आँखों को लेकर बेहद संजीदा और उम्दा शायरी की गई है.तमाम नए और पुराने शायरों ने आँखों की भाषा पढ़ने की कोशिश की है और तरह तरह की उपमाएं दी हैं.
जर्मन लेखक और कवि राइनर मारिया रिल्के की एक कविता है, जिसका अनुवाद रामधारी सिंह 'दिनकर' ने किया था.कविता कुछ इस प्रकार है - 'काढ़ लो दोनों नयन मेरे, तुम्हारी ओर अपलक देखना तब भी न छोडूंगा'. यहाँ प्रेम अपनी पराकाष्ठा की हद को छू लेता है.आँख न होने के बावजूद भी लगातार देखे जाने की बात वही इंसान कर सकता है,जिसकी अंतर्दृष्टि खुल चुकी हो.जो मात्र बाहरी आँखों के भरोसे जिंदा न हो.सच तो यह है कि प्रेम ही एकमात्र आँख है इस दुनियां में.
एक स्पेनिश कहावत
के अनुसार -नीली आँखें कहती हैं - मुझे प्यार करो,नहीं तो मर जाउंगी.काली आँखें कहती हैं - मुझे प्यार करो
नहीं तो मार दूँगी.तमाम भाषाओँ में आँखों की खूबसूरती को बयान करने की कोशिश की
गई है.लेकिन कहते हैं न कि जो बात कह दी जाय या बयान हो सके वो झूठी हो जाती है
क्योंकि सच हमेशा अनकहा,अनगढ़ और कुदरती
रूप में होता है.साहित्य में आँखों को लेकर काफी कुछ लिखा गया है.
बात अगर ग़ालिब की
हो तो बात ही कुछ और होती है.ग़ालिब की शायरी में अनायास ही फलसफा का पुट दिखाई
देता है,जब वे कहते हैं -
'रगों में दौड़ते रहने के हम नहीं कायल,जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है'.
यहाँ आँख से लहू का टपकना इस बात का सबूत है कि ग़ालिब के दामन - ओ - दर्द किस कदर गीले थे.किस कदर तकलीफ के तकिये पर सर रख कर उम्र भर सोते रहे ग़ालिब और सोच किस आंच पर पकती रही. ग़ालिब का ही एक और शेर है -
'रगों में दौड़ते रहने के हम नहीं कायल,जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है'.
यहाँ आँख से लहू का टपकना इस बात का सबूत है कि ग़ालिब के दामन - ओ - दर्द किस कदर गीले थे.किस कदर तकलीफ के तकिये पर सर रख कर उम्र भर सोते रहे ग़ालिब और सोच किस आंच पर पकती रही. ग़ालिब का ही एक और शेर है -
'आँख की तस्वीर
सरनामे पे खींची है कि ता,
तुझ पे खुल जाए
की उसको हसरत - ए - दीदार है'
इस शेर में कहा गया है कि लिफाफे पर आँख की तस्वीर बनाई है ताकि यह पता चले कि तुम्हें देखना चाहते हैं .
अपनी शायरी में
सियासत की स्याही सहित मुहब्बत की सादगी समोने वाले अहमद 'फराज' कहते हैं..
'सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,
सो उनके शहर में
कुछ दिन ठहर के देखते हैं'
महबूब को देखने की आरजू में फराज उसके शहर में कुछ दिन ठहरना चाहते हैं.बहुत ही साधारण ढंग से कही गई बात अपने आप में गहरा रहस्य छुपाए हुए है.
फराज का ही एक
शेर है –
तू भी दिल को इक लहू की बूँद समझा है 'फराज'
आँख गर होती तो
कतरे में समंदर देखता
कतरे में समंदर देखने के लिए जिस मासूम आँख की जरूरत है वो सबके पास नहीं होती.दरअसल किसी भी चीज को कई नजरिये से देखा जा सकता है.जिस तरह बीज में दरख़्त की संभावना छुपी होती है और उसी बीज में फल, फूल,खुशबू आदि सब कुछ मौजूद होता है.उसी तरह कतरे में समंदर देखने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता है .
उदास आँखों को पढ़ते हुए एक शायर कहते हैं...
मगर अश्क की खुशबू पहचानता हूँ मैं
खुद से कहीं
जियादा तुझको जानता हूँ मैं
कुछ और नहीं तो
बस इक बात का हक़ है
उदास आँखों में
पानी अजीब लगता है
Aww.. cool .. :)
ReplyDeleteThanks ! Rahul ji.
Deleteकल 11/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर आलेख.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! राकेश जी. आभार.
Deleteबढ़िया सुंदर लेख , राजीव भाई धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.07.2014) को "कन्या-भ्रूण हत्या " (चर्चा अंक-1671)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआँखें ... और उनकी भाषा ...
ReplyDeleteरोचक आलेख ...
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत खूब :)
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
ReplyDeleteरोचक आलेख .....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका-
सादर धन्यवाद ! आ. रविकर जी. आभार.
Deleteआँखों के नज़ारे बड़े प्यारे !
ReplyDeleteरोचक !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteक्या बात है.....बढ़िया प्रस्तुति! धन्यवाद.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर आलेख...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अनुषा जी. आभार.
Delete'काढ़ लो दोनों नयन मेरे, तुम्हारी ओर अपलक देखना तब भी न छोडूंगा'. यहाँ प्रेम अपनी पराकाष्ठा की हद को छू लेता है.आँख न होने के बावजूद भी लगातार देखे जाने की बात वही इंसान कर सकता है,जिसकी अंतर्दृष्टि खुल चुकी हो.जो मात्र बाहरी आँखों के भरोसे जिंदा न हो.सच तो यह है कि प्रेम ही एकमात्र आँख है इस दुनियां में.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर धन्यवाद ! स्मिता जी. आभार.
Deleteबेहतरीन!!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अभिषेक जी. आभार.
Deleteकतरे में समंदर देखने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता है . सुंदर आलेख !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! प्रीति जी. आभार.
Deleteप्रिय राजीव जी जय श्री राधे ..सुन्दर रचना ...आँखें मन के अंदर भी झाँक लेती हैं ..दर्पण हैं .मन की बताती हैं अच्छी व्याख्या .सुन्दर आलेख और रचना
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
सादर धन्यवाद ! आ. भ्रमर जी. आभार.
Deleteजय श्री राधे.
bahut khoob!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अमित जी. आभार.
Deleteसमझ सको तो बहुत कुछ कहती हैं आँखें...खूबसूरत आलेख. बीच बीच में दिए अशआर बेहद पसंद आये...आभार!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनयनों की भाषा को सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteक स्पेनिश कहावत के अनुसार -नीली आँखें कहती हैं - मुझे प्यार करो,नहीं तो मर जाउंगी.काली आँखें कहती हैं - मुझे प्यार करो नहीं तो मार दूँगी.तमाम भाषाओँ में आँखों की खूबसूरती को बयान करने की कोशिश की गई है.लेकिन कहते हैं न कि जो बात कह दी जाय या बयान हो सके वो झूठी हो जाती है क्योंकि सच हमेशा अनकहा,अनगढ़ और कुदरती रूप में होता है.साहित्य में आँख को लेकर काफी कुछ लिखा गया है.क्या गज़ब का लेख लिखा है श्री राजीव जी आपने , आँखों को इतना गहराई से पढ़ा आपने भी और मैंने भी
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