Thursday, April 17, 2014

सृष्टि का नियंता : स्त्री या पुरुष












मनुष्य जाति की उत्पति के दो आदिम स्रोत हैं – आदम और हौवा.यही किसी देश में शिव और शक्ति के रूप में,किसी देश में पृथ्वी और आसमान के नाम से,ज्यूस तथा हेरा तथा कहीं यांग और यिन जैसे विभिन्न प्रतीकों से जाने जाते हैं.भिन्न-भिन्न नामों एवं प्रतीकों के बावजूद मानव जाति की उत्पति की मूल कल्पना एक है.

ईसाईयों के प्रख्यात धर्मग्रंथ ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में कहा गया है.......

‘ईश्वर बोला....
यह सही नहीं है
पुरुष अकेला रहे
रचूंगा मैं
इसका कोई सहयोगी
और रीढ़
जिसको ईश्वर ने लिया
पुरुष से रचना की उसने उससे
केवल नारी की’

आज भी हमारा देश पुरुष-प्रधान है.शरीर विज्ञानियों के मत में प्रकृति ने पुरुष को चार लीटर वाली और स्त्री को तीन लीटर वाली कार  के रूप में निर्मित किया है.स्त्री की अपेक्षा पुरुष अधिक बड़ा और बलवान होता है.इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सदियों से पुरुषों ने स्त्रियों पर प्रभुत्व जमाया है,जब आरंभिक काल में आर्य-पूर्वजों ने उत्तरी भारत पर हमला किया था.

सदियों बाद ऋषि और हिन्दू धर्म के नियामक मनु ने व्यस्था दी थी कि बीज(पुरुष),मिट्टी(स्त्री)से श्रेष्ठ है.मनु की संहिता हिंदू समाज को शासित करती रही है.इस युग से पहले,पाषाण युग में स्त्री का स्तर पुरुष की अपेक्षा ऊँचा था और उन्हें प्रसव की देवी के रूप में सम्मान प्राप्त था.पुरुष को आक्रामक और प्रभावी माना जाता है और वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकता है.पुरुष परंपरा को जारी रखते हुए कहा गया कि स्त्री दुर्बल पात्र है जो आक्रामक नहीं होती,वह पर निर्भर और विचारों से व्यक्तिनिष्ठ होती है.

लेकिन प्रश्न उठता है कि पुरुष समाज का वर्चस्व कैसे आया? क्या माँ की प्रकृति का ढांचा ही ऐसा है कि वह मादा की अपेक्षा नर को अधिक शक्ति प्रदान करती है या क्या यह सब पुरुष का ही काम है.अतीत में झांकने पर पता चलता है कि साधारणतया पेड़ों पर रहने वाले बंदरों ने धरती पर सीधे खड़े होकर चलने की कोशिश की और वे चलने में सफल भी हुए.प्रकृति ‘योग्यतम की अतिजीविता’ के सिद्धांत की पक्षधर है और बंदर तथा उनके विकसित प्रतिरूपों,आधुनिक मनुष्य के पूर्वज अर्थात् आदिमानवों को अन्य स्तनपायियों की अपेक्षा अधिक सुविधाएं थी.

पहली सुविधा तो यह है कि वस्तुओं को पकड़ने के लिए उनके हाथ अधिक स्वतंत्र हैं.मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसका अंगूठा हथेली से समकोण बनाते हुए स्थित होता है,जिसकी वजह से वह चीजों को अंगूठे और अँगुलियों के बीच पकड़ सकता है.अन्य प्राणियों के अंगूठे और अंगुलियाँ एक सीध में होते हैं.दूसरी सुविधा यह है कि अन्य स्तनपायी प्राणियों की अपेक्षा बंदर और मनुष्य में बेहतर वृद्धि होती है.हॉबेल का कहना है कि ‘मनुष्य अपने मस्तिष्क के कारण ही मनुष्य है.’

आदिमानव के वंशज – गुफाओं में रहने वाले नर और मादा जंगल में स्वतंत्र विचरते थे.नर,अभी तक मादा के ह्रदय और घर का स्वयंभू रक्षक नहीं बन पाया था.दोनों ही अपने भोजन की खोज स्वतंत्र करते थे.पुरुष की शारीरिक श्रेष्ठता और नारी की तथाकथित हीनता उस दिन से शुरू हुई जिस दिन पुरुष ने आग की खोज की.ऐसा विश्वास किया जाता है कि चार लाख वर्ष पूर्व मनुष्य के पूर्वज ने रोडेशिया में जंगल की आग या ज्वालामुखी का विस्फोट देखा था.तब उसने कोई लकड़ी जलाई होगी और अपनी समीपस्थ गुफा में ले गया होगा,जहाँ उसने सुखद गर्मी प्राप्त करने के लिए उस आग को लकड़ियाँ जला-जलाकर बनाये रखा होगा.प्राणिशास्त्री कार्लस्टन कून के अनुसार ’आग के उपयोग के आधार पर ही मनुष्य और अन्य प्राणियों में अंतर किया जा सकता है.

