Thursday, December 26, 2013

रंग और हमारी मानसिकता










इन्द्रधनुष के सात रंग अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.इन्द्रधनुष प्रकृत्या परिवर्तनशील है परन्तु जब भी वह दिखता है एक सा ही दिखता है.ये सात रंग हैं-बैंगनी,आसमानी,नीला,हरा,पीला,नारंगी और लाल.सात रंगों का सात ग्रहों,सात शरीर चक्रों,सात स्वरों,सात रत्नों,सात नक्षत्रों,पांच तत्व और पांच इंद्रियों से घनिष्ठ संबंध है.नीले आकाश का रंगीन इन्द्रधनुष केवल हमारी आँखों को ही तृप्त नहीं करता अपितु हमारी शारीरिक क्रियाओं और मानसिकता पर भी व्यापक प्रभाव डालता है.

रंगों का उद्गम स्थान सूर्य है.इसकी किरणों के द्वारा सभी सात रंग वायुमंडल में व्याप्त रहते हैं.पृथ्वी के आसपास के वातावरण के प्रकाश कण वर्णक्रम का नीला अंश बिखेरते हैं और शेष अंश वायुमंडल में से निकल जाते हैं.मात्र नीले रंग के परिवर्तन के कारण समुद्र एवं आकाश दोनों नीले नज़र आते हैं.

सूर्य के अतिरिक्त अन्य ग्रह भी अपनी विशेष रंग की किरणों से मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं.चंद्रमा का सफ़ेद,मंगल का लाल,बुध का हरा,बृह्स्पति का पीला,शुक्र का नीलाभ-श्वेत तथा शनि का नीला रंग है. ये रंग अपने-अपने ग्रहों की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं.ज्योतिष विद्या के अनुसार विभिन्न रंगों के रत्नों को धारण करने से दैहिक,दैविक एवं भौतिक संतापों का शमन होता है.

किसी व्यक्ति को कोई रंग बेहद पसंद होता है,जबकि वह किसी को बिल्कुल पसंद नहीं करता.इसका कारण यह है कि रंगों के साथ व्यक्ति के भावनात्मक संबंध होते हैं.रंग आपके व्यक्तित्व को रेखांकित करते हैं.चमकीले रंगों का प्रभाव गहरा होता है.रंग परिवर्तन, भाव परिवर्तन का प्रमुख कारण है.हम सब अनुभव करते हैं कि लाल रंग मन को उत्तेजित करता है,इतना ही नहीं,लाल रंग के कारण वही कमरा छोटा दिखने लगता है,जबकि नीले रंग के कारण वही कमरा बड़ा दिखता है.

हमारे शरीर में मूल सात रंग हमारी कोशिकाओं में व्याप्त हैं,संचित हैं.ये सभी शरीर को सक्रिय और स्वस्थ रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.यदि इनमें से एक रंग की भी कमी हो जाए तो शारीरिक क्रिया भंग होने लगती है.रंगों के द्वारा ही हमारी बीमारी का पता चलता है.इसलिए डॉक्टर बीमार व्यक्ति की आँख,जीभ आदि को देखता है.शरीर की स्वस्थता,रुग्णता,स्वभाव एवं चरित्र का रंगों से गहरा संबंध है.रंग मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बल पर मानव जीवन में विशेष महत्व रखते हैं.

वस्तुतः रंग और प्रकाश में बहुत अंतर नहीं है.रंग में प्रकाश और ध्वनि सम्मिलित है.ध्वनि दो रूपों में आकर ग्रहण करती है.ये दो रूप हैं-वर्ण और अंक.वर्ण और अंक का रंगों से गहरा संबंध है.

जो ध्वनि सीधी निकलती है उसका रंग अलग होता है और जो ध्वनि चक्र में निकलती है उसका रंग कुछ और होता है.ध्वनि चक्रों से संबद्ध होकर शक्ति और उर्जा में बदलती है.विभिन्न प्रकंपन आवृत्ति में प्रवृत्त होने वाला प्रकाश ही रंग है.प्रकाश,रंग और ध्वनि पृथक-पृथक तत्व नहीं हैं,अपितु एक ही तत्व के अलग-अलग प्रकार हैं.इनमें से किसी एक के माध्यम से अन्य दो को प्राप्त किया जा सकता है.

