हम हिन्दुस्तानियों को पुरानी चीजों से खासा लगाव होता है.इन चीजों या उपकरणों पर मरम्मत में इसकी वास्तविक कीमत से ज्यादा खर्च कर बैठते हैं लेकिन इसे सहेज कर रखने की आदत होती है.बदलते वक्त के साथ तकनीक का पुराना होते जाना आम बात है लेकिन कभी पुराने तकनीक को दिल से जुदा करने का गम भी सालता रहता है.
संगीत प्रेमियों में ऑडियो कैसेट सहेज कर रखना आम बात होती थी.लेकिन सी.डी,डी.वी.डी ,एम.पी.3 उसके बाद ब्लू रे डिस्क जैसी नई तकनीकों के आने से ऑडियो कैसेटों की मांग नहीं के बराबर रह गई है.कभी कितने जतन से इन कैसेटों को सहेज कर रखा था.आज अचानक ही एक कार्टून में बंद पड़े कैसेटों पर नजर गई तो पुरानी स्मृतियाँ ताजा हो आईं.
गजल के कई संग्रह को तो काफी खोजबीन के बाद ख़रीदा गया था,जगजीत-चित्रा सिंह,भूपेन्द्र-मिताली मुखर्जी,राजकुमार-इन्द्राणी रिजवी,राजेन्द्र मेहता-नीना मेहता,चंदन दास,पंकज उधास,मखमली आवाज के मालिक तलत अजीज़,अहमद हुसैन-मो.हुसैन साहब के गजल की बात ही कुछ और थी.भूपेन्द्र-मिताली के 'राहों पे नजर रखना,मंजिल का पता रखना,आ जाए कोई शायद,दरवाजा खुला रखना', कई-कई बार सुना था.
अहमद हुसैन-मो.हुसैन साहब को पहली बार रेडियो पर सुना था.तब भागलपुर रेडियो स्टेशन से शाम के सवा सात बजे गजलों का कार्यक्रम आता था जिसमें हुसैन बंधु का गजल खूब बजता था.हुसैन साहब आज भी मुझे प्रिय हैं.खासकर उनका यह गजल - 'ऐ सनम तुझसे में जब दूर चला जाऊँगा,'सावन के सुहाने मौसम में' या फिर 'मैं हवा हूँ,कहाँ वतन मेरा' मेरे प्रिय गजल रहे हैं.
राजेन्द्र मेहता-नीना मेहता के गजल भी खूब लोकप्रिय रहे हैं.खासकर 'एक प्यारा सा गाँव,जिसमें पीपल की छांव' आज भी बड़े शौक से सुने जाते रहे हैं.मनहर का गजल पहली बार कई साल पहले एक सुबह धनबाद के बस स्टैंड पर बज रहे कैसेट के एक दुकान में सुनकर ख़रीदा था.हाल में जब उस बस स्टैंड पर जाना हुआ तो पाया वहां पर अब एक मोबाईल का दुकान खुल गया है.तक़रीबन कैसेट के लगभग सभी दुकानों में नए बोर्ड लग गए हैं.अब काफी कोजने पर ही कैसेट का दुकान दिखाई देता है.नई तकनीक का यह साइड इफ़ेक्ट लगता है.
वैसे काफी पहले से ही मोबाईल,लैपटॉप,डेस्कटॉप आदि ने संगीत उपकरणों की जगह लेनी शुरू कर दी थी,रही सही कसर इंटरनेट पर मौजूद गीतों,गजलों के भरपूर संग्रह ने पूरी कर दी. आने वाले समय में तकनीक का और विस्तार हो सकता है लेकिन संगीत प्रेमियों के लिए संगीत का खजाना तब भी बदस्तूर मौजूद रहेगा.
आज जब इन कैसेटों पर नजर जाती है तो लगता है ये कह रही हों.........
भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना
जमाना ख़राब है दगा नहीं देना
waah,purani yaad taza kar dee , mere pas bhi bahut sari hai
ReplyDeleteराहों पे नजर रखना,मंजिल का पता रखना,आ जाए कोई शायद,दरवाजा खुला रखना', कई-कई बार सुना था.इसे मैंने तब पहले बार सुना था जब मैं करीब 15 -16 वर्ष का रहा होऊंगा और आज भी मेरे मोबाइल फ़ोन में है ! आने वाले समय में तकनीक का और विस्तार हो सकता है लेकिन संगीत प्रेमियों के लिए संगीत का खजाना तब भी बदस्तूर जारी रहेगा.बिलकुल
ReplyDeleteकभी कभी तो लगता है ये यादों पे नज़र रखने जैसा भी है ... हुसैन बंधुओं के दीवाने हम भी थे ... चन्दन दास, भूपेन्द्र और कितनी ही गजलें आज भी जेहन में रहती हैं ... नव वर्ष की शुभकामनायें ....
ReplyDeleteसही में कैसेट तो अब सोकेश में भी रखने के लायक नहीं रही।
ReplyDeleteसादर आभार.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यादों का झरोखा ..... आधुनिकता की दौड़ में बीतें दिन भुलाना आजकल आम बात हो गयी जैसे ..
ReplyDeleteनए साल की मंगलकामनाएं
नव वर्ष की मंगलकामनाएं । मेरी पसन्द भी आपकी जैसी ही है :)
ReplyDeleteहर घर में रेडियो देखने को मिल जाते थे जिनमें कैसेट लगा कर लोग अपनी पसंद के गाने सुना करते थे लेकिन कैसेट वाले रेडियो यानि टू इन वन अब बीते जमाने की यादें बन कर रह गए हैं।
ReplyDeleteसही कहां आपने पुरानी चिजे यादों की तरह होती हैं जब भी याद आती हैं खूुश्बू की तरह भिखर जाती हैं
ReplyDeleteनव वर्ष की मंगलकामनाएं
Bahut hi sundar, Sajha karne ke liye sadar abhar!!
ReplyDeleteBlogging is the new poetry. I find it wonderful and amazing in many ways.
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