इन दिनों मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत और रानी पद्मावती
इतर कारणों से चर्चा में हैं.फिल्मों और धारावाहिकों में ऐतिहासिक चरित्रों या जनमन
में बसे चरित्रों के साथ छेड़छाड़ या काल्पनिक प्रसंगों का जोड़ा जाना कोई नई बात नहीं
है.काल्पनिक दृश्य फिल्मों एवं धारावाहिकों को जहाँ विवादों में लाकर प्रचार तो दिलाते
ही हैं वहीं वे इसके निर्माताओं को भी मोटा मुनाफा दिलाने में भी कामयाब हो जाते
हैं.
सन् 1304 में हुए चित्तौड़ के मर्मस्पर्शी जौहर से प्रेरित
होकर कई कवियों और लेखकों ने कई कथाओं को जन्म दिया.इन सबमें सबसे अधिक लोकप्रिय
जायसी द्वारा लिखित 1540 ई. का पद्मावत है.जायसी के बाद अन्य लेखकों ने भी पद्मावत
को आधार बनाकर,तथ्यों को तोड़-मरोड़कर,कई नए ग्रंथ लिख डाले जिनमें हाजी
उदबीर,फ़रिश्ता और कर्नल टॉड प्रमुख हैं जिन पर कई प्रश्न चिन्ह हैं? इन सबमें सबसे
बड़ा प्रश्न यह रहा है कि चित्तौड़ के रावल रतन सिंह की महारानी का नाम पद्मिनी ही
था या कोई और नाम था.
जायसी के पद्मावत में कुछ वृत्तांत भ्रामक प्रतीत होता
है.जायसी द्वारा रतनसिंह के रावल बनने के बाद सिंहल द्वीप(श्रीलंका) जाने और बारह
वर्ष तक रहने का उल्लेख है जबकि रतनसिंह कुल एक वर्ष ही राजगद्दी पर रहे.चित्तौड़
से प्राप्त सन् 1302 के शिलालेखों से यह पता चलता है कि सन् 1302 में रावल समरसिंह
मेवाड़ के शासक थे.इस समय रतनसिंह राजगद्दी पर नहीं बैठे थे और सन् 1304 में
अलाउद्दीन खिलजी के साथ हुए युद्ध में वे वीरगति को प्राप्त हुए थे.अलाउद्दीन के
साथ आए अमीर खुसरो ने भी रतनसिंह की मृत्यु का वर्ष 1304 ही लिखा है.फिर कोई
प्रश्न नहीं उठता है कि रतनसिंह पद्मिनी को प्राप्त करने के उद्देश्य से सिंहल
द्वीप गया हो और वहां बारह वर्ष तक रहा हो.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा
प्रकाशित ‘जायसी ग्रंथावली’ में पद्मिनी को सिंहल द्वीप की राजकुमारी मानने से
इंकार किया है.इसी तरह पद्मिनी और रावल के बीच जो प्रेम-प्रसंगों का वर्णन जायसी ने
‘पद्मावत’ में किया है वह काल्पनिक है.जायसी ने अपने ग्रंथ में
कुम्भलनेर(कुम्भलगढ़) के शासक का नाम देवपाल बताया है,जबकि उस समय कुम्भलनेर आबाद
ही नहीं हुआ था तो फिर उसके शासक का नाम देवपाल लिखना काल्पनिक प्रतीत होता है.
जायसी ने पद्मिनी का कांच में प्रतिबिंब दिखाने का जो
प्रसंग लिखा है वह भी उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है क्योंकि राजपूतों में किसी गैर
पुरुष के सम्मुख लड़की या बहू को प्रस्तुत करने की परंपरा नहीं रही है,यहाँ तक कि
चित्र दिखाने की भी परंपरा नहीं थी और आज भी कुछ घरानों में यह परंपरा नहीं है तो
फिर रावल ने पद्मिनी का प्रतिबिंब दिखाना स्वीकार किया हो,यह असंभव सा प्रतीत होता
है.
