Thursday, March 13, 2014

होली : अतीत से वर्तमान तक











मानव के सांस्कृतिक उन्नयन का इतिहास संभवतः कृषि के विकास का इतिहास है.आखेट की खोज में भटकते हुए मानव को धरती की भरण क्षमता का ज्ञान ही उसके सांस्कृतिक अभ्युदय का प्रथम सोपान है.यही कारण है कि भारतीय त्यौहार कृषि तथा ऋतुओं से संबंधित रहे हैं.

यद्यपि दुःख,शोक एवं रोदन हमारे जीवन का स्पर्श अवश्य करते हैं फिर भी लय-ताल पर थिरकते उसके आनंद को वे विगलित नहीं कर पाते.गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने फागुनी सूर्य की आभा को प्रियालिंगन मधु-माधुर्य स्पर्श बताते हुए कहा है,”सहस्त्र मधु मादक स्पर्शी से आलिंगित कर रही सूरज की इन रश्मियों ने फागुन के इस बसंत प्रातः को सुगन्धित स्वर्ण में आह्लादित कर दिया है.यह देश हंसते-हंसाते मुस्कुराते चेहरों का देश है.”

होली मुक्त स्वच्छंद हास-परिहास का पर्व है.यह सम्पूर्ण भारत का मंगलोत्सव है.फागुन शुक्ल पूर्णिमा को आर्य लोग जौ की बालियों की आहुति यज्ञ में देकर अग्निहोत्र का आरंभ करते हैं,कर्मकांड में इसे ‘यवग्रयण’ यज्ञ का नाम दिया गया है.बसंत में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ जाता है.इसलिए होली के पर्व को ‘गवंतराम्भ’ भी कहा गया है.

क अत्यंत प्रसिद्द पौराणिक गाथा हिरणकश्यप द्वारा प्रह्लाद को होलिका में जलाने से संबंधित है.रत्नावली में हर्ष ने कौशाम्बी में रचित फाग का वर्णन इस प्रकार किया है---बसंतोत्सव के अनुरूप वस्त्र धारण किये हुए राजा से विदूषक कहता है कि मकरदोद्धान में मदनोत्सव की शोभा देखिए महाराज ! उन्मादोरत कामिनियाँ अपने कोमल हाथों से नागरिकों पर पिचकारी से कैसे रंग डाल रही हैं.पुरुष ढप-ढोल बजाकर नाच रहे हैं.अबीर गुलाल से दसों दिशाएं रंगीन हो गई हैं.

रत्नावली में वारविलासिनियों द्वारा भी फाग खेलने का अद्भुत वर्णन है.भागवत-पुराण में पिचकारियों की सुंदरता का वर्णन है.सींग के आकार की बनी होने के कारण उन्हें ‘श्रंगक’ कहा गया है.रघुवंश में रमणियाँ राजा कुश पर स्वर्ण की पिचकारी से रंग खेलते हुए संदर्भित हैं.

महाकवि वाणभट्ट ने कादंबरी में राजा तारापीड़ के फाग खेलने का अनूठा वर्णन किया है.भवभूति के मालतीमाधव नाटक में पुरवासी मदनोत्सव मनाते हैं.यहाँ एक स्थल पर नायक माधव सुलोचनामालतीके गुलाबी कपोलों पर लगे कुमकुम के फ़ैल जाने से बने सौंदर्य पर मुग्ध हो जाता है.राजशेखर ने अपनी काव्य-मीमांसा में मदनोत्सव पर झूला झूलने का भी उल्लेख किया है.

मुगलकाल में भी होली की खूब धूम रही.अकबर का रनिवास होली के अवसर पर रंग और गुलाल से भरा जाता था.रानियाँ तथा दासियाँ बादशाह अकबर को वहां बुलवाकर रंग से सराबोर कर देती थीं.जहाँगीर के शासन काल में होली खेलने का सविस्तार वर्णन ‘मुल्क-ए-जहाँगीर’ में हुआ है.अंतिम मुग़ल सम्राट बहदुर शाह जफ़र ने 1857 में होली का वर्णन करते हुए देश की स्थिति भी बतायी है......

हिन्द में कैसो फाग,मची जोरा-जोरी
फूल तख़्त हिन्द बना केसर की सी क्यारी
कैसे फूटे भाग हमारे लुट गयी दुनियां सारी
गोलन तें गुलाल बनायो,तोपन की पिचकारी

अवध,मगध,मध्य-प्रदेश,राजस्थान,मैसूर,गढ़वाल,कुमायूं,ब्रज सभी क्षेत्रों में होली की अत्यंत उल्लास औत उमंग देखने को मिलती है.ब्रज में इसे होली नहीं होराकहते हैं.बरसाना की लट्ठमार होली और दाऊजी का हुरंगा जनमानस पर अनूठी छाप छोड़ते हैं.

