कमल केवल भारतीय संस्कृति की सत्यता का ही प्रतीक नहीं है,बल्कि भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण सिद्धांत "तमसो मा ज्योतिर्गमय" का जीवित रूप है.कमल पानी के मल से पैदा हुआ है. वह गंदगी से उठकर श्रेष्ठता की और बढ़ता है.वह प्रकाश में खिलता है और अंधकार में अपने को बंद कर लेता है,जैसे कह रहा हो - 'अंधकार से दूर रहो.' उसका मुख हमेशा सूर्य की ओर रहता है. जैसे कह रहा हो -मुझे 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो.' इस प्रकार कमल हमेशा यह प्रेरणा देता है कि हम अज्ञान,अंधकार और अविवेक से दूर रहें .
भविष्य पुराण में
यह विषय आता है कि कौन सा फूल कितने दिनों में बासी हो जाता है.उसके अनुसार - नील
कमल,श्वेत कमल और कुमुद ये
पांच दिन में,जाति का फूल एक
प्रहर में,मल्लिका का आधा प्रहर में
और अगस्त्य के फूल तीन प्रहर में बासी हो
जाते हैं.इन सभी फूलों में कमल ही एक ऐसा फूल है जो सबसे अधिक समय तक स्वस्थ,स्वच्छ,निर्मल और ताजा बना रहता है.उसे रात्रि में तोड़कर प्रातः
पूजा के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है,क्योंकि उसके बासी होने का तो पता ही नहीं चलता .
कमल में सत्य और
असत्य को प्रकट करने की स्वाभाविक शक्ति है.कालिदास का मेघदूत इसी कथा पर आधारित
है.एक दिन यक्ष ने कुबेर की शिव - पूजा के लिए रात्रि में कमल तोड़कर रख दिए.प्रातः जब कुबेर पूजा के लिए गए और कमल को हाथ में लिया तो वह खिलने लगा था.उसमें से एक भौंरा उड़कर भागा तो कुबेर ने यक्ष से सत्यता जाननी चाही,परन्तु
उसने असत्य कहा कि 'फूल बासी नहीं
है.' वह यह भूल गया कि कमल
उजाले में खिलता है और अंधकार होने पर अपने आपको बंद कर लेता है.अतः रात्रि में
ही उसमें भौंरा बंद हो गया था.उसके इस असत्य पर ही कुबेर ने यक्ष को देश निकाला
दे दिया था .
कमल को सृष्टि के प्रतीक के रूप में भी हम देखते
हैं.विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न होता है और उस पर बैठकर ब्रह्मा श्रृष्टि की
रचना करते हैं .
भूगर्भ शास्त्री
भी पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड का आकार कमल रूप मानते हैं.मेरु के पश्चिम में
तिब्बत का धरातल है,उसके पूर्व में कैलास,दक्षिण में हिमवत और उत्तर में कुरु स्थित हैं.मेरु कमल के
पराग के सामान हैं.
विष्णु के हाथ
में कमल केवल सृष्टि का प्रतीक मात्र नहीं,वह भारतीय संस्कृति के 'निष्काम कर्म' के आदर्श का भी प्रतीक है.वह कीचड़ में उत्पन्न होने के बाद भी निर्मल,स्वच्छ और पवित्र रहता है. जल में रहते हुए भी
जल से अलग तथा अलिप्त रहता है.वह निर्लिप्त और निर्विकार रह कर अपने सौन्दर्य,सुवास और सरसता से सबका मन लुभाए रहता है.जो
इस और संकेत करता है कि समस्त कर्तव्यों का पालन करते हुए फल से अलिप्त रहो,अर्थात कर्मयोग के सिद्धांत का प्रतीकात्मक रूप है.
भारतीय संस्कृति
पुरुषार्थ एवं कर्मप्रधान है.कमल कीचड़ में उत्पन्न होकर सारे समाज को उसकी घृणित
उत्पत्ति का संकेत करता है.अपनी प्रारम्भिक अवस्था में कठोर कली के रूप में रहते हुए कमल में कोई कीड़ा नहीं
पहुँच सकता और उसमें छिद्र नहीं कर सकता है .
खिला हुआ कमल ही
जीवन तत्व का प्रतीक है.यह कमल संकेत देता है कि जिस प्रकार प्रकृति से शक्ति,तेज ताप और उर्जा न मिलने पर उसे पुनः अपनी
प्राकृतिक स्थिति में आना होता है,उसी प्रकार
मनुष्य को भी सम्पूर्ण जीवन जीने के बाद,अंत में मृत्यु की गोद में आना होता है,जो प्राकृतिक है.
भारतीय संस्कृति
में लक्ष्मी को कमल के पुष्प पर बैठे हुए दिखाया
गया है.उन्होंने एक हाथ में कमल लिया हुआ है और दूसरे हाथ से धन बिखेर रही हैं.हाथ में पकड़ा हुआ कमल ऊपर की ओर उठा हुआ है और धन नीचे गिर रहा है. दोनों कितने सुन्दर
प्रतीक हैं.जो धन लेकर उसमें लिप्त हो गया वह दलदल में फंस गया, जो सब कुछ पाकर भी कमल की तरह अनासक्त और अलिप्त बना रहा,वह कमल की तरह उर्ध्वमुखी या
उन्नत हो गया.
