खिलौनों की बारात गुड़ियों की शादी
तेरा शहजादा मेरी शहजादी
तुम्हें याद हो
या न हो
याद लेकिन
मुझे याद आते हैं बचपन के वो दिन.…….
मुझे याद आते हैं बचपन के वो दिन.…….
जानी बाबू की यह नज्म अरसे से मेरे जेहन में है .जब कभी भी इसे सुनता हूँ ,बचपन की यादों में खो जाता हूँ. बचपन की यादें ताउम्र हमारे साथ रहती हैं.रह - रह कर पुरानी धुंधली यादें मन को कुरेदती भी रहती हैं. एक बार उन यादों को कुरेदने की कोशिश करने पर , यादों का एक रेला सा गुजर जाता है .आँख बंद कर उन पलों को महसूस करने का प्रयत्न करता हूं जो बचपन में बिताए थे .
स्कूल के दिन ,सहपाठियों के साथ बिताये पल ,बहनों के साथ छोटी-छोटी बातों पर लड़ना- झगड़ना,फिर सुलह,जैसे कल की ही बात हो .छोटी -छोटी जरूरतों के लिए भाई ,बहनों पर कितना निर्भर रहते हैं ,यह विवाह एवं उनकी विदाई के बाद ही पता चलता है . जो भावनात्मक लगाव छोटी उम्र में पनप जाते हैं वे समय के अन्तराल में फीके नहीं पड़ते.
आज ,जब वे इतनी दूर हैं कि साल में एकाध बार ही मुलाकात हो पाती है.गर्मियों की छुट्टियों में घर आने पर हर वक्त कोशिश करता हूँ कि किसी तरह की तल्खी न हो. पर ऐसा हो कहाँ पाता है. किसी न किसी बात पर बतकही शुरू न हुई कि एक - दो दिन बोलचाल बंद. फिर सुलह मैं ही करता हूँ. रक्षाबंधन के कई दिन पहले से फोन आना शुरू हो जाता है कि राखी भेजी है डाक से, मिली है या नहीं .राखी तो मिल जाती है ,लेकिन कैसे बताऊँ कि मैं उन्हें बहुत मिस करता हूँ .मेरे दिल के एक कोने में आज भी बचपन की यादें बसी हुई हैं . उन्हें याद करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं पड़ती.
शुरूआती शिक्षा - दीक्षा मन पर कहीं गहरे असर कर जाती हैं. बाल मन सीखने को आतुर रहता है. ऐसे में प्रारंभिक शिक्षा का प्रभाव लम्बे समय तक रहता है. मुझे आज भी याद आते हैं वे शिक्षक जो शिक्षक नहीं बल्कि परिवार के सदस्य जैसे लगते थे. रामायण और महाभारत के अनछुए प्रसंगों को सुनाकर,आगे की कहानी जानने की उत्सुकता बढ़ा देते. हम सभी भाई -बहनों की प्रारंभिक शिक्षा में उनका विशेष योगदान है.
उम्र के पड़ाव में ये बातें और भी याद आती हैं. तेज रफ़्तार जिन्दगी की भाग-दौड़ में ये और भी अहम् है कि हम न केवल बचपन की यादों को संजोकर रखते हैं,बल्कि उन यादों को ताजा भी कर लेते हैं.
बचपन की यादों की मधुरता बनी रहे .
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ....ललित चाहार
Deleteअच्छी प्रस्तुति हैं !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबचपन की यादों की सैर करना बहुत अच्छा लगता है..
ReplyDeleteसुन्दर यादें :-)
सादर धन्यवाद ! रीना जी . आभार .
Deleteबचपन होता ही है इतना खूबसूरत कि आँखों के सामने यादों का झरोखा सा चलने लगता है!!
ReplyDeleteसुन्दर स्मरण।।
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (09.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteबचपन की यादों का सहज स्मरण.
ReplyDeleteरक्षाबंधन के कई दिन पहले से फोन आना शुरू हो जाता है कि राखी भेजी है डाक से, मिली है या नहीं .राखी तो मिल जाती है ,लेकिन कैसे बताऊँ कि मैं उन्हें बहुत मिस करता हूँ .मेरे दिल के एक कोने में आज भी बचपन की यादें बसी हुई हैं .
ReplyDeleteप्रिय राजीव जी ..बचपन की यादें मन को खुशनुमा बना जाती हैं ..बहन भाई का प्रेम अमर रहे
आभार
भ्रमर ५
सादर धन्यवाद ! आ.भ्रमर जी. आभार.
Deletebachpan ki sair, achchhi lagi........
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबचपन की तमाम बातें ताज़ा रहती हैं जेहन में ... टीचर ... भाई बहन का प्रेम ... जब याद आते हैं तो मन भीग जाता है ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! बचपन की यादें होती ही ऐसी हैं. आभार .
Deleteसच बचपन के वो दिन अब यादों में रह गए.....
ReplyDeleteलेकिन उन यादों की खुशबू अभी भी दिल को महका जाता है ....
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसच बचपन के वो दिन अब यादों में रह गए.....
ReplyDeleteलेकिन उन यादों की खुशबू अभी भी दिल को महका जाता है ....
सच बचपन के वो दिन अब यादों में रह गए.....
ReplyDeleteलेकिन उन यादों की खुशबू अभी भी दिल को महका जाता है ....
बचपन की याद ,जीवन में जीने की मिठास का काम करती है .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deletebachpan sachmuch hi jeevan ka anand hai....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteआदरणीय सर जी,
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
बहुत ही अच्छी रचना ,सचमुच यादें ....जेहन में हमेशा ताज़ी रहती हैं |
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सादर धन्यवाद ! अजय जी. आभार .
Deleteये स्मृतियाँ जीवन की थांती हैं .....
ReplyDeleteपापा भाई को यह लड़की,अक्सर ही धमकाती थी !
ReplyDeleteइनकी शिकायती चिट्ठी से,मन बहलाया करते थे
भैया से कुछ छीन के भागी, पापा के पीछे छिपने !
इनकी नन्हीं मुट्ठी से, हम टाफी खाया करते थे !
सादर धन्यवाद ! आदरणीय सतीश जी . आभार . अपनी कविता की पंक्तियों के माध्यम से आपने भी बचपन की स्मृतियों को संजोया है .
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
यादें....हमरे जीवन भर की पूँजी.....समय बदल जाता है ...लोग बदल जाते हैं...लेकिन ..वह तो अपनी मिलकियत होती हैं...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteये यादें ही खजाना हैं...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबचपन की ये यादें तो अनमोल खजा़ना होती है,आज मेरे बच्चों के बचपन को देखती हुँ तो गुमान हो आता है अपने बचपन पर......और बच्चे कहते है कि कितना बोरिंग था आपका बचपन बिना गैजेट्स की दुनियां के । मन मायुस हो जाता है,कितने अनजान है वो असली खुशी से......बहुत बढ़िया लेख, मैं भी जी आयी आज मेरा बचपन
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ReplyDeleteबचपन की यादें एक मधुर स्मृति है ,अमृत पान जैसा
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सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबचपन की यादें हम कभी नही भूलते। यही हमारे अंदर एक छोटा बच्चा बनाये रखती हैं।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! जी बिल्कुल सही कहा यही हमारे अंदर एक छोटा बच्चा बनाये रखती है . आभार .
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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