फैशन और सौंदर्य के प्रसाधनों की बढ़ती मांग के कारण मूक पशुओं,प्राणियों का अस्तित्व आज संकट में है.‘फर’ और ‘मखमली’ कोटों,सुगंधित शैम्पू,खाल से बने पर्स आदि की मांग लगातार बढ़ती जा रही है.यह सब अनेक मूक प्राणियों को बर्बरतापूर्वक वध करके प्राप्त किया जाता है.
खरगोश,लोमड़ी आदि को फार्मों
में तब तक पाला जाता है जब तक कि इनकी खाल उतरने लायक न हो जाए.इनको क्लोरोफॉर्म युक्त
एयरटाइट चैम्बरों में रखा जाता है.साँस न ले पाने के कारण यह धीरे-धीरे मर जाते
हैं और फिर इनसे फर कोट तैयार किया जाता है.पानी में रहने वाला ‘मिंक’ नामक जानवर,
कभी-कभी बाहर आते ही अपनी नरम और मुलायम खाल के कारण मौत का शिकार हो जाता
है.दक्षिण अफ्रीका में पाया जाने वाला ‘चिनचिल’ नामक जानवर भी अकारण मौत का शिकार
होता है.इनकी खालों से कोट बनाया जाता है.
‘फर’ उद्योग में काफी
मूल्यवान समुद्री ‘सील’ मछली लगभग 450 कि.ग्रा. तक की होती है,लेकिन इसके छोटे –छोटे
बच्चों का ‘फर’ काफी मुलायम तथा मूल्यवान होता है.इसके दो हफ्ते के बच्चे को माँ
से अलग कर दिया जाता है.उसको डंडों से तब तक मारा जाता है जब तक कि वह मर न
जाए.फिर एक सलाख बच्चे के सिर में घुसा दी जाती है.
चमड़ा ख़राब होने के डर से इसको गोली नहीं मारी जाती.कभी-कभी तो मरने से पहले बेहोशी की हालत में ही तुरंत खाल उतारने के लिए उसको चीर दिया जाता है.बेबस और लाचार सील अपने बच्चे का करूण क्रंदन सुनती और देखती रहती है.खाल उतारने के बाद खून से लथपथ मांस के लोथड़े को सूंघती है.लेकिन उसी के ‘फर से बना कोट कितने शौक से पहना जाता है.एक ‘फर’ कोट के लिए 5-6 सील,4-5 चीते,35 मिंक,उदबिलाव या खरगोश,10 बनविलाव,40 अमेरिकी रेकुम भालू चाहिए.
चमड़ा ख़राब होने के डर से इसको गोली नहीं मारी जाती.कभी-कभी तो मरने से पहले बेहोशी की हालत में ही तुरंत खाल उतारने के लिए उसको चीर दिया जाता है.बेबस और लाचार सील अपने बच्चे का करूण क्रंदन सुनती और देखती रहती है.खाल उतारने के बाद खून से लथपथ मांस के लोथड़े को सूंघती है.लेकिन उसी के ‘फर से बना कोट कितने शौक से पहना जाता है.एक ‘फर’ कोट के लिए 5-6 सील,4-5 चीते,35 मिंक,उदबिलाव या खरगोश,10 बनविलाव,40 अमेरिकी रेकुम भालू चाहिए.
उदबिलाव को पकड़ने के लिए
नुकीले दांतों वाला लोहे का पिंजरा होता है.ये पिंजरे काफी मात्रा में जंगल में
बिछा दिये जाते हैं.इन पिंजरों मरण पैर फंसने पर उदबिलाव छोटने के लिए तड़पते रहते
हैं.इसी हालत में लगभग 15-20 दिन भूखे-प्यासे रहते हैं.मरने पर उनके शरीर की खाल
उधेड़ कर ‘फर’ कोट बनाये जाते हैं.
इसी प्रकार व्हेल मछली का
शिकार एक ऐसे ‘हार्पून ग्रिनेड’ की मदद से किया जाता है जो इसके शरीर में जाकर
फटते हैं.मरते समय अत्यधिक वेदना की वजह से एक विचित्र सी चीख की आवाज आती है.कुछ
लोग इसका मांस खाते हैं.इसकी खाल से निकलने वाला तेल मिसाइल के पुर्जों में डाला
जाता है.
सुगंधित तेल एवं अन्य
प्रसाधन सामग्री के लिए कछुओं को भी नहीं छोड़ा जाता.समुद्र और नदियों से पकड़कर
उन्हें बोरों में भरकर ट्रकों और ट्रेनों में लाड दिया जाता है.जीवित हालत में ही
इनका मांस निकल लिया जाता है और वे बहुत धीरे-धीरे मरते हैं.इससे ‘टार्टिल ओडल’
बनता है जो मास्चराइजर्स के काम आता है.कछुओं की तस्करी भी की जाती है.दुनियां का
तमाम हिस्सों में वन्य जीव अधिनियम लागू होने के बाद भी इन पधुओं का अवैध
कारोबार चलता रहता है.
शैम्पू के लिए खरगोशों को
मारा जाता है.शैम्पू की दो-तीन बूंदें खरगोश की आँखों में डाली जाती हैं,जिससे पता
चल जाए कि उसको कितनी जलन एवं खुजली होती है.कुछ देर तक वह यों ही पड़ा रहता
है.उसकी आँखों में छाले पड़ जाते हैं और वह पूरी तरह अँधा हो जाता है.इसके बाद वह
मर जाते हैं.यह सब सिर्फ शैम्पू के परीक्षण के लिए किया जाता है जिससे इंसानों के
बाल मुलायम और चमकीले रह सकें.इसी प्रकार आफ्टर शेव लोशन का भी सूअर पर परीक्षण
किया जाता है.सुअरों के बालों का प्रयोग विविध प्रकार की वस्तुएं बनाने में किया
जाता है.
