Monday, December 26, 2011

मेड इन चायना


हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली जिन वस्तुओं,उत्पादों से हमारा साबका पड़ता है ,वे अधिकतर चायनीज हैं,अर्थात मेड इन चायना.चायनीज उत्पादों ने हमारे जीवन में इस तरह घुसपैठ कर लिया है कि इनके बिना तो जीवन अधूरा ही लगता है.मोबाईल हैंडसेट से लेकर मोबाइल की नामचीन कंपनियों की बैट्रियां,चार्जर,लेड टौर्च,लैपटॉप,एल.सी.डी टीवी,कम्पूटर के मोनिटर,हार्ड डिस्क और अधिकतर पार्ट्स,सी.एफ.एल बल्ब,पेन ड्राइव,मेमोरी कार्ड्स,यू.एस.बी मौडम अदि अनेक उत्पादों ने कब हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया पता ही नहीं चला.

नोकिया,सैमसंग जैसे बड़े और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स की मोबाइल बैटरियां चीन की बनी होती हैं.एच.पी,डेल,लेनोवो जैसे बड़े ब्रांड्स के लैपटॉप,प्रिंटर चीन के बने होते हैं.अधिकांश डिजिटल कैमरे और बैट्रियां चीन में निर्मित हैं.

लब्बोलुआब यह कि इन उत्पादों में एक भी भारतीय नहीं है.क्या हिंदुस्तान में सिर्फ सायकिल,मोटर सायकिल और खाद्य पदार्थ ही बनते हैं.और तो और दीपावली में सजाने वाली छोटे-छोटे बल्बों की लड़ियाँ,लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति तक चायनीज हैं.

अस्सी के दशक में चीन में बने जिस प्रमुख उत्पाद ने हमें आकर्षित किया था वह था रिचार्जेबल टौर्च,इमरजेंसी लाईट और बारह बैंड का छोटा सा रेडियो जिसमें एफ.ऍम के अलावे दूरदर्शन के कार्यक्रम भी पकड़ते थे.हिंदुस्तान का शायद ही कोई ऐसा मध्य वर्ग का घर होगा जिसमें ये उत्पाद न पहुंचे हों.हिंदुस्तान में रेडियो बनाने वाली अनेक कम्पनियां हैं लेकिन किसी ने भी इस तरह के उत्पाद प्रस्तुत नहीं किये.

बाद के दशक में चायनीज सी.डी. और डी.वी.डी प्लेयरों ने भारतीय घरों में धूम मचा दी.लोग पाँच रूपये में किराये की पायरेटेड सी.डी. लेकर नयी रिलीज फिल्मों का आनंद उठाने लगे.जो लोकप्रियता वी.सी.आर और वी.सी.पी नहीं पा सकी उसकी कसर चायनीज सी.डी. और डी.वी.डी प्लेयरों ने पूरी कर दी.फिर चीन और ताईवान से आयातित डी.टी.एच के सेट टॉप बॉक्स की कीमतों में कमी का फायदा दर्शकों को मिला और केबल को पीछे छोड़ते हुए डी.टी.एच घर घर में पहुँच गए.

भारतीय कम्पनियाँ एंटी डंपिंग का रोना रोती रही और चायनीज उत्पाद लोगों के घरों में जगह बनाते चले गए.किसी भी भारतीय कम्पनी ने इन उत्पादों के विकल्प प्रस्तुत करने के प्रयास नहीं किये.

एक ऐसे देश जिसकी उभरती हुई अर्थव्यवस्था की प्रशंसा अमेरिकी राष्ट्रपति भी करते हों और भारत से खतरा बताते हों,उस देश का इस तरह चीनी उत्पादों का गुलाम बन जाना अवश्य ही चौंकाता है.
क्या वजह है की भारतीय कम्पनियाँ चीनी उत्पादों का विकल्प नहीं प्रस्तुत कर पाती हैं और विदेशी सामानों के मार्केटिंग में ही अपने को धन्य समझती हैं.

आज दूर संचार के अधिकाश उपकरण चीन में निर्मित हैं और दूर संचार सेवा प्रदाता कम्पनियाँ इन्हीं का प्रयोग कर रही हैं तथा सरकार सिर्फ चिंता ही प्रकट कर रही है.
भारत ही क्यों,दुनिया के सभी देश चीनी उत्पादों से अटे पड़े हैं.चीनी उत्पादों के इस तरह पूरी दुनिया में छा जाने से अन्य देशों के उत्पादों को बड़ा धक्का लगा है.

