Thursday, November 19, 2015

कल्पना से उभरती एक विद्या

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सदियों से कीमियागिरी एवं कीमियागर के संबंध में एक रहस्यमय धुंध लिपटा रहा है.चर्चित लेखकों और उपन्यासकारों ने अपने कथानक में इसे जगह देकर इसे और जीवंत कर दिया है.पाओलो कोएलो की प्रमुख पुस्तक का शीर्षक ही ‘कीमियागर’ (The Alchemist) था.इस पुस्तक के आखिर में एक कीमियागर का वर्णन मिलता है जो धातुओं को रासायनिक मिश्रण में मिलाकर सोना बनाता है? लेकिन क्या हकीकत में पहले कभी कीमियागर होते थे या ये सिर्फ काल्पनिक चरित्र ही हैं.

प्राचीन हिंदू ग्रंथों में कीमियागिरी के संबंध में कुछ नुस्खों का वर्णन मिलता है लेकिन इसका अर्थ निकालना आसान नहीं है....

तोरस,मोरस,गंधक,पारा
इन्हिं मार इक नाग संवारा
नाग मार नागिन को देय
सारा जग कंचन कंचन कर लेय


फ़्रांस के दो कीमियागर बहुत प्रसिद्ध रहे हैं – निकोलस फ्लामेल और जकेयर. फ्लामेल का जिक्र जे.के. रॉलिंग की हैरी पॉटर सीरिज की पहली किताब हैरी पॉटर और पारस पत्थर (Harry Potter and the Philosopher’s Stone) में निकोलस फ्लामेल नामक रसायनशास्त्री के रूप में हुआ है जिन्होंने पारस पत्थर बनाया था और जिसके स्पर्श से धातु सोने में परिवर्तित हो जाता था.इसके अलावा प्रसिद्ध उपन्यासकार डैन ब्राउन की बहुचर्चित पुस्तक द दाविंची कोड (The Davinchi Code) में भी फ्लामेल का जिक्र मिलता है.

फ्लामेल के संबंध में यह कहा जाता है कि वह पुरानी पुस्तकों को खरीदता और बेचता था.एक रात स्वप्न में उसे एक परी ने एक पुस्तक दिखलायी और कहा ‘फ्लामेल ! देखो, इस पुस्तक को. न तुम इसे समझ पाओगे और न कोई दूसरा ही,पर एक दिन ऐसा आएगा,जब तुम इसमें एक ऐसी चीज देखोगे,जो किसी और को नसीब न होगी.’ फ्लामेल ने हाथ बढ़ाया इस पुस्तक को लेने को,पर वह ले न सका.परी और वह पुस्तक दोनों ही एक सुनहरे मेघ में विलीन हो गयीं.

पेरिस में फ्लामेल का घर जहाँ अब रेस्तरां है 
फ्लामेल इस स्वप्न को भूल सा गया ,किंतु कुछ दिनों बाद, एक दिन एक अज्ञात व्यक्ति ने पैसों की खातिर उसके घर पर आकर एक पुरानी किताब बेची.जिसे देखते ही क्लामेल को भूले हुए स्वप्न की याद आ गयी.यह वही पुस्तक थी जिसे उसने स्वप्न में देखा था.फ्लामेल लिखता है........

दो फ़्लोरिन(सिक्का) में मुझे वह पुस्तक प्राप्त हुई,जो सुनहरे जिल्द की थी.एक बड़े आकार की और बहुत ही पुरानी पुस्तक थी.इसके पन्ने अन्य पुस्तकों की तरह कागज के नहीं बल्कि वृक्ष की छाल के थे.इसकी जिल्द तांबे की थी – बहुत कोमल.इसके ऊपर विचित्र प्रकार के अक्षर और रेखाओं से बनी हुई आकृतियां थीं.मैं इन्हें पढ़ने में असमर्थ था,सोचा शायद ये ग्रीक या ऐसी ही किसी और प्राचीन भाषा के शब्द हैं.छाल पृष्ठों पर लैटिन अक्षर खुदे हुए थे.पुस्तक के सात पृष्ठ तीन बार आते थे,पर इनका सातवां पृष्ठ हर बार अलिखित-कोरा ही आता था.पर पहली सिरीज के सातवें पृष्ठ पर एक डंडा बना हुआ था और दो सर्प,जो एक दूसरे को निगल रहे थे.

