
आज के इस वैज्ञानिक युग में निरंतर रहस्यपूर्ण खोजें होती
रही हैं और आगे भी होती रहेंगी.प्रतिदिन के समचार पत्र नित नयी खोजों और अध्ययनों
से भरी रहती हैं.21वीं सदी में भी हम अपने आसपास नजर डालते हैं तो पाते हैं कि ऐसी
कई चीजें हैं जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते और फिर उनकी जानकारी देने वाला
साहित्य हमारे सामने आता है.यह भी विरोधाभास है कि जितनी जानकारी हमारी बढ़ती जाती
है,उतना ही महसूस होता है कि हम कुछ नहीं जानते.
इस विरोधाभास का फायदा उठानेवालों की भी कमी नहीं है.जालसाजियाँ,धोखाधड़ियाँ
इसलिए होती रहती हैं, क्योंकि हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं होता.जालसाज हमारे
अज्ञान को भुनाकर अपनी जेबें भरते हैं.लेकिन ताज्जुब तब होता है जब विशेषज्ञ माने
जाने वाले लोग भी जालसाजी करने से बाज नहीं आते.
प्रत्येक वैज्ञानिक क्षेत्र के अनेक उपक्षेत्र भी बन गए
हैं.हर क्षेत्र में विशेषज्ञता आ गयी है.हर क्षेत्र की अपनी भाषा है.एक तरफ जहाँ
ज्ञान-विज्ञान में प्रगति हो रही है वहीं अंधविश्वास,रहस्यवाद तथा नीमहकीमी भी बढ़
रही है.इन बातों ने हर युग के वैज्ञानिकों को परेशान किया है.
वैज्ञानिक खुद भी लोगों को भ्रमित कर सकते हैं.इस बात का प्रमाण अनेक घटनाओं से मिला है.चार्ल्स डॉसन इंग्लैंड के एक सम्मानित मानवशास्त्री खास तौर पर जीवाश्मशास्त्री थे.लोग उनकी उपलब्धियों के लिए उनकी कद्र करते थे.1932 में पिल्टडाउन के निकट एक गड्ढे से उन्होंने एक खोपड़ी और निचले जबड़े के कुछ टुकड़े खोज निकाले. खोपड़ी काफी सख्त थी और मानवीय खोपड़ी जैसी ही लगती थी.जबड़ा भी मानव के आकार का था.जबड़ा, हालांकि आदिम था और खोपड़ी काफी विकसित.फिर भी दोनों चीजें एक दूसरे में सटीक बैठती थीं.
यह वह समय था जब वैज्ञानिक डार्विन के विचारों के ठोस
साक्ष्य तलाशने में लगे हुए थे.उन्हें ऐसे ही किसी साक्ष्य का इंतजार था.प्रख्यात
जीवाश्मशास्त्री तथा ब्रिटिश म्यूजियम के संग्राहक स्मिथ वुडवर्ड ने डॉसन के पिल्टडाउन
मानव को ‘इयोएन्थ्रोपस डॉसोनी’ नाम दिया और उसका चित्रांकन भी किया.
डॉसन खुद वुडवर्ड को उस स्थल पर ले गए थे,जहाँ पिल्टडाउन मानव की खोज हुई थी.उनके
बाद अन्य जीवाश्मशास्त्री भी उस स्थल को देखने गए.प्रख्यात जासूसी लेखक सर आर्थर
कानन डायल ने भी उस स्थान का दौरा किया.उन दिनों वे अपनी पुस्तक “The Lost World”
लिख रहे थे.
डॉसन ने पिल्टडाउन में एक अन्य स्थल की खोज भी कर डाली,जहाँ
से उन्होंने तथा उनके साथियों ने अनेक नए साक्ष्य भी खोज निकाले.कुछ अनगढ़ किस्म के
औजार,एक अन्य खोपड़ी के कुछ अंश अन्य जानवरों के अवशेष आदि.इन सभी खोजों से यह
प्रमाण मिलता था कि इंग्लैंड में 10 और 20 लाख साल पहले मानव रह रहा था.
डार्विन विकासवादी थे.उन्होंने विकास को धीमी प्रक्रिया के
रूप में चित्रित किया था. डॉसन की खोज ने मानो डार्विन के सिद्धांत को पुख्ता आधार
प्रदान कर दिया था. डॉसन की खोज को लोगों ने ‘विलुप्त कड़ी’ के साक्ष्य के रूप में
स्वीकार कर लिया.अगले 43 वर्षों तक किसी विद्वान ने इस पर अंगुली नहीं उठायी.
1955 में ब्रिटिश म्यूजियम ने इन जीवाश्मों से संबंधित एक
रिपोर्ट प्रकाशित की.फ्लोरीन की मात्रा के परीक्षण से पता चला कि खोपड़ी पचास हजार
वर्ष से ज्यादा पुरानी नहीं है और जबड़ा तो आधुनिक ही है.रासायनिक परीक्षणों से यह
पता चला कि जबड़े पर इस तरह के धब्बे लगा दिए गए थे कि वह प्राचीन जैसा नजर आए.
जबड़े के दांतों को रेती से रेता गया था.एक्सरे से यह भी पता
चला कि उन दांतों की जड़ें किसी चिम्पांजी या ओरांग के दांतों की तरह लंबी हैं.यानी
किसी चिम्पांजी या ओरांग के जबड़े को जानबूझकर इस तरह का रूप देने की कोशिश की गयी
थी कि वानर और मानव के बीच का लगे.यह काम किसके द्वारा किया गया था इसका आज तक पता
नहीं चला.हालांकि जे.एस. बीनर ने अपनी पुस्तक ‘द पिल्टडाउन फोर्जरी’ में यह संकेत
दिया है कि यह जालसाजी खुद डॉसन द्वारा की गयी थी.
प्रख्यात अमेरिकी लेखक डैन
ब्राउन का उपन्यास Deception Point भी इसी तरह की वैज्ञानिक
धोखाधड़ी से संबंधितहै.उनका कथानक नासा की पृष्ठभूमि में है.अमेरिका में राष्ट्रपति
के चुनाव होने वाले हैं और नासा के लगातार विफल मिशन के कारण उसके बजट में भरी कटौती
कर दी जाती है.निवर्तमान राष्ट्रपति नासा के समर्थक हैं जबकि चुनाव में उनके प्रतिद्वंदी नासा के भारी-भरकम बजट के आलोचक
हैं और लोगों के सामने इसकी विफलताओं को
पेश करते रहे हैं.
नासा के वैज्ञानिक नासा और निवर्तमान राष्टपति की गिरते साख
को बचाने के लिए एंटार्कटिका में बर्फ के कई फीट नीचे एक रहस्मय चट्टान के मिलने
का दावा करते हैं जो एक करोड़ वर्ष पुरानी और दूसरे ग्रह से आई प्रतीत होती है.नासा
के वैज्ञानिकों की साख फिर से बढ़ जाती है और दुनियां भर के तमाम वैज्ञानिक इसकी
जांच-पड़ताल में जुट जाते हैं.जांच में कई नए तथ्य मिलते हैं जो बताते हैं की यह
चट्टान मानव निर्मित है और इसे प्रयोगशाला में बनाकर एंटार्कटिका में बर्फ में
ड्रिल कर काफी नीचे दबा दिया गया था.
डैन ब्राउन के अन्य उपन्यासों की तरह ही इसमें भी रहस्य,रोमांच
का ताना-बाना है जो यही बताते हैं की वैज्ञानिक बिरादरी में भी धोखाधड़ी और जालसाजी
आम बात है.