रंगों का सुख,समृद्धि और चिकित्सा के क्षेत्र में भी बहुत महत्व है.लाल रंग में गर्मी होती है,नाड़ियों को उत्तेजित करना इसकी विशिष्ट प्रवृत्ति है.चोट या मोच में इसका प्रयोग होता है.नारंगी रंग भी उष्णता देता है.दर्द को दूर करने में यह सफल है.पीला रंग ह्रदय के लिए शुभ है.यह मानसिक दुर्बलता दूर करने में सहायक है.मानसिक उत्तेजना को भी यह दूर करता है.हरा रंग नेत्र दृष्टिवर्द्धक है.संत और शमनकारी है.फोड़ों और जख्मों को तुरंत भरता है एवं पेचिश में लाभकारी है.नीला रंग दर्द और खुजली शांत करता है.पाचन क्रिया में तीव्रता के निमित्त आसमानी रंग का उपयोग होता है.बैगनी रंग दमा,सूजन,अनिद्रा में उपयोगी है.

मन्त्रों में भी रंग का विशेष महत्व है क्योंकि रंग के द्वारा एकाग्रता,ध्यान,समाधि और आत्मोपलब्धि तक सरलता से पहुंचा जा सकता है.रंगों का मनोनियंत्रण में सर्वाधिक महत्व है.रंगों के माध्यम से हमारी आध्यात्मिक यात्रा सहज हो सकती है.रंग तो सशक्त माध्यम है,सिद्धि की अवस्था में साधन स्वतः लीन  हो जाते हैं. 

Thursday, December 19, 2013

मृत्यु के बाद ?

     
                     
     







मौत के बाद क्या होता है? यह सवाल सदा से जिज्ञासा का विषय रहा है,लेकिन आज तक इस सवाल का साफ़ एवं सटीक उत्तर नहीं मिल सका है.पूर्ण मृत्यु के बाद क्या होता है,इसकी विस्तृत जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है.लेकिन कुछ देर मृत रहकर,फिर चेतना प्राप्त करनेवाले लोगों ने इस रहस्य भरे प्रश्न के उत्तर अपने-अपने ढंग से दिये हैं.

फ़्रांस के डॉ. डेलाकौर ने इसी प्रश्न को अपने अनुसंधान का विषय बनाया.उन्होंने मौत के पहले पड़ाव से लौटने वाले रोगियों एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की मनःस्थिति और उनकी मौत के पहले चरण की अनुभूतियों का गहरा अध्ययन,मनन और विश्लेषण किया,जिसे उन्होंने अपनी एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है.डेलाकौर ने जिन व्यक्तियों को अपने अनुसंधान का विषय बनाया,वे कोई अंधविश्वासी नहीं थे,बल्कि विभिन्न वर्गों से संबंधित स्वस्थ मस्तिष्क के लोग थे.

हालाँकि डेलाकौर के मरीजों में एक थे फ़्रांस के अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध अभिनेता डेनिमल जीनल.कई वर्ष पूर्व उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.उन्हें अस्पताल ले जाने में अधिक समय लग गया था.ऑपरेशन थियेटर में ले जा कर जब उनके दिल की धड़कनें रिकॉर्ड करने वाली मशीनें लगायी गई,तो मशीन की सूई अपनी जगह पर स्थिर रही,यानि उनकी हृदयगति रूक चुकी थी.

इसके बाद क्या हुआ,इसका वर्णन खुद डेनिमल के शब्दों में ‘मुझे ऐसा लगा कि मैंने कमरे में तैरना शुरू कर दिया है.एक डॉक्टर मुझ पर झुका,मुझे जांचा-परखा और मृत पाकर गहरी सांस ली और पीठ मोड़कर चला गया.इसके बाद एक सहायक डॉक्टर ने मुझे पूरी तरह चादर से ढँक दिया.मैं उस समय बरबस चिल्ला रहा था पर मेरी आवाज किसी तक पहुँच ही नहीं रही थी.कुछ देर मैं बहुत भयभीत रहा,लेकिन उसके बाद मैंने भय का अनुभव करना बंद कर दिया.इसके बाद मैंने देखा कि मेरे माँ-बाप वहां आए.उन्हें देखकर मैं बहुत खुश हुआ.इसके बाद मेरी माँ मुझे ऐसे बाग़ में ले गयी,जो रंगारंग फूलों से भरा महक रहा था.यहाँ उस समय चारों ओर बच्चे ही बच्चे थे.वे सब खेल-कूद रहे थे.तभी मेरी माँ ने मुझसे कहा,’देखो,तुम्हारा बेटा वहां खेल रहा है और वह किस कदर मजे में है.सचमुच मैंने उसे वहां दूसरे बच्चों के साथ खेलते देखा.’

