Sunday, January 24, 2016

लेखक से बड़ा होता किरदार

अगाथा क्रिस्टी 
हरक्यूल पाईरो,शरलक होम्स,जेम्स बांड और हैरी पॉटर में क्या कोई समानता है?बिलकुल समानता है.ये सभी अगाथा क्रिस्टी,ऑर्थर कानन डायल,इयान फ्लेमिंग और जे.के.रोलिंग द्वारा गढ़े गए वे किरदार हैं जो अपार लोकप्रियता प्राप्त कर लोकप्रियता में इसके सृजक से भी आगे निकल गए हैं.
क्या कभी इन लेखकों ने कल्पना की होगी कि ये किरदार सर्वकालिक महान किरदार बन जाएंगे? 


आर्थर कानन डायल
अगाथा क्रिस्टी के मर्डर मिस्ट्री पर आधारित उपन्यास दुनियां के सभी भाषाओँ में अनुवादित हुए हैं और आज भी पाठकों में उत्सुकता जगाते हैं.शरलक होम्स ने अपराध की गुत्थी को सुलझाने के नए-नए आयाम बनाये. दुनियां भर के विभिन्न टी.वी चैनलों पर आज भी शरलक होम्स के धारावाहिक चल रहे हैं.


इयान फ्लेमिंग 
इयान फ्लेमिंग द्वारा सृजित जेम्स बांड का किरदार इस कदर लोकप्रिय हो गया है कि भारत सहित विभिन देशों ने इसके अवतार सृजित कर लिए.पिछले महीने दुनियां भर रिलीजजेम्स बांड सीरीज की फिल्म स्पेक्टर ने साबित किया कि आज भी बांड का किरदार उतना ही लोकप्रिय है,जितना पहले था..हॉलीवुड में बनी फंतासी फिल्मों का अलग ही क्रेज रहता है.जेम्स बांड के किरदार निभाने के कारण कई अभिनेताओं ने असीमलोकप्रियता प्राप्त की.रॉजर मूर,सीन कोनरी,टिमोथी डाल्टन,पियर्स ब्रासनन, डेनियल क्रेग जैसे अभिनेताओं के कारण जेम्स बांड सीरिज ने कई कीर्तिमान स्थापित किए.
जे.के.रॉलिंग
जे. के. रोलिंग द्वारा सृजित हैरी पॉटर सीरीज की किताबों के साथ इस पर बनी फ़िल्में भी उतनी ही लोकप्रिय हुईं.हैरी पॉटर का किरदार न केवल बच्चों बल्कि सभी आयु वर्गों में सराहा गया. हालांकि इस सीरीज की अंतिम किताब ‘हैरी पॉटर और मौत के तोहफे’(Harry Potter and the deathly halllows) रॉलिंग ने कई साल पहले लिखी और इस पर अंतिम फिल्म दो भागों में कई साल पहले रिलीज हुई लेकिन आज भी इसके किरदार की लोकप्रियता का आलम यह है कि कुछ महीने पहले इस सीरीज की फिल्मों में हर्माइनी ग्रेंजर का किरदार निभाने वाली ब्रिटिश अभिनेत्री एम्मा वाटसन ने जब अपना 34वां जन्मदिन मनाया तो जे.के. रॉलिंग समेत तमाम प्रशंसकों ने उसके किरदार हर्माइनी के नाम से ही शुभकामना संदेश भेजे.

हाल ही में हैरी पॉटर सीरीज की फिल्मों में सीवियरस स्नेप का किरदार निभाने वाले ब्रिटिश अभिनेता एलन रिकमैन का कैंसर से निधन हुआ तो रॉलिंग समेत तमाम प्रशंसकों ने उनकी अदाकारी को शिद्दत से याद किया.गौरतलब है कि लोगों के जेहन में स्नेप का किरदार ही था जिसने उन्हें लोकप्रिय बनाया.

कई लेखकों,रचनाकारों के पात्रों को इस कदर लोकप्रियता मिली है कि लगता है कि वे इसके सृजक से भी ज्यादा चर्चित हो गए हैं.

Thursday, January 14, 2016

उपनाम का क्रेज


कवियों और साहित्यकारों में उपनाम रखने की एक लंबी परंपरा रही है.लेकिन ख़त्म होती परंपराओं के साथ इसका भी नाम जुड़ गया है.कभी हम इन कवियों और साहित्कारों को उपनाम से ही जानते थे.आम बोलचाल में भी उपनाम का ही प्रयोग होता था.

कई लोगों का विचार है कि कवियों द्वारा उपनाम रखने की परंपरा फ़ारसी और उर्दू कवियों की देन है.उन्हीं की देखादेखी हिंदी कवियों ने भी उपनाम रखने की परंपरा कायम की.हालांकि उपनाम रखने की परंपरा यहाँ प्राचीन संस्कृत कवियों में भी रही है.संस्कृत के अनेक कवि अपने उपनामों से ही अपनी पहचान बनाए हुए हैं.उपनामों की परंपरा वैदिक ऋषियों तक जाती है.आदिकवि वाल्मीकि के ही उपनाम हैं.शुनः शेप,शुनः पुच्छ,लोपामुद्रा उपनाम ही प्रतीत होते हैं.

