अक्सर यह सवाल उठता रहा है
कि क्या जानवर पालने वाले दीर्घजीवी होते हैं? मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सकों की
राय में युवाओं और बच्चों में पालतू जानवरों के प्रति जो प्रतिक्रिया होती है,उससे
व्यक्तित्व के निदान में काफी सहायता मिल सकती है.अवकाशप्राप्त व्यक्तियों के निष्क्रिय
जीवन में भी पालतू पशु की उपस्थिति परिवर्तन लाती है.
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डॉ.
बोरिस लेविंसन ने अपने प्रयोगों द्वारा इसे सिद्ध भी किया है.उनके पास नियमित इलाज के लिए मानसिक रोग से पीड़ित एक बच्चा आया.डॉ.
लेविंसन का पालतू कुत्ता भी वहीँ था.वह बच्चा कुत्ते के साथ खेलने लगा.डॉ.लेविंसन
ने कुत्ते के साथ उस बच्चे के खेल की गतिविधियों को बड़े ध्यान से देखा.उन्हें यह
देखकर आश्चर्य हुआ कि उस दिन वह बच्चा उनके इलाज के दौरान असामान्य रूप से संवेदनशील हो गया था.
डॉ. लेविंसन को इस अध्ययन
से इलाज का एक महत्वपूर्ण तथ्य अनायास ही हाथ लग गया था.इस संबंध में उन्होंने
बहुत सी रिपोर्टें प्रकाशित करवायीं.रिपोर्टों में उन्होंने बताया कि मानसिक रोग
से पीड़ित बच्चों,अस्पताल में पड़े शारीरिक रूप से बीमार लोगों और मानसिक रूप से
अविकसित लोगों के इलाज में पालतू जानवर कितने सहायक हो सकते हैं.
डॉ. लेविंसन का विचार है कि
पालतू जानवरों के माध्यम से किया जाने वाला इलाज उन बच्चों के इलाज में सबसे अधिक
सहायक है,जो चुपचाप रहते हैं,हमेशा विघ्न डालते हैं और जिनका इलाज लगभग असंभव है. इसके
अतिरिक्त यह इलाज मानसिक रोगियों तथा उद्वेग से त्रस्त बीमारियों के शिकार लोगों
के लिए भी सहायक हो सकता है.
एक जानवर की उपस्थिति
वातावरण को अधिक प्राकृतिक बना देती है,जिससे बच्चा स्वयं को काफी आरामदेह स्थिति
में पाता है.उसे यह आभास नहीं होता कि कोई उसकी गतिविधियों का निरीक्षण कर रहा
है.हालांकि डॉ. लेविंसन से पहले भी अन्य लोगों का ध्यान इस ओर गया था कि पालतू
जानवरों के माध्यम से इलाज किया जा सकता है लेकिन इसे नजरंदाज कर दिया गया.
जानवरों के माध्यम से किये
जाने वाले पहले के इलाज तथा लेविंसन के इलाज में एक अंतर यह था कि पहले इस तरह
के इलाज में वैज्ञानिक सोच का अभाव था.उस समय इस इलाज का कोई भी ऐसा निश्चित परिणाम
नहीं था,जिसके आधार पर भविष्य में इस इलाज को बढ़ावा दिया जाय.
लेविंसन की तरह सैमुएल तथा
एलिजाबेथ कोर्सन ने भी एक घटना से यह पाया कि जानवर मनुष्यों के इलाज में किस तरह
सहायक हो सकते हैं.इन दोनों मनोचिकत्सकों ने कुत्तों के व्यवहार का अध्ययन
किया.कुछ मरीजों ने उनके अस्पताल के कंपाउंड में रहने वाले कुत्तों के साथ मन
बहलाने की इच्छा और उनकी देखभाल करने की इच्छा प्रकट की.मरीजों की इच्छा को देखते
हुए इन मनोचिकित्सकों ने 28 मरीजों को कुत्तों के देखभाल की अनुमति दी.इन मरीजों
पर तब तक किसी भी उपचार का कोई प्रभाव नहीं हुआ था और उन्हें लाईलाज समझा गया था.लेकिन
इस प्रयोग का उन अच्छा प्रभाव पड़ा.
डॉ. कोर्सन ने इससे
निष्कर्ष निकाला कि जानवर मरीजों में जिम्मेवारी की भावना को बढ़ावा देते हैं.साथ
ही वे उन्हें यह भी अहसास कराते हैं कि समाज के लिए वे बेकार नहीं हैं,बल्कि समाज
को उनकी जरूरत है.उनके अनुसार,इस तरह के इलाज में मुख्य रूप से कुत्ते सहायक होते
हैं, क्योंकि वे मरीज को अपना पूरा प्यार देते हैं.
इस तरह के इलाज में जानवरों
के माध्यम से किसी को ठीक नहीं किया जाता,बल्कि ये जानवर सुविधा प्रदान करने का
काम करते हैं.ये जानवर मरीज का भावनात्मक स्तर बढ़ा देते हैं,जिससे मरीज अपने विषय
में जरा अच्छे ढंग से सोचने लायक हो जाता है.जानवरों में मरीजों से ‘रेस्पोंस’
प्राप्त करने की क्षमता होती है,क्योंकि मरीजों के लिए वे पूरी तरह स्वीकार्य होते
हैं.