डेनिमल के इस दिल के दौरे के कुछ वर्ष पहले ही उसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी और इसके कुछ ही समय पहले उसका नन्हा सा बेटा भी मर चुका था.डेनिमल ने मृत्यु के बाद के अपने इस अनुभव के अंत में कहा,’मेरी माँ फिर मेरे पास आयी और मुझे थपथपाकर कहने लगी कि ‘डेनिमल,अब तुम लौट जाओ,जिंदगी तुम्हारा इंतजार कर रही है.’इसके बाद ही मैं यहाँ वापस लौट आया.’

बिल्कुल ठीक इसी समय ऑपरेशन थियेटर में डॉक्टरों ने देखा कि डेनिमल के दिल की धड़कन रिकॉर्ड करने वाली मशीन की सूई एकाएक हरकत में आ गई है और उसके चेहरे पर भयानक पीड़ा एवं चेतना के चिन्ह लक्षित होने लगे हैं.सहसा उसने अपनी आँखें खोल लीं और उसे महसूस होने लगा कि वह अभी जीवित है.इस प्रकार दिल का दौरा पड़ने के बाद से दुबारा आँख खोलने के बीच में उसने जो सफ़र तय किया,उस दौरान वह अपने मर चुके माता-पिता एवं नन्हें बच्चे से मिल आया.

अमेरिका के मशहूर डॉक्टर वेन राबर्ट्स ने भी इसी विषय पर काफी जानकारी इकठ्ठी की है.उन्होंने कहा है कि मर रहे व्यक्तियों के करीब खड़े होने पर कई बार ऐसा लगता है कि मृत-प्राय व्यक्ति अंतिम साँस लेने से पहले अपने किसी मृत रिश्तेदार या बेहद करीबी से बात कर रहा है या किसी अनजाने प्राकृतिक दृश्य का वर्णन,लेकिन यह सब उसके बड़बड़ाने या फुसफुसाने के स्वर में ही होता है.

डॉ. राबर्ट्स ने ग्रीस के किंग पाल से संबंधित एक विवरण दिया है.किंग पाल एक बीमारी के दौरान काफी अचेत रहा.जब उसे होश आया तो आँखें खोलने के बाद उसने अपनी पत्नी को बताया कि,’मैं अभी-अभी ऐसा महसूस कर रहा था कि मैं दूर किसी किनारे पर खड़ा हूँ.मेरे आगे काफी बड़ी काली सड़क है,जिसके अंत में एक प्रकाश पुंज है.’

एक दस वर्षीय बच्चे हैंस का अनुभव भी इसी सिलसिले में उल्लेखनीय है.वह एक दीवार के नीचे आकर बुरी तरह घायल हो गया था.डॉक्टर उसे चेतना-शून्य एवं मृत मान चुके थे.कुछ समय बाद उसकी चेतना फिर अपने आप लौट आई.होश में आने पर उसने बताया कि ‘मैं किसी दूसरी दुनियां में गया हुआ था.मैं वहां बहुत ख़ुशी महसूस कर रहा था.मैं वहां खेल रहे बच्चों के साथ खेला.मैं और भी खेलना चाहता था,लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि ‘तुम्हारे पास इतना समय नहीं है कि तुम हमारे साथ और खेल सको.’उन्होंने यह भी कहा कि तुम्हें वापस जाना होगा और मैं वापस आ गया.’

मौत के बाद का यह छोटा सा सफ़र हमेशा खुशगवार और शांतिदायक ही होता है,यह जरूरी नहीं.कुछ व्यक्तियों को यह सफ़र अत्यधिक भयानक भी लगा है.जैसे,कुछ डरावने साए उन्हें दबोचने के लिए आगे बढ़ रहे हैं और उन्हें उन सायों की पकड़ से निकलने के लिए गहरा संघर्ष करना पड़ा है.

