मैथिली में एक कहावत है कि ‘एना कते दिन’ ,मतलब इस तरह
कितने दिन.इस नाम से मैथिली में एक फिल्म भी बनी है. आलस्य में इस तरह कितने
दिन बीत गए पता ही नहीं चला कि आखरी पोस्ट कब लिखी थी.एक तो व्यस्तता उस पर भी
आलस्य हावी.इधर दो चार दिनों से ब्लॉग पर सक्रिय होने की काफी चर्चा चल पड़ी थी तो
तय हुआ कुछ लिखना तो चाहिए ही.
इधर यू ट्यूब पर टहलते मेरे पसंदीदा अभिनेता शशि कपूर की
कुछ वीडियो क्लिप दिखाई दी तो वही मासूम सा चेहरा आखों में तैर गया.’हसीना मान
जाएगी’,प्यार का मौसम’,’कन्यादान’ सरीखी फिल्मों के अभिनेता का हालिया तस्वीर तो काफी विचलित करने वाला था.
शायद यही वजह रहती होगी कि प्रमुख अभिनेता,अभिनेत्रियों में
ढलते उम्र की तस्वीर मीडिया से बचाने की.फिर भी यदा कदा उनकी तस्वीरें सामने आती
रहती हैं.कुछ महीने पूर्व दिवंगत अभिनेता विनोद खन्ना का अस्पताल से चित्र जारी
हुआ था तो प्रशंसकों को गहरा धक्का लगा था.शायद इसी कारण से देव आनंद अपने अंतिम
संस्कार विदेश में करवाना चाहते थे.
सभी अभिनेता,अभिनेत्री यह इच्छा रखते हैं कि वे ताउम्र जवां
बने रहें ताकि प्रशंसकों में उनकी परदे वाली छवि बनी रहे और इस कारण इसी किस्म के
रोल भी करते रहते हैं लेकिन मानव शरीर पर उम्र तो हावी रहती ही है. वे भूल जाते
हैं कि मानव शरीर का दिन प्रतिदिन क्षरण होता रहता है.
प्रमुख अमेरिकन कवि हेनरी वड्सवर्थ लोंगफेलो कि एक कविता
पढ़ी थी जिसमें कवि कहता है......
“Dust thou art, to dust thou
returnest”
यह शरीर मिट्टी से बना है और मृत्यु के बाद मिट्टी में ही मिलना है.
सभी अभिनेता,अभिनेत्रियों के एक नहीं कई चेहरे होते हैं,पर्दे पर कुछ और तो वास्तविक जीवन में कुछ और.शायद व्यावसायिकता का तकाजा हो या दर्शकों में अपनी छवि बनाए रखने कि जुगत.इसी को दाग फिल्म में बड़ी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया था...
सभी अभिनेता,अभिनेत्रियों के एक नहीं कई चेहरे होते हैं,पर्दे पर कुछ और तो वास्तविक जीवन में कुछ और.शायद व्यावसायिकता का तकाजा हो या दर्शकों में अपनी छवि बनाए रखने कि जुगत.इसी को दाग फिल्म में बड़ी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया था...
जब भी चाहे नई दुनियां बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
दूरदर्शन पर कई बरस पहले एक धारावाहिक इसी कंसेप्ट पर आया
था ‘चेहरे पर चेहरा’ जिसमें बांग्ला के प्रसिद्ध अभिनेता अनिल चटर्जी प्रमुख
भूमिका में थे.मानव जीवन की विसंगति ही है किहर जगह हमें अलग-अलग चेहरों की जरूरत
पड़ती है.
Yaden bojh nahi hoti balki man halka kar deti hain
ReplyDeleteदिनांक 04/07/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
सभी अभिनेता,अभिनेत्री यह इच्छा रखते हैं कि वे ताउम्र जवां बने रहें ताकि प्रशंसकों में उनकी परदे वाली छवि बनी रहे !!नेता -अभिनेता ही नहीं लगभग सब यही चाहते हैं और अगर ऐसा होता तो उस तरह का समाज .... कैसा होता !! खैर बहुत दिन बाद एक अच्छी पोस्ट के साथ स्वागत है आपका !!
ReplyDeleteयादाश्त रूपी नियामत न होती तो क्या होता ! कैसा होता
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार.
Deleteएक लम्बे अर्से के बाद। स्वागत है। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteअगर इंसान ताउम्र जवान रहता तो, क्या बात होती। विचारयोग्य विषय है।
ReplyDeleteलम्बी अवधि के बाद स्वागत है राजीव सर। :)
न जाने हमे बढ़ती उम्र की शर्म क्यो आती है? हर उम्र का अपना अलग अस्तित्व है।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
Waaahhhh....sundar abhiwayakti...
ReplyDeleteअभिनेता और अभिनेत्रिय ही क्यों हर कोई यही चाहta है पर सहज स्वीकार कर लेता है कोई नहीं ... आप ब्लॉग पर वापस आएँ चाहे किसी भी बहाने से पर ज़रूर आएँ ... अच्छा लगता है ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ! क्या बात है ,सार्थक अभिव्यक्ति आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteWhat you are spoken communication is totally true. i do know that everyone should say a similar factor, however I simply assume that you simply place it in an exceedingly method that everybody will perceive. i am positive you may reach such a lot of folks with what you've to mention.
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