आज जरूरत इस बात की है हम चीनी उत्पादों को कोसें नहीं, बल्कि उसकी तरह आम जरूरतों को ध्यान में रखकर ऐसे उत्पाद व उपकरण बनायें जो न केवल सस्ती हो बल्कि टिकाऊ भी हो,तभी भारतीय कम्पनियाँ चीनी उत्पादों का मुकाबला कर सकेंगी.

Tuesday, December 13, 2011

बेटियों का पेड़

भागलपुर जिले के नवगछिया से सटे गोपालपुर प्रखंड का एक छोटा सा गाँव है धरहरा.यह पटना से पूर्व में  230 किलोमीटर की दूरी पर है.जब निर्मला देवी ने 1961 में एक बेटी को जन्म दिया तो उनके पति ने 50 आम का पेड़ लगाकर जन्मोत्सव मनाया.उनकी दूसरी पुत्री के जन्म के बाद तथा बाद में पोतियों के जन्म का उत्सव पेड़ लगाकर मनाया.आज निर्मला देवी के पास आम और लीची का 10 एकड़ का बगीचा है.

इस सदियों पुरानी प्रथा के बारे में कोई नहीं जानता कि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई.
लेकिन चाहे वे अमीर हों या गरीब,उच्च जाति के हों या निम्न जाति के,बेटी के जन्म पर पेड़ जरुर लगाते हैं.बेटी का जन्मोत्सव यहाँ पर कम से कम 10 फलदार पेड़ लगाकर मनाया जाता है और बेटी को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है.हरियाली से ओत-प्रोत धरहरा गाँव दक्षिण में गंगा से और उत्तर पूर्व में कोसी नदी से घिरा है.धरहरा की बेटियां गर्व से अपने आपको हरित सक्रियतावादी कहलाना पसंद करती हैं.

2010 में यह गाँव तब प्रकाश में आया जब लोगों को पता चला कि एक परिवार बेटी के जन्म पर कम से कम 10 पौधे जरुर लगाते हैं. पेड़ लगाने की यह प्रथा कई पीढ़ियों से जारी है. 2010 में 7000 की जनसँख्या वाले इस गाँव में लगभग एक लाख पेड़ हैं,ज्यादातर आम और लीची के.
1200 एकड़ क्षेत्रफल वाले इस गाँव में 400 एकड़ क्षेत्र में फलदार पेड़ लगे हैं.इस गाँव में स्त्रियों और पुरुषों का अनुपात 1000:871 है. पर्यावरण को साफ़ सुथरा और बीमारियों से परे रखने के अलावा यह प्रथा बेटियों का एक तरह से बीमा कवर का कार्य करती है.शहरों में लोग बेटियों की शिक्षा,विवाह आदि के लिए रुपया जमा करते हैं लेकिन धरहरा में फलदार पेड़ लगाते हैं.

भारत जैसे देश में जहाँ कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ हत्या चरम पर है,इस तरह की प्रथा अवश्य ही प्रशंसनीय है.महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह अद्भुत कदम है.यहाँ की वनपुत्रियाँ ग्लोबल वार्मिंग से चेत जाने का सन्देश देती हैं.

बेटियों को तो हम अलंकार में काफी प्रतिष्ठा देते हैं,लेकिन व्यवहार में हम ऐसा नहीं करते.यही स्थिति पेड़ों को लेकर है.पेड़ों की पूजा की जाती है लेकिन जब आस्था पर आवश्यकता भारी पड़ने लगती है तो पेड़ों को काटते भी हैं.ऐसे में धरहरा के लोगों ने एक बड़ा सन्देश दिया है.

धरहरा से निकला बेटियों के नाम पर पेड़ लगाने का सन्देश अब देश भर में गूंजे और देश के अन्य गाँव भी इससे प्रेरित हों,इससे बड़ी बात कुछ नहीं.स्वच्छ पर्यावरण के प्रति जागरूक करता यह अभियान अब देश की सरहदों को पार कर विदेशों में भी सुर्खियाँ बटोर रहा है.आशा की जा सकती है कि ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में इसका संदेश बहुत दूर तक जाएगा.

