हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव
के लिए शत शरद जीवित रहने की कामना की थी – ‘जीवेम
शरदः शतम्’ और उसके लिए खान-पान,रहन-सहन आदि की एक आचार-संहिता तैयार
की थी.उन्होंने कहा था कि शरीर से पूरा काम लें और उसे पूरा आराम दें.पूरी नींद
सोएं और सूर्य निकलने से पहले उठें.
अंग्रेजी में कहावत है कि –
अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज
मेक्स ए
मैन,वेल्दी ऐंड वाइज
(रात में जल्दी सोने और
सुबह जल्दी उठने से मनुष्य स्वस्थ,धनवान और बुद्धिमान होता है.)
लेकिन आज कुछ वैज्ञानिक इस
‘स्वर्ण-नियम’ को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानने लगे हैं.उनका कहना है कि पृथ्वी
का वायुमंडल इतना दूषित हो गया है कि वातावरण में पायी जाने वाली ओजोन परत की तह
भी नष्ट होने लगी है.फलस्वरूप प्रातःकालीन सूर्य की किरणों में जो अल्ट्रा-वायलेट
किरणें शरीर के लिए लाभप्रद होती थीं, वे अब त्वचा-कैंसर पैदा कर सकती
हैं.चिकित्सकों का कहना है कि पर्यावरण के दूषित होने से आज का आदमी रासायनिक
विद्युत-चुम्बकीय और सोनिक प्रदूषण के गहरे सागर में तैर रहा है,जो उसके लिए
प्राणघातक है.इसी तरह खाने-पीने की वस्तुओं के बारे में समय-समय पर हुई नयी खोजों
ने भी तहलका मचा दिया है.
पिछले दिनों अख़बारों में
निकला कि डाक्टरों ने चाय,कॉफ़ी और दूध को भी हानिप्रद माना है,क्योंकि इनसे शरीर
में ‘कोलेस्ट्रोल’ की मात्रा बढ़ जाती है,फलस्वरूप ह्रदय-रोग और आँतों का कैंसर हो सकता है.
यह बात चाय,कॉफ़ी और दूध तक
ही सीमित होती तो गनीमत थी,लेकिन ऐसी अनेक नयी खोजों ने जीना ही हराम कर दिया
है.कुछ डॉक्टरों ने मक्खन को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया है तो कुछ ने अंडे
को,कुछ ने मांस को तो कुछ ने चीनी को.ब्रिटेन के एक डॉक्टर ने बताया था कि नमक
अधिक खाने से रक्त में सोडियम की मात्रा बढ़ती है और इससे आत्महत्या की प्रवृत्ति
उत्पन्न हो सकती है.उन्होंने अपनी खोज में यही पाया है कि आत्महत्या करने वालों के
रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा पायी गयी.
कैंसर,ह्रदय रोग जैसे इस
युग के ऐसे प्राणघातक रोग हैं जिनका भय रोगों को सताता रहता है.इन रोगों का पहले
कोई विशेष लक्षण नहीं मालूम होता,जिससे पहले से बचाव किया जा सके.प्रायः लोगो का
इनकी ओर तभी ध्यान जाता है,जब ये पूरी तरह उभर आते हैं और उस समय मनुष्य मृत्यु के
कगार पर खड़ा होता है.अनेक नयी खोजें यह बताती हैं कि खाने-पीने की कितनी ही चीजें
इन महारोगों के साथ जुड़ी हैं.
आज के वैज्ञानिकों ने
खाने-पीने की चीजों के संबंध में जो निष्कर्ष निकाले हैं,उनके कारण हम अपने को ऐसी
संकटपूर्ण स्थिति में पाते हैं कि खाद्य-अखाद्य का निर्णय करना कठिन हो गया
है.शायद मानव अब यह सुनने की प्रतीक्षा में है कि आदमी की जिंदगी ही मौत का सबसे
बड़ा कारण है.अतः वैज्ञानिकों के लिए किसी भी चीज को खतरनाक बताना आसान है.
आंकड़ों की बाजीगरी की एक
मिसाल कई साल पहले ‘हॉस्पिटल प्रैक्टिस’ पत्रिका में डॉ. मोरोत्विज के लेख से
मिलती है.मोरोत्विज ने धूम्रपान के मौत और विकृतियों के साथ संबंध पर श्रमसाध्य
अध्ययन किया.उनके इस अध्ययन के मूल निष्कर्ष को अमेरिका सहित दुनिया के सभी देशों
में सिगरेट के डब्बों पर छपा हुआ देखा जा सकता है.सिगरेट के डब्बों पर लिखा रहता
है : “चेतावनी : धूम्रपान आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.”
