नाग जाति के अतीत और वर्त्तमान के संबंध में कई विद्वानों
में एक मत नहीं है कि नाग जाति के लोग कौन थे और इनका मूल निवास कहाँ था?हालांकि
इनके संबंध में पुराणों,महाकाव्यों तथा ऐतिहासिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता
है.कश्मीर के कुछ प्राचीन शासकों के संबंध में कहा गया है कि इनका भी नाग जाति से
संबंध था.कश्मीर के कुछ क्षेत्र आज भी नागों के नाम पर और नाग संस्कृति के परिचायक
हैं.
कश्मीर का कर्कोटक वंश नाग जाति का सर्वश्रेष्ठ राजवंश था
जिसमें दुर्लभ वर्द्धन जैसा शासक भी
हुआ.इसने काबुल,कंधार से चीन और दूसरे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्तों पर शासन किया.चीनी
कथाओं और कल्हण की राजतरंगिणी में भी नाग जाति का उल्लेख मिलता है.कश्मीर के नाग
जाति के शासकों में दुर्लभ वर्द्धन के अतिरिक्त प्रतापदित्य,श्रीप्रताप,चंद्रापीड़
वज्रादित्य,तारापीड़,उदयादित्य जैसे शासक थे.
ह्वेनसांग ने भी कश्मीर की यात्रा की थी,उसने नाग जाति के
राजाओं की उदारता,उनकी सेवा भावना का जिक्र किया है .जन उन हुआ नामक चीनी ग्रन्थ
के अनुसार तत्कालीन चीनी शासक त्से उंग ने नाग वंशी राजा चंद्रापीड़ से अरबों और
तिब्बतियों के विरुद्ध सहायता मांगी थी परंतु चंद्रापीड़ ने यह सहायता एक समझौते
में बदल दी थी और पारम्परिक असंतोष को समाप्त किया था.
नाग जाति की एक दूसरी शाखा का उल्लेख वर्त्तमान मिजोरम और चंपा
राज्य(अब भागलपुर) के सन्दर्भ में भी मिलता है जिसके आधार पर यह कहा जाता है कि
कुछ समय के बाद नाग जाति का शासन इन क्षेत्रों में फैला था.’इंडियन हिस्टोरिकल
क्वार्टरली’ में 1907 में छपे नाग जाति पर एक लेख से पता चलता है कि प्राचीन काल
में शेषनाग के रूप में यह सम्मान की पात्र समझी जाती थी.नाग जाति के कुछ लोग
दक्षिण भारत में भी थे,जिनको कश्मीरी नागों की एक शाखा माना जाता था.
नागों की महिमा का पता इसी से चलता है कि पुराणों में
शेषनाग इसी के आदि वंशज बाते जाते हैं.नाग पंचमी पर नागों की पूजा इस क्षेत्र में
काफी प्रचलित है.दुर्गा सप्तशती में उल्लेख है कि भगवती दुर्गा के आविर्भाव के समय
नागों के अधिपति ने महामरकत मणियों से युक्त एक नाग हार दिया था,जो सर्वश्रेष्ठ
रत्न था.
पाणिनि ने नागों की उत्पत्ति पर्वतों से स्वीकार की
है.........
नागे भवः नागः
अर्थात् पर्वतों के वासी होने के कारण नाग जाति को यह रूप
मिला.इसके मुख्य वंशज तक्षक,कर्कोटक,वासुकी आदि थे.इसके अतिरिक्त राम के भाई
लक्ष्मण और श्रीकृष्ण के भाई बलराम को भी शेष नाग के रूप में मान्यता प्राप्त
है,जिनसे अवतारवाद की भूमिका में भी नाग भारतीयों द्वारा पूजित है.
गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं को नागों में अनंतनाग बताया
है.......
अनन्तश्चाश्मि नागानां
अर्थात नागों में अनंत नाग. महाभारत में वर्णन है कि महाराज
युधिष्ठिर के यज्ञ में नाग लोक के लोगों ने भी भाग़ लिया था.महाराज युधिष्ठिर के
पादपीठों की वंदना नाग जाति के लोग किया करते थे.नागलोग की कन्याओं के संबंध में
जिक्र आता है कि वे अत्यधिक सुंदर होती थीं,नागों का वैवाहिक संबंध भी भारतीय
राजाओं से था.नरकासुर ने अनगिनत नाग कन्याओं को अपने कारागार में बंदी बना रखा
था.श्रीकृष्ण ने नरकासुर पर विजय के पश्चात उन्हें मुक्त कराया ही था,उनको लोक
मर्यादा के अनुरूप अपनी पटरानी बनाकर सम्मान दिया.ऐतिहासिक ग्रंथों में नंद और
मौर्यों के उत्कर्ष के सामान ही सम्राट शिशुनाग का उल्लेख मिलता है जो नागवंशी था.
आज जो नागाओं का स्वरूप है वह लगभग दो हजार वर्षों का
उपेक्षित रूप है.कश्मीर में कर्कोटक वंश के पतन के बाद नागों का अस्तित्व आज के
असम,मिजोरम,अरुणाचल प्रदेश,,त्रिपुरा आदि क्षेत्रों तक सीमित रह गया.वहां भी
ब्रिटिश काल में उन्हें उपेक्षित ही समझा गया.
पुराणों,महाकाव्यों के अतिरिक्त नागा जाति और उनकी संस्कृति
के संबंध में जो विवरण प्राप्त हैं उनसे ज्ञात होता है कि नागों का स्थान एशिया
में अत्यंत गौरवशाली था.इनका आधिपत्य चीन के मंगोल शासन से लेकर
मलेशिया,जावा,फिलिपींस ,बर्मा आदि तक था.मलेशिया में नागा को नाका,बर्मा में नायका,फिलिपींस
में नावा कहा जाता है.अनुसंधानकर्त्ताओं
का मानना है कि नागों का वास्तविक जन्मस्थान सिक्यांग का कोई भूभाग है,जहाँ से इन
लोगों ने चिंग चिंग तथा ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके एशिया के भूभागों में प्रवेश
किया.
नागा जातियों का जीवन आज अनेक भागों में बंटा हुआ
है.पुराणों में जिस नाग-लोक की कथा मिलती है वह इस नाग जाति से संबंध है या नहीं
पर आज जिसे सात बहनों का घर माना जाता है,वह नाग लोगों से अवश्य संबंध रखता है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-03-2017) को "5 मार्च-मेरे पौत्र का जन्मदिवस" (चर्चा अंक-2901) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार.
Deleteअर्जुन से जुड़े प्रसंग भी मिलते हैं महाभारत काल में नागा से जुड़े ...
ReplyDeleteआपने नागाओं के इतिहास को बाखूबी रखा है और इससे पता चलता है की ये जाती लगभर पूरे भारत वर्ष में ही रही है ... अच्छी जानकारी ...
बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 06/03/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर धन्यवाद.
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अंग्रेजी बोलने का भूत = 'ब्युटीफुल ट्रेजडी'“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसादर आभार.
Deleteनाग जाती के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteनागवंश की बहुत ही तथ्यात्मक जानकारी.
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