‘रोना कभी नहीं रोना’,अमूमन ऐसा नसीहत देने वालों की कोई कमी नहीं है और रोने वाले को हंसाने के सभी कारगर प्रयास किये जाते हैं. रोना कोई नहीं चाहता,लेकिन रोना मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत अनिवार्य है.रो न पाने से आदमी अनेक बीमारियों से घिर जाता है.रोने से भावनाओं को राहत तो मिलती ही है,आदमी की उम्र भी बढ़ जाती है.
मनोविज्ञान की दृष्टि से
यदि दिल खोलकर हंसना लाभप्रद है,तो रोगों के निवारण के लिए,रुदन भी एक सहज उपचार
है,जो मानसिक आघातों से त्रस्त होकर आंसू बहा सकता है.एक अमरीकी वैज्ञानिक की
पुस्तक से प्रेरणा लेकर पश्चिमी जर्मनी के एक वैज्ञानिक ने मनुष्य के आंसुओं का
गहन अध्ययन किया है और इन अन्वेषणों ने आंसुओं के भावनात्मक पक्षों को प्रकाशित
किया है.
आंसू,अश्रु-ग्रंथि से निकलने
वाला हल्का तथा क्षार-गुणयुक्त एक तरल पदार्थ है.इस घोल में चीनी,प्रोटीन तथा कीटाणुनाशक
तत्वों का समावेश होता है,जिसमें अनेक रोगों का मुकाबला करने की शक्ति निहित है.स्त्रियों
के आंसू पुरुषों से भिन्न होते हैं.प्रसन्नता के आवेश से उत्पन्न आंसू,दुःख या विपत्ति
में छलकने वाले आंसुओं से भिन्न होते हैं.दुःख से बहुत अधिक मात्रा में निसृत आंसू
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं.रोगी के आंसुओं में मनुष्य की जीवनशक्ति के
अनुरूप परिवर्तन आ जाता है.डॉक्टर तथा वैज्ञानिक इस तथ्य की खोज-बीन कर रहे हैं कि
क्या आंसुओं के रासायनिक परीक्षण से रोगों का निदान संभव है?
स्टुट्गार्ट के एक
मनोवैज्ञानिक ने अनेक परीक्षणों से इस तथ्य की पुष्टि की है कि अश्रु-विश्लेषण
द्वारा कई रोगों का इलाज किया जा सकता है.आंसू,दुःख,चिंता,क्लेश तथा मानसिक आघातों
से मुक्ति दिलाने तथा मन हल्का कर आकस्मिक मनो-व्यथाओं को सहने में सहायता
पहुंचाते हैं.उस स्थिति की कल्पना कितनी दारूण है कि जब व्यक्ति प्रसन्नता में हँस
न सके और दुःख से रो न सके.ऐसे अनेक व्यक्तियों की मनस्थितियों का परीक्षण किया
गया है,जो मानसिक आघातों को चुप-चुप सहने के कारण मनोरोगी हो गये हैं.रो लेने से
दुखी मन को कितनी राहत मिलती है,इसे भुक्तभोगी ही जान सकता है.
हाल ही में पश्चिमी जर्मनी
के डॉक्टरों ने यह पता लगाया है कि आंसुओं का किसी भी रोगी के,शीघ्र स्वस्थ होने
पर कितना प्रभाव पड़ता है.यह आवश्यक नहीं है कि चिल्लाकर ही रोया जाय.परीक्षणों से
यह सिद्ध हो चुका है कि आंसुओं के साथ शरीर का विष भी बाहर निकल जाता है.
रोना मनुष्य के लिए कितना अनिवार्य है,इस संबंध में चिकित्सकों के अनेक मत हैं.जब कभी आप
रोना चाहते हैं,तब परिस्थितिवश आखों में आए आंसुओं को रोकते हैं.तो अनेक बीमारियों को न्योता देते हैं,जैसे पुराना जुकाम,नेत्र रोग,सर और ह्रदय की पीड़ा,गर्दन अकड़ जाना,चक्कर आना आदि.कई बार बच्चों के जोर-जोर से रोने पर बड़े उन्हें चुप करने के लिए धमकाते हैं और बच्चे भय से एकाएक रोना बंद कर देते हैं.इससे उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.रोने की क्रिया के कारण वायु की वृद्धि हो जाती है और अकस्मात् उसके बंद हो जाने से वही वायु शरीर के किसी स्थान पर जाकर रुक जाती है.इसके फलस्वरूप पेट के दर्द तथा अन्य रोगों के उत्पन्न होने की आशंका हो जाती है.