फ़्रांस की प्रसिद्ध नर्तकी बैनी चैरत का अनुभव तो और भी विचित्र है.वह टी.वी. पर अपना नृत्य पेश कर रही थी कि स्टूडियो में अचानक आग लग गई.वह बुरी तरह झुलस गई.अचेतावस्था में उसे अस्पताल पहुँचाया गया.कुछ मिनटों बाद उसके दिल की धड़कनें बंद हो गईं और कुछ देर बाद अपने आप फिर शुरू भी हो गईं.होश में आने पर चैरत ने डॉक्टरों को बताया कि मुझे लगा कि मेरा विवाह किसी अजनबी से हो रहा है और उस अजनबी का नाम माइकेल पुकारा गया है.’इतना बताकर चैरत खामोश हो गई क्योंकि,वह विवाहित थी और तब तक उसका पति वहां आ गया था.

अजीब संयोग है कि यह घटना भविष्य में सच साबित हुई.ठीक चार वर्ष बाद चैरत की दूसरी शादी हुई और उसके नए पति का नाम माइकेल था तथा उसकी शक्ल-सूरत बिल्कुल उस व्यक्ति से मिलती थी,जिसे उसने आग में जलने के बाद अपनी मृत अवस्था में देखा था.            

Thursday, December 12, 2013

रोग निवारण और संगीत

   
संगीत तरंगों का प्रभाव जड़-चेतन पर समान रूप से पड़ता है.लय और ताल में बंधे हुए स्वर प्रवाह को संगीत कहते हैं.यह गायन के रूप में स्वर प्रवाह के साथ ही जुड़ा हुआ हो सकता है और वाद्य यंत्रों की तदनुरूप ध्वनि भी संगीत में गिनी जा सकती है.गायन और वादन दोनों का सम्मिश्रण उसकी पूर्णता निर्मित करता है.गायन के साथ गुंथी हुई भावनाएं चेतना को प्रभावित करती हैं. अन्तरंग में उल्लास उत्पन्न करती हैं.गायक के मनोभाव श्रवणकर्ता के कानों में प्रवेश करके गहराई तक पहुँचते हैं और तदनुरूप स्रोत के अंतराल को प्रभावित करते हैं.चेतना क्षेत्र में इस प्रकार की हलचलें गायक के साथ उन तरंग प्रवाह को अपनाने वाले को अपने साथ चलने,उड़ने के लिए बाध्य करती हैं.

भक्ति भावना से लेकर जोश-आवेश,उत्तेजना आदि को इसी आधार पर उभारा जा सकता है.भक्ति भाव की समर्पित आत्मविभोरता  भी उस आधार पर उत्पन्न की जा सकती है.उत्थान को पतन में और पतन को उत्थान में बदलना भी इस माध्यम के आधार पर संभव हो सकता है.अपराधी को संत और संत को अपराधी बनाने की क्षमता उसमें है.नदी के प्रवाह में तिनके-पत्ते बहने लगते हैं.संगीत प्रवाह में तरंगित होने वालों की मनःस्थिति भी इसी प्रकार तैरने-डूबने लगती है.
इन्हीं विशेषताओं के कारण संगीत को शास्त्रकारों ने नादब्रह्म कहा है.शिव का ताण्डव नृत्य और महाप्रलय का दुर्धर्ष प्रकरण साथ-साथ चलते हैं.संगीत कभी चेतना के उच्च पद पर था,तब ईश्वर प्राणिधान में स्वरयोग का,नादयोग का समावेश होता था.पर अब तो बात दूसरी है.वीरभाव उभरने और आदर्शों की चेतना उत्पन्न करने वाले न कहीं गायक दिखते हैं और न उसके लिए तरसने वाले गुणी भावनाशीलों का समुदाय ही कहीं दीख पड़ता है.यह अवमानना इसलिए हो चली है कि उसमें से उत्कृष्टता का प्राण धीरे-धीरे धीमा और तिरोहित होता चला गया.


मात्र एकाकी वादन की भी अपनी महत्ता है.इस आधार पर भी सशक्त ध्वनि प्रवाह उत्पन्न होता और अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है.युद्ध काल में आगे-आगे ‘वीररस’ से भरे-पूरे गीत वादक गाते चलते थे.उससे न केवल सैनिक वरन उस प्रयोजन में काम आने वाले घोड़े-हाथी तक मस्ती में भरकर नाचने लगते थे और अपना जौहर दिखाने का प्रयत्न करते थे.दीपक राग और मेघ मल्हार जनश्रुति सर्वविदित है. 

