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Monday, July 10, 2017

खो गए बुलबुल के तराने

Indian Bloggers

कहा जाता है कि चिड़िया तो मनुष्य के बिना रह सकती है लेकिन मनुष्य चिड़ियों के बिना सूना महसूस करता है.चीन में चिड़ियों की कमी वहां के पर्यटकों को अत्यधिक महसूस होती है.सुबह तथा शाम यदि चिड़ियों का झुण्ड दिखाई न दे एवं उनका कलरव सुनाई न पड़े तो सूनापन महसूस होता ही है.

चिड़ियों के रूप-रंग,सौन्दर्य,विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ,आकर्षक उड़ान एवं मधुर गान से आनंद की अनुभूति होती है.घरेलू कौआ,गोरैया,मैना तथा बुलबुल जैसी चिड़िया जो आम थी अब शायद ही यदा-कदा दिखाई देती है.गानेवाली तथा बोलनेवाली चिड़ियों में बुलबुल,मालावार विस्लिंग,थ्रश,श्यामा,पहाड़ी मैना तथा तोता आदि चिड़ियों की भाषा सरल ध्वनियों तथा मुद्राओं के रूप में होती है.

मानव जीवन  में चिड़ियों की उपयोगिता समय-समय पर सिद्ध होती रही है.कीड़ों-मकोड़ों कृषि के विनाशक कीटों के सफाये में जहाँ इनका अमूल्य योगदान है वहीँ पनडुब्बी(डाइवर) कुल के बहुत से पक्षी परागण को एक फूल से दूसरे फूल तक ले जाने में सहायक होते हैं.पुष्प-पक्षी तो केवल मधुरस पर ही जीवित रहते हैं.चंदन का बीज मुख्यतः बुलबुल तथा वार्वेट पक्षियों द्वारा फैलाया जाता है.

अनेक देवी-देवताओं के वाहन पक्षी हैं.पतंजलि के युग में कौवों से संबंधित विज्ञान- वायुविद्या बहुत लोकप्रिय थी.सुदूर आकाश में स्वर्ग की सीमा के भीतर तक उड़कर पहुँचने की उनकी योग्यता के कारण ऐसा कहा जाता है कि कौवे अज्ञात सत्य तथा भविष्य को भी जान सकते हैं.

आयुर्वेद में पक्षियों द्वारा मनुष्यों को स्वास्थ्य लाभ कराने तथा प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने हेतु आवश्यक माना गया है.वेदों,पुराणों,रामायण,महाभारत तथा संस्कृत के महाकाव्यों में विभिन्न पक्षियों का वर्णन मिलता है.अपने रंग-बिरंगे परों तथा पंखों,सुहावने रूप-रंग,विभिन्न प्रकार की उड़ानों और मधुर संगीत द्वारा पक्षियों ने कवियों का ध्यान आकर्षित किया है.

वर्षाकाल प्रारंभ होते ही मोर नाचने लगते हैं,तुलसीदास राम के मुख से कहवाते हैं.........

लछिमन देखहू मोरजन नाचत वारिद पेखि

वर्षाकाल के अंत होते ही खंजन पक्षी दिखने लगते हैं तुलसीदास ने इनका वर्णन किया है......

वर्षा विगत शरद ऋतु आई
लक्ष्मण देखहू परम सुहाई
जानि शरद ऋतु खंजन आए
पाई समय जिमि सुकृत सुहाए

कवि सुमित्रानंदन पंत ने पक्षियों के चहकने की नक़ल की है....

संध्या का झुट-पुट
वृक्षों का झुरमुट
चहक रही चिड़िया
ट्वी-टी-टुट- टुट

कवि निराला ने पक्षियों से प्रभावित होकर लिखा......

बड़े नयनों में स्वपन
खोल बहुरंगी पंख विहग से

यह विडंबना ही है कि विकास के पथ पर अग्रसर मानव समाज में अब पक्षियों के अस्तित्व पर चर्चा नहीं होती.कुछ पशु भले ही सामाजिक,राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गए हों लेकिन विकास का बाजारवाद पक्षियों के विलुप्त होते जाने पर चर्चा नहीं करता.हकीकत यही है कि भले ही हम उत्तरोतर आधुनिक होते जा रहे हैं,नयी तकनीक से गृहनिर्माण कर रहे हैं,कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं,हर दूसरे घरों की छतों पर मोबाईल के टावरों को बनने देते रहे हैं  लेकिन सामजिक जीवन में पक्षियों के अस्तित्व को भी नहीं नहीं नकारते.

किसी शायर ने वाजिब ही कहा है कि.........

आलम को लुभाती है पियानो की सदाएं
बुबुल के तरानों में अब लय नहीं आती