जंगलों में रहने वाले
साँपों को भी जिंदा मारा जाता है.सांप के सर पर एक बड़ी कील रखकर हथौड़े से वार किया
जाता है.कुछ ही क्षणों में सांप तड़पने लगता है.तब एक आदमी सांप की पूँछ को पैर से
दबाकर ब्लेड से चीरता है.एक चीरा गले पर लगाया जाता है.सांप की खाल जिंदा रहते ही
उतार ली जाती है.सांप के लोथड़े से प्राण उसके बाद भी नहीं निकलते.कुत्ते या अन्य
जानवर उसे जिंदा नोच-नोचकर खाते रहते हैं,सिर्फ इसलिए कि इससे आकर्षक लेडीज
बैग,पर्स आदि बनाया जा सके.
नेवला,जो साधारणतया किसी को
नुकसान नहीं पहुंचाता,इसे भी लोहे की गरम छड़ों से पीट-पीटकर अधमरा किया जाता है या
फिर बिल से बाहर आते ही शिकंजे में इसकी गर्दन फंसाकर जरा सी मोड़ दी जाती है और वह
मर जाता है.यह सब इसकी खाल के लिए किया जाता है.कंगारू के मरते ही,उसके मृत
शरीर के सारे अंग काम में ले लिए जाते हैं.
आस्ट्रेलिया के इयान बर्ट्स ने इससे पर्स बनाकर बेचने का इरादा किया और ऐसी
विधि विकसित कर ली कि इसे रेजगारी रखने के पारंपरिक बटुओं के रूप में लोकप्रियता
मिल गई. इन बटुओं को खरीदने वाले जापानी पर्यटक इसे सुख और समृद्धि का प्रतीक
मानते हैं.इसलिए जापानी लोग उर्वरता की देवी की पूजा करने की सारी सामग्री इन्हीं
बटुओं में रखने लगे.
धीरे-धीरे इयान के बटुए ने
उन्हें करोड़पति बना दिया.अपनी दौलत तथा समृद्धि को जापानियों की कृपा मानने वाले
इयान ने जापान में कंगारू फार्म खोला और कंगारू की दुम का सूप बेचने लगा.अनेक
कंगारू असमय ही कालकवलित होने लगे.
हाथी दांत को प्राप्त करने
के लिए प्रतिवर्ष कितने हाथी मारे जाते थे.हालाँकि वन्य जीव अधिनियम का कड़ाई से
पालन होने पर इनकी मौतों पर रोक लगी है लेकिन दुनियां के कई हिस्सों में उस
सिलसिला बदस्तूर जारी है.जानवरों में सबसे वफादार कुत्ता है.हंगरी के ‘शेफर्ड’ एवं
‘डलमेशियन’,’मास्टिफ’,विश्व का सबसे विशालकाय कुत्ता ‘जोरबा’,आस्ट्रेलियन कुत्ता ‘जोरबा’
जैसी कई नस्लें हैं.लेकिन इंसान ने इसे भी नहीं छोड़ा.एक विशेष नस्ल के कुत्तों को
एक साथ खड़ा करके करेंट प्रवाहित कराया जाता है और भयंकर पीड़ा से छटपटाते कुत्तों का
झुंड दम तोड़ देता है.इनके कानों का उपयोग पर्स बनाने के लिए होता है.
खाल के लालच में बाघ,कस्तूरी
के लिए प्रति वर्ष कई हजार कस्तूरी मृग मारे जाते हैं.कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ
है जो नर कस्तूरी मृग के पेट में लटक रहे अंडे के आकार की एक गिल्टी से प्राप्त
होती है.ऐसा समझा जाता है कि वह अपने शरीर में पाए जाने वाली कस्तूरी की सुगंध से
बेचैन पूरे जंगल में इसको खोजता रहता है.यह मृग इतना संगीत प्रेमी होता है कि
बांसुरी या किसी सुरीली आवाज से मुग्ध होकर एकांत में खड़ा हो जाता है और शिकारी इस
तन्मयता का लाभ उठाकर इसे मार डालते हैं.
स्वेटरों के लिए ऊन भेड़ के
बालों से बनाया जाता है,लेकिन कराकुल भेड़ के बाल काफी बड़े और नरम तथा घुंघराले
होते हैं.मेमने के जन्म लेते ही उस भेड़ के बाल कम मुलायम रह जाते हैं.इसलिए मादा
भेड़ पर गर्भावस्था में ही लाठी-डंडों से तब तक प्रहार किया जाता है जबतक कि वह मर
न जाए.मरते ही उसके पेट से मेमने को बाहर निकाल लिया जाता है.कभी-कभी तो मरने का
इंतजार किये बिना ही उसके शरीर से खाल उतार ली जाती है जिससे कपड़े,टोपी आदि तैयार
होती है.
एक स्वस्थ पर्यावरण के लिए
मानव समाज के साथ पशुओं का होना भी जरूरी है.कई जानवरों की संख्या में आई कमी के
मद्देनजर इनकी सुरक्षा के लिए कार्यक्रम लागू किये गए हैं.लेकिन पर्याप्त जागरूकता,मूक
पशुओं के प्रति संवेदनशीलता के अभाव के कारण बेजुबान पशुओं का मारा जाना बदस्तूर
जारी है,यह चिंता का विषय है.