मोरोत्विज ने भोजन की किस्म
और मृत्यु-दर के संबंध में भी आश्चर्यजनक आंकड़े दिए है.इन आंकड़ों के अनुसार तला
हुआ भोजन अधिक उपयुक्त है.दूसरे अध्ययन में उन्होंने नींद और मृत्यु-दर के संबंध
में आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया है कि रात में छह घंटे से कम सोना और नौ घंटे
से अधिक सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकर है.मोरोत्विज के अनुसार अधिक जीने के लिए
अधिक से अधिक पढ़ना चाहिए.
कद का भी मौत के साथ संबंध
हो सकता है,यह शायद हम सबने कभी सोचा भी न हो,लेकिन मोरोत्विज के निष्कर्षों के
अनुसार साढ़े 5 फुट से 6 फुट 1 इंच तक की लंबाईवाले व्यक्तियों की मृत्यु-दर क्रमशः
कम होती जाती है.
इन सभी नयी खोजों और इनके
निष्कर्षों को पढ़कर सवाल उठता है कि क्या इन सलाहों को गंभीरता से लिया जाना
चाहिए? जबाब शायद यही होगा कि – शायद नहीं,क्योंकि इन्हें गंभीरता पूर्वक लें तो
जीना ही दूभर हो जाय.इसलिए यदि जीना है तो सबकुछ मजे में खाएं और प्रसन्नचित्त
रहें.
Keywords खोजशब्द :- Balanced
Diet, What to eat, Life Style
आज की खोज कल की खोज को उलट देती है ... यही आधुनिक विज्ञानं की कमी कहो या कुछ भी कहो ... इसलिए जो करना है करो ... जिओ आराम से जिओ ...
ReplyDeleteBahut sunder va rochak aalekh...ab khana bhi dushwar hua bahut dukhad hai
ReplyDeleteसबकुछ मजे में खाएं और प्रसन्नचित्त रहें... sahi hai... aaj hi doctor ne kaha mujhe to.. mostly psychological hai ye sab..
ReplyDeleteअति सर्वत्र वर्जनीय ! संतुलित रूप से सबकुछ मजा लेकर खाइए और खुश रहिये | मरने का तो लाखों बहाने हो सकते है डरना क्यों ?
ReplyDeleteक्या हो गया है हमें?
परन्तु ओजोन परत एवं पर्यावरण को बचाना जरूरी है.सुंदर आलेख.
ReplyDeleteBahut hi umda rachna
ReplyDeleteNav varsh ki badhai.
आखिर खाए तो क्या खाएं ...और सही सलाह किसकी माने ..सब गफलत में ..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
नव वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं!
आये दिन नए नए शोध आते रहते हैं,किस किस पर विश्वास किया जाये कुछ तो इतने विरोधभासी होते हैं कि व्यक्ति असमंजस में पड़ जाता है इसलिए अपना शोध यह कहता है कि संतुलित आहार व बेफिक्र जीवन,आवश्यक शारीरिक श्रम के साथ जीवन जीना ही स्वस्थ जीवन है अन्यथा ये शोध तो जीना ही काठी कर देंगे और इंसान इनको अपनाते अपनाते धरती से कूच कर जायेगा
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकद का भी मौत के साथ संबंध हो सकता है,यह शायद हम सबने कभी सोचा भी न हो,लेकिन मोरोत्विज के निष्कर्षों के अनुसार साढ़े 5 फुट से 6 फुट 1 इंच तक की लंबाईवाले व्यक्तियों की मृत्यु-दर क्रमशः कम होती जाती है. चलो , मैं तो बच गया ! मेरी लम्बाई इसी रेंज में है , हहाआआआ ! रोचक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति दी है आपने राजीव जी
ReplyDeleteThank you sir. Its really nice and I am enjoing to read your blog. I am a regular visitor of your blog.
ReplyDeleteOnline GK Test
ReplyDeleteमानव शरीर को सौ वर्ष के लिए डिज़ाइन किया गया है , हर स्थिति और परिस्थितियों को झेल सकती है हमारी जीवनी शक्ति अगर हम खुद इसे बर्वाद करने का पर्यटन न करें , आभार सुन्दर लेख के लिए !
सुंदर आलेख...अच्छी सेहत का कोई मान्य नुस्खा तो है नही. पहले की बात और थी. अतः प्रसन्न रहें, चिंता न करें...मर्ज़ से डरे नहीं, लड़े.
ReplyDeleteस्वास्थ्य सम्बन्धी सुन्दर आलेख! साभार! राजीव जी!
ReplyDeleteधरती की गोद