Saturday, December 12, 2015

पौराणिक कथाओं के पात्र

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पौराणिक कथाओं को पढ़ते या सुनते समय अक्सर यह प्रश्न उठता रहा है कि क्या पुराण कथाओं के पात्र पशु-पक्षी थे?कूर्म पुराण की एक कथा के अनुसार अमृत प्राप्त करने के लिए देवता और दैत्य जब समुद्र मंथन करने लगे तब भगवान ने कछुआ का अवतार लिया और समुद्र में प्रवेश करके मंदरांचल को पीठ पर धारण किया.

वाराह पुराण के अनुसार जब हिरण्याक्ष दैत्य धरती की चटाई पाताल ले गया,तो वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष का वध किया और अपने एक ही दंष्ट्र पर धारण करके पृथ्वी का उद्धार किया और उसे शेषनाग के फण पर प्रतिष्ठित किया.इस प्रकार विष्णु के दस अवतारों में से प्रथम तीन अवतार मानवेतर हैं.

विष्णु के चौथे अवतार नृसिंह का स्वरूप अर्ध-मानुषी है अर्थात आधा शरीर मनुष्य का और आधा सिंह का.पुराण कथाओं के ऐसे अन्य देवताओं में गणेश,हयग्रीव(सिर घोड़े का तथा धड़ मनुष्य का) और हनुमान(मुख और पूंछ बंदर की तथा शेष शरीर मानवीय) प्रमुख हैं.भारत ही नहीं चीन,जापान और तिब्बत में भ नाग कन्याओं का आधा रूप सर्प का तथा आधा मनुष्य जैसा है.गरुड़ के संबंध में पुराणों में बताया गया है कि उसके मस्तक पर चोंच तथा नख तो गरुड़ पक्षी के समान तथा शरीर और इन्द्रियां मनुष्य जैसी थीं.

पुराण कथाओं के पशु-पक्षी पात्रों का एक रूप देवी-देवता के वाहन के रूप में है – जैसे ऐरावत हाथी(इंद्र का वाहन,गरुड़(विष्णु),सिंह(दुर्गा),हंस(ब्रह्मा,सरस्वती,बैल(शिव),मूषक(गणेश),उल्लू(लक्ष्मी का वाहन).पुराण कथाओं के स्रोत के रूप में पक्षी भी मिलते हैं.एक ओर रामायण कथाओं के स्रोत के रूप में काक भुशुंडी हैं तो भागवत कथाओं के स्रोत शुक हैं.

इन पुराण कथाओं या मिथक कथाओं की भूमिका मात्र विश्वास के कारण ही है या इनकी कुछ सार्थकता भी है.इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है कि आक्रमण हुए,अकाल पड़ा,तूफ़ान आए,बाढ़,भूकंप आए और मानव जातियां एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चली गयीं.परंतु 

लोकवार्ताविज्ञान(फोकलोरिस्टीक्स) जानता है कि वे पुराकथाएँ वहां भी उनके साथ थीं,जो दादी से मां ने और मां से बेटी ने इसलिए सुनी थीं कि व्यक्ति का मन सामाजिक बन सके.एक मानवजाति दूसरी मानवजाति से मिली और एक पुराकथा दूसरी पुराकथा से मिली.भौगोलिक और सामाजिक परिवेश के परिवर्तन के साथ पुराकथाओं का भी कायाकल्प हुआ.

आज व्यक्ति और जनसमूह की पहचान भौगोलिक – संदर्भों,नस्लों,वंशों,पेशों और धर्मसंप्रदायों के आधार पर की जाती हैं,व्यापक संदर्भों में राष्ट्रीयता से तथा संकीर्ण संदर्भों में जाति,संप्रदाय,प्रांत और क्षेत्रों से. परंतु कबीलों के ज़माने में यह पहचान गणगोत्र के आधार पर की जाती थी. मानवेतर प्राणी को गण का देवता माना जाता था और गण के सभी सदस्य उसकी पूजा करते थे.पुरा कथाओं में पशु-पक्षी तथा मानवेतर प्राणियों का उल्लेख दो अर्थो में है या तो वह गण या जनजाति की सूचक है या देवता का सूचक है.

आज के समय में पुरा कथाओं के असंगत लगने का कारण यह है कि युग-परिवर्तन के साथ मनुष्य का अपने परिवेश के साथ संबंध बदल जाता है.आज की पीढ़ी अपने को प्रकृति से श्रेष्ठ मानता है परंतु   पुराकथाओं वाला मनुष्य प्रकृति में अपनी ही चेतना को देखता था और दिव्यता का आभास पाता था.इसलिए सूर्य की वैज्ञानिक अवधारणा सूर्य की पौराणिक अवधारणा से अलग है.पुराकथाओं के असंगत लगने का कारण लोकमानस की वह प्रवृत्ति है,जो लौकिक से अलौकिक की और है तथा जिसके संस्पर्श से सब कुछ दिव्य हो जाता है – धरती,पहाड़,आकाश,मेघ,समुद्र,वृक्ष,पशु,पक्षी सब देवस्वरूप बन जाते हैं.

वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान संस्कृत और प्राकृत भाषाओँ के ज्ञाता थे.हनुमान से पहले ही वार्तालाप में राम जान लेते हैं कि हनुमान चारों वेदों का ज्ञाता है.अशोक वाटिका में सीता से भेंट करे समय हनुमान सोचते हैं कि मैं कौन सी भाषा में बात करूं.......

यदि वाचं प्रदास्यामि हिजतिरिव संस्कृताम्
रावणं मन्यमानां तों सीता भीता भविष्यति |

क्या भाषाओँ पर ऐसा अधिकार किसी कपि या बंदर का हो सकता है?इसलिए डॉ. कामिल बुल्के ने स्पष्ट बताया था कि हनुमान वास्तव में वानरगोत्रीय आदिवासी थे.

इतिहास में मूषक,मत्स्य,कूर्म,कुक्कुर और वानर नामक टोटम जातियों का उल्लेख प्राप्त होता है.टोटम जातियों में सर्प-उपासक नागजाति का इतिहास तो बहुत समृद्ध है.इतिहास में नागराजाओं को उत्तम स्थापत्यकार,न्यायप्रिय और उत्तम रासायनिक बताया गया है.तक्षशिला,मथुरा नगर उन्होंने बसाये थे.रासायनिक नागार्जुन नागराज-पुत्रों में से था.

पुराणों में नाग और गरूड़ दोनों ही कश्यप की संतान हैं.पुराणों के अनुसार विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं.कृष्ण जन्म के समय शेषनाग फण फैलाकर उनकी रक्षा करता है.बलराम शेष के अवतार हैं.शिव के साथ सार्थ नाग हैं.

पौराणिक कथाओं के पात्र पशु-पक्षी सामान्य पशु-पक्षी नहीं हैं,वहां उनका अर्थ गहरा है जिसे हम गणगोत्र या टोटम के सूत्र से समझ सकते हैं.टोटम का इतिहास मानवीय धारणाओं ,देवताओं और जनजातियों की युगयात्रा और सामाजिक विकास की आत्मकथा है.भारतीय संस्कृति में इस तरह की अनेक धाराएं समायी हुई हैं.

15 comments:

  1. भारतीय संस्कृति में हमेशा सर्वोत्तम की खोज की जाती रही है. इन पौराणिक पात्रों द्वारा यह सन्देश मिलता है कि व्यष्टि मूलक अवधारणा को छोड़ हमें हमेशा समष्टि मूलक अवधारणा के बारे में सोचना होगा. सिर्फ अपने बारे में सोचने से काम नहीं चलने वाला, climate change भी होगा और extinction भी होगा. मानवेतर पौराणिक पात्रों पर एक उम्दा पोस्ट के लिये राजीव जी आपका धन्यवाद!

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  2. पौराणिक कथाओं के पात्र पर सुन्दर एवं रोचक प्रस्तुति.

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-12-2015) को "कितना तपाया है जिन्दगी ने" (चर्चा अंक-2189) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आज के समय में पुरा कथाओं के असंगत लगने का कारण यह है कि युग-परिवर्तन के साथ मनुष्य का अपने परिवेश के साथ संबंध बदल जाता है.आज की पीढ़ी अपने को प्रकृति से श्रेष्ठ मानता है परंतु पुराकथाओं वाला मनुष्य प्रकृति में अपनी ही चेतना को देखता था और दिव्यता का आभास पाता था.इसलिए सूर्य की वैज्ञानिक अवधारणा सूर्य की पौराणिक अवधारणा से अलग है.पुराकथाओं के असंगत लगने का कारण लोकमानस की वह प्रवृत्ति है,जो लौकिक से अलौकिक की और है तथा जिसके संस्पर्श से सब कुछ दिव्य हो जाता है – धरती,पहाड़,आकाश,मेघ,समुद्र,वृक्ष,पशु,पक्षी सब देवस्वरूप बन जाते हैं.अपनी पोस्ट में उपजते सवालों का आपने स्वयं ही जवाब लिखा है श्री राजीव जी ! विश्वास बहुत मजबूत प्रवृत्ति है और विश्वास जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता जाता है तब वो एक परंपरा , एक श्रद्धा , एक किवदंती बन जाता है और यही सब हम आज देखते हैं ! सुंदर प्रसंग लिया है आपने अपनी पोस्ट में

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  5. पौराणिक कथाओं के पात्रों की रोचकता से प्रस्तुतिकरण हेतु आभार!

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  6. सत्य ,सनातन धर्म की जय हो पौराणिक कथा में पशु -पक्षिओ का भी अहम रोल था राजीव जी के पोस्ट से जानकारी मिली धन्यवाद
    जय सनातन संस्कृति

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  7. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 13/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...

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  8. वेद-पुराण तो हमारी संस्कृति ही है जिसे प्रकृति के गुण और परिवेश ढालते थे . बहुत सुन्दर

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  9. अच्छी जानकारी मिली, आभार

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  10. बहुत ही सुंदर विश्‍लेषण किया है। साथ पौराणिक कथाओं के पात्रों को सही मायने में समझााने का भी प्रयास किया है।

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  11. बहुब ही खोज पूर्ण लेख है । धन्यवाद

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