बंदी बनाए जाते बूढ़े बादशाह |
वे अच्छे गजलगो,निहायत
पोशीदा और जहीन इंसान थे.पर,अच्छे शासक के गुण न थे.शायद,अच्छे अभिभावक भी न बन
पाए.वतन में दो गज जमीं की तलाश में रंगून की जेल में आखिरी सांस ली.दिल की हसरतें
दिल में ही दफ्न हो गईं .........
इन
हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी
जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
कितना
है बदनसीब “ज़फ़र″ दफ़्न के लिए
दो गज़
ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार मेंहालांकि चर्चित इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल अपनी किताब ‘दि लास्ट मुग़ल’ में लाहौर के शोधकर्त्ता इमरान खान के हवाले से “उम्र-ए-दराज़ से माँग लाए थे चार दिन” बहादुर शाह जफ़र के लिखे होने से इंकार करते हैं.
आखिरी मुग़ल
बादशाह बहादुर शाह जफ़र के बंदी बनाए जाने के बाद उनके परिवार की स्त्रियों और
बच्चियों के साथ जो हश्र हुआ,उसके बारे में शायद इतिहास मौन ही है.बंदी बनाए जाने
के पहले बूढ़े बादशाह ने अपनी चहेती शहजादी कुलसुम जमानी बेग़म को याद फ़रमाया.कुलसुम
ने तिन दिन से कुछ खाया नहीं था.गोद में वर्ष की एक बच्ची थी.जब वह बादशाह के
सामने पहुंची,बादशाह मुसल्के पर बैठे गंभीर मुद्रा में कोई आयत बुदबुदा रहे
थे.घूमकर बेटी को देखा,सर पर हाथ रखा और बोले,’कुलसुम,लो अब तुमको खुदा को
सौंपा,तुम अपने खाबिंद को लेकर फ़ौरन कहीं चली जाओ,हम भी जाते हैं.’
बादशाह ने शहजादी
के पति मिरजा जियाउद्दीन को कुछ जवाहरात देकर विदा किया और उनके साथ अपनी बेगम
नूरमहल को भी साथ कर दिया.गांव कौराली पहुंचकर सब रथवान के अतिथि बने,बाजरे की रोटी और छाछ खाने
को मिली.अगले दिन गिर्द-नवाह में यह खबर तेजी से फ़ैल गयी कि शाही रथवान के घर
बादशाह की शहजादी और बेग़म ठहरी हुई हैं.दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी और उसमें से बहुत
से लोगों ने उन्हें लूट लिया.कौराली के जमींदार ने इस लुटे-पिटे काफिले को वहां से
निकला.कुलसुम के अनुरोध पर बैलगाड़ी करके काफिला शाही हकीम मीर फैज अली के घर
पहुंचा.उन्होंने गोरे फौजियों के भय से रखने से इंकार कर दिया.कौराली का जमींदार
शहजादी के अनुरोध पर सबको हैदराबाद के सफ़र पर चल पड़ा.
तीसरे दिन नदी के किनारे कोयल के नवाब की फौज डेरा डाले
मिली.उसने काफ़िले को नदी पार करवा दी.थोड़े ही फासले पर एक खेत के निकट अंग्रेजी
सेना से मुठभेड़ हो गयी.एक गोला खेत में आकर गिरा और फसल में आग लग गयी.मुग़ल शहजादी
कंधे से अपनी बच्ची जैनल को लगाये दौड़ने लगी.नूरमहल और हफिल सुल्तान बेहोश होकर
गिर पड़ीं.सिर की चादरें पीछे उलझ कर गिर पड़ीं.कुलसुम के आंसू आ गए.नंगे पांव
लहूलुहान हो गए.जैसे-तैसे हैदराबाद पहुंचे.वहां भी शांति नहीं मिली.पीत वस्त्र धारण
कर सब जोगी बन गए और पानी के जहाज पर बैठ कर मक्का रवाना हो गए.
शाही खानदान की शहजादियों में एक थी चमनआरा.बूढ़े बादशाह की पोती डोली में सवार होकर दिल्ली दरवाजे से बाहर आई.अंग्रेज सिपाहियों ने उनकी डोली रोक ली.उनके भाई जमशेद शाह नामी ने तलवार लेकर सिपाहियों का मुकाबला किया लेकिन घायल होकर पत्थरों पर गिर पड़े.इसी सदमे में उनकी मौत हो गई.सिपाहियों ने सारा माल लूट लिया और एक सिपाही ने अंग्रेज अफसर से चमनआरा को मांग लिया.चमन आरा जो किले में फूलों पर सोती,वह सिपाही के घर गई.नन्हीं सी उम्र थी.पैर दबाने से लेकर रसोई का सारा काम उसे संभालना पड़ा.