विगत कई वर्षों से प्रयोगकर्ताओं ने रोग निवारण के लिए संगीत ध्वनि प्रवाहों की चमत्कारी विशेषता सिद्ध की है.शारीरिक और मानसिक रोगों में किन ध्वनि प्रवाहों को प्रभावी उपचार की तरह काम में लाया जा सकता है,इसकी विधा निर्धारित की गई और प्रयोजन में आश्चर्यजनक परिमाण में उपयुक्त सिद्ध हुई.आगे इस सन्दर्भ में और भी बड़ी संभावनाएं सोची जा रही हैं.समझा जा रहा है कि अन्य चिकित्सा पद्धतियों से कहीं अधिक समर्थ संगीत चिकित्सा रोगियों की असाधारण सहायता कर सकेगी.

पशु-पक्षियों और जीव जंतुओं पर भी संगीत का उत्साहवर्द्धक प्रभाव देखा गया है.मछलियाँ और मुर्गियां अधिक संख्या में अधिक बड़े अंडे देने लगीं और उनसे परिपुष्ट बच्चे प्रकट होने लगे.गायों ने अधिक दूध दिया.वे अवधि से पूर्व गर्भिणी हुइऔर बच्चे देने में,दूध देने में अन्यों की अपेक्षा अग्रणी ही रहीं.यही बात अन्य पशुओं के बारे में भी देखी गयी.उसने संगीत की मस्ती में अधिक पराक्रम किया.धावकों ने दौड़ में बाजी जीती.जिन्हें संगीत के सम्पर्क में रखा गया,उनकी बुद्धिमत्ता अपेक्षाकृत अधिक विकसित हुई देखी गई.

संगीत के प्रयोगों में वनस्पतियों पर अच्छा प्रभाव पड़ते देखा गया है.घास तेजी से बढ़ी,सब्जियों में बड़े फल लगे.जिनसे लकड़ी ली जाती थी,उनकी अभिवृद्धि से मोटाई तथा मजबूती में वादन सुनने से कहीं अधिक सफल रहे.

जहाँ गायन वादन होता है,वहां उदास,निराश प्रकृति के लोगों ने भी अपने में उमंगें उठती अनुभव की हैं.ऐसे वातावरण में निराश मनों में भी आशा का संचार होता है.आदत में आश्चर्यजनक परिवर्तन आता है.संगीत कोलाहल को नहीं कहते,उसमें मधुरता,मृदुलता होनी चाहिए.कोलाहल तो कारखानों में भी होता रहता है.पर उसकी कर्कशता सीमा से अधिक इस स्तर तक पहुँचता है कि कान उन्हें सहन नहीं कर पाते. इसी प्रकार विवाह,बारातों में बजने वाले कई बार इतनी अधिक ध्वनि करते हैं कि राह चलते लोगों को भी सुनना भारी पड़ता है.

शंख,घड़ियाल,ढोल,नगाड़े भी यदि विसंगत स्वर में बजें तो उनमें कर्कशता ही प्रधान होती है.ऐसा वादन लाभ के स्थान पर हानिकारक ही सिद्ध हो सकता है.अत्यधिक शोर वाले क्षेत्रों में रहने वाले कान संबंधी बीमारियों के ज्यादा शिकार होते हैं.कई बार तो उनके मष्तिष्क को विक्षिप्तता से प्रभावित होते देखा गया है.

लाभकारी संगीत वही होता है,जो मृदुल एवं मधुर हो.कर्ण-प्रिय लगे एवं आकर्षण उत्पन्न करे.निद्रा को भगाए नहीं,वरन बुलाने में सहायता करे.वादकों का कौशल इसी में है कि वे उत्साहवर्धक,आनंददायक स्वर लहरियां उत्पन्न करें.गायकों की गरिमा इसी में है कि वे अपने गीतों को पशुता से छुटकारा दिलाने वाले और देवत्व उभारने वाले तत्वों से सराबोर रखें.जो संगीत मधुरिमा उत्पन्न करे,उसे ही सराहा जाना चाहिए.

न्यूयॉर्क के कंसर्ट पियानिस्ट और मनोवैज्ञानिक रिचर्ड कोगान भी मानते हैं कि संगीत का इस्तेमाल उपचार में हो सकता है.हिंदुस्तान टाईम्स लीडरशिप समिट में ‘द पावर ऑफ़ म्यूजिक हीलिंग’ पर बात करते हुए उन्होंने संगीत से उपचार का विस्तार पेश किया.