जायसी ने अलाउद्दीन द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण करने का कारण
पद्मिनी को प्राप्त करना बताया है.उसके अनुसार राघव नमक भिक्षुक से पद्मिनी के सौंदर्य
का वृत्तांत सुनकर अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण करने की योजना बनायी थी.जबकि
ऐतिहासिक तथ्य है कि राजपूताने पर आक्रमण करने की उसकी सुनिश्चित योजना थी जिसके अनुसार उसने न केवल चित्तौड़ पर बल्कि
सिवाना,जालौर और रणथंभौर के प्रमुख दुर्गों पर भी आक्रमण किया था.
अमीर खुसरो जो आक्रमण के समय सुल्तान के साथ था और जिसने अपने ग्रंथ ‘तारीख-ए-इलाही’ में चित्तौड़ के आक्रमण और युद्ध का विस्तृत वर्णन किया है,कहीं भी युद्ध का कारण पद्मिनी को प्राप्त करने की योजना नहीं बताया है.इससे स्पष्ट होता है कि अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण पद्मिनी नहीं बल्कि उसकी साम्राज्यवादी भावना थी जिसका परिचय उसने अन्य रियासतों में भी दिया था.
अमीर खुसरो जो आक्रमण के समय सुल्तान के साथ था और जिसने अपने ग्रंथ ‘तारीख-ए-इलाही’ में चित्तौड़ के आक्रमण और युद्ध का विस्तृत वर्णन किया है,कहीं भी युद्ध का कारण पद्मिनी को प्राप्त करने की योजना नहीं बताया है.इससे स्पष्ट होता है कि अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण पद्मिनी नहीं बल्कि उसकी साम्राज्यवादी भावना थी जिसका परिचय उसने अन्य रियासतों में भी दिया था.
पद्मावत में कई काल्पनिक घटनाओं का समावेश है जिसके कारण यदि
पद्मिनी भी उसकी एक काल्पनिक नायिका हो तो कोई आश्चर्य नहीं.समकालीन लेखक
बर्नी,इसामी,इब्ने बतूता एवं अमीर खुसरो के ग्रंथ भी इसकी पुष्टि करते हैं.इन
विद्वानों के ग्रंथों में मेवाड़ की महारानी का नाम पद्मिनी कही नहीं आया है.इन
लोगों ने कहीं भी रावल रतनसिंह और पद्मिनी
के प्रेम-प्रसंग या अलाउद्दीन के पद्मिनी पर मोहित होने का जिक्र नहीं किया है.
राजपूत इतिहास के प्रमुख ग्रंथ वीर विनोद,नैणसी की
ख्यात,वंश भाष्कर एवं उदयपुर राज्य का इतिहास भी रावल रतनसिंह के किसी महारानी
पद्मिनी का उल्लेख नहीं करते.कुम्भलगढ़ एवं एकलिंग के शिलालेख अलाउद्दीन और रतनसिंह
के युद्ध का वृत्तांत तो देते हैं लेकिन कहीं भी पद्मिनी के नाम का जिक्र नहीं
है.अगर युद्ध का कारण पद्मिनी होती तो शिलालेखों में कही तो नाम आया होता.
जायसी की दृष्टि में यदि पद्मिनी ने इतनी महत्वपूर्ण भूमिका
निभायी तो उसका नाम राजपूत एवं मुस्लिम स्त्रोतों में अवश्य ही होता.इस कारण इस
धारणा को बल मिलता है पद्मिनी वास्तव में मेवाड़ की महारानी थी ही नहीं.संभव है
पद्मिनी जायसी की काल्पनिक नायिका रही हो.
यह भी संभव है कि असंख्य नारियों के जौहर ने जायसी को लिखने
के लिए प्रेरित किया हो और उस जौहर में उसने महारानी का नाम कही नहीं मिलने की दशा
में पद्मिनी नाम से संबोधित किया हो क्योंकि सौंदर्य शास्त्रों के अनुसार पद्मिनी
श्रेणी की नारियाँ श्रेष्ठ मानी जाती हैं.
ऐतिहासिक स्रोतों से ऐसा प्रतीत होता है कि जौहर और युद्ध
ने जायसी को एक सुंदर एवं रोचक महाकाव्य लिखने को प्रेरित किया और उसने अनेक तथ्यों
को तोड़-मरोड़कर ,मनगढ़ंत घटनाओं एवं नामों को जन्म दिया.जौहर के दो सौ छत्तीस वर्ष
बाद लिखे ग्रंथ में जायसी को मूल नाम एवं सत्य घटना का पता लगाने में अवश्य कठिनाई
हुई होगी.
