Friday, October 16, 2015

देवी पूजा की शुरुआत

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सभी संस्कृतियों में मातृदेवी की पूजा किसी न किसी रूप में अवश्य ही मिलती है लेकिन भारतीय देवी-पूजा की विशेषता उसे विशिष्ट बनाती है.इसका कारण है उसकी अतीत से आधुनिक काल तक चली आ रही निर्बाध परंपरा और उसका निरंतर विकासशील स्वरूप.

हालांकि आधुनिक विचारकों ने प्राचीन युग में मातृदेवी की लोकप्रियता का कारण तत्कालीन मातृप्रधान, सामाजिक,आर्थिक व्यवस्था को माना है जिसमें पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था.जबकि,इसका कारण स्त्री की सृजनात्मक शक्ति में भी निहित हो सकता है,जिसने आदिम मानवों के ह्रदय में भय और आश्चर्य उत्पन्न किया होगा.

देवी-पूजा का आरंभ प्रायः सिन्धु घाटी सभ्यता से माना जाता है जिसके उपलब्ध अवशेषों में विभिन्न अलंकरणों से सुसज्जित स्त्री मूर्तियाँ मिली हैं जो विद्वानों के अनुसार महामातृदेवी या मातृरूप में स्थित प्रकृति की मूर्तियां हैं.यह मत भारत की धार्मिक अनुश्रुति के अनुकूल भी है क्योंकि यहाँ अनादिकाल से मातृदेवी,आद्याशक्ति या प्रकृति की पूजा प्रचलित रही है.जिसे वेदों में पृथ्वी भी कहा गया है,यही ऋग्वेद के आदित्यों की माता अदिति भी है.

वैदिक सभ्यता के पितृप्रधान होने के कारण उसमें देवों की अपेक्षा देवियों को अत्यंत गौण स्थान मिला.फिर भी ऋग्वेद के महत्वपूर्ण देवियों में अदिति,उषा,पृथ्वी,सरस्वती,वाच,रात्रि,इला,भारती आदि महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कालांतर में स्वतंत्र अस्तित्व के कारण उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी.उनकी कल्पना ने पौराणिक युग के सर्वश्रेष्ठ देवता के रूप में कल्पित देवी के स्वरूप के विकास में योग दिया.ऋग्वेद के देवीसूक्त में वर्णित वाच की कल्पना विशेष है जिसमें सर्प्रथम एक सार्वभौम स्त्री शक्ति की कल्पना की गई है.

अंबिका,दुर्गा,उमा,काली आदि बहुपरिचित नाम,जो देवी के विभिन्न रूप थे,उत्तर वैदिक कालीन साहित्य में प्राप्त होने लगते हैं.ऋग्वेद के खिल मंत्रों में अग्नि के साथ दुर्गा का जो वर्णन है वह काफी बाद का है.नारायणीयोपनिषद ईसापूर्व चौथी-तीसरी शती के पूर्व का नहीं माना जाता फिर भी इसमें अंबिका को दुर्गा,कन्याकुमारी,वैरोचनी और कात्यायनी नामों से विभूषित किया गया है.

भद्रकाली,भवानी,दुर्गा आदि विविध नाम शांखायन और हिरण्यकेशी गृह्यसूत्र में भी प्राप्त होते हैं.बोधायन गृह्यसूत्र में दुर्गा देवी के भी पूजन की चर्चा है,वहां उन्हें आर्या,भगवती,महाकाली, महायोगिनी, शंखधारिणी तक नाम दिए गए हैं.इससे यह पता चलता है उत्तर वैदिक कालीन साहित्य में उन अंकुरों में का धीरे-धीरे विकास होने लगा था जो बाद में देवी-पूजा के रूप में विकसित हुए.

महाकाव्यों का युग आते-आते देवी पूजा का स्पष्ट विकास हो चुका था.यद्यपि रामायण में देवी के स्वरूप,उसकी पूजा पर कम प्रकाश डाला गया है फिर भी देवी से संबंधित कुछ पौराणिक कथानकों जैसे-हिमवंत द्वारा पुत्री उमा को विवाह में रूद्र को समर्पित करना दक्ष,यज्ञ,गंगावतरण आदि का समावेश है.

महाभारत में इन कथाओं का और भी विकसित स्वरूप मिलता है.महाभारत के भीष्मपर्व के तेईसवें अध्याय में युद्ध में विजयश्री प्राप्त करने के लिए कृष्ण की सम्मति से अर्जुन को दुर्गा की स्तुति करते दिखाया गया है.वहां दुर्गा को काली,कुमारी,कपालिनी,महाकाली,चंडी,कराला,उमा जैसे नामों से विभूषित किया गया है.

इसी प्रकार विराटपर्व के छठे अध्याय में युधिष्ठिर द्वारा भी दुर्गास्तुति की गयी है किंतु वहां उनकी स्तुति महिषासुरमर्दिनी के रूप में हुई है जो विंध्य पर्वत में निवास करती है तथा मदिरा,मांस,पशुबलि से प्रसन्न होती है.कृष्ण की भांति वे भी नील वर्ण की हैं और मयूर की कलंगी धारण करती हैं.