किसी ज़माने में आध्यात्मिक तरीके से उपचार भी लोकप्रिय था.उपचार करने वाले लोग इसके लिए ड्रम जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करते थे.संगीत सुनना या फिर संगीत यंत्र बजाना हमारे शरीर के तनाव के स्तर को कम करता है.संगीत कोर्टिसोल नामक हारमोन का सृजन करता है,जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है.इसके साथ ही दिमाग में डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का सृजन करता है.ये सृजन आनंदित करने वाली गतिविधियाँ जैसे अच्छा भोजन करने आदि के दौरान भी होता है.


संगीत दिल के रोगियों के लिए भी लाभकारी है.ये उच्च रक्तचाप और आघात से रक्षा करता है.साथ ही संगीत हमें जल्दी बूढा होने से भी रोकता है.मनोचिकित्सकों ने इसलिए संगीत द्वारा रोगोपचार की शुरुआत की है. 

Thursday, December 5, 2013

आंसुओं के मोल
















‘रोना कभी नहीं रोना’,अमूमन ऐसा नसीहत देने वालों की कोई कमी नहीं है और रोने वाले को हंसाने के सभी कारगर प्रयास किये जाते हैं. रोना कोई नहीं चाहता,लेकिन रोना मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत अनिवार्य है.रो न पाने से आदमी अनेक बीमारियों से घिर जाता है.रोने से भावनाओं को राहत तो मिलती ही है,आदमी की उम्र भी बढ़ जाती है.

मनोविज्ञान की दृष्टि से यदि दिल खोलकर हंसना लाभप्रद है,तो रोगों के निवारण के लिए,रुदन भी एक सहज उपचार है,जो मानसिक आघातों से त्रस्त होकर आंसू बहा सकता है.एक अमरीकी वैज्ञानिक की पुस्तक से प्रेरणा लेकर पश्चिमी जर्मनी के एक वैज्ञानिक ने मनुष्य के आंसुओं का गहन अध्ययन किया है और इन अन्वेषणों ने आंसुओं के भावनात्मक पक्षों को प्रकाशित किया है.

आंसू,अश्रु-ग्रंथि से निकलने वाला हल्का तथा क्षार-गुणयुक्त एक तरल पदार्थ है.इस घोल में चीनी,प्रोटीन तथा कीटाणुनाशक तत्वों का समावेश होता है,जिसमें अनेक रोगों का मुकाबला करने की शक्ति निहित है.स्त्रियों के आंसू पुरुषों से भिन्न होते हैं.प्रसन्नता के आवेश से उत्पन्न आंसू,दुःख या विपत्ति में छलकने वाले आंसुओं से भिन्न होते हैं.दुःख से बहुत अधिक मात्रा में निसृत आंसू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं.रोगी के आंसुओं में मनुष्य की जीवनशक्ति के अनुरूप परिवर्तन आ जाता है.डॉक्टर तथा वैज्ञानिक इस तथ्य की खोज-बीन कर रहे हैं कि क्या आंसुओं के रासायनिक परीक्षण से रोगों का निदान संभव है?

स्टुट्गार्ट के एक मनोवैज्ञानिक ने अनेक परीक्षणों से इस तथ्य की पुष्टि की है कि अश्रु-विश्लेषण द्वारा कई रोगों का इलाज किया जा सकता है.आंसू,दुःख,चिंता,क्लेश तथा मानसिक आघातों से मुक्ति दिलाने तथा मन हल्का कर आकस्मिक मनो-व्यथाओं को सहने में सहायता पहुंचाते हैं.उस स्थिति की कल्पना कितनी दारूण है कि जब व्यक्ति प्रसन्नता में हँस न सके और दुःख से रो न सके.ऐसे अनेक व्यक्तियों की मनस्थितियों का परीक्षण किया गया है,जो मानसिक आघातों को चुप-चुप सहने के कारण मनोरोगी हो गये हैं.रो लेने से दुखी मन को कितनी राहत मिलती है,इसे भुक्तभोगी ही जान सकता है.

हाल ही में पश्चिमी जर्मनी के डॉक्टरों ने यह पता लगाया है कि आंसुओं का किसी भी रोगी के,शीघ्र स्वस्थ होने पर कितना प्रभाव पड़ता है.यह आवश्यक नहीं है कि चिल्लाकर ही रोया जाय.परीक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि आंसुओं के साथ शरीर का विष भी बाहर निकल जाता है.