अमरीकी चिकित्सक बांड ने कई वर्षों के अनुसंधान से निष्कर्ष निकाला है कि यदि पुरुष कभी-कभी
रो लिया करें तो उनके स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है.यह एक प्राकृतिक उपलब्धि है,जिसकी उपेक्षा से मनुष्य मानसिक सुख प्राप्त नहीं कर सकता और वह मन को दुखी बनाकर जीवन के सम्पूर्ण सुखों को नीरस बना लेता है.इसलिए कहा गया है कि मन का निरोग होना सुखी होने की पहली शर्त है,और यह तभी संभव है जब मन,चिंता एवं निराशा से दूर हो.मन ही मन निराशा,चिंता तथा अपनी मनोव्यथा में घुटते रहना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिप्रद है.
पुरुषों पर मर्यादा का यह मिथ्या अंकुश है कि उन्हें रोना नहीं चाहिए या उनके लिए रोना अशोभनीय है.मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का मत है कि वर्तमान जीवन पद्धति में जो कुंठाएं और तनाव की स्थिति है,उसे बहुत हद तक आंसुओं के द्वारा दूर किया जा सकता है.स्टुट्गार्ट के डॉक्टरों तथा वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि रोने से मनुष्य शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर सकता है.इसलिए छोटे बच्चों को कभी-कभी
रोने देना श्रेयस्कर है.
न्यूयार्क विश्वविद्यालय के मानसिक रोग-चिकित्सक विलियम ब्रियाँ ने विचार
व्यक्त किया है कि अमेरिका में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की लंबी आयु का रहस्य
यह है कि वे ऐसी फ़िल्में देखने की शौकीन हैं,जिनमें बार-बार रोना आता है.इस तरह
रोने से भावनाओं को बड़ी राहत मिलती है.रोनेवाले का दिल हलका हो जाता है.डॉ.ब्रियाँ
का यह विचार भी ध्यान देने योग्य है कि पुरुष भी जोर-जोर से रो लिया करें,तो
उन्हें ह्रदय रोगों से राहत मिल सकती है.मध्य प्रदेश की बंजारा जाति में तो लड़कियों
को रोने की शिक्षा दी जाती है.जो लड़की रोने में कुशल नहीं होती,उससे कोई भी युवक
विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता.
हम यह भी क्यों भूलें कि हँसकर यदि मनुष्य दूसरों की सुख-वृद्धि करता है,तो
रोकर वह दूसरों के दुःख बाँट लेता है.आंसू की सबसे बड़ी विशेषता उसका कल्याणकारी
रूप है.वह मनुष्य को अकर्मण्य नहीं बनाता.वेदना से निःसृत आँसुओं की तरलता,अंतर्ज्वाला
को शांत कर जीवन को प्रकाश देती है.इसलिए महाकवि जयशंकर प्रसाद ने ‘आंसू’ में
विश्वबंधुत्व के दर्शन किये हैं,और यही आंसू कवि के जीवन की मूल प्रेरणा
है..........
जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छायी
दुर्दिन में आंसू बनकर
वह आज बरसने आयी
सबका निचोड़ लेकर तुम
सुख से सूखे जीवन में
बरसो प्रभात हिमकण-सा
आंसू इस विश्व-सदन में
सम्भवतः आंसुओं के साथ दर्द भी बह जाता है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख !
ReplyDeleteThe poem in the end is well written.
ReplyDeleteThanks ! Indrani ji.
