'पंचतंत्र' एवं ईसप की कहानियां बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं.इनके अनेक भाग प्रकाशित होते रहे हैं.इसके अलावा बाल पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से पंचतंत्र एवं ईसप की नीति कथाएँ प्रकाशित होती रही हैं.
विश्व के कथा साहित्य के
उद्भव एवं विकास में नीति कथाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.हेरोडोटस,हिकेतियस
जैसे ग्रीक लेखकों की रचनाओं में ऐसे स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध हो
जाता है कि भारतीय नीति कथाएँ छठी शती ईसवी पूर्व तक यूनान पहुँच चुकी थीं.वहीँ से
ये कालांतर में यूरोप के अन्य देशों में विभिन्न अनुवादों के माध्यम से पहुँचती
रहीं.
‘नीति कथा’ का नाम लेते ही
दो व्यक्ति एकाएक उभर कर सामने आते हैं- ईसप तथा विष्णु शर्मा.ईसप के ‘फेब्लस ऑफ़
ईसप’ तथा विष्णु शर्मा रचित ‘पंचतंत्र’ सहज ही साकार हो उठते हैं.भले ही ईशप तथा
विष्णु शर्मा दो व्यक्ति रहे हों,परन्तु उनके ग्रंथ एक ही व्यक्ति की रचना लगते
हैं.दोनों ग्रंथों में एक सी कहानियां,एक से भाव,एक-से पात्र निश्चय ही एक
विवादस्पद परन्तु रोचक स्थिति को जन्म देते हैं.
ईसप का जन्म कब और कहाँ
हुआ,इस सन्दर्भ में प्रमाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता.कतिपय विद्वानों के
अनुसार तो ईसप यूनानियों की उपज मात्र है.प्रसिद्द ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस की
रचना ‘हिस्ट्रीज’ में निश्चय ही कुछ संकेत मिलते हैं.
हेरोडोटस के अनुसार ईसप एक कहानीकार था.वह छठी शती ई.पू. में हुआ.इतिहासकार ने कोई तिथि या स्थान नहीं दिया है.इसके बाद जेनोफोन,प्लेटो,अरस्तू,जैसे ग्रीक लेखकों की रचनाओं में भी ईसप का नाम मिलता है,लेकिन ऐसा कोई प्रमाण किसी भी लेखक के ग्रंथ में नहीं मिलता जिससे प्रमाणिक हो सके कि ईसप ने जो भी कथाएँ लिखी हैं, उनमें से कोई भी कथा उसने स्वयं लिपिबद्ध की हो या फिर उसके किसी समकालीन व्यक्ति ने ही ऐसा किया हो.ऐसी स्थिति में किसी भी कथा का नाम ईसप से जोड़ा जा सकता है.
हेरोडोटस के अनुसार ईसप एक कहानीकार था.वह छठी शती ई.पू. में हुआ.इतिहासकार ने कोई तिथि या स्थान नहीं दिया है.इसके बाद जेनोफोन,प्लेटो,अरस्तू,जैसे ग्रीक लेखकों की रचनाओं में भी ईसप का नाम मिलता है,लेकिन ऐसा कोई प्रमाण किसी भी लेखक के ग्रंथ में नहीं मिलता जिससे प्रमाणिक हो सके कि ईसप ने जो भी कथाएँ लिखी हैं, उनमें से कोई भी कथा उसने स्वयं लिपिबद्ध की हो या फिर उसके किसी समकालीन व्यक्ति ने ही ऐसा किया हो.ऐसी स्थिति में किसी भी कथा का नाम ईसप से जोड़ा जा सकता है.
यह भी उल्लेखनीय है कि ईसप
खास यूनान का रहने वाला नहीं था अपितु,उसका जन्म स्थल एशिया-माइनर माना जाता है.यूनान
में उसकी स्थिति दास की थी.उसकी मृत्यु के बारे में भी अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित
हैं.कहते हैं कि ईसप ने किसी मंदिर से एक सोने का कप चुरा लिया था.लोगों ने इसी
अपराध के लिए उसे मार डाला.कुछ विद्वान इस गलत बताते हैं.उनके अनुसार शत्रुओं ने
ही उसके सामान में सोने का कप स्वयं छिपाकर उस पर दोषारोपण करके उसे दंडित किया था.
