Thursday, August 21, 2014

बदलता तकनीक और हम









तकनीक कितनी जल्दी बदल जाते हैं,और कितनी जल्दी हम नई तकनीक से सामंजस्य बिठा लेते हैं,इसका आभास हम सब को अक्सर होता रहा है.कई पुरानी तकनीकों पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि इसका हमारी जिंदगी में कितना अहम् स्थान था.

ऑडियो कैसेट ने संगीत को कितना सुगम बनाया था.कितनी ही ग़ज़लें और फ़नकारों को हम सब ने इसी कैसेट के माध्यम से सुना था.राज कुमार रिजवी-इन्द्राणी रिजवी,राजेंद्र मेहता-नीना मेहता,जगजीत सिंह-चित्रा सिंह,भूपेन्द्र-मिताली मुखर्जी,अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन,पीनाज मसानी,चन्दन दास,सतीश बब्बर  जैसे गजल नवीसों को पहली मर्तबा इन्हीं कैसेटों के माध्यम से तो सुना था.धीरे-धीरे ये कब हमारी जिंदगी से दूर होते गए और एम.पी.3 ने जगह बना ली,पता ही नहीं चला.किफ़ायती और एक सौ से दो सौ गानों का संग्रह एक ही डिस्क में, काफी सुविधाजनक  होता है न.अब तो शायद दुकानों में भी ये कैसेट न मिलते हों.

कई सालों से ढेर सारे ऑडियो कैसेट एक कार्टून में बंद पड़े हैं.पिछले दिनों ऑडियो कैसेट वाले कार्टून को खोला तो 200 के करीब कैसेट मिले और कुछ तो नायाब.कितने शौक से कलकत्ते से इम्पोर्टेड वी. सी. पी. प्लेयर मंगवाया था,कस्टम ड्यूटी पेड करके,उन दिनों.कितनी ही पुरानी फिल्मों को इसी से देख डाला था.पर अब,पिछले दस सालों से आलमीरा के एक कोने में छिपा पड़ा है.कई बार सोचा,कोई एक्सचेंज ऑफर निकल जाए तो बदल डालें,पर कुछ हुआ नहीं.सी. डी. और डी.वी.डी. प्लेयर ने इसे कब रिप्लेस कर दिया पता ही नहीं चला.अब तो इससे भी उन्नत तकनीक ब्लू रे डिस्क प्लेयर आ गया है.

इन दोनों का बखूबी काम अब लैपटॉप और डेस्कटॉप कर रहा है.डी. टी. एच के आने के बाद अब तो डी.वी.डी. प्लेयर का भी महत्व कम हो गया है.चौबीसों घंटे चलने वाले मनोरंजन और फ़िल्मी चैनलों के सामने यह फीका ही लगता है. 

डी. टी. एच का कंसेप्ट जब नया ही था,तभी इसे लगवाया था.कोई आठ हजार रूपये खर्च करने पड़े.ऑपरेटर भी सिर्फ एक डिश टी.वी. और चैनल भी सिर्फ एक ही ग्रुप के.धीरे-धीरे कई ऑपरेटर आए और यह सस्ता होता गया,ढेर सारे चैनलों के साथ.अब तो रिकॉर्डिंग सहित कई सुविधाएं मिल रही हैं.

कीपैड वाले मोबाइल से सामंजस्य बैठा ही था कि टचस्क्रीन वाले मोबाइल आ गए.वी.डी.ओ रिकॉर्डिंग वाले मोबाइल फोन का जो क्रेज उन दिनों नोकिया 6600 जैसे फोन का था,वही क्रेज अब बड़ी स्क्रीन वाले स्मार्टफोन के प्रति है.फिल्म लोड कर तस्वीर लेने वाले कैमरे की बात ही अलग थी.फिल्म लगाने और समेटकर निकलने वाले की क्या पूछ थी.फिर फिल्म को धुलवाना,प्रिंट लाकर सबों को दिखाना,कई दशक पुरानी बात लगती है.डिजिटल कैमरे की तकनीक ने काफी कुछ पीछे छोड़ दिया है.

कई ऐसी तकनीकें हैं जो कब हमारी जिंदगी का हिस्सा बनते गए,कहा नहीं जा सकता.कोई एक दशक पहले पानी को फ़िल्टर कर पीने का परंपरागत तरीका एक्वा और आर. ओ. में परिणत हो गया है.अब तो एक दिन भी इस तरह के मशीन के खराब हो जाने पर पानी गले नहीं उतरता.
तकनीक के सरल और सुविधाजनक होने के साथ ज्यों–ज्यों हम इसके अभ्यस्त होते जाते हैं,वैसे ही हमारा मानसिक तनाव भी बढ़ता जाता है.                        

15 comments:

  1. एक दम सही लिखा है आपने, नई तकनीक के आगे हम सब पुरानी तकनीक को भूलते जा रहे।
    कैसेट प्लेयर का अच्छा उदाहरण दिया आपने, आज तो ना जाने कितने ही गाने और फ़िल्में एक छोटी सी एसडी कार्ड में आ जाते है!!
    वाकई बढ़िया लेखन। सादर...अभिनन्दन।।

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  2. सुंदर आलेख. ई- कचरा का मुख्य वजह भी यही है.

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  3. आज की नयी तकनीक हो सकता है कल बिलकुल रद्दी हो जाए ! लेकिन ये कर्म जरुरी भी है ! दो तरह से देख सकते हैं ! एक तो नई तकनीक हमें नए फीचर्स भी देती है , नया कुछ देती है और लोगों को रोजगार देने में भी बहुत सहायक होती है ! एक चैन है ये ! मान लीजिये एक नया मोबाइल आता है , उसको डिज़ाइन करने वाला चाहिए , उसकी मैन्युफैक्चरिंग करने वाला चाहिए , उसको बेचने वाला चाइये और सबसे जरुरी उसको खरीदने वाला भी ! लेकिन फिर भी अपनी पुरानी चीजों से एक मोह हो जाता है ! बेहतर लेख है

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  4. तकनीकी दौड इतनी तीव्रगामी है कि---सुबह आंख खुले और हम कहाम हों?

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  5. सुंदर और जानकारीपूर्ण...आभार!

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  6. तकनीक का बदलाव बेहद तेज है जबतक सोंचते समझते हैं , तकनीक पुरानी पद चुकी होती है , यह दुनियां के लिए सुखद है !

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  7. सही विश्लेषण .... समय के साथ बहुत कुछ बदला है

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  8. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। धन्यवाद

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  9. ज्ञान वर्धक आलेख राजीव भाई व्यवसाय का युग है गया सो बेकार गया नया आया बिका ..धीरे धीरे प्रगति है यही अच्छा है नुक़सान फिर भूल जाता है ...
    भ्रमर ५

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  10. ६६०० फोन तो मुझे भी बाखूबी याद है ... बहुत समय तक चला था ये फोन ....
    तकनिकी की रफ़्तार से इंसान भी जल्दी ही बदलने लगेगा बस कुछ ही समय की बात है ...

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