व्यक्ति जब अपने पालतू
जानवर के साथ होता है तो उसका रक्तचाप सामान्य रहता है.व्यक्ति और पालतू जानवर में
प्रेम की अभिव्यक्ति बोलकर भी हो सकती है और बिना बोले भी.कोई व्यक्ति जब पालतू
जानवर के साथ होता है तो अधिकतर खामोश रहता है,जिससे उसे सुकून मिलता है.जब वह
अन्य लोगों के साथ होता है तो वह बिना बोले नहीं रह सकता.
चिकित्सकों का एक निष्कर्ष
यह भी है कि किसी जानवर से मरीज का साथ उसके रोग के प्रभाव को कम करता है तथा आयु
को बढ़ाता है.पश्चिमी देशों में बहुत से वृद्ध पुरुषों की देखभाल करने वाला कोई नहीं
होता.समाज की दृष्टि में वे स्वयं को निरर्थक महसूस करने लगते हैं.ऐसेलोग
जानवरों में दिलचस्पी लेते हैं.कई ऐसी महिलाएं,जो
युवावस्था में कभी बच्चों की देखभाल में व्यस्त रहती थीं,बच्चों के घर छोड़ते ही
परेशान हो जाती हैं,क्योंकि उनके पास,करने के लिए कोई काम नहीं होता.पालतू पशुओं
की देखभाल में उन्हें मानसिक संतुष्टि मिलती है.
यह निर्विवाद रूप से सत्य
है कि स्पर्श से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है.इस दृष्टि से बच्चों को स्पर्श करने
की आवश्यकता तो बहुत पहले से स्पष्ट है लेकिन अब जानवरों के साथ भी यही भावना पाई
जाती है.
वे वृद्ध पुरुष जो दिन भर
स्वयं को किसी काम में व्यस्त रखते हैं,अधिक समय तक जीवित रहते हैं.यह भी देखा गया
है कि दिन भर कोई काम न करने वाले अवकाशप्राप्त व्यक्तियों के जीवन में एक पालतू
पशु की उपस्थिति परिवर्तन ला देती है.
घोर सहमति :)
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट ।
ReplyDeleteकहीं कोई डॉक्टर ने पढ़ ले आपकी पोस्ट को ! डॉक्टर को परेशानी हो सकती है , उसके प्रोफेशन पर असर पड़ सकता है ! लेकिन ये जरूर कहूँगा की एक बेहतरीन और अलग हटकर पोस्ट लिखी है आपने ! जितना डॉ. कोर्सन ने अनुसंधान किया होगा उससे ज्यादा आपने किया है !
ReplyDeleteबढ़िया लेखन , राजीव भाई धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 5 . 9 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
आभार ! आशीष भाई.
DeleteThat was informative....Thanks for sharing
ReplyDeleteपालतू तो परिवार के सदस्य जैसे ही बन जाते हैं।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteपश्चिमी जगत में तो स्वयं (पालतू कुत्ता )स्वयं पर्यावरण और घर का हिस्सा बन चुका है। मैं कई लोगों को उनके पैट के माध्यम से ही जानता हूँ ,बढ़िया पोस्ट राजीव जी की।
आदरणीय राजीव जी! सुंदर ब्लॉग पालतू जानवरों के महत्व को उजागर करता होआ!
ReplyDeleteधरती की गोद
umda vishay...jaanware ke liye jaldi koi sochta nhi....behatareen jaankario k saath sunder lekh
ReplyDeleteपालतू जानवर, उनकी उपस्थिति का अपना ही महत्त्व होता है .... पाश्चात्य समाज में तो बहुत ही अधिक रूप से जानवरों को पाला जाता है ,... वो एकाकी पन के साथी होते हैं उनके ... उनकी उपस्थिति रोग समस्या को सुझाने में भी सहायक होती है ये आज जाना ... अच्छा आलेख ...
ReplyDeleteआज जबभारत में भी कुत्ते पालने का प्रचलन बढ़ा है तो इनके हानि लाभ की जानकारी तो होनी ही चाहिए और आपने आलेख को पढ़ कर ज्ञान बढ़ा जो लोग नाक मुह बनाते हैं उन्हें अवस्य पढनी चाहिये ..बहुत -२ बधाई
ReplyDeleteसुंदर आलेख...पालतू जानवर कई मायनों में अच्छे मित्र या सहायक सिद्ध होते हैं। पशु-पक्षियों का साहचर्य प्राप्त करना हमारी सुदीर्घ परंपरा का अटूट हिस्सा है। पर्यावरण की दृष्टि से भी पशु-पक्षियों का संरक्षण अत्यावश्यक है।
ReplyDeleteवाह...सुन्दर पोस्ट...
ReplyDeleteसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
पालतू जानवरों के साथ खेलने रहने से वाकई बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है, वे अपने भावों को प्रकट करने का एक उपाय भी पाते हैं, वृद्धों के लिए कहाँ तक ठीक है यह कहना मुश्किल है..
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