ईसप का जीवन-चरित्र भले ही प्रमाणित न हो,परन्तु उसका नाम ‘नीति-कथा’ से सदा ही जुड़ा रहेगा.उसे शक्ल-सूरत से भद्दा,ठिगने कद का तथा बुद्धि-कौशल में अपूर्व बताया जाता है.यूनान में ईसप की टक्कर का कोई नाम सुनने में नहीं आता था.अतः कोई भी कथा कहीं से,किसी से भी चलती,वह अंततः ईसप की हो जाती.
ईसप की कथाओं का प्रथम
संकलन ई. पूर्व 300 में एथेंस में दमित्रियस द्वारा रचित बताया जाता है.यह संकलन
आज उपलब्ध नहीं है.न ही परवर्ती काल में इस का कोई अनुवाद किसी अन्य भाषा में
मिलता है.ऐसी स्थिति में दमित्रियस द्वारा संकलित किय जाने की बात भी अनुमान के
अतिरिक्त और कुछ नहीं है.
लैटिन में फैड्रस द्वारा
रचित या संकलित कथाकृति ‘फेबुला’ को प्राचीनतम उपलब्ध कृति माना जाता है.इसमें
फैड्रस ने कतिपय अपनी रचनाओं को भी ईसप के नाम पर संकलित कर दिया था.फैड्रस ने
त्रिपदी छंद का प्रयोग किया है.ग्रीक भाषा में उपलब्ध प्राचीनतम संकलन बैब्रियस का
है,जिसका रचना काल दूसरी शताब्दी है.ऐसा विश्वास करना तर्कसंगत प्रतीत होता है कि
बैब्रियस का आधार फैड्रस की रचना रही होगी.फिर बैब्रियस के आधार पर रोम निवासी एवियेनस
ने लैटिन में इन कथाओं को कविताबद्ध किया.पांचवीं शदाब्दी में फ्रेंच अनुवादों के
माध्यम से अन्य यूरोपीय देशों में प्रचलित हो गए.आज तो विश्व की शायद ही ऐसी कोई
भाषा हो,जिसमें ईसप की कथाएँ न प्रकाशित हुई हों.
अत्यंत प्राचीन काल से ही
भारतीय साहित्य में नीति-शास्त्र की शिक्षा देने के लिए पशु-कथाओं का प्रयोग किया
जाता रहा है.नीति-कथाओं का प्राम्भिक स्वरूप हमें ‘छान्द्ग्योपनिषद’ में मिलता
है.आवागमन के सिद्धांत में भारतीय विश्वास ने इस प्रकार की पशु-कथाओं के विकास में
महत्वपूर्ण योग दिया होगा.जातक कथाओं में स्वयं बुद्ध विभिन्न प्रकार के पशुओं के
रूप में प्रकट होते हैं.जातक कथाओं का समय ईसवी - पूर्व पांचवीं शताब्दी माना जाता
है.
‘पंचतंत्र’ एवं ‘हितोपदेश’
दो विश्वविख्यात भारतीय कथा ग्रंथ हैं,जिनमें पशु-पक्षियों की कथाओं के माध्यम से
नीति-शास्त्र की शिक्षा दी गई है.डॉ. हर्टेल ने ‘पंचतंत्र’ का रचना-स्थल कश्मीर को
तथा रचना – काल ईसवी पूर्व 200 माना है.’पंचतंत्र’ की विश्व-यात्रा अत्यंत रोचक
है.इसकी अनेक समानांतर कथाएँ किंचित स्थानीय परिवर्तनों के साथ ईसप की कहानियों
में मिलती हैं.
ये कहानियां बौद्ध-प्रचारकों,यात्रियों,आक्रमणकारियों,जिप्सियों
आदि के माध्यम से समय-समय पर विभिन्न देशों में पहुंचती रहीं.तदनंतर अनुवादों के
अनुवादों की परंपरा चल पड़ी.फारस के बादशाह अनुशेरवां के आदेश पर शाही हकीम बुर्जोए
ने ‘पंचतंत्र’ का पहलवी भाषा में अनुवाद किया.इसके बाद अनुवादों का सिलसिला चल
पड़ा.
