पोखू देवता का मंदिर |
इसके समीप देवरा गाँव में राजा कर्ण का मंदिर है.मकर
संक्रांति पर मंदिर के पास में घटोत्कच का मेला लगता है.इसमें गाय की खाल में
पत्थर भरकर एक बड़ी गेंद बनायी जाती है
जिसे घटोत्कच का नाम दिया जाता है.
लगभग तीसरे पहर आस-पास के गाँव के लोग सज-धज कर नए कपड़े पहनकर मेले में आते हैं.बाजों गाजों के शोर के बीच दो टोलियाँ जिन्हें कौरवों और पांडवों का नाम दिया जाता है खड़ी हो जाती हैं.जब पुजारी उस गेंद को मैदान में फेंकता है तो दोनों टोलियों के बीच उसे लपकने के लिए धक्का-मुक्की होती है.
कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में भीम का पुत्र घटोत्कच कर्ण के हाथों मारा गया था.शायद इसी से उस गेंद को घटोत्कच का नाम देकर कर्ण के मंदिर में इधर से उधर फेंककर एक प्रकार से घटोत्कच को अपमानित किया जाता है.खेल की धक्का-मुक्की में कई लोगों को चोटें आ जाती है.खेल के ख़त्म होने के संकेत पर गेंद जिस टीम के सदस्य के हाथ में होती है उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है.
देवरा गाँव के आसपास के बहुत बड़े इलाके में अभी भी राजा
कर्ण का राज माना जाता है तथा लोगों के झगड़ों को निबटाने का काम राजा कर्ण के नाम
पर मंदिर का पुजारी करता है.राजा कर्ण के तीन सहायक देवता पोखू,शल्य और रेनुका नाम
से जाने जाते हैं.पोखू देवता का मंदिर पुराने नेटवार गाँव में रूपिन और सूपिन नदियों के संगम पर बना
है और उसकी बनावट कर्ण के मंदिर जैसी ही है.
पोखू एक सख्त देवता माना जाता है जो चोरी आदि करने पर सख्त
सजा देता है.शायद इसलिए इस इलाके में अपराधों का नामोनिशान नहीं है.पोखू देवता
इतना भयानक बताया जाता है कि कोई भी उसकी ओर देखता नहीं,यहाँ तक कि पुजारी भी उसकी
आरती उसकी ओर पीठ करके ही करता है.
नेटवार से आगे डाटमीर और गंगर गाँवों में दुर्योधन देवता के मंदिर हैं
और उसकी पूजा भी होती है.ओसला में भी दुर्योधन का सुंदर मंदिर है.दुर्योधन का सबसे
बड़ा मंदिर उत्तरकाशी में जखोल में है.
सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-010-2017) को
ReplyDelete"जन-जन के राम" (चर्चा अंक 2744)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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विजयादशमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार.
Deleteविजयादशमी की शुभकामनाएं !
राजीव जी बहुत ही अलग तरह की जानकारी मिली,रोचक एवं रहस्यमयी सी।आभार आपका इतनी अच्छी जानकारी शेयर करने के लिए।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी
ReplyDelete
ReplyDelete" कर्ण के वंशजों के बारे रोचक जानकारी, शीर्षक में कौरवों की जगह कर्ण तो ज्यादा उपयुक्त होता। खैर ! कोई व्यक्ति विशेष किसी से जुड़ा हुआ होता है तो अपने पूर्वजों की पूजा या उसमें आस्था रखना बुरी बात नहीं है परन्तु आज-कल चलन हो गया है की किसी को नीचा दिखाने के लिए कुकृत्य करते है जैसे रावण को अपना आदर्श बनाना या सार्वजनिक स्थलों पर गौ माता का भक्षण करना आदी। सुन्दर प्रस्तुति। "आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/10/37.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
सादर आभार.
Deleteबहुत ही कौतुहलपूर्ण जानकारी, मेरे विचार से कहीं न कहीं कोई सत्य होगा क्योंकि हम अपने इतिहास को गौरवमयी बताते हैं जबकि ये सब तथाकथित हैं तो हम उनके इतिहास को झूठा कैसे कह सकते हैं। यदि वे मिथ्या विचार गढ़ते हैं अपने पूर्वजों का तो हम कौन सी तर्कपूर्ण बातें करते हैं। बहुत ही अच्छी जानकारी
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 94वीं पुण्यतिथि : कादम्बिनी गांगुली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद.
Deleteबहुत अच्छी जानकारी प्रदान की आपने.किसी भी व्यक्ति का सर्फ एक पक्ष नही होता. कौरवों के सिर्फ एक पक्ष से ही हम वाकिफ़ हैं इसलिये हमे ये शायद आश्चर्य जनक लगता है. बहुत अच्छी पोस्ट. सादर
ReplyDeleteअनोखी है भारत की संस्कृति..
ReplyDeleteHi, extremely nice effort. everybody should scan this text. Thanks for sharing.
ReplyDeleteVery attention-grabbing diary. lots of blogs I see recently do not extremely give something that attract others, however i am most positively fascinated by this one. simply thought that i'd post and allow you to apprehend.
ReplyDeleteदेखो मिस्टर कर्ण कुन्ती पुत्र थे तो वो कौरव कहाँ से
ReplyDeleteरही वात उत्तरकाशी स्थित जखोल सोमेश्वर मन्दिर तो सोमेश्वर इन्द्र का अंश मना गया है झूठ फैलाना वन्द करो