चौथे हिमयुग में जीवित रहने के लिए मनुष्य को आग का इस्तेमाल करना पड़ा जिसकी जानकारी उसने अपने अन्य साथियों को दी होगी.आग को जलाये रखने के लिए,किसी न किसी को हर समय गुफा में ही रहना पड़ता और यह दायित्व स्त्रियों पर ही आ पड़ा होगा.आदि पुरुष अपनी स्त्री के लिए भोजन खोजने और और जुटाने वाला बन गया.वह घर के बाहर सक्रिय जीवन बिताता और स्त्री घर में ही सीमित रह गई.शताब्दियों तक अभ्यास की कमी के कारण वह दुर्बल पक्ष बन गई,जबकि अन्य स्तनपायी प्राणियों की मादाएं भोजन की खोज करती हैं और नर की अपेक्षा दुर्बल नहीं मानी जातीं.फिर भी,प्राणियों में पुरुष ने भोजन जुटाने वाले और संरक्षक का ताज पहन लिया.


नृवंशशास्त्रियों ने पुरुष की बेहतर शारीरिक क्षमता के सन्दर्भ में एक चतुराई पूर्ण तर्क प्रस्तुत किया है-पुरुष का स्त्री पर अधिकार जमाना.इस भावना की पूर्ति के लिए वह अन्य पुरुषों से लगातार युद्ध करता रहा.उसने स्त्रियों को हासिल करने या शत्रुओं द्वारा चुराई गई अपनी स्त्रियों की मुक्ति के लिए भी युद्ध किये.

शारीरिक संरचना की दृष्टि से देखें तो किशोरावस्था में अक्सर खामोश रहने वाला किशोर या तो स्वयं को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाले उपेक्षित नवयुवक के रूप में परिवर्तित हो जाता है या फिर बेहद आत्मविश्वासी बलिष्ठ युवक के रूप में.

इसके विपरीत,एक युवती अपनी किशोरावस्था को बिना किसी मानसिक उद्वेलन के सहजता से व्यतीत कर लेती हैं.वह अधिक समझदार,सही खान-पान के प्रति सचेत होती हैं.उसके मादा हारमोन उसे उच्च रक्तचाप,ह्रदय रोग तथा आघात जैसे प्रौढ़ावस्था के शत्रुओं से बचाते हैं.इसके अलावा वह तनावों को अच्छी तरह झेल लेती हैं.

चिकित्सा विज्ञानियों के अनुसार - इसके पीछे दो महत्वपूर्ण कारक हैं- उनकी अश्रु-ग्रंथि,जिसे विश्व की सर्वाधिक प्रभाव वाली जल-शक्ति कहा गया है,और उनकी जीभ जो तनाव-प्रतिरोधक का काम करती हैं.स्त्रियाँ तनाव से ग्रस्त नहीं रहतीं.वे पुरुषों की तुलना में तनाव को भी भली प्रकार सहन भी कर लेती हैं.इसके विपरीत पुरुष सहज ही प्रौढ़ावस्था की व्याधियों का शिकार हो जाता है और आसानी से तनावग्रस्त हो जाता है.   

33 comments:

  1. उत्पत्ति से लेकर शारीरिक बनावट का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है. आज औरत की सहनशीलता और तनाव झेलने की क्षमता ही उनकी प्रगति का कारण है. बहुत बढ़िया आलेख.

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    1. सादर धन्यवाद ! पंकज जी. आभार.

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  2. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! राकेश जी. आभार.

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  3. शरीर कि क्षमता और संरचना क्यों विशिष्ट है ये तो शायद ऊपर वाले ने कुछ सोच कर ही बनाई होगी ... शायद श्रृष्टि के सतत शाश्वत रहने का कारण भी यही हो ...

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  4. .
    बढ़िया लेख, बधाई...
    प्रागैतिहासिक काल से ही पुरुषों को शारीरिक तौर पर स्त्रियों से श्रेष्ठ साबित किया जाता रहा है. लेकिन विज्ञान अपने शोधों और खोजों से यह लगातार सिद्ध करता रहा है कि स्त्रियाँ किसी भी मायने में पुरुषों से कम नहीं हैं.

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  5. ज्ञानवर्धक लेख...

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  6. बहुत लाज़वाब लेख
    बहुत शोध के साथ उत्कृष्ट विषय पे आपने लिखा है आदरणीय सर
    बधाई

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  7. बहुत सार्थक आलेख है राजीव भाई !
    स्त्री पुरुष से भिन्न जरूर है पर कमतर बिलकुल भी नहीं है !

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    Any student will have to keep the re-admission form, bank challan copy, and other documents with them. After applying for re-admission, hard copies of these documents will not be submitted to the concerned college or university right now.

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