किस किस को कोसिये किस –किस
को रोईए
आराम बड़ी चीज है मुंह ढँक
के सोइए
आज के सन्दर्भ में शायर की
ये पंक्तियाँ बहुत मौजूं हैं.मनुष्य पंचतत्वों का पिंड मात्र नहीं है.उसकी पांच
इन्द्रियां हैं,जिनसे उसे अनुभूति होती है,मस्तिष्क है,जिससे वह सोचता-विचारता
है.आदमी की खाल अभी इतनी मोटी नहीं हुई है कि नगरों का प्रदूषण ओढ़कर चैन की सांस
ले सके.तनाव और बैचैनी की जिंदगी निश्चय ही कोई नहीं चाहता.आज चैन और इतमीनान की
कही जा सकने लायक जिंदगी की ओर लौटने की चाहे जितनी कोशिश की जाए,ज़माने की तेज
रफ़्तार और उसके फलस्वरूप उत्पन्न तनाव में कमी आती प्रतीत नहीं होती.मानसिक तनाव
से आज समूची दुनियां संत्रस्त है.
हमारे बीच अधिकतर लोग सबेरे
उठते हैं और पाते हैं कि दिन बहुत छोटा है और करने को असंख्य काम हैं.बस,भागदौड़
शुरू हो जाती है- घड़ी के काँटों पर नज़र जमाए,बदहवास भीड़ के बीच जल्दीबाजी में आगे
निकलने का सिलसिला.बस स्टॉप पर लंबी कतारें,ट्रेन में बेतहाशा भीड़,लिफ्ट में
धक्कामुक्की,गाड़ियों के पार्किंग के जगह का अभाव,बाजारों और दुकानों में भीड़ के
रेले.हर कोई जल्दी में होता है,फिर भी हर जगह अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर.
दफ्तर,कारखाना,सड़क
हो या घर,हर जगह काम का दबाब बढ़ता जाता है.गलतियाँ होती हैं और फिर
झुंझलाहट,निराशा और डर आदमी को बैचैन करने लगता है.दिन का काम ख़त्म कर भागता हुआ
घर पहुँचता है तो वहां भी मुंह बाये खड़ी कितनी ही समस्याएँ ! परिवार के सदस्यों की
भावनात्मक समस्याएँ,बच्चों की जरूरतें और मांगें, पूरा करने के लिए अनेक अधूरे
काम,पैसे के बंदोबस्त की चिंता.उसे महसूस होने लगता है कि इस खटते जाने का कोई अंत
नहीं है.जिंदगी का बोझ उसकी कुव्वत से कहीं ज्यादा है.
तनाव जब हद से ज्यादा हो
जाता है तब शरीर उससे छुटकारे का रास्ता तलाशने लगता है.इसका परिणाम होता है
मानसिक बीमारियाँ,नशे की लत या नींद और सुस्त करने वाली गोलियों जैसी दर्द निवारक
गोलियों की आदत.मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि
दर्द निवारक दवाईयों के आदी व्यक्तियों की तादाद ब्रिटेन में दुनियां के किसी भी
देश से ज्यादा है.इसमें भी महिलाओं की संख्या ज्यादा है.इसकी एक वजह यह भी है कि
लोग सोचते हैं कि हर तरह के तनाव की कोई रामबाण दवा मौजूद है.इसमें संदेह नहीं कि आज
बहुत कुछ दर्द निवारक दवाएं बाजार में हैं लेकिन उनका इस्तेमाल खास किस्म की बीमारी
में समुचित मात्रा में ही किया जाना चाहिए.
हालत यहाँ तक पहुँच जाती है
कि डॉक्टर महसूस करता है कि मरीज के लिए दर्द निवारक दवाएं लिखने के सिवा कोई उपाय
नहीं है.लगातार दर्द निवारक दवाईयों के प्रयोग से सोचने-समझने की सामर्थ्य पर धुंध
छाने लगती है.सुरूर चढ़ने पर लगता है कि कोई समस्या इतनी बड़ी नहीं जिसके लिए परेशान
हुआ जाय,लेकिन समस्या अपनी जगह कायम रहती है.दवा का असर ख़त्म होने के बाद अहसास
होता है कि हालत पहले से कहीं अधिक बदतर हो गई है.उससे बचने के लिए फिर दर्द
निवारक दवाईयों का सहारा.धीरे-धीरे आदमी दर्द निवारक दवाईयों का गुलाम बन जाता है.