हिंदी के प्रायः सभी कवि अपने उपनामों से ही प्रसिद्ध हैं.कहा तो यह भी जाता है कि इस परंपरा में विदेशी प्रभाव के साथ ही साहित्यिक चोरी भी इसका कारण रही है.अपनी कविता के बीच में अपना नाम दे देने से चोरी की आशंका कम हो जाती थी.

प्राचीन कवि उपनाम रखते थे तो अपने नाम के पूर्वांश या उत्तरांश को अपना उपनाम बनाते थे.बाद में कुछ कवियों ने अपने स्वभाव,नगर या गांव के नाम के आधार पर उपनामों का चुनाव किया.इससे अलग एक धारा के लोगों ने सुर्खियां बटोरने के लिए ‘लुच्चेश’,’धूर्त’,’बेहया’ जैसे उपनामों को अपनाया.पुराने हिंदी कवियों के कुछ उपनाम राजाओं द्वारा उपाधि के रूप में दिए गये हैं.इनमें महाकवि भूषण और भारतेंदु का नाम लिया जा सकता है.

संस्कृत के उपनाम वाले ऐसे अनेक कवि हैं जिनका वास्तविक नाम तक ज्ञात नहीं हैं. यथा,भिक्षाटन, निद्रादरिद्र,राक्षस,घटखर्पर,धाराकदंब,अश्वघोष,कपोलकवि,मूर्खकवि,मयूर,कपोत,कापालिक जैसे अनगिनत नाम हैं.

उपनामधारी संस्कृत कवियित्रियों में ‘विकटनितंबा,अवंतीसुंदरी,कुलटा,रजक सरस्वती, जघन-चपला जैसे अनेक उपनाम शामिल है.इनमें से अनेक ऐसे हैं जिनकी शायद ही कोई रचना पुस्तक के रूप में उपलब्ध हो.अधिकतर की छिटपुट रचना या संग्रह के रूप में संकलित हैं.जिनकी रचनाएं उपलब्ध हैं उनमें, अश्वघोष,घटखर्पर और अवन्तीसुंदरी शामिल हैं.

अज्ञात कवियों के साथ ही कालिदास,माघ,भारवि,भवभूति जैसे प्रख्यात कवियों के नाम भी उपनाम ही माने जाते हैं. महाकवि कालिदास का वास्तविक नाम कुछ लोगों के अनुसार मातृगुप्त है.माघ और भारवि के संबंध में कहा जाता है कि आपसी प्रतिद्वंदिता के कारण इन्होंने अपने उपनाम रखे.’भा रवि’ का अर्थ  है – सूर्य की तेजस्विता.यह नामकरण देख माघ उपनाम वाले कवि ने घोषित किया कि वह भारवि हैं तो मैं ‘माघ’ हूं.माघ महीने में सूर्य की तेजी क्षीण हो जाती है.

अश्वघोष संस्कृत के प्रख्यात महाकवि हैं.इनकी बुद्धचरित प्रख्यात रचना है.अश्वघोष का अर्थ है-घोड़े की आवाज.कहा जाता है कि वैदिक ब्राह्मण कुल में जन्म लेने और वेद के विद्वान बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए थे.घूम-घूमकर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे.इससे चिढ़कर वैदिक ब्राह्मणों ने मजाक उड़ाना शुरू कर दिया कि जिधर देखो घोड़े की तरह हिनहिनाता रहता है.

कुछ लोगों का कहना है कि इनके प्रवचन इतने रोचक,सरस और मधुर होते थे कि हिनहिनाता घोड़ा भी तन्मयता से इनका प्रवचन सुनने लगता था.इन्हीं मनोमुग्धकारी प्रवचनों के कारण इनका नाम अश्वघोष हो गया.यह नाम इतना प्रचलित हो गया कि कवि ने भी इसे स्वीकार कर लिया.

संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि रहे हैं ‘भर्तृमेंठ’.इसका अर्थ है – पीलवानों का स्वामी.पिकनिकर उपनाम वाले कवि भी उक्ति विशेष के कारण उपनाम अलंकरण के रूप में प्राप्त हो गया.वे बेचारे जंगलों में भटकते हुए बिलखते हुए घूम रहे थे कि यदि वसंत की आग में झुलसकर मेरी चिर विरहणी प्रिया प्राण त्याग दे तो उसके वध के पाप का भागी कौन होगा? उसकी युवावस्था,स्नेह या कामदेव? कवि के यह प्रश्न करते ही कोकिलों की झंकार सुनायी दी कि ‘तू-तू तू तू ही’.

पुराने कवि चाहे उर्दू,फारसी या हिंदी के हों उपनाम जरूर रखते थे.हिंदी के कवि प्रसाद,निराला एवं कुछ और कवियों ने इस परंपरा का पालन नहीं किया.आधुनिक कविताओं,छंदों में उपनाम की गुंजाईश ही नहीं होती.अब नए लेखक और कवि उपनाम नहीं रखते.


