वनों को प्रकृति का श्रृंगार कहा जाता है.वनों के श्रृंगार
से आच्छादित प्रकृति बसंत ऋतु में रंग-बिरंगे फूलों के नायाब गहनों से सज-संवर
जाती है. फूलों का यह गहना प्रकृति के सौंदर्य में चार चांद लगा देता है. फूल को
सौन्दर्य, कमनीयता, प्रेम, अनुराग और मासूमियत
का प्रतीक माना जाता है. फूल का रंग उसकी सुन्दरता को बढा़ता है. प्रकृति के हरे
परिवेश में सूर्ख लाल रंग के फूल खिल उठे हों तो यह दिलकश नजारा हर किसी का मन मोह
लेता है.
उत्तराखण्ड के हरे-भरे जंगलों के बीच चटक लाल रंग के बुरांस के फूलों का खिलना पहाड़ में बसंत ऋतु के यौवन का सूचक है. बसंत के आते ही पहाड़ के जंगल बुरांस के सूर्ख लाल फूलों से मानो लद जाते हैं. बुरांस बसन्त में खिलने वाला पहला फूल है बुरांस धरती के गले को पुष्पाहार से सजा सा देता है. बुरांस के फूलने से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है.
उत्तराखण्ड के हरे-भरे जंगलों के बीच चटक लाल रंग के बुरांस के फूलों का खिलना पहाड़ में बसंत ऋतु के यौवन का सूचक है. बसंत के आते ही पहाड़ के जंगल बुरांस के सूर्ख लाल फूलों से मानो लद जाते हैं. बुरांस बसन्त में खिलने वाला पहला फूल है बुरांस धरती के गले को पुष्पाहार से सजा सा देता है. बुरांस के फूलने से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है.
बुरांस का पेड़ उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है, तथा नेपाल में बुरांस के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है। गर्मियों
के दिनों में ऊंची पहाड़ियों पर खिलने वाले बुरांस के सूर्ख फूलों से पहाड़ियां भर
जाती हैं. हिमाचल प्रदेश में भी यह काफी पाया जाता है.
उत्तराखण्ड के हरे-भरे जंगलों के बीच
चटक लाल रंग के बुरांस के फूलों का खिलना पहाड़ में बसंत ऋतु के यौवन का सूचक है.बसंत
के आते ही पहाड़ के जंगल बुरांस के सूर्ख लाल फूलों से मानो लद जाते हैं.बुरांस बसन्त
में खिलने वाला पहला फूल है.बुरांस के खिलते ही धरती के गले को मानो पुष्पाहार सा
मिल जाता है. बुरांस के फूलने से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है.एक गढ़वाली
लोकगीत में इसकी जीवंतता दिखाई देती है....
फूलों की हंसुली
फूलों की हंसुली
पय्याँ ,धौलू
,प्योंली,आरू
लया फूले बुरांस
(पदम्,धौलू,प्योंली,आड़ू
,सरसों और बुरांस के फूल इस तरह खिले हुए हैं जैसे कोई दरांती हो)
बुरांस जब खिलता है तो पहाड़ के जंगलों में बहार आ जाती है. घने जंगलों के बीच अचानक चटक लाल बुराँस के फूल के खिल उठने से जंगल के दहकने का भ्रम होता है. जब बुराँस के पेड़ लाल फूलों से ढक जाते हैं तो ऐसा आभास होता है कि मानो प्रकृति ने लाल चादर ओढ़ ली हो. बुराँस को जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है. उत्तराखण्ड के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में बुराँस की महत्ता महज एक पेड़ और फूल से कहीं बढ़कर है. बुराँस उत्तराखण्ड के लोक जीवन में रचा-बसा है. बुराँस महज बसंत के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि सदियों से लोक गायकों, लेखकों, कवियों, घुम्मकड़ों और प्रकृति प्रेमियों की प्रेरणा का स्रोत रहा है. बुराँस उत्तराखण्ड के हरेक पहलु के सभी रंगों को अपने में समेटे है.
सौंदर्य के प्रतीक इन पुष्पों का दर्शन नारी को भी सुंदर एवं आकर्षक बनने के लिए प्रोत्साहित करता है.एक प्रेयसी इन पुष्पों की कमनीयता पर इतना आकृष्ट हो जाती है कि अपने प्रेमी से अपने लिए बुरांस प्रसून की भांति चित्ताकर्षक परिधान की कामना करती है.......