दूसरी सिरीज के सातवें पन्ने पर एक क्रॉस बना हुआ था,जिस पर एक सर्प फांसी पर लटकाया गया था.अंतिम सिरीज के सातवें पृष्ठ पर एक रेगिस्तान अंकित था,जिसके मध्य भाग से सुंदर झरने निकले हुए थे जिसमें से अनेक सर्प निकलकर जहां-तहां बिखर गए थे.प्रथम पृष्ठ पर ऐसे लोगों के लिए,जो लेखक या बलि देने वाले न होकर भी इस पुस्तक को पढ़ना चाहें,कई प्रकार के अभिशाप लिखे हुए थे.

पेरिस में फ्लामेल के नाम पर सड़क
पुस्तक के सभी पृष्ठों पर तरह-तरह की तस्वीरें बनी हुई थीं - सक्रिय व्यक्तियों और सर्प आदि की,पर कोई व्याख्या,किसी भी भाषा में न थी.ये सभी किसी बात के सूचक थे ,पर लाख कोशिशें करने पर भी फ्लामेल इन्हें समझने में व्यर्थ रहा.वह इतना अवश्य समझता था कि इनमें स्वर्ण निर्माण की प्रक्रियाएं बतायी गयी हैं.वह इन्हें जानने के लिए बैचैन रहने लगा,रात-दिन इसी प्रयास में रहता कि किसी तरह वह इन्हें समझ पाए.भूख-प्यास और नींद हराम हो गयी.वह इस ग्रंथ को किसी और को दिखाना भी नहीं   चाहता था.अंत में उसने एक तरीका निकाला और उसने पुस्तक के कुछ चित्रों की नकलकर उसे अपनी दुकान में टांग दिया और लोगों से उनकी व्याख्या पूछना शुरू कर दिया.

एनसेलम नामक एक चिकित्सक कीमिया में दिलचस्पी रखता था.एक दिन उसकी दृष्टि इन चित्रों पर पड़ी और वह समझ गया कि ये चित्र जरूर ही किसी कीमिया-ग्रंथ के हैं,पर फ्लामेल ने भेद नहीं खोला. उसे असलियत न बताकर सिर्फ चित्रों की व्याख्या पूछी.वह भी इन्हें पूरी तरह समझने में असमर्थ रहा,पर कुछ अनुमानित बातें उसे बतायीं.जिनके आधार पर फ्लामेल इक्कीस साल तक सोना बनाने का निष्फल प्रयोग करता रहा.

बार-बार असफल होकर फ्लामेल का धैर्य छूटने सा लगा था,एक दिन अचानक उसके ध्यान में आया कि पुस्तक को लिखने वाला अब्राहम नामक कोई यहूदी था,अत; कोई यहूदी ही इसकी असली व्याख्या बता सकेगा.इस विचार के आते ही वह स्पेन के लिए रवाना हो गया,जहां यहूदी कीमियागरों के होने की उन दिनों शोहरत थी.पूरे एक वर्ष वह यहूदियों के मंदिरों में घूमता रहा,पर उसे वह व्यक्ति न मिला जो उसकी आकांक्षा पूरी करता.अंत में जब वह हताश होकर लौट रहा था तब उसकी भेंट एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो उसका हमवतन था और पूर्व-परिचित भी.उसने उससे सारी बातें सुनने के बाद कहा कि वह एक ऐसे व्यक्ति को जानता है जो चित्र-लेखों को पढ़कर उनका रहस्य बताया करता है.

वह उसे कांशे नामक यहूदी के पास ले गया फ्लामेल ने चित्रों उनके साथ अंकित शब्दों की नकल को जो वह अपने साथ लाया था,उसे दिखाया.कांशे उन्हें देखते ही उछल पड़ा,बोला ये तो हिब्रू भाषा के उस महान ग्रन्थ के हैं,जिसे राबी अब्राहम ने लिखा था.यह तो अब अप्राप्य है,बहुत दिनों से यहूदी-समुदाय इसकी खोज करता आया है.और फिर उसने धाराप्रवाह उसके अर्थ बताने शुरू कर दिये.

