कोचीन से पेन फ्रेंड सुबास मेनन का 21-06-89 का ख़त |
इरोड से पेन फ्रेंड एस. लीला का 23-10-83 का ख़त |
कच्ची उम्र में हम सब के शौक(हॉबी) कितने बदलते रहते हैं ,इसका आभास हम सबको अकसर होता है.दीपावली के एक दिन पूर्व किताबों की आलमारी की सफाई करते वक्त कुछ पुरानी फाईलों को खंगाला तो कुछ खतों के चंद कतरे सामने आ गए.कुछ पुराने शौक पर जमा धूल और गर्द की परतें हट गईं.स्कूल के दिनों में पुराने डाक टिकटों के संग्रह का शौक था.काफी दिनों तक यह सिलसिला चला.
फिर पत्र - पत्रिकाओं को निरंतर पढ़ते रहने से पेन फ्रेंड का शौक कब पनप गया,पता ही नहीं चला.उन
दिनों विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पेन फ्रेंडशिप का कॉलम छपता था.अपनी उम्र और रुचियों के अनुसार पेन फ्रेंड बनाने की सुविधा.वह समय मोबाईल,इन्टरनेट,इंस्टेंट मैसेजिंग का न था.सभी मित्रों से संपर्क का जरिया सिर्फ ख़त हुआ करते थे.तब देश के अलग-अलग राज्यों में पेन फ्रेंड हुआ करते थे,ज्यादातर दक्षिण भारत के.कारण यही था कि दक्षिण भारत के प्रति उत्सुकता कुछ ज्यादा रहती थी.प्रत्येक सप्ताह एक-दो पत्र आते रहते थे.उन पत्रों के द्वारा दक्षिण भारत के प्रसिद्द शहरों,ऐतिहासिक,धार्मिक स्थलों के बारे में काफी कुछ जानकारी हो जाती थी.खतो-किताबत का यह सिलसिला लम्बे समय तक चला.
विझिन्जम से एडोल्फ जेरोम का 11-05-88 का ख़त |
थिरूवैयारम
से पेन फ्रेंड एम. दिनेश का 16-05-88
का ख़त
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अचानक उन्हीं पत्रों को हाथ मेंलेते ही स्कूल-कॉलेज के दिनों की यादें ताजा हो आईं.तब मित्रों के ख़त आने से वह ख़ुशी मिलती थी,जो आज इंस्टेंट मैसेजिंग और वीडियो चैटिंग के ज़माने में संभव नहीं.तब फेसबुक के आभासी जाल का जमाना न था.उन पत्रों की लिखावट और उसके अहसास की आज कोई तुलना नहीं हो सकती.
एक शौक(हॉबी) कितने ही ज्ञान चक्षुओं के द्वार खोल गया था.तब कितने ही शहरों से ख़त आते थे.त्रिची,कोचीन,वेलौर,इरोड,विझिन्जम,विदिशा,रतलाम,मंदसौर,उज्जैन आदि शहरों से नियमित ख़त मिलते थे.कुछ ख़त तो अभी भी जैसे के तैसे हैं,मानो वे कल ही आए हों. ख़त लिखना और पढ़ना, अब कई सदियों पुरानी बात लगती है.पारिवारिक सदस्यों के भी अब ख़त नहीं आते.संचार क्रांति ने जिंदगी के मायने बदल दिये हैं.खतों के द्वारा जो ऊष्मा,संवेदनाओं की गहन अनुभूति प्राप्त होती थी,वह आज के ज़माने में संभव कहाँ.कहते हैं कि नए बदलाव कुछ न कुछ पुराने मूल्यों के परिमार्जन पर ही होते हैं.
कॉलेज के शुरूआती दिनों में ही स्पेनिश गिटार सीखने का शौक पनप गया था.उन दिनों कलकत्ते से एक शिक्षक गिटार की क्लास लेने आते थे.उनके एक रिश्तेदार कटिहार में डिविजनल रेलवे में अधिकारी थे.उन्हीं के घर पर रुकते और सप्ताह में दो दिन क्लासेज लेते.लगभग दो वर्षों तक यह सिलसिला चला,फिर शिक्षक महोदय की व्यस्तता के कारण कलकत्ता से आना बंद हो गया और साथ ही थम गया,मेरे गिटार सीखने का सिलसिला.