बुरांस जब खिलता है तो पहाड़ के जंगलों में बहार आ जाती है. घने जंगलों के बीच अचानक चटक लाल बुराँस के फूल के खिल उठने से जंगल के दहकने का भ्रम होता है. जब बुराँस के पेड़ लाल फूलों से ढक जाते हैं तो ऐसा आभास होता है कि मानो प्रकृति ने लाल चादर ओढ़ ली हो. बुराँस को जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है. उत्तराखण्ड के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में बुराँस की महत्ता महज एक पेड़ और फूल से कहीं बढ़कर है. बुराँस उत्तराखण्ड के लोक जीवन में रचा-बसा है. बुराँस महज बसंत के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि सदियों से लोक गायकों, लेखकों, कवियों, घुम्मकड़ों और प्रकृति प्रेमियों की प्रेरणा का स्रोत रहा है. बुराँस उत्तराखण्ड के हरेक पहलु के सभी रंगों को अपने में समेटे है.
सौंदर्य के प्रतीक इन पुष्पों का दर्शन नारी को भी सुंदर एवं आकर्षक बनने के लिए प्रोत्साहित करता है.एक प्रेयसी इन पुष्पों की कमनीयता पर इतना आकृष्ट हो जाती है कि अपने प्रेमी से अपने लिए बुरांस प्रसून की भांति चित्ताकर्षक परिधान की कामना करती है.......
मेरा विमरैल को जागो सी
देवे
बुरांस फूल को जामो सी
(बुरांस के रक्त वर्ण के
फूलों जैसे रंग के परिधान )
हिमालय के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य का
वर्णन, प्रियसी की उपमा, प्रेमाभिव्यक्ति, मिलन हो या विरह सभी प्रकार के लोक गीतों की भावाभिव्यक्ति का
माध्यम बुराँस है. उत्तराखण्ड के कई लोक गीत बुराँस के इर्द-गिर्द रचे गये है.
विरह गीतों की मुख्य विषय-वस्तु बुराँस ही है. पहाड़ में बुराँस के खिलते ही कई
भूले-बिसरे लोक गीत एकाएक स्वर पा जाते है-
उ कुमू य जां एक सा
द्यूं प्यार सवन धरती मैं,
उ कुमू य जां कुन्ज, बुंरूस, चम्प, चमेलि, दगडै़ फुलनी
बुराँस का खिलना
प्रसन्नता का द्योतक है. बुराँस का फूल यौवन और आशावादिता का सूचक है. प्रेम और
उल्लास की अभिव्यक्ति है. बुराँस का फूल मादकता जगाता है. बुराँस का गिरना विरह और
नश्वरता का प्रतीक है. बुराँस रहित जंगल कितने उदास और भावशून्य हो जाते है. इस
पीडा़ को लोकगीतों के जरिये बखूबी महसूस किया जा सकता है. बसन्त ऋतु में जंगल को लाल कर देने वाले इस फूल को देखकर नव
विवाहिताओं को मायके और रोजी-रोटी की तलाश में पहाड़ से पलायन करने को अभिशप्त अपने
पति की याद आ जाती है. अपने प्रियतम् को याद कर वह कहती है-
अब
तो बुरांश भी खिल उठा है, पर तुम नहीं आए
बुरांस के फूल में हिमालय की विराटता
है. सौंदर्य है. शिवजी की शोभा है. पार्वती की झिलमिल चादर है. शिवजी सहित सभी
देवतागण बुराँस के फूलों से बने रंगों से ही होली खेलते है. बुराँस आधारित होली
गीत लोक जीवन में बुराँस की गहरी पैठ को उजागर करता है-
बुरूंसी का फूलों को कुम-कुम मारो,
डाना-काना छाजि गै बसंती नारंगी
पारवती ज्यूकि झिलमिल चादर,
ह्यूं की परिन लै रंगै सतरंगी
पहाड़ के लोक गीतों में सबसे ज्यादा जगह बुराँस को ही मिली है. एक पुराने कुमाऊँनी लोक गीत में जंगल में झक खिले बुराँस को देख मां को ससुराल से अपनी बिटिया के आने का भ्रम होता है. वह कहती है –
बुरूंसी का फूलों को कुम-कुम मारो,
डाना-काना छाजि गै बसंती नारंगी
पारवती ज्यूकि झिलमिल चादर,
ह्यूं की परिन लै रंगै सतरंगी
पहाड़ के लोक गीतों में सबसे ज्यादा जगह बुराँस को ही मिली है. एक पुराने कुमाऊँनी लोक गीत में जंगल में झक खिले बुराँस को देख मां को ससुराल से अपनी बिटिया के आने का भ्रम होता है. वह कहती है –
'वहां उधर पहाड़ के शिखर पर बुरूंश का फूल
खिल गया है. मैं समझी मेरी प्यारी बिटिया हीरू आ रही है. अरे! फूले से झक-झक लदे
बुरूंश के पेड़ को मैंने अपनी बिटिया हीरू का रंगीन कपडा़ समझ लिया.'