हरिवंश के दो अध्यायों एवं मार्कंडेय पुराण के एक अंश को देवी माहात्म्य कहते हैं.देवी माहात्म्य का रचना काल लगभग छठी शती माना जाता है.हरिवंश के अध्यायों में दुर्गा संप्रदाय(शाक्त संप्रदाय) के धार्मिक दर्शन का वर्णन मिलता है.उसके अनुसार देवी के उपासकों का एक संप्रदाय जिनके अनुसार देवी ही उपनिषदों की ब्रह्म है.यहाँ देवी को शक्ति के रूप में सर्वप्रथम परिकल्पित किया गया है.

शक्ति वस्तुतः उमा और पार्वती का ही  विकसित तांत्रिक दार्शनिक रूप है जिसकी कालांतर में विशेष महिमा बढ़ी.उमा के रूप में वे कुमारी कन्या हैं,शिव से विवाह के बाद माता-रूपिणी पार्वती हैं और जब वे धीरे-धीरे कपालभरणा काली या सिंहवाहिनी दुर्गा बन महाकाल की शक्ति बनी तब उनका तेज स्वतंत्र हो उठा और विष्णु एवं शिव को छोड़कर देव-देवी वर्ग में किसी को इतनी महिमा नहीं बढ़ी जितनी इस शक्ति या देवी दुर्गा की.

पुराणों में असुर संहार की कथाओं का समावेश होने लगा,तो देवी का माहात्म्य तेजी से बढ़ा और उसने स्वयं को शिव जैसे समर्थ और शक्तिमान स्वामी से स्वतंत्र कर लिया.ब्रह्मा,शुक्र,नारायण आदि द्वारा की गयी देवी स्तुतियां और शुम्भ-निशुंभ,तक्त्बीज,महिषासुर जैसे दैत्यों का संहार करने के कारण देवी की शक्ति और महिमा अनंत हो गयी और तेज में ब्रह्मा,विष्णु,शिव आदि देवों से अद्भुत कहा गया.उन्हें चंडी और अंबिका कहकर उनकी प्रशंसा में चंडीशतक और चंडीस्त्रोत रचे जाने लगे.

ऐसा प्रतीत होता है की मध्यकाल से बहुत पहले ही भारत के बंगाल और आसाम प्रांतों में शाक्त संप्रदाय फ़ैल चुका था.विभिन्न नामों जैसे-त्रिपुरा,लोहिता,कामेश्वरी,भैरवी वाली शक्ति विश्व की आदि तत्व के रूप में धारित हुई और देवी के रूप में पूजित होने लगीं.’देवी माहात्म्य’ शाक्तों के प्रमुख ग्रंथों में से एक है,जिसके अनुसार देव या इष्ट एक है और वह मां एवं संहार करने वाली शक्ति के रूप में.

इस संप्रदाय में देवी की कल्पना में अन्य मान्यताओं का समावेश हो गया और अमृत के अक्षय समुद्र में मनोहारी वृक्षों से आच्छादित,मणि-मुक्ता निर्मित प्रासादों में उनका निवास माना गया अवं विभिन देवी देवताओं को उनका सेवक बताया गया.हालांकि शाक्त संप्रदाय की मान्यताओं का आधार भी एक प्रकार का अद्वैत दर्शन था जिसमें शिव की परम सत्ता के रूप में कल्पना थी और सम्पूर्ण जगत को इन्हीं अभिन्न तत्वों मूलतः शिव और शक्ति का परस्पर संयोग माना गया.

Friday, October 2, 2015

तलाश आम आदमी की

आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी 
दुष्यंत कुमार ने खूब ही कहा है कि.....

इस नुमाइश में मिला वह चीथड़े पहने हुए 
मैंने पूछा कौन, तो बोला कि हिन्दुस्तान हूं 

चुनावी माहौल में इस देश के प्रत्येक नेता की बस एक ही चिंता है,पीड़ा है,दुःख है कि किस तरह आम आदमी का भला हो,वह ऊपर उठे,तरक्की करे.

यह बीमारी छुआछूत की तरह अपने देश में आजादी के बाद बहुत तेजी से फैली है,किसी खतरनाक वायरस की तरह.प्रधानमंत्री से लेकर गली-मुहल्ले तक के नेता के किसी अवसर पर दिए गए भाषण का एक ही निचोड़ निकलता है कि आम आदमी के लिए बहुत कुछ करना है.

लेकिन सवाल यह उठता है कि आम आदमी होता कैसा है,कहाँ पाया जाता है?आम आदमी भी कुछ कम नहीं,किसी को नजर ही नहीं आता.अगर कभी हमें दिख भी जाए तो पूछना लाजिमी है कि वह कहां छुपा था.यह आर. के. लक्ष्मण के कार्टून का आम आदमी तो नहीं जो सीधे अखबार के पहले पन्ने पर दिख जाए.