दर्द निवारक दवाईयां मनोवैज्ञानिक
असर डालने वाली होती हैं,इसलिए वे अस्वाभाविक रूप से शांत बना देती हैं.दर्द अपने
आप में कोई बीमारी न होकर किसी बीमारी की सूचना मात्र है.इसलिए जरूरी है कि इलाज
सूचना का न करके बीमारी का किया जाय.सर दर्द के अनेकों कारण हो सकते हैं.जिंदगी
में गुस्सा होने और आंसू बहाने के कारण भी सामने आते हैं.ऐसे मौके पर दर्द निवारक
लेकर अपने आपको भूल जाना और अकारण मुस्कुराते रहना एक तरह का पलायन है.
अपनी दिन-प्रतिदिन की
जिन्दगी में सुधार और बिना कोई नुकसान उठाए दबाबों का मुकाबला करने के लिए सीधा और
व्यावहारिक उपाय है,आराम करने का तरीका.यह स्वाभाविक उपाय है.जब भी जरूरत पड़े अपने
पूरे शरीर को आराम पहुंचाकर तरोताजा हुआ जा सकता है.मनोविश्लेषकों ने आराम के कई
उपाय सुझाए हैं.
शुरुआत सबसे सरल स्थिति से
की जा सकती है.तकिये पर सिर रखकर आराम से लेट जाइए और पैरों के नीचे भी तकिया रख
लीजिए.कुछ देर शांत पड़े रहिए और आराम महसूस करने की कोशिश कीजिए.फिर आँखे बंद कर
लीजिए.अब इस प्रकार सांस लेना चाहिए जिससे गहरी सांस फेफड़े में भर सके.इसके बाद
जोर से इस सांस को बाहर निकालिए,इस तरह कि हवा के बाहर निकलने की सरसराहट सुनाई
दे.शुरू में कई बार इस तरह सांस लीजिए.धीरे-धीरे महसूस होगा कि सांस की रफ़्तार
धीमी और गहरी हो गई है.आराम के लिए सांस लेने का यही तरीका है.
अब सोचिए कि आपकी बायीं बांह बिस्तर पर बेजान सी पड़ी है और भारी हो रही है.इतनी भारी और बिस्तर में धंसती हुई कि उसे उठाना कठिन है.इसी तरह दायीं बांह के बारे में सोचिए कि वह कंधे से अँगुलियों तक भारी होकर बिस्तर में धंसी जा रही हैं.
अब गहरी सांस खींचिए और
छोड़िए.कुछ देर ठहर जाइए और दोनों पैरों के बारे में सोचिए कि वे बहुत थके हुए और
भारी हो गए हैं और अँगुलियों के पोरों तक बिस्तर में धंसे जा रहे हैं.सोचने के साथ
फिर गहरी सांस खींचिए और छोड़िए.इसी तरह तकिये पर रखे सिर के बारे में सोचिए और
गहरी सांस खीचिए और छोड़िए.
इस तरह करते हुए लगता है कि
पूरा शरीर बहुत भारी हो गया है.बिस्तर से उठ पाना बहुत कठिन है और आप बहुत थके
हुए हैं.इस हालत में फिर गहरी सांस खींचिए-छोड़िए और शरीर को ढीला छोड़कर आराम से
लेट जाइए.ऐसा लगता है कि गहरी सांस
खींचने से शरीर को बहुत आराम मिला है और गहरी सांस निकलने के साथ आपका तनाव भी बाहर
निकल रहा है.
आराम करने से हालांकि तनाव
या समस्याएँ ख़त्म तो नहीं होतीं लेकिन उनसे होने वाली परेशानी दूर हो जाती
है.नुकसान दरअसल तनाव से नहीं बल्कि उसके कारण होने वाली उत्तेजना और परेशानी से
होता है.सही मुद्रा में आराम से तनाव बाहर निकलने के साथ दिमागी रूप से हल्का और
बेहतर महसूस होता है.