एक कवि नायिका के
होठों की लालिमा का जिक्र करते हुए कहता है –
चोरिया कना ए बुरासन आंठे तेरा नाराणा
(बुराँश के फूलों ने
हाय राम तेरे ओंठ कैसे चुरा लिये)
संस्कृत के अनेक
कवियों ने बुराँस की महिमा को लेकर श्लोकों की रचना की है।
सुमित्रा नन्दन पंत भी बुराँस के चटक रंग से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. उन्होंने बुराँस पर कुमाऊँनी कविता लिखी थी –
सुमित्रा नन्दन पंत भी बुराँस के चटक रंग से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. उन्होंने बुराँस पर कुमाऊँनी कविता लिखी थी –
सल्ल छ, दयार छ, पई छ, अंयार छ
सबनाक फागन में पुग्नक
भार छ
पे त्वी में ज्वानिक फाग छ
रंगन में त्यार ल्वे छ
प्यारक खुमार छ
(जंगल में साल है, देवदार है, पईया है, और अयार समेत विभिन्न् प्रजातियों के पौधें है. सबकी शाखाओं में कलियों
का भार है. पर तुझमें जवानी का फाग है. तेरे रंगों में लौ है, प्यार का खुमार है)
पहाड़ के रोजमर्रा के जीवन में बुराँस किसी वरदान से कम नहीं है. बुराँस के फूलों का जूस और शरबत बनता है. इसे हृदय रोग और महिलाओं को होने वाले सफेद प्रदर रोग के लिए रामबाण दवा माना जाता है. बुराँस की पत्तियों को आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है. बुराँस की लकडी़ स्थानीय कृषि उपकरणों से लेकर जलावन तक सभी काम आती है. चौडी़ पत्ती वाला वृक्ष होने के नाते बुराँस जल संग्रहण में मददगार है. पहाडी़ इलाकों के जल स्रोतो को जिंदा रखने में बुराँश के पेड़ों का बडा़ योगदान है। इनके पेड़ों की जड़ें भू-क्षरण रोकने में भी असरदार मानी जाती है. बुराँस का खिला हुआ फूल करीब एक पखवाड़े तक अपनी चमक बिखेरता रहता है. बाद में इसकी एक-एक कर पंखुड़िया जमीन पर गिरने लगती है.पलायन के चलते वीरान होती जा रही पहाड़ के गाँवों की बाखलियों की तरह.
लेकिन दुर्भाग्य से पहाड़ में बुराँस के पेड़ तेजी के साथ घट रहे हैं. अवैध कटाई के चलते कई इलाकों में बुराँस लुप्त होने के कगार पर पहुँच गया है. नई पौधें उग नहीं रही हैं. जानकारों की राय में पर्यावरण की हिफाजत के लिए बुराँस का संरक्षण जरूरी है. अगर बुराँस के पेड़ों के कम होने की मौजूदा रफ्तार जारी रही तो आने वाले कुछ सालों के बाद बुराँस खिलने से इंकार कर देगा. नतीजन आत्मीयता के प्रतीक बुरांस के फूल के साथ पहाड़ के जंगलों की रौनक भी खत्म हो जाएगी. बुरांस सिर्फ पुराने लोकगीतों में ही सिमट कर रह जाएगा. बसंत ऋतु फिर आएगी.फिर किसी पहाड़ी युवती के स्वर फूटेंगे.......