धन सांसारिक सुख
का प्रतीक है,आत्मिक शक्ति और
आनंद का नहीं.इसलिए लक्ष्मी धन बिखेरती है, उस पर बैठती नहीं,उसमें बंधती नहीं.उसी तरह लक्ष्मी को पाकर विष्णु भी उसमें लिप्त नहीं होते.
लक्ष्मी बैठती
हैं कमल पर.कमल आदर्श जीवन का प्रतीक है.वह कीचड़ से निकल कर श्रेष्ठता की और बढ़
रहा है .वह विष्णु की सर्वज्ञता और सर्वगुण संपन्नता का द्योतक है. वह विष्णु की
तरह अनासक्त भाव से सब कार्य करने की प्रेरणा देता है.लक्ष्मी ने कमल को विष्णु
का महाप्रतीक मानकर अपना आसन बनाया और उसे हाथ में लिया,जिससे पति का आदर्श हमेशा पथ -प्रदर्शक बना रहे और वह उसके
गुणों को अंगीकार कर सके.
कमल की महिमा
यहीं समाप्त नहीं होती.कमल ने विष्णु के लोचन का स्थान पाया.देवताओं में केवल
विष्णु को ही कमलनयन कहा गया है.'शिव महिम्नस्रोत' में एक कथा आती है
कि एक बार विष्णु ने शिव के लिए यज्ञ किया और उनके लिए एक हजार कमल मंगाये.जब 999 कमल की आहुति दे चुके तो कमल समाप्त हो गये.गणना में भूल के कारण एक कमल कम रह
गया था. यज्ञ को पूरा करना आवश्यक था,अतः विष्णु ने अपनी आँख निकल कर कमल के रूप में आहुति देनी चाही,तभी शिव प्रकट हो गए और विष्णु का हाथ पकड़ लिया
और स्वयं त्रिपुरारी बन गए. तीनों लोकों की की देखभाल का भार अपने ऊपर ले लिया.यहीं से विष्णु कमलनयन कहलाने लगे .
विष्णु के नेत्र
रूप, यही गुण संपन्न कमल पार्थिव सौंदर्य का प्रतीक बन गया.भारतीय संस्कृति में 'सुंदर' सत्य तथा शिव के साथ अच्छेद संबंध से जुड़ा हुआ है.'सत्यं शिवम् सुंदरम' इसी मान्यता का परिपोषक है.कमल, जो ब्रह्मा ,विष्णु तथा
लक्ष्मी से संबद्ध होकर सत्य तथा शिव का प्रतीक है,वही भारतीय सौन्दर्य का भी प्रतीक है .
सुन्दर विवेचना ......
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! जोशी जी . आभार .
Deleteअत्यंत ही उपयोगी और संग्रहणीय आलेख. आपके इस गहन चिंतन व दर्शन को नमन.........
ReplyDeleteVery informative post. thanks
ReplyDeleteउत्तम प्रस्तुति....
ReplyDelete:-)
सर,,, आपकी सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों में एक है ये ।। उपयोगी पोस्ट के लिए धन्यवाद।।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आलेख बधाई
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! महिमा जी . आभार .
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 30/09/2013 को
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति और कमल - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः26 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,संग्रहणीय आलेख.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी . आभार .
Deleteकमल के बारे में, कमलनयन के बारे में कितनी उपयोगी जानकारी, सुन्दर आलेख प्रस्तुत किया है! पढ़ कर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteNice write up on lotus.
ReplyDeleteThanks ! for your appreciation.
Delete
ReplyDeleteअध्यात्म और दर्शन तत्व से संसिक्त अद्भुत आलेख।
ReplyDeleteअध्यात्म और दर्शन तत्व से संसिक्त अद्भुत आलेख।
ReplyDeleteअध्यात्म और दर्शन तत्व से संसिक्त अद्भुत आलेख।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
Sunder Sahejane Yogy Post.....
ReplyDeleteभारतीय दर्शन में कमल का अपना ही महत्त्व है ... वैसे तो आज की राजनीति में इसका महत्त्व हो गया है ...
ReplyDeleteदर्शन ओर आध्यात्म का सुख देती सुन्दर पोस्ट ...
सादर धन्यवाद ! नासवा जी . आभार .
Deletegyanvardhak post .aabhar
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक आलेख...
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-01/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -14 पर.
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
ReplyDeleteअदभुत लेखन |
अत्यन्त श्रेष्ठ लेखन |
संग्रहनीय लेख |
नई पोस्ट-“किन्तु पहुंचना उस सीमा में………..जिसके आगे राह नही!{for students}"
सादर धन्यवाद ! अजय जी . आभार .
Deleteअनूठी पोस्ट ..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! सक्सेना जी . आभार .
Deleteसुन्दर प्रस्तुति व ग्यानवर्धक लेख
ReplyDeleteबहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी .
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी देता पोस्ट .
ReplyDeleteभारतीय दर्शन के प्रतीकों को समझाने का महत कार्य आप कर रहें हैं। आज इसकी बहुत ज़रुरत है। क्योंकि आज फिर से लोगों की आस्था हिली हुई है ,मोह भंग की स्थिति है।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आदरणीय शर्मा जी. आभार
Deleteसुंदर ज्ञानदायक और जानकारीपरक आलेख.
ReplyDeleteरामराम.
सादर धन्यवाद ! ताऊ जी . आभार .
Deleteइस पोस्ट के लिए किया गया आपका अतिरिक्त श्रम सर्वथा श्लाघ्य है।
ReplyDeleteआदरणीय वीरेन्द्र जी ,सादर . सराहना के लिए आभार .
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