चुनाव प्रचार के शोर में सारा जोर आम आदमी पर ही होता है.किसी नेता का भाषण सुनने वाले भी यही सोचते हैं कि वह कोई बेवकूफ किस्म का,दबा,कुचला आदमी होगा जिस पर बहुत जुल्म हो रहे हैं.नेता भी पूरा घाघ होता है,वह जानता है कि सामने जो उधार लाए गए श्रोता बैठे हैं,उन्हीं में से ज्यादातर आम लोग हैं.लेकिन उसे क्या फर्क पड़ता है?उसे तो बस उससे एक ही चीज लेनी है,उसका वोट.

कार्यकर्त्ता की मीटिंग में भी उसे बस एक ही बात की चिंता है कि अगर आम आदमी का वोट उसे मिल जाए तो वह वैतरणी पार कर जाए.बापू का अब ज़माना तो रहा नहीं कि कार्यकर्त्ताओं का उनसे जीवंत संपर्क हो.उन्हें तो बस नेता.मंत्री,कुरसी,सिफारिश,कमीशन,बूथ कैप्चरिंग आदि चीजें ही मालूम हैं,सो उन्होंने सोचा होगा कि आम आदमी जरूर कोई ख़ास आदमी होगा जो गायब हो गया है.

अब आम आदमी का कोई ख़ास हुलिया तो है कि अखबार में उसकी तलाश करने के लिए विज्ञापन दिया जाए.उसकी उम्र आजादी के बाद से स्थिर है,लंबाई समय के हिसाब से बढ़ती घटती रहती है.नजर देखने में ठीकठाक है परंतु दूरदृष्टि ठीक नहीं है,इसलिए कभी-कभार निकम्मा आदमी भी चुन लेता है.वैसे समझदार है परंतु खुद का भला बुरा नहीं समझता है,भोला और मासूम है,इसलिए वह आम आदमी है.

सो हमने भी एक दिन उस आम आदमी की तलाश शुरू कर दी.हर आते जाते को घूर-घूर कर देखने लगे.उसके लिए हर कहीं भटके.सरकारी बसों में लटके,सिनेमा की टिकट के लिए लाइन से लेकर,राशन की दुकान तक भटके.हर आदमी हमें आम आदमी जैसा कुछ-कुछ लगा,लेकिन पूरे यकीन से नहीं कह सके कि वही आम आदमी है.

एक आदमी सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते हुए मिला.हमने उससे बड़े विनयपूर्वक पूछा ‘भाई साहब आप कौन हैं?’ उसने घूरकर और सिगरेट का धुंआ हमारे चेहरे पर उड़ाते हुए कहा,पूछने का नक्को,अपुन भोली दादा का आदमी है,क्या?

लब्बो-लुआब यह कि हर कोई किसी न किसी का आदमी निकला.बस वो आम आदमी नहीं था.आखिरकार रहा नहीं गया और एक अखबार के पत्रकार से पूछा कि आम आदमी कहां पाया जाता है.पत्रकार यह सुनकर हंसने लगा,’आप इतना भी नहीं जानते.आम आदमी को नहीं पहचानते,फिर धीरे से बोला,अरे भाई आम आदमी अब ख़ास हो गया है.आजकल वह नेता हो गया है.’

हमने पूछा ‘वह जो टेलीविजन पर आता है,संसद में बोलता है,अखबारों में छपता है.चुनाव का मौसम हो तो वह बहुतायत से पाया जाता है और उसे हर कोई देख सकता है.मैंने पूछा,;ऐसा होता क्यूं है?’ वह बोला क्योंकि हर आम आदमी ख़ास होना चाहता है,जब ख़ास नहीं हो पाता तो उसका मुखौटा लगा लेता है.

और आम आदमी के नाम पर जो चिंता करते हैं,वे ख़ास आदमी होते हैं.परंतु उसके अंदर भी एक आम आदमी होता है जिससे वे हमेशा डरते हैं,क्योंकि जो आज ख़ास बने बैठे हैं,वे भी तो कल आम थे.उसकी बातों को तवज्जो देते हुए और चिंतन-मनन करते हुए घर की ओर चला तो बेख्याली में एक आदमी से टकरा गया.उसका चेहरा और चाल-ढाल देखकर कीच शक हुआ तो उससे पूछा,भाई साहब आप कौन से आदमी हैं?’

उसने झटके से जवाब दिया ‘आप हमको नहीं पहचानते? अरे भई हम आम आदमी हूँ.’इसके बाद उसने देश-विदेश की तमाम समस्याओं पर एक लंबा भाषण पिलाया और सतर्क रहने की हिदायत देकर चला गया.मेरी समझ में आ गया कि यही आम आदमी है जो आज नहीं तो कल ख़ास आदमी बन जाएगा और आम आदमी के बारे में लंबे-लंबे भाषण देगा और उसके बारे में चिंता करेगा.और बेचारा आम आदमी जहाँ है,जैसा है वही रहेगा और उसे कोई ढूंढ नहीं पाएगा.