Wednesday, January 6, 2016

विषकन्या नहीं विषपुरुष भी


इन दिनों विभिन्न चैनलों पर विषकन्या की खूब चर्चा है.पिछले दिनों वायु सेना कर्मी रंजीत की जासूसी के आरोप में गिरफ्तारी और उस पर विषकन्या के प्रभाव और धन के लोभ के आरोपों ने सरकार को इनसे सचेत रहने के लिए डोजियर जारी करने पर मजबूर कर दिया है.

विषकन्या का प्रयोग भारत जैसे देशों के लिए नया नहीं है.भारतीय विषकन्याएं पश्चिम दुनियां के लिए एक अजूबा रही हैं.सिकंदर महान की हत्या की चेष्टा भारतीयों ने एक विषकन्या द्वारा करनी चाही थी,यह इतिहास प्रमाणित घटना है.

बारहवीं शताब्दी में रचित ‘कथासरितसागर’ में विष-कन्या के अस्तिव का प्रमाण मिलता है.सातवीं सदी के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में भी विषकन्या का वर्णन है कि परिशिष्ट पर्वन की विषकन्या नंद द्वारा पालित थी.इस विषकन्या का पर्वत्तक ने आलिंगन किया था जिससे उसके शरीर के उत्ताप से पर्वत्तक की यंत्रणा दायक मृत्यु हुई.’शुभवाहुउत्तरी कथा’ नामक संस्कृत ग्रंथ की राजकन्या कामसुंदरी भी एक विषकन्या थी.

शिशु कन्या को तिल-तिल कर विष चटा कर किस तरह विषकन्या के रूप में परिवर्तित किया जाता था,इसका विवरण किसी ग्रन्थ में नहीं पाया जाता.विषकन्याएं राजा और मंत्री की इच्छा को पूर्ण करने के लिए बनायी जाती थी.रूपवती नवयुवती को अस्त्र बना कर शत्रु को समाप्त करने के लिए विषकन्याओं का उपयोग किया जाता था.

शिशु उम्र से ही कुछ कन्याओं को विषैला पदार्थ का सेवन कराकर,धीरे-धीरे उसकी मात्रा बढ़ाकर,उन्हें बड़ा किया जाता था.अधिकतर की तो कुछ ही दिनों में मृत्यु हो जाती थी और जो एक दो बच जाती थीं उन्हें किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या करने के लिए सुरक्षित रखा जाता था.

रूपसी की दृष्टि पुरुष के मन को आकुल कर देती थी.संस्कृत साहित्य में ऐसी नायिकाओं का वर्णन है,जिसके दर्शन से मनुष्य उन्माद की अवस्था में पहुंच जाता था और तब विषाद से ग्रस्त हो मरणासन्न हो अंततः मृत्यु को प्राप्त हो जाता था.

यह भी सवाल उठता रहा है कि क्या विषपुरुष भी होते थे.पुरुष शासित समाज में सभी अधिकार पुरुषों के हाथ में भी रहे हैं.फिर भी कुछ विष पुरुष भी हुए हैं.

सोलहवीं शतब्दी में गुजरात का सुल्तान महमूद शाह भारत में एक विख्यात शासक हुआ है.विदेशी यात्रियों ने इस सुल्तान का जिक्र यात्रा वृत्तांतों में किया है.ऐसे ही एक यात्री भारथेमा ने लिखा है,महमूद के पिता ने कम उम्र से ही उसे विष खिलाना शुरू कर दिया था ताकि शत्रु उस पर विष का प्रयोग कर उस पर नुकसान न पहुंचा सके.वह विचित्र किस्म के विषों का सेवन करता था.वह पान चबा कर उसकी पीक किसी व्यक्ति के शरीर पर फेंक देता था तो उस व्यक्ति की मृत्यु सुनिश्चित ही हो जाती थी.

एक अन्य यात्री वारवोसा ने भी भी लिखा है कि सुल्तान महमूद के साथ रहने वाली युवती की मृत्यु निश्चित थी.महमूद अफीम खाता था.अफीम में गुण-दोष दोनों मौजूद होते हैं.जहां एक और यह विष है,वहीँ दूसरी ओर इसका उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता रहा है.

सवाल यह भी उठता है कि क्या अफीम खाकर कोई व्यक्ति विष पुरुष या विष कन्या बन सकती है? अधिक अफीम खाने से मौत हो सकती है,लेकिन थोड़ा-थोड़ा खाकर इसे हजम किया जा सकता है.लेकिन इससे कोई विष पुरुष नहीं बन सकता.गुजरात का सुल्तान महमूद शाह जनसाधारण में विष-पुरुष के रूप में चर्चित रहा था.

इतिहास में दूसरे विष-पुरुष के रूप में नादिरशाह का नाम आता है.कहा जाता है कि उसके निःश्वास में ही विष था.विषकन्याओं की तरह विष-पुरुष इतने प्रसिद्ध नहीं हुए.क्योंकि,शत्रु की हत्या के लिए विष-पुरुष कारगर अस्त्र नहीं थे.