अधूरे शौक की इंतिहा : गिटार के टूटे तार |
स्नातकोत्तर में अध्ययन के दौरान पटना से छपने वाले 'The Hindustan Times' में लिखने का शौक पनप गया.उन दिनों इस न्यूज पेपर में रविवार को पूरे एक पेज का 'The Retrospect' कॉलम छपता था.जिसमें चर्चित हस्तियों के बारे में चर्चाएँ होती थीं.तब केरल के A.J.Phillip इसके संपादक हुआ करते थे.विभिन्न सामाजिक मुद्दों को लेकर 'Letters to the Editor' कॉलम में लखने की शुरुआत हुई तो अनेक विषयों पर लिखा.तब प्रायः एक दो दिनों पर उक्त समाचार पत्र में मेरे पत्र छपते थे.संपादक महोदय ने लिखने के लिए
काफी प्रेरित किया,विभिन्न विषयों पर लिखने के सुझाव भी दिये.स्नातकोत्तर विभाग के शिक्षकों को मेरे पत्रकार होने का भ्रम हो गया था.इसलिए लाईब्रेरी से लिए जाने वाले पुस्तकों के संबंध में भी उदारता बरतते थे.
स्नातकोत्तर में अध्ययन तक उक्त समाचार पत्र में लिखने का सिलसिला चला.फिर स्नातकोत्तर उत्तीर्ण होने एवं उधर संपादक महोदय का लखनऊ संस्करण में तबादला होने के साथ ही वह कॉलम भी बंद हो गया और मेरे लिखने का सिलसिला भी टूट गया.
अच्छी आदत-
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
शुभकामनायें आदरणीय-
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteभूले-बिसरे पल को याद करना अच्छा लगता है.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! राकेश जी. आभार.
Deleteकल 22/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteयादें और शुरूआती अनुभव। :)
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : मेरी भोपाल यात्रा (पहला दिन) - श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, भोपाल
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteपुरानी यादें मन में फिर जोश भर देती हैं, चेहरे पर मुस्कान लाती हैं। पर हां, गिटार की ये हालत देखकर अच्छा नहीं लगा...मुझे पसंद है न गिटार...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार. गिटार को इस हालत में देखना तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता लेकिन व्यस्तता कई शौकों को सीमित कर देती है.जिंदगी की जद्दोजहद में बहुत कुछ पीछे छूट जाता है.हिंदी फिल्मों के गाने सुनकर उनमें गिटार के धुनों को ढूँढने की कोशिश करता हूँ.
Deleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 22-11-2013 चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteयादें ही वह सौगात है जो हमें जोश भरती रहती है..... बहुत सुंदर....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deletesundar prastuti..
ReplyDeleteaap sabhi ka mere blog par swagat hai.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteपुरानी यादों अक्सर हमें कुरेदती रहती हैं.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसही लिखा आपने राजीव जी, आपकी पोस्ट पढ़ कर पुरानी यादें ताजा हो गई है। आभार सहित धन्यवाद।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! मनोज जी. आभार.
Deleteवाह ये भी एक अंदाज होता है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया राजीव भाई , पीछे मुड़के क्या देखना , आगे के लिए डटे रहेें , धन्यवाद।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deleteबीते पलों को फिर से जीने का मन करता है.
ReplyDeleteरीअल और आभासी दुनिया में बड़ा फर्क है भाई साहब वहाँ सब कुछ मुकम्मिल ,था यहाँ सब कुछ अल्पकालिक है फेस बुक पर्ज कर्र तरह। पोस्ट से आपकी बहुमुखी प्रतिभा का इल्म हुआ जिसका प्रक्षेपण आपके लेखन में भी अक्सर होता है। शुक्रिया आपकी टिपण्णी और मंच में हमें जगह देने का।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deletehttps://hindibloggerscaupala.blogspot.com/ शुक्रवारीय अंक २२/११/२०१३ में आपकी इस रचना को शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे ...धन्यवाद
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर स्मृतियाँ
ReplyDeleteएक पुरानी टीस जो दब चुकी थी आज फिर जगा दी आपने, सच में पत्र बंद हो गए हैं और साथ में गुम हो गए वो ढेर सारे पत्र मित्र जिनसे अपने कितने ग़म बांटे थे हमने और ना जाने की थी कितनी बातें।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! नीरज जी. आभार.
Deleteसँजोये हुए याद :)
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसमय के साथ शौंक और बहुत सी बातें बदलती रहती हैं ... पर ये सच है की उन सभी बातों की यादें जरूरो गुदगुदाती हैं मन को ...
ReplyDeletememories collection is good hobby, keep going
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