‘पंचतंत्र’ एवं ‘फेब्लस ऑफ़
ईसप’ में अनेक समान कथाएँ मिलती हैं,जिनके तुलनात्मक विश्लेषण एवं अध्ययन से
स्पष्ट निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकते हैं.इसी तरह की एक समान कथा ‘करालकेसर’ नामक
शेर एवं ‘धूसरक’ नामक गीदड़ एवं ‘लम्बवर्ण’ नामक गधा की है. पंचतंत्र की इस कथा की
सामानांतर कथा ‘फेब्लस ऑफ़ ईसप’ में ज्यों की त्यों मिलती है.अंतर केवल इतना है कि शेर
का सेवक यहाँ गीदड़ न होकर लोमड़ी है.
इस कहानी का शेर भी लोमड़ी से अनुरोध करता है कि वह उसके लिए मृग को फांसकर लाए.लोमड़ी मृग को शेर का उत्तराधिकारी नियुक्त किये जाने की बात कह उसे फुसलाकर ले जाती है.पहली बार वह पंचतंत्र के गधे की भांति पंजा पड़ते ही भाग निकलता है,परन्तु दूसरी बार मारा जाता है.लोमड़ी मृग का दिल खा जाती है और शेर क्रुद्ध होता है.लोमड़ी प्रत्युत्तर में ऐसा कहकर शेर को शांत करती है कि “मृग का तो दिल था ही नहीं.क्योंकि उसके दिल होता तो वह मृत्यु-जाल में फंसता ही क्यों?"
इस कहानी का शेर भी लोमड़ी से अनुरोध करता है कि वह उसके लिए मृग को फांसकर लाए.लोमड़ी मृग को शेर का उत्तराधिकारी नियुक्त किये जाने की बात कह उसे फुसलाकर ले जाती है.पहली बार वह पंचतंत्र के गधे की भांति पंजा पड़ते ही भाग निकलता है,परन्तु दूसरी बार मारा जाता है.लोमड़ी मृग का दिल खा जाती है और शेर क्रुद्ध होता है.लोमड़ी प्रत्युत्तर में ऐसा कहकर शेर को शांत करती है कि “मृग का तो दिल था ही नहीं.क्योंकि उसके दिल होता तो वह मृत्यु-जाल में फंसता ही क्यों?"
पंचतंत्र की कहानी ईसप की
कथा से घटनाओं,पात्रों,भाव,वातावरण आदि के चित्रण की दृष्टि से अधिक मनोवैज्ञानिक
तथा अधिक स्वाभाविक एवं प्रभावशाली जान पड़ती है.इसी प्रकार दोनों में समान रूप से मिलने
वाली कथाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण से सामान्य निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं.
‘पंचतंत्र’ की कथाएँ ईसप की
तथाकथित नीति-कथाओं से प्राचीनतर एवं पूर्ववर्ती सिद्ध होती है.पंचतंत्र की एक मूल
कथा योजना है.ईसप की कथाएँ स्वतंत्र हैं.ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि विभिन्न
लेखकों ने अपनी स्वतंत्र कथाओं को भी सहज ही ईसप की कथाओं में डाल दिया होगा.पंचतंत्र के संबंध में ऐसा जान नहीं पड़ता.
दोनों ग्रंथों में
उपदेशात्मकता की प्रवृति तो समान रूप से मिलती है,परन्तु पंचतंत्र में कथा मुख्य
एवं स्वाभाविक रूप से चलती है तथा उपदेश कथा में से निःसृत होता है,जबकि ईसप की
कथाओं में प्रधानता उपदेशात्मक-सूत्र की रहती है,तथा कथा गौण हो जाती है.भारत में
नीति-कथाओं के अनेक संग्रह मिलते हैं,जबकि ग्रीक भाषा में ईसप का एक ही कथा-संग्रह
है.
निश्चित रूप से कहा जा सकता
है कि ईसप की कथाएँ पंचतंत्र से प्रेरित,प्रभावित एवं उसी पर आधारित हैं.वास्तव
में विष्णु शर्मा का पंचतंत्र ही ईसप की कहानियां हैं.