होली का यह पावन पर्व भारतीय संस्कृति में अनादिकाल से परस्पर संगठन का संदेश देता हुआ जीवन में उल्लास एवं उमंग भरता रहा है.

46 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार -

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  2. सुन्दर आलेख बेहतरीन आलेख
    वाकई में हमारे देश में जो कुछ भी पौराणिक काल से चली आ रही है, सबके पीछे कुछ न कुछ कारण है। और इसलिए भारतीय संस्कृति का इतिहास सबसे पुराना है।

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    1. सादर धन्यवाद ! अभी जी. आभार.

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  3. पौराणिक और इतिहास के अनेक प्रसंगों से सजी ये पोस्ट बहुत ही रोचक पर फिर भी इस बात को परिलक्षित करती है की अपने देश में त्यौहार सदा अमन, खुशी और प्रेम का सन्देश देते रहे हैं ...

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  4. बढ़िया जानकारी दी है सर। भारत तभी तो त्योहारों का देश कहलाता है। सादर।।

    नई कड़ियाँ : 25 साल का हुआ वर्ल्ड वाइड वेब (WWW)

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  5. बढ़िया सांस्कृतिक लेख राजीव भाई , धन्यवाद
    नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग का सम्मान ~ )

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    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

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  6. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (14.03.2014) को "रंगों की बरसात लिए होली आई है (चर्चा अंक-1551)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  7. उत्कृष्ट प्रस्तुति।।।

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  8. ***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 17/03/2014 यानी आने वाले इस सौमवार को को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।


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  9. अत्यन्त सुंदर प्रस्तुति...! होली के पीछे छिपे संस्कारों,मान्यताओं व दिलचस्प पहलुओं की झलक मिलती है...होली अलमस्ती का त्यौहार है... होली का माहात्मय अनूठा है... जाने किन-किन रूपों में मनाई जाती है होली हमारे देश में...

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  10. बहुत बढ़िया पोस्ट.....सुन्दर जानकारी दी है.
    आपको भी होली मुबारक...

    अनु

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      होली की शुभकामनाएँ !

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  11. उपयोगी जानकारी .....
    आपको भी होली मुबारक......

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      होली की शुभकामनाएँ !

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  12. होली मुक्त स्वच्छंद हास-परिहास का पर्व है.यह सम्पूर्ण भारत का मंगलोत्सव है.फागुन शुक्ल पूर्णिमा को आर्य लोग जौ की बालियों की आहुति यज्ञ में देकर अग्निहोत्र का आरंभ करते हैं,कर्मकांड में इसे ‘यवग्रयण’ यज्ञ का नाम दिया गया है.बसंत में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ जाता है.इसलिए होली के पर्व को ‘गवंतराम्भ’ भी कहा गया है.

    होली की सांस्कृतिक छटा लिए है यह पोस्ट सुन्दर मनोहर होली मुबारक सभी ब्लोगार्थियों को।

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      होली की शुभकामनाएँ !

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  13. सही कहा है भारतीय त्यौहार कृषि तथा ऋतुओं से संबंधित रहे हैं.
    बहुत सटीक आलेख है, होली पर्व की बहुत बहुत शुभकामनायें !

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      होली की शुभकामनाएँ !

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  14. बहुत सुन्दर आलेख ,होली मुबारक हो

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      होली की शुभकामनाएँ !

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  15. .....सुन्दर जानकारी दी
    होली मुबारक हो :)))))0

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  16. बहुत सुन्दर , होली की शुभकामनायें....:)

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      होली की शुभकामनाएँ !

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  17. मंगलकामनाएं होली की !!

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    1. सादर धन्यवाद !
      होली की शुभकामनाएँ !

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  18. वाह! सुन्दर और सामयिक लेख....आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं....
    नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम

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    1. सादर धन्यवाद !
      होली की शुभकामनाएँ !

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  19. सादर प्रणाम | होली की हार्दिक शुभकामनाये|

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  20. सादर धन्यवाद ! अजय जी.
    होली की शुभकामनाएँ !

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  21. पौराणिक जानकारी देती सुन्दर आलेख

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  22. पौराणिक जानकारी देती सुन्दर आलेख

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  23. पौराणिक जानकारी देती सुन्दर आलेख

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