Wednesday, December 7, 2011

अंतर्विरोध की शिकार : टीम अन्ना

भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम में जनलोकपाल की मांग को लेकर गठित टीम अन्ना अंतर्विरोध की शिकार हो गई है.टीम अन्ना के अनेक सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं.पहले पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण पर जो सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता भी हैं,गलत ढंग से पैरवी के आरोप लगे,फिर प्रशांत भूषण पर जम्मू कश्मीर पर विवादित बयान का मामला सामने आया,फिर अरविन्द केजरीवाल पर आयकर विभाग के बकाये का मुद्दा गर्माता रहा और पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे.

पहले आयोजकों से ज्यादा हवाई किराया वसूल करने,जिसकी भरपाई उन्होंने रकम वापस करके,करने की कोशिश की और हालिया पुलिस विभाग की विधवाओं एवं बच्चों के लिए मुफ्त कम्पूटर प्रशिक्षण के नाम पर माइक्रोसौफ्ट से करोड़ों की राशि ले लेने और प्रशिक्षण के नाम पर छात्रों से प्रशिक्षण शुल्क वसूलने का मामला गरमा रहा है और न्यायालय के आदेश पर प्राथमिकी भी दर्ज हो चुकी है.इस प्राथमिकी के दर्ज होने पर किरण बेदी की टिप्पणी थी कि उन्हें इस तरह की प्राथमिकी से निपटने का तरीका आता है. बेशक ! वे पूर्व पुलिस अधिकारी जो रह चुकी हैं.कुछ ज्ञान आम लोगों को भी दे देती तो लोगों का कल्याण हो जाता.कुमार  विश्वास  पर भी अपने नियोक्ता कौलेज पर लम्बे समय से गायब रहने का आरोप लग रहा है.

ऐसा क्यों है.जो भी व्यक्ति पद प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है,मीडिया में सुर्खियाँ बटोर लेता है,अपने आपको देश से,कानून से ऊपर समझने लगता है.

अन्ना के अनशन के दौरान भी इस तरह की बातें होती  रही हैं.मंचीय भाषण में भी टीम अन्ना के कई सदस्यों ने एक सुर से टीम अन्ना को संसद से ऊपर बताया.इस तरह की अराजक प्रवृत्ति निश्चय ही निंदनीय है.भ्रष्टाचार को समाप्त करने के नाम पर कोई समिति अराजक कैसे हो सकती है.अपने को संसद और कानून से सर्वोच्च बताने वाले इन लोगों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे पूर्व में भारतीय संविधान और कानून में आस्था प्रकट कर सरकारी सेवा कर चुके हैं.

अन्ना की जुबान भी असमय फिसलती रही है.शरद पवार के थप्पड़ प्रकरण पर उनका बयान देख लीजिये. किरण बेदी पर पूर्व में भी कई आरोप लगते रहे हैं.जाहिर है उनमें सच्चाई भी होगी.मिजोरम में पदस्थापन के दौरान अपनी बेटी का मेडिकल में मिजोरम के कोटे से नामांकन कराकर एम्स में ट्रान्सफर कराना,पूर्णतः अवैध था जिस पर सरकार ने भी ऑंखें मूंद ली थी.फिर बिना सूचना के मिजोरम छोड़ कर गायब हो गयी थीं जिस पर काफी बावेला मचा था.एक पूर्व पुलिस अधिकारी जिन्होंने तिहाड़ जेल में पदस्थापन के दौरान जेल सुधार पर काफी काम किया था और मैग्सेसे पुरस्कार की विजेता भी रही हैं,इस देश के कानून के खिलाफ काम करने का अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता.

पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करते ही व्यक्ति अराजक क्यों हो जाता है इसके लिए विस्तृत समाजशास्त्रीय अध्ययन की आवश्यकता है.जरा अपने आस-पास नजर दौड़ाइये.अपने क्षेत्र के विधायक और सांसद को देख लीजीए.समझ में आ जाएगा.इन्हीं की देखा देखी आजकल जिला परिषद् के अध्यक्ष,सदस्य,ग्राम पंचायत के मुखिया,सरपंच आदि करने लगे हैं. 

भ्रष्टाचार के विरोध के कारण टीम अन्ना को आम जनता से जो जनसमर्थन मिला है वह सरकार के नकारात्मक रुख के कारण ही है.

ऐसा न हो कि अपने ही अंतर्विरोधों से ग्रस्त एक सफल मुहिम असमय ही काल कवलित हो जाय.