रावल रतनसिंह की पटरानी के संबंध में केवल एक शिलालेख में ‘सुंभगादे’
नाम का उल्लेख मिलता है.जायसी के पद्मिनी का चरित्र भले ही काल्पनिक रहा हो जैसा कि
वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब भी मानते है कि यह जायसी का काल्पनिक चरित्र है
और इतिहास में इस नाम का कहीं जिक्र नहीं मिलता,फिर भी साहित्यिक दृष्टि से पद्मावत एक अनुपम काव्य है और साहित्य की धरोहर है.
ऐतिहासिक या लोकमन में बसे चरित्रों का चित्रण करते समय जनभावना का ख्याल रखा जाना जरूरी है.बेवजह इस तरह के चरित्रों को व्यावसायिकता की आड़ में, दर्शकों की रूचि के अनुसार ढालना या विवादों में घसीटना सही नहीं है.
ऐतिहासिक या लोकमन में बसे चरित्रों का चित्रण करते समय जनभावना का ख्याल रखा जाना जरूरी है.बेवजह इस तरह के चरित्रों को व्यावसायिकता की आड़ में, दर्शकों की रूचि के अनुसार ढालना या विवादों में घसीटना सही नहीं है.
शोध पर आधारित सूंदर आलेख। आपने सही लिखा है राजीव जी कि "चरित्रों का चित्रण करते समय जनभावना का ख्याल रखा जाना जरूरी है। "
ReplyDeleteदिनांक 31/01/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
सुन्दर आलोख
ReplyDeleteसुन्दर आलोख
ReplyDeleteसुन्दर जानकारीपूर्ण आलेख।
ReplyDeleterochak tathy aur sambhaavnayen..badhiya lekh!
ReplyDeleteआपने काफी अध्ययन कि या है इस बारे में लेकिन आपने देखा कि काल्पनिक हो तब भी कहीं भी पद्मिनी के चरित्र को हल्का नहीं बताया वह पतिव्रता और वीरांगना थी . भंसाली का उसे खिलजी की अनुरागिनी दर्शाना ( जैसा सुना जा रहा है )अत्यंत निन्दनीय है . आखिर जनमानस का कोई महत्त्व है या नहीं . द
ReplyDeleteजी,बिल्कुल.भले ही पद्मिनी की ऐतिहासिकता संदिग्ध हो,या काल्पनिक चरित्र हो लेकिन साहित्य की दृष्टि से जायसी का पद्मावत उत्कृष्ट काव्य है.अभी फिल्म में इसका चरित्र क्या आकार लेता है यह पूरी तरह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन विवाद वहीँ से शुरू होता है जहाँ इसे ऐतिहासिक पात्र के रूप में प्रचारित किया जाता है.
Deleteबहुत ही अच्छा article है। .... Thanks for sharing this!! :)
ReplyDeleteये विषय अभी बहुत प्रचलित हो रहा है और ऐसे में इस विषय पर एक सम्पूर्ण आलेख को पढ़ना सदैव ही आल्हादित करने के साथ साथ ज्ञानवर्धक भी रहता है !! बढ़िया , जानकारी देता आलेख राजीव जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख। सच है कि जनमानस में रचे पात्रों के साथ छेड़छाड़ उचित नहीं।
ReplyDeleteइतिहास की गहरी परतों को खोला है आपने ... पर सत्य जो भी हो पद्मिनी के चरित्र से खिलवाड़ किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए ... इस फ़ेशन को जी की हिंदी सिनेमा में बन गया है रुकना ही होगा ...
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुरैया जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteWe are self publishing company, we provide all type of self publishing,printing and marketing services, if you are interested in book publishing please send your abstract:
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारियाँ हैं। ऐतिहासिक फिल्में से इतिहास पुनर्जीवित हो जाता है पर जानकारियाँ सही होनी चहिये, जैसे आपने दिया है।
ReplyDeleteVery great post. I simply stumbled upon your blog and wanted to say that I have really enjoyed browsing your weblog posts. After all I’ll be subscribing on your feed and I am hoping you write again very soon!
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