कन्याओं के स्पर्श से पीपल भी बोल उठता है.....
चबूतरों के बिना
पीपल सुहावने नहीं
लगते
न फूलों के बिना
फुलाही के वृक्ष
हसलियों के साथ
हमेलें अच्छी
लगती हैं
बाजूबन्दों के
साथ गजराइयां
‘मेरा अहोभाग्य’
पीपल कहता है
‘कन्याओं ने मुझ
पर झूले डाले’
महाकवि कालिदास ने अपने
काव्य में लाल फूल वाले अशोक की चर्चा की है जो कुछ शहरों में अनायास दिखाई दे
जाते हैं.अशोक की डालियों पर गहरे हरे रंग की पत्तियों के बीच मूंगे जैसे लाल रंग
वाले फूल मन को सहज ही मोह लेते हैं.लाल रंग प्रेम और श्रृंगार का प्रतीक माना
जाता है.इसलिए महिलाएं पांवों में महावर,होठों पर लाली,माथे पर लाल बिंदी और मांग
में सिंदूर का इस्तेमाल करती हैं.शोक को हवा में उड़ा देने वाले अशोक के फूल इसलिए
प्रिय लगते हैं.
फूलों की खुशबू और उसके रंग
सिर्फ साज-श्रृंगार के ही साधन नहीं हैं,ये हमारे मन को मुरझाने से बचाते हैं और
हमें हमेशा तरो-ताजा रखते हैं.’अभिज्ञान शाकुन्तल’ में शकुन्तला की चर्चा करते हुए
कालिदास कहते हैं कि उसके ह्रदय पर खस कालेप है,उसकी कोमल कलाइयों में कमलनाल के
कंगन हैं,उसकी सखियाँ बार-बार उसके ललाट पर चन्दन का शीतल,सुरभित लेप लगाती हैं और
फूलों की शय्या पर वह जिस कुंज में लेटी हैं,वह कुंज पुष्पमालाओं से सुसज्जित है.
वात्सयायन ने विस्तार से
उद्यानों के विविध प्रकारों का वर्णन किया है.इन्द्रदेव के अनुपम नंदन-कानन की
बार-बार चर्चा हुई है.राजनीतिक शुष्कता और जीवन की नीरसता को सरसता में बदल देने
वाले ये उद्यान ही होते थे.शायद इसलिए वात्सयायन का विचार है कि सरोवर के पास
घर,उद्यान हो और सरोवर में कुमुद और कमल उगे हुए हों.
आज के युग में किसी भी
व्यक्ति के पास फूलों पर लेटने का समय नहीं रह गया है और न जन-सामान्य के पास इतने
साधन हैं कि लोग रमणीय उद्यानों का उपयोग कर सकें.आज ऐसे पेड़-पौधों को लगाने में
लोग तत्पर रहते हैं जिससे फल या सब्जियां मिल सकें.व्यावसायिक तौर पर फूलों की
खेती अलग बात है, लेकिन व्यस्ततम जीवन शैली में स्थान या समय की कमी के कारण फूलों
से लदे वृक्ष या पौधे रोपने की परंपरा कम होती जा रही है.
भारतीय साहित्य और संस्कृति
में फूल-पौधों की हरीतिमा झलकती है,रंग बिखरे हैं और सुगंध छा गई है लेकिन जीवन की
आपाधापी में मन फूलों से लदी डालियों को छोड़कर रेगिस्तान के अनंत विस्तार में
भटकने लगा है.
आधुनिक जीवन के तनाव से बचने
के लिए सार्वजानिक उद्यानों,हरे-भरे उपवनों की सैर के लिए समय भले ही न हो लेकिन
एक गमले में लगे पतली सी टहनी पर झुका हुआ नन्हा सा फूल घर के भीतर छाए हुए उदासी
के धुंधलके के वातावरण को सचमुच सरस बना सकता है.
बहुत सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसच कहा है. गमले में खिला एक फूल जीवन में उमंग भर देता है.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसही लिखा है आपने, आजकल लोग प्रकृति की इस अद्भुत रचना से दूर होते जा रहे हैं।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : क्या हिन्दी ब्लॉगजगत में पाठकों की कमी है ?
समीक्षा - यूसी ब्राउज़र 9.5 ( Review - UC Browser 9.5 )
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteविस्तृत और लजवाब चर्चा ... जीवन से कितना ज्यादा जुड़े हैं रंग और रंगों से फूल ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deletemanohari....prastuti...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तृति....!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसच कहा ....साधुवाद
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteफुल जीवन में रंग और खुशबु दोनों भर देतें हैं --- सुन्दर चर्चा
ReplyDeletenew post बनो धरती का हमराज !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट...
ReplyDeleteवाह...
:-)
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeleteराजीव भाई , बढ़िया लेख बढ़िया अनुभूति , धन्यवाद
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi
फूल हर रंग में सुन्दर लगते हैं
ReplyDeleteयह बात भी सही है कि प्रकृति भी लोगों का साथ पाकर प्रसन्न होती है
सुन्दर प्रस्तुति
साभार !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteफूलों ने मन मोह लिया ..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteवाह्ह ..कितना मनभावन वर्णन किया लगा की इन वड़ो में घूम रही हु सजीव चित्रण ..साथ ही एक कटु सत्य को कह दिया अपने आधुनिक जीवन सैली हमें प्रकृति से दूर कर रही है
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteलाजबाब,सुंदर सार्थक प्रस्तुति ..!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर .....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रकृति चित्रण ..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteअति सुन्दर ऋतु वर्णन प्राव लिए शैली का सौंदर्य लिए।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteफूलों की खुशबु दूर तक फैलती रहे
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