हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली जिन वस्तुओं,उत्पादों से हमारा साबका पड़ता है ,वे अधिकतर चायनीज हैं,अर्थात मेड इन चायना.चायनीज उत्पादों ने हमारे जीवन में इस तरह घुसपैठ कर लिया है कि इनके बिना तो जीवन अधूरा ही लगता है.मोबाईल हैंडसेट से लेकर मोबाइल की नामचीन कंपनियों की बैट्रियां,चार्जर,लेड टौर्च,लैपटॉप,एल.सी.डी टीवी,कम्पूटर के मोनिटर,हार्ड डिस्क और अधिकतर पार्ट्स,सी.एफ.एल बल्ब,पेन ड्राइव,मेमोरी कार्ड्स,यू.एस.बी मौडम अदि अनेक उत्पादों ने कब हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया पता ही नहीं चला.
नोकिया,सैमसंग जैसे बड़े और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स की मोबाइल बैटरियां चीन की बनी होती हैं.एच.पी,डेल,लेनोवो जैसे बड़े ब्रांड्स के लैपटॉप,प्रिंटर चीन के बने होते हैं.अधिकांश डिजिटल कैमरे और बैट्रियां चीन में निर्मित हैं.
लब्बोलुआब यह कि इन उत्पादों में एक भी भारतीय नहीं है.क्या हिंदुस्तान में सिर्फ सायकिल,मोटर सायकिल और खाद्य पदार्थ ही बनते हैं.और तो और दीपावली में सजाने वाली छोटे-छोटे बल्बों की लड़ियाँ,लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति तक चायनीज हैं.
अस्सी के दशक में चीन में बने जिस प्रमुख उत्पाद ने हमें आकर्षित किया था वह था रिचार्जेबल टौर्च,इमरजेंसी लाईट और बारह बैंड का छोटा सा रेडियो जिसमें एफ.ऍम के अलावे दूरदर्शन के कार्यक्रम भी पकड़ते थे.हिंदुस्तान का शायद ही कोई ऐसा मध्य वर्ग का घर होगा जिसमें ये उत्पाद न पहुंचे हों.हिंदुस्तान में रेडियो बनाने वाली अनेक कम्पनियां हैं लेकिन किसी ने भी इस तरह के उत्पाद प्रस्तुत नहीं किये.
बाद के दशक में चायनीज सी.डी. और डी.वी.डी प्लेयरों ने भारतीय घरों में धूम मचा दी.लोग पाँच रूपये में किराये की पायरेटेड सी.डी. लेकर नयी रिलीज फिल्मों का आनंद उठाने लगे.जो लोकप्रियता वी.सी.आर और वी.सी.पी नहीं पा सकी उसकी कसर चायनीज सी.डी. और डी.वी.डी प्लेयरों ने पूरी कर दी.फिर चीन और ताईवान से आयातित डी.टी.एच के सेट टॉप बॉक्स की कीमतों में कमी का फायदा दर्शकों को मिला और केबल को पीछे छोड़ते हुए डी.टी.एच घर घर में पहुँच गए.
भारतीय कम्पनियाँ एंटी डंपिंग का रोना रोती रही और चायनीज उत्पाद लोगों के घरों में जगह बनाते चले गए.किसी भी भारतीय कम्पनी ने इन उत्पादों के विकल्प प्रस्तुत करने के प्रयास नहीं किये.
एक ऐसे देश जिसकी उभरती हुई अर्थव्यवस्था की प्रशंसा अमेरिकी राष्ट्रपति भी करते हों और भारत से खतरा बताते हों,उस देश का इस तरह चीनी उत्पादों का गुलाम बन जाना अवश्य ही चौंकाता है.
क्या वजह है की भारतीय कम्पनियाँ चीनी उत्पादों का विकल्प नहीं प्रस्तुत कर पाती हैं और विदेशी सामानों के मार्केटिंग में ही अपने को धन्य समझती हैं.
आज दूर संचार के अधिकाश उपकरण चीन में निर्मित हैं और दूर संचार सेवा प्रदाता कम्पनियाँ इन्हीं का प्रयोग कर रही हैं तथा सरकार सिर्फ चिंता ही प्रकट कर रही है.
भारत ही क्यों,दुनिया के सभी देश चीनी उत्पादों से अटे पड़े हैं.चीनी उत्पादों के इस तरह पूरी दुनिया में छा जाने से अन्य देशों के उत्पादों को बड़ा धक्का लगा है.
आज जरूरत इस बात की है हम चीनी उत्पादों को कोसें नहीं, बल्कि उसकी तरह आम जरूरतों को ध्यान में रखकर ऐसे उत्पाद व उपकरण बनायें जो न केवल सस्ती हो बल्कि टिकाऊ भी हो,तभी भारतीय कम्पनियाँ चीनी उत्पादों का मुकाबला कर सकेंगी.