पहाड़ के रोजमर्रा के जीवन में बुराँस किसी वरदान से कम नहीं है. बुराँस के फूलों का जूस और शरबत बनता है. इसे हृदय रोग और महिलाओं को होने वाले सफेद प्रदर रोग के लिए रामबाण दवा माना जाता है. बुराँस की पत्तियों को आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है. बुराँस की लकडी़ स्थानीय कृषि उपकरणों से लेकर जलावन तक सभी काम आती है. चौडी़ पत्ती वाला वृक्ष होने के नाते बुराँस जल संग्रहण में मददगार है. पहाडी़ इलाकों के जल स्रोतो को जिंदा रखने में बुराँश के पेड़ों का बडा़ योगदान है। इनके पेड़ों की जड़ें भू-क्षरण रोकने में भी असरदार मानी जाती है. बुराँस का खिला हुआ फूल करीब एक पखवाड़े तक अपनी चमक बिखेरता रहता है. बाद में इसकी एक-एक कर पंखुड़िया जमीन पर गिरने लगती है.पलायन के चलते वीरान होती जा रही पहाड़ के गाँवों की बाखलियों की तरह.
लेकिन दुर्भाग्य से पहाड़ में बुराँस के पेड़ तेजी के साथ घट रहे हैं. अवैध कटाई के चलते कई इलाकों में बुराँस लुप्त होने के कगार पर पहुँच गया है. नई पौधें उग नहीं रही हैं. जानकारों की राय में पर्यावरण की हिफाजत के लिए बुराँस का संरक्षण जरूरी है. अगर बुराँस के पेड़ों के कम होने की मौजूदा रफ्तार जारी रही तो आने वाले कुछ सालों के बाद बुराँस खिलने से इंकार कर देगा. नतीजन आत्मीयता के प्रतीक बुरांस के फूल के साथ पहाड़ के जंगलों की रौनक भी खत्म हो जाएगी. बुरांस सिर्फ पुराने लोकगीतों में ही सिमट कर रह जाएगा. बसंत ऋतु फिर आएगी.फिर किसी पहाड़ी युवती के स्वर फूटेंगे.......
मेरा मैत्यों का डांडा
बुरांस फूल्यां
हिलासी जाण दे मैत
(मेरे मायके में बुरांस
के फूल खिले हुए होंगे इसलिए हे पक्षी हिलांसी,मुझे अपने मायके जाने दे.)
वाह्ह्ह...क्या खूब। सुंदर बुरांश के फूल पर बहुत खूबसूरत और ज्ञानवर्धक लेख आपका राजीव जी।
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब ..., प्रकृति के सौन्दर्य में बुरांस की महत्ता ,कवियों के आकर्षण, लोक जीवन में इसकी पैठ की बहुत सुन्दर जानकारी आपने इस लेख के माध्यम से वर्णित की है .
ReplyDeleteबुरांस के फूल के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छी जानकारी, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विवरण दिया राजीव जी आपने ! बुरांश के फूल सफ़ेद रंग के भी होते हैं , इस बार के ट्रैक पर खूब देखने को मिले थे !!
ReplyDeleteसादर आभार.
ReplyDeleteबुरांश के फूलों के साथ पहाड़ो की छटा ही बिखेर दी....
ReplyDeleteसुन्दर लोकगीतों के साथ उनके अर्थ भी देकर बहुत ही मनमोहक और ज्ञान वर्धक लेख प्रस्तुत किया है आपने...बहुत बहुत बधाई....
अपने उत्तराखंड की खूबसूरत छटा लेख के माध्यम से सबके सामने रखने के लिए हार्दिक धन्यवाद....
बहुत सुंदर जानकारी । रोचक शैली में किया गया वर्णन ।
ReplyDeleteसादर ।
सादर धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteराजीव जी बहुत खूबसूरत लिखा है बुरांश के बारे में...दीपावली की शुभकामनाऐं
ReplyDeleteThat is an especially good written article. i will be able to take care to marker it and come back to find out further of your helpful data. many thanks for the post. i will be able to actually come back.
ReplyDeleteवाह .. बुरांस का फूल भी कितना महत्त्व वाला है ... इस फूल को लेखकोंऔर शायरों ने भी खूब इस्तेमाल किया है ... बहुत विस्तृत जानकारी भरा आपका ब्लॉग ...
ReplyDeleteबुरांस के फूल के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी हैं आपने। सुन्दर लोकगीतों के साथ उनके अर्थ भी देकर बहुत ही मनमोहक और ज्ञान वर्धक लेख प्रस्तुत किया है आपने...बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteबुरास के फूल पर इतनी सारी रोचक जानकारी देने ले लिए शुक्रिया
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteHi, extremely nice effort. everybody should scan this text. Thanks for sharing.
ReplyDeletenice line, publish your book with best Hindi Book Publisher India
ReplyDeleteBahut achha laga padh kar...
ReplyDelete