'चिट्ठी न कोई सन्देश......'
दिवंगत जगजीत सिंह की यह चर्चित गज़ल आज के सन्दर्भ में भी मौजूं है.
क्या आपको याद है कि आपने आखिरी बार कब कोई चिट्ठी लिखी थी? नहीं! न. शायद याद होगी भी नहीं.
अब चिट्ठी,पत्री या डाकिया घर पर नहीं आता.लोग चिट्ठी,पत्री के महत्व को भूलने लगे हैं.और बदलने लगे हैं वो मुहावरे जो चिट्ठी,पत्री के सम्बन्ध में ही गढ़े गए थे.जैसे 'ख़त का मजमून भांप लेते हैं लिफाफा देख कर '.
रंग बिरंगे लिफाफे अलग-अलग पत्रों की श्रेणी को दर्शाते थे.गुलाबी लिफाफे को देखकर लोग सहज ही उस पत्र के महत्व को समझ जाते थे.लेकिन आज के इन्टरनेट और मोबाइल के युग में लोग चिट्ठी,पत्री लिखने जैसे वाहियात काम को दूर से ही नमस्कार करते हैं.
हर हाथ में मोबाइल ने जिस सन्देश भेजने वाली भाषा 'हिंगलिश' को जन्म दे दिया है वह शायद ही सभी लोगों को समझ में आये.अब तो डाकिये सिर्फ पत्रिकाओं या 'सूचना के अधिकार' वाले लिफाफे लेकर आते हैं,जिसे पढ़ने से शायद ही पाने वाले को ख़ुशी होती हो.चिट्ठी लिखने वालों की भावनाओं को चिट्ठी पढ़नेवाला ही समझ सकता है.
दिवंगत जगजीत सिंह की यह चर्चित गज़ल आज के सन्दर्भ में भी मौजूं है.
क्या आपको याद है कि आपने आखिरी बार कब कोई चिट्ठी लिखी थी? नहीं! न. शायद याद होगी भी नहीं.
रंग बिरंगे लिफाफे अलग-अलग पत्रों की श्रेणी को दर्शाते थे.गुलाबी लिफाफे को देखकर लोग सहज ही उस पत्र के महत्व को समझ जाते थे.लेकिन आज के इन्टरनेट और मोबाइल के युग में लोग चिट्ठी,पत्री लिखने जैसे वाहियात काम को दूर से ही नमस्कार करते हैं.
हर हाथ में मोबाइल ने जिस सन्देश भेजने वाली भाषा 'हिंगलिश' को जन्म दे दिया है वह शायद ही सभी लोगों को समझ में आये.अब तो डाकिये सिर्फ पत्रिकाओं या 'सूचना के अधिकार' वाले लिफाफे लेकर आते हैं,जिसे पढ़ने से शायद ही पाने वाले को ख़ुशी होती हो.चिट्ठी लिखने वालों की भावनाओं को चिट्ठी पढ़नेवाला ही समझ सकता है.
चिठ्ठी -पत्री के महत्व को समझते हुए हिंदी सिनेमा के कई गीतकारों ने अच्छे -अच्छे गीतों की रचना की.मसलन,'लिखे जो ख़त तुझे,'फूल तुम्हें भेजा है ख़त में',फिल्म बॉर्डर का चर्चित गाना 'सन्देशे आते हैं ','नाम' में पंकज उधास का मशहूर गाना 'चिट्ठी आई है ' को कौन भूल सकता है.
चिट्ठी,पत्री के साथ जो मनोभाव,भावना,आवेग जुड़े होते हैं वह इलेक्ट्रोनिक सन्देश में कहाँ मिल सकता है.चिट्ठी,पत्री की लिखावट को देखकर उस व्यक्ति की मनोदशा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था.पर आजकल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास वक़्त कहाँ जो कागज के चंद टुकड़ों पर अपने दिल का हाल खोल कर रख सके.वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी चिट्ठी,पत्री को हैरत से देखा करेगी कि पहले ज़माने के लोग कागज के टुकड़ों पर सन्देश भेजा करते थे.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 12/10/2014 को "अनुवादित मन” चर्चा मंच:1764 पर.
ReplyDeleteजमाना बदल गया है स्वीकार करना ही पड़ेगा...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप आमंत्रित हैं :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebilkul yadi wah chitthiyo ka dour lout aaye to shayad ye rishtey to chat judate hai pat khatam ho jaate hain kam ho jata ...shayad bhaawnaayein aur gahri ho jaati jo jab panno par bikharti to rishte mahak uthate ... Aaj ka zamana bhale hi badh gya hai par hame jo bhi mila uske saath humne kuch kho diya aur jo khoya uska hona sabse jyaada zaruri tha...sabr aur samvedana dono ki kam ho gyi iss tezi me !!! Bahut hi sunder vishay sunder prastuti !!!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...ईमेल, व्हाट्स ऐप और एसएमएस का दौर है. अब नहीं आतीं चिट्ठियाँ....जाने कहाँ गुम हो गयीं वो चिट्ठियाँ... फ़कत उनकी यादें ही शेष रह गयीं हैं...
ReplyDeleteThe fragrance of handwritten letters on paper will remain in our lives till our last breath...come what may! The new generation is missing something from the treasure of a bygone era...
ReplyDeleteBeautiful write up, Rajeev!