Deleteसलिल वर्मा जी के अनूठे अंदाज़ मे आज आप सब के लिए पेश है ब्लॉग बुलेटिन की ७०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़िये और आनंद लीजिये |
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteलो स्वाभाविक रूप से, अपने हर्ष-विषाद |
ReplyDeleteखूब हँसे उन्मुक्तता, रो लो जब अवसाद |
रो लो जब अवसाद, अश्रु ये मूल्यवान हैं |
जी हल्का हो जाय, अश्रु औषधि समान हैं |
रविकर राजिव-नैन, नीर से कीचड़ धोलो |
यदि उदास बेचैन, मित्र जी भर कर रो लो ||
बहुत सुंदर आ. रविकर जी. सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआंसू ... पानी की एक बूँद और कितना कुछ है जिसकी खोज से क्या क्या हो सकता है भविष्य में ... ख़ुशी और दर्द से परे आंसुओं की गाथा रोचक है ...
ReplyDeleteआंसू के बारे में बहुत सी जानकारी ...आभार ...
ReplyDeleteसुन्दर आलेख...सुन्दर कविता...
ReplyDeleteअनु
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति |
ReplyDeleteनई पोस्ट वो दूल्हा....
latest post कालाबाश फल
सादर धन्यवाद ! आभार.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकल 06/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर आलेख .......
ReplyDeletehttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ के शुक्रवारीय ६/१२/१३ अंक में आपकी रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकनार्थ पधारे ............धन्यवाद
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख
ReplyDeleteकविता से अंत कर के और बेहतरीन बन गई :)
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (06-12-2013) को "विचारों की श्रंखला" (चर्चा मंचःअंक-1453)
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर विचारणीय आलेख है !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteरोने से मन हल्का होता है .आपके इस लेख से और भी चीज सीखने को मिला .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर...आलेख
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteराजीव भाई , बेहतरीन लेख व बेहतर पेशकश , धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: अपने ब्लॉग के लेख को कॉपी होने से कैसे बचाएं !
सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deletebehatreen jankari ...ek naisargik kriya ko stri purush me baant kar usase vanchit karna theek nahi ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deletebahut sundar aalekh
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteहम यह भी क्यों भूलें कि हँसकर यदि मनुष्य दूसरों की सुख-वृद्धि करता है,तो रोकर वह दूसरों के दुःख बाँट लेता है.आंसू की सबसे बड़ी विशेषता उसका कल्याणकारी रूप
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बेहतरीन लेख
सादर धन्यवाद ! आ. भ्रमर जी. आभार.
Deleteआंसू अपने आप में बहुत महत्व रखते हैं वे चाहे दुःख के हों चाहे खुशी के |उम्दा रचना |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबेहद उम्दा और ज्ञानवर्धक लेख
ReplyDeleteरोगी के आंसुओं में मनुष्य की जीवनशक्ति के अनुरूप परिवर्तन आ जाता है.डॉक्टर तथा वैज्ञानिक इस तथ्य की खोज-बीन कर रहे हैं कि क्या आंसुओं के रासायनिक परीक्षण से रोगों का निदान संभव है?
ReplyDeleteसही कहा है रोना दिल के दौरों की बचावी चिकित्सा है। कविता का जन्म भी इसी रुदन और वियोग की पीड़ा से हुआ है :
वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान ,
निकलकर अधरों से चुपचाप ,बही होगी कविता अनजान।
साहित्य और विज्ञान का समन्वयन लिए है आपकी पोस्ट।
सादर धन्यवाद ! आ. वीरेन्द्र जी. आभार.
Deleteआदरणीय ..सबहुत ही ज्ञान वर्धक जानकारी हासिल हुई ..मेरे लिए बिलकुल नयी ..आपके लेखों में बिबीधता रहती है आज तक के हर लेख पढ़ा है ..आपके प्रयास को नमन ..और भी ऐसे ही लेख आगे भी मिलेंगे पढने को ऐसी आकांक्षा के साथ
ReplyDeleteआंसू सूखा कहकहा हुआ ,
ReplyDeleteपानी सूखा तो हवा हुआ।
आंसू समझके क्यूँ मुझे आँख से तुमने गिरा दिया।
ये आंसू मेरे दिल की जुबां हैं।
आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें ,कोई उनसे कहदे हमें भूल जाएं।
खासी जगह बनाई है आंसू ने संगीत और साहित्य में। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।
बहुत सारगर्भित आलेख...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteaadarniya sir ji,
ReplyDeletesadar pranam,,
very nice article..