रोना मनुष्य के लिए कितना अनिवार्य है,इस संबंध में चिकित्सकों के अनेक मत हैं.जब कभी आप
रोना चाहते हैं,तब परिस्थितिवश आखों में आए आंसुओं को रोकते हैं.तो अनेक बीमारियों को न्योता देते हैं,जैसे पुराना जुकाम,नेत्र रोग,सर और ह्रदय की पीड़ा,गर्दन अकड़ जाना,चक्कर आना आदि.कई बार बच्चों के जोर-जोर से रोने पर बड़े उन्हें चुप करने के लिए धमकाते हैं और बच्चे भय से एकाएक रोना बंद कर देते हैं.इससे उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.रोने की क्रिया के कारण वायु की वृद्धि हो जाती है और अकस्मात् उसके बंद हो जाने से वही वायु शरीर के किसी स्थान पर जाकर रुक जाती है.इसके फलस्वरूप पेट के दर्द तथा अन्य रोगों के उत्पन्न होने की आशंका हो जाती है.

अमरीकी चिकित्सक बांड ने कई वर्षों के अनुसंधान से निष्कर्ष निकाला है कि यदि पुरुष कभी-कभी
रो लिया करें तो उनके स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है.यह एक प्राकृतिक उपलब्धि है,जिसकी उपेक्षा से मनुष्य मानसिक सुख प्राप्त नहीं कर सकता और वह मन को दुखी बनाकर जीवन के सम्पूर्ण सुखों को नीरस बना लेता है.इसलिए कहा गया है कि मन का निरोग होना सुखी होने की पहली शर्त है,और यह तभी संभव है जब मन,चिंता एवं निराशा से दूर हो.मन ही मन निराशा,चिंता तथा अपनी मनोव्यथा में घुटते रहना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिप्रद है.

पुरुषों पर मर्यादा का यह मिथ्या अंकुश है कि उन्हें रोना नहीं चाहिए या उनके लिए रोना अशोभनीय है.मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का मत है कि वर्तमान जीवन पद्धति में जो कुंठाएं और तनाव की स्थिति है,उसे बहुत हद तक आंसुओं के द्वारा दूर किया जा सकता है.स्टुट्गार्ट के डॉक्टरों तथा वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि रोने से मनुष्य शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर सकता है.इसलिए छोटे बच्चों को कभी-कभी रोने देना श्रेयस्कर है.

न्यूयार्क विश्वविद्यालय के मानसिक रोग-चिकित्सक विलियम ब्रियाँ ने विचार व्यक्त किया है कि अमेरिका में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की लंबी आयु का रहस्य यह है कि वे ऐसी फ़िल्में देखने की शौकीन हैं,जिनमें बार-बार रोना आता है.इस तरह रोने से भावनाओं को बड़ी राहत मिलती है.रोनेवाले का दिल हलका हो जाता है.डॉ.ब्रियाँ का यह विचार भी ध्यान देने योग्य है कि पुरुष भी जोर-जोर से रो लिया करें,तो उन्हें ह्रदय रोगों से राहत मिल सकती है.मध्य प्रदेश की बंजारा जाति में तो लड़कियों को रोने की शिक्षा दी जाती है.जो लड़की रोने में कुशल नहीं होती,उससे कोई भी युवक विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता.

हम यह भी क्यों भूलें कि हँसकर यदि मनुष्य दूसरों की सुख-वृद्धि करता है,तो रोकर वह दूसरों के दुःख बाँट लेता है.आंसू की सबसे बड़ी विशेषता उसका कल्याणकारी रूप है.वह मनुष्य को अकर्मण्य नहीं बनाता.वेदना से निःसृत आँसुओं की तरलता,अंतर्ज्वाला को शांत कर जीवन को प्रकाश देती है.इसलिए महाकवि जयशंकर प्रसाद ने ‘आंसू’ में विश्वबंधुत्व के दर्शन किये हैं,और यही आंसू कवि के जीवन की मूल प्रेरणा है..........
जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छायी
दुर्दिन में आंसू बनकर
वह आज बरसने आयी
सबका निचोड़ लेकर तुम
सुख से सूखे जीवन में
बरसो प्रभात हिमकण-सा
आंसू इस विश्व-सदन में