मूल पुस्तक फ़्रांस में फ्लामेल के घर पर थी,इसलिए फ्लामेल के साथ कांशे भी फ़्रांस के लिए चल पड़ा.रास्ते में लंबे समुद्री यात्रा के अभ्यास नहीं होने और खराब स्वास्थ्य के कारण वह बेतरह बीमार हो गया.आरलियंस पहुँचते ही उसकी मृत्यु हो गयी.फ्लामेल उसे वहीँ एक चर्च में दफनाकर शोक संतप्त ह्रदय से घर लौटा और कांशे के बताए हुए अर्थों के सहारे पुनः पुस्तक पढ़ने और समझने के प्रयास में लग गया.

तीन वर्षों के अथक परिश्रम के बाद सफलता की कुंजी उसके हाथों में आयी.किताब पढ़-पढ़कर जिस प्रयोग में उसने तीन साल बिताये थे,उसका पूरा ज्ञान उसे हो गया.फ्लामेल उस रात को नहीं भूलता जब वह प्रयोग में जुटा था.सहसा पौंड लेड(एक धातु) चमकती हुई चांदी के रूप में निकल आया.फ्लामेल ने उस पर वह मिश्रण छोड़ी,जिसे वर्षों के परिश्रम के बाद तैयार की थी.तपाना जारी रखा ,धातु ने एक के बाद दूसरा,तीसरा,चौथा,पांचवां रंग बदला और अंत में वह एक सुर्ख रंग का गोला बन गया.

अर्द्ध निशा की नीरवता में फ्लामेल ने उसे आधा पौंड पारे में रखा.देखते ही देखते पारे के साथ मिलकर वह गोला स्वच्छ सोना बन गया.क्लामेल और उसकी पत्नी पर्नेल ख़ुशी से नाच उठे.फ्लामेल के जीवन की सबसे बड़ी मुराद पूरी हुई.इसके बाद फ्लामेल ने अपने जीवन में कितना सोना बनाया यह कहना मुश्किल है लेकिन अपने बनाये सोने की कीमत से चौदह अस्पताल,तीन चर्च और कम आय वाले लोगों के लिए कई घर बनवाये और कई दूसरी संस्थाओं को मदद दी.

सोना संबंधी अधिकांश पुस्तकों में सर्प का जिक्र आता है लेकिन यह किस वस्तु का लाक्षणिक शब्द है ,इस रहस्य का कभी पता नहीं चला.सोना बनाने के नुस्खे चाहे ने शब्दों में हों या चित्रों में – बड़े रहस्यपूर्ण होते थे,जिसका अर्थ कांशे जैसा कोई कीमियागर ही कर सकता था.कीमिया को संसार हमेशा से एक रहस्यपूर्ण विद्या ही समझता आया है.

35 comments:

  1. बढ़िया विषय । ताँत्रिक विधियाँ भी हैं इसके साथ पारे को सोने में परिवर्तित करने के लिये ।

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  2. बहुत ही अच्‍छा आलेख। मैंनें भी कीमियागीरी पर बहुत सी कथाएं पढ़ी हैं। बहुत ही रहस्‍यमयी है।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. बढिया लेख सुंदर प्रस्तुती मोबाइल,कंप्यूटर,पैसा कमाओ टिप्स, ब्लॉगर ब्लॉग टिप्स,और भी बहुत कुछ हिन्दी में..http://www.mobiletipstrick.in/

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  5. ​मैं आपकी पोस्ट पर इसलिए भी आना पसंद करता हूँ राजीव जी , क्यूंकि यहां हमें हमेशा एक नया विषय मिलता है पढ़ने को ! पारस पत्थर से सोना बनाना काल्पनिक सा ही लगता है ! फ्लामेल के विषय में पढ़ना बहुत ही रोचक और अनूठा लगा !!

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  6. बहुत रोचक। आभार।

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  7. किमिया से ही निकला है केमिस्ट्री या रसायन शास्त्र। और मराठी का किमया (जादू)। रोचक जानकारी।

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  8. पारद से स्वर्ण बनाना बिल्कुल आसान है।

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  9. Copper wire + HgSO4 + Hg = सोना

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  10. Pls iski matra kitni leni h batado.
    Mene bahut koshish ki lekin safal nahi hua .aman ji pls kuch gyan do.

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  11. Iski matra kya leni h. Aman ji pls batao. Mene bahut paryas kiya pr safal nahi hua .

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  12. Iski matra kya leni h. Aman ji pls batao. Mene bahut paryas kiya pr safal nahi hua .

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  13. जानकारी हो ठीक लग रही है, किन्तु इस विषय में सदियों से भंतियाँ बहुत प्रचलित रही है... खैर...

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