यह एक विचारणीय प्रश्न है
कि क्या सचमुच ईसा की मृत्यु क्रॉस पर हुई थी? क्रूस या सलीब उसी को कहा जाता है जो
दो शहतीरों से बना होता है,लेकिन प्राचीन यूनानी इतिहास इस बात का साक्षी है कि ईसा
को दो शहतीरों से बने क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया था बल्कि एक सीधे काठ पर टांगा गया
था.इस बात को ‘न्यू टेस्टामेंट’ भी प्रमाणित करता है.’
प्रेरितों के कार्य’ 5:30 और
10:39 में ईसाई धर्म की दो शाखाओं कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में दोनों बाइबिल के अनुवादों
में जो अर्थ बताया गया है,वह काष्ठ है न कि क्रूस.हिंदी में प्रकाशित ‘नया नियम’
में जिस क्रूस शब्द का प्रयोग किया गया है,उसके पृष्ठ के नीचे काष्ठ या काठ शब्द
अक्षरशः अर्थ के लिए दिये गए हैं.
ईसा का प्रिय शिष्य पतरस
उनके अंतिम क्षणों तक साथ था.उसने ईसा के सिद्धांतों का प्रचार किया और ईसा के
काष्ठ पर चढ़ाए जाने की चर्चा भी की.यह काष्ठ एक सीधी लकीर के रूप में लम्बा होता
था.यह काष्ठ शब्द ‘जाइलान’ या ‘ज्यूलोन’ शब्द का अनुवाद है.
इन शब्दों के अलावा एक
और भी शब्द है ‘स्टौरोस’,जिसका अनुवाद कुछ अनुवादकों ने क्रूस के अर्थ में किया
है.’द कम्पेनियन बाइबिल’ के परिशिष्ट में लिखा है कि प्राचीन यूनानी कवि होमर ने ‘स्टौरोस’
शब्द का प्रयोग साधारण डंडे के रूप में या सूली या लकड़ी के एक पृथक टुकड़े के रूप
में किया है.
प्राचीन यूनानी साहित्य में
‘स्टौरोस’ शब्द का सही अर्थ किसी कोण से एक-दूसरे के ऊपर रखे हुए काष्ठ के दो शहतीरों
से नहीं है,बल्कि उसका अर्थ काष्ठ का एक टुकड़ा मात्र होता है.इसलिए ईसा की मृत्यु
के संबंध में ‘ज्यूलोन’ या ‘जाइलोन’ शब्द जिसका अर्थ काष्ठ होता है,का प्रयोग किया
जाता है.इसलिए यह बात प्रमाणित लगती है कि ईसा को काष्ठ पर टांगकर मारा गया था,न कि
काष्ठ के दो टुकड़ों पर जो किसी भी कोण से एक-दूसरे के ऊपर रखे हुए हों. इस बात के
प्रमाण अनेक ग्रंथों में हैं,जिन्हें ईसाई अप्रमाणिक मानते रहे हैं.
बाइबिल का सही और सच्चा अनुवाद
करने की दिशा में लोग आज भी प्रयत्नशील हैं और जिस दिन यह कार्य संपन्न
होगा,सर्व-साधारण की समझ में आने लगेंगी.फिर सलीब ईसाई धर्म का पवित्र प्रतीक
क्यों? काँटों का ताज क्यों नहीं?
उन दिनों रोम में सलीब पर
चढ़ाए जाने वाले ख़ास व्यक्तियों के सलीब पर उनसे संबंधित दो चार शब्दों के शीर्षक भी
टांगे जाते थे.ईसा के तथाकथित सलीब पर लैटिन में ‘आई.एन.आर.आई’ लिखा रहता है,जिसका
पूर्ण रूप ‘आइसस नाजरेनस रेक्स आयोडयोरम’ और अंग्रेजी अनुवाद ‘जीसेस ऑफ़ नजारेथ
किंग ऑफ़ द ज्यूस’ अर्थात ‘नासेरस का ईसा यहूदियों का राजा’ है.इसे रोमन राज्यपाल
पिलातुस ने लैटिन के अतिरिक्त यूनानी और यहूदी
भाषा में लिखा था.
ईसा को शायद आभास भी नहीं
रहा होगा कि उनकी मृत्यु के बाद उस ‘खूनी सलीब’ को,जिस पर उन्हें लटकाया जाएगा,उनके
द्वारा रोपित ईसाई धर्म का पवित्र प्रतीक मान लिया जाएगा.इस बात पर विचार किया जाना
जरूरी है कि वह कौन सा सलीब था,जिस पर ईसा को लटकाया गया था.
अगर ईसा को सचमुच सलीब पर
लटकाया गया था तो अहिंसा के पुजारी ईसा द्वारा चलाए गए अहिंसक धर्म ईसाई धर्म का
पवित्र चिन्ह ‘खूनी सलीब’,जिसके नाम में ही हिंसा है,पवित्र प्रतीक चिन्ह क्योंकर
माना गया?
विचारणीय प्रश्न???????????
ReplyDeleteसोचने को विवश करते विचार ....
ReplyDeleteजबाब का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteबढ़िया रहस्यमयी लेख , आ. राजीव भाई धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeleteरोचक प्रश्न, इस सुंदर वैचारिक आलेख के लिए बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteसमय के साथ इस रहस्य से भी पर्दा उठ जाने वाला है ...
ReplyDeleteपर कोई भी क्यों अपना मत बनाता है इसका जवाब वही दे सकता है ...
ईसा मसीह को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था।
ReplyDeleteक्यूंकि उस ने कोई बड़ा अपराध नहीं किया था कि उसे सूली पर चढ़ा दे।
विचारणीय लेख ज्ञानवर्धक
ReplyDelete