सुन्दर आलेख ..ज्ञानवर्धक एवं रोचक KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )
ReplyDeleteएक सुंदर विषय पर सुंदर आलेख ।
ReplyDeleteAesop ki kahaniya Panchtantra se itni prabhivit huyi, kabhi malum na tha. Bharat aise hi vishv guru nahi kehlata tha :). dhanybad !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुन्दर समालोचनात्मक आलेख
ReplyDeleteसुंदर आलेख
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Delete‘पंचतंत्र’ एवं ‘हितोपदेश की कहानियाँ तो पढ़ी हैं पर इसप की कहानियाँ नहीं पढीं ... पर इतना कह सकता हूँ की किसी खजाने से कम नहीं हैं ये कहानियाँ ...
ReplyDeleteसुन्दर और सटीक लेख |
ReplyDeleteआशा
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteईसप के बारे में रोचक जानकारी एवं कहीं विष्णु शर्मा ही तो ईसप तो नहीं. रोचक आलेख.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteवाकई रोचक तथ्य !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteकल 07/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteरोचक जानकारी देता सुंदर आलेख..!
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबढ़िया पोस्ट....
ReplyDeleteबड़ी अनूठी चीज़ खोज कर लायें हैं आप..
और आपकी बात में सत्यता लगती है.
आभार
अनु
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबढ़िया सुंदर लेखन , राजीव भाई , धन्यवाद
ReplyDeleteसर्च इंजन क्या है ? { What is search engine ? }
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteदोनों ग्रंथों में उपदेशात्मकता की प्रवृति तो समान रूप से मिलती है,परन्तु पंचतंत्र में कथा मुख्य एवं स्वाभाविक रूप से चलती है तथा उपदेश कथा में से निःसृत होता है,जबकि ईसप की कथाओं में प्रधानता उपदेशात्मक-सूत्र की रहती है,तथा कथा गौण हो जाती है.भारत में नीति-कथाओं के अनेक संग्रह मिलते हैं,जबकि ग्रीक भाषा में ईसप का एक ही कथा-संग्रह है.
ReplyDeleteलाज़वाब तथ्य -विश्लेषण परक तुलनात्मक अध्ययन किया है आपने ईसप और विष्णु शर्मा का इनके कृतित्व का।
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुन्दर, ज्ञानवर्धक और रोचक आलेख...पंचतंत्र, हितोपदेश या ईसप कथाएं शिक्षा के लिए ही बनी थी...ये कथाएं हमारे जीवन दर्शन की कथा कहती हैं… इन दोनों नीति कथाओं का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करने लिए आभार...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआपने विष्णु शर्मा के एक होने का संकेत दिया है इसमें कोई आश्चर्य नही । महाजलप्लावन की एक घटना कई नाम रूपों में मिलती है । मैंने तो एक जगह यह भी पढा कि जितने भी ही मेन सुपरमैन जैसे पात्र हैं वे महाबली हनुमान से प्रेरित हैं । गौडवानालैण्ड जब विभाजित हुआ तो कथाएं भी विभाजित होगई होंगी और भाषा धर्म आदि के अनुसार उनमें परिवर्तन होते गए होंगे । उल्लेखनीय है कि अँग्रेजी जर्मनी आदि भाषाओं के अनेक शब्द संस्कृत के हैं । बहुत उपयोगी आलेख ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteज्ञानवर्धक आलेख...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteपंचतंत्र ईसप की कहानिया बचपन में मै खूब पढ़ती थी
ReplyDeleteलेकिन सविस्तार जानकारी आपके द्वारा आज ही जाना
आभार आपका सार्थक लेख है !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर एवं ज्ञानवर्द्धक आलेख.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत ज्ञानवर्धक और रोचक आलेख....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteदेहात में हमेशा ही कुछ नया और ज्ञानवर्धक जानने को मिलता है। हार्दिक आभार।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! नीरज जी. आभार.
Deleteबंधुवर आपकी रचनाएं अपनी उत्कृष्टता हर दृष्टि से बनाये रहतीं हैं।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर ,ज्ञान वर्धक और रोचक आलेख ...हृदय से धन्यवाद !
ReplyDelete