शहजादी रुखसाना का भविष्य बहुत दर्नाक साबित हुआ.उसकी उम्र 13 वर्ष थी जब 1857 का विद्रोह हुआ.आखिरी मुग़ल का किले से भागकर हुमायूं के मकबरे में जाना,परिवार पर बिजलियां गिरने जैसा था.जो जहाँ भाग सकता था,भाग रहा था.अंग्रेजी फौज के जासूस बूढ़े बादशाह को पकड़ने की तरकीबें ढूंढ रहे थे.रुखसाना बादशाह के लश्कर के साथ नहीं जा सकी.
किला उजड़ गया और
अंग्रेजों ने किले को अपने कब्जे में ले लिया.बड़ी दाई उसे लेकर अंग्रेजी फौज के जनरल
के पास पहुंचकर अपनी विपदा सुनाई.जनरल ने उसे एक रात अपने कैंप में रखा और अगले
दिन एक सैनिक अधिकारी के सुपुर्द कर दिया.वहां से भागकर वह उन्नाव पहुंची.एक
जमींदार के घर पनाह मिला जहाँ उसकी शादी हुई.आपसी रंजिश में जमींदार मारा गया और
वह फिर सड़क पर आ गयी.वहां से भाग कर दिल्ली पहुंची जहां एक कहार के घर रोटी पकाने
का काम मिला. कहार के बेटे से एक दिन झगड़ा हुआ और उसने उसे अधमरा कर यमुना के
किनारे फेंक दिया.कुछ स्त्रियों ने उसे सरकारी दवाखाना पहुंचाया.फिर भूख और बेकारी
से आजिज होकर जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर भीख मांगने लगी.
उन दिनों की सबसे
दर्दनाक दास्तान गुलबदन की है जो गुलबानो के नाम से भी जानी जाती थी.वह मिर्जा
दाराबख्त की बेटी और बादशाह की पोती थी.विद्रोह के नौ महीने बाद,दुखों के पहाड़ से
गुजरती हुई,अपनी बीमार मां के साथ दरगाह हजरत चिराग दिल्ली में फटे और बोसीदा कंबल
से मुंह ढंके सो रही थी कि एकाएक मां के कराहने पर उठ बैठी तो देखा कि मां बुखार
में तप रही थी.शरीर का मांस सूख चुका था.भूख ने कमर तोड़ दी थी.गुलबानो ने कई दिनों
से कुछ नहीं खाया था.
रात के अंतिम पहर
में घनघोर बारिश में बिजली चमकने से पास में स्थित संगमरमर की एक कब्र चमक उठती,यह
कब्र गुलबानो के पिता की थी.सर्दी बारिश और बुखार के कारण गुलबानो की मां सुबह
होते-होते जन्नत सिधार गयी.गुलबानो मां से लिपटकर ऐसा रोई कि फिर कभी नहीं उठ
सकी.कहा जाता है कि दोनों मां-बेटी सात दिनों तक दरगाह में पड़ी चील-कौओं का खुराक
बनीं.
काश ! अंग्रेज अफसर थोड़ी दरियादिली दिखाते और औरतों,बच्चियों को सम्मानपूर्वक इच्छित जगह पर जाने की इजाज़त देते.
काश ! अंग्रेज अफसर थोड़ी दरियादिली दिखाते और औरतों,बच्चियों को सम्मानपूर्वक इच्छित जगह पर जाने की इजाज़त देते.
दुख:द । यही नियति है ।
ReplyDeleteसंजीदा प्रसंग.
ReplyDeleteज्ञान बर्धक कहानी । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
ReplyDeleteइतिहास का एक दुखद अध्याय ......
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
दुखद हश्र एक शाही परिवार का ..... :-( अनजान रहे इस जानकारी से .. :-(
ReplyDeleteअत्यंत दुखद एवं भयावह हश्र एक शाही परिवार का ! लेकिन इन बातों की प्रामाणिकता आपको कहाँ से मिली ? ये सारी बातें इतिहास की किस किताब में दर्ज हैं ? इससे पहले इन्हें कहीं नहीं पढ़ा !
ReplyDeleteshahi pariwar jab tak satta me rahe tab tak theek tha uske baad lagbhag sabhi ka yahi hashr hua hai ...sundar alekh
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
दरिंदगी की हद तक जाती हुई कहानियाँ हैं ये अंग्रेजी फ़ौज़ की ! बादशाह ज़फर आखिरी मुग़ल जरूर रहे श्री राजीक जी लेकिन मुगलों जैसा उनमें कुछ था ही नही ! और मुगलों ने भी हिन्दुस्तानियों पर कम जुल्म नही किये तो क्या हम ऐसे कह लें कि भगवान भले देर हो जाये , सजा जरूर देता है !!
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति...
ReplyDeletefriendship status in hindi
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