संजा किशोरियों का लोकप्रिय त्यौहार है,साथ ही लोककला का श्रेष्ठ समायोजन.सावन के सुहाने मौसम की बहार छा जाने के बाद ही यह त्यौहार अपनी पूरी रंगीनियाँ बिखेरता आता है.बाग़-बगीचों,खेत-खलिहानों में तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं.नदियों का जल निर्मल हो जाता है,तब किशोरियों का यह उमंग भरा त्यौहार आ जाता है.
सोलह दिन
बनने वाले भित्तिचित्र संजा और बालिकाओं के कोमल कंठों से फूटते गीतों का समागम
देश के मध्यप्रदेश,राजस्थान,ब्रज,मिथिला,पंजाब और हरियाणा के गाँव और शहरों की
गलियों को रंगीन वीथिका बना देता है.
किशोरियां भाद्र मास की
पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक,पितृपक्ष में सोलह दिनों तक अपने-अपने घरों
की भीत पर आंचलिक विशेषताओं के साथ गोबर-मिट्टी से विविध आकृतियों का सृजन करती
हैं.आकृतियों को फूलों,रंग-बिरंगी पन्नियों से,कौड़ियों से सजाती-संवारती हैं.सांझी
की विभिन्न तिथियों के लिए पूर्व परंपरा के अनुसार प्रायः निश्चित आकृतियों का
अंकन किया जाता है.कन्याएं सुंदर वर,चिर सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से
प्रति दिन संध्या समय सांझी का पूजन,आरती करती हैं और गीत गाती हैं.कविता,गीत,संगीत
और रूपंकर कलाओं का सुंदर संगम इस बहुआयामी संजा पर्व में परिलक्षित है.यह भित्ति
अलंकरण कला और गीति पर्व भी है और आनुष्ठानिक आयोजन भी.
सांझी पर्व के माध्यम से
किशोरियां अपनी कोमल भावनाओं,कल्पनाओं को अभिव्यक्त करती चली आ रही हैं.सचमुच संजा
पर्व चित्रकला की पाठशाला है,जहाँ बालिकाएं प्रथम बार चित्रकला को समझने एवं
चित्रों के सृजन के लिए उन्मुख होती हैं.
लोकांचलों में सांझी को
संज,सांजुली,सांज्ञाफूली और संझया आदि कई नामों से जाना जाता है.भारतीय लोक में
सांझी के उद्भव और विकास से संबंधित कई जन-श्रुतियां,मिथक वाचिक परंपरा में आज भी
सुरक्षित है.विद्वानों ने भी सांझी को कई रूपों में समझा है.कोई इसे सांझ-संध्या
का द्योतक मानते है,तो कोई ब्रह्मा की कन्या संध्या से इसका संबंध जोड़ते हैं.कोई
इसे दुर्गा,पार्वती के रूप में आदि शक्ति का अवतार मानते हैं.
कुछ लोग इसे विष्णु-पत्नी
लक्ष्मी के रूप में स्वीकार करते हैं,तो कोई ब्रज की देवी मानता है.कहते हैं कि
भगवान श्रीकृष्ण ने राधा को प्रसन्न करने के लिए शरदकाल में एक दिन सायंकाल एक
सुंदर कलाकृति बनायीं थी.जो संध्या समय निर्मित की जाने के कारण सांझी नाम से
विख्यात हुई.
हरियाणा में प्रचलित लोककथा
के अनुसार सांझी एक जुलाहे की लाड़ली बेटी थी.विवाहोपरांत उसके पति ने उसे एक लड़का
होने पर उसे घर से बाहर निकाल दिया.वह रात-दिन एक करके सूत कातती,खद्दर बुनती और
उसे बेचकर अपना और बेटे बसंता का पेट भरती.अवसर मिलते ही वह कुंवारी लड़कियों को
अपना ज्ञान बांटती,जो उसने विद्वानों से सीखा था,किंतु यह पुण्य कार्य भी उसकी
ससुराल वालों को सहन नहीं हुआ.वे उस पर अत्याचार करने हेतु ताक में रहते थे.एक बार
सांझी ससुराल वालों की यातनाओं से तंग आकर अपने बेटे को लेकर अपने पिता के पास आ
रही थी.बीच राह में ही उसके ससुराल वालों ने बेरहमी से पीटकर उसे मार डाला.रोती बिलखती
उसकी भक्तिनों ने उसके शव को जल में प्रवाहित कर दिया.मान्यता है कि तभी से
सांझी-पूजन और विसर्जन का प्रारंभ हुआ.
शिव महापुराण में वर्णित
कथा के अनुसार सांझी को ब्रह्मा की मानसी कन्या माना गया है.पहले आदि प्रजापति
ब्रह्मा ने दक्ष,मरीचि,पुलह आदि दस प्रजापतियों को उत्पन्न किया.उसी समय उनके मन
से एक अपूर्व सुंदरी कन्या उत्पन्न हुई.कन्या को देख ब्रह्मा और प्रजापतियों के मन
में सृष्टि बढ़ाने का विचार उठा.यह विचार करते हुए उनके ह्रदय से अद्भुत
सौन्दर्यवान कामदेव उत्पन्न हुआ.जिसे देख प्रजापतियों के मन विचलित हो उठे.कामदेव ने
ब्रह्मा को प्रणाम करके कहा मुझे ऐसे कर्म में नियोजित करें,जिससे मैं पुरुषों को
प्रिय और माननीय रहूँ.
ब्रह्मा ने उसे अपने सम्मोहक रूप से स्त्रियों को सम्मोहित
करते हुए सनातनी सृष्टि करने का निर्देश दिया.प्रजापतियों ने कहा कि तुमने अपने
सम्मोहन से पहले ही हमारा और ब्रह्मा जी का चित्त मथ दिया है,इसलिए तुम्हारा नाम ‘मन्मथ’
होगा.अपूर्व सौंदर्य के कारण ‘काम’.यह
सुंदर कन्या संध्या समय ध्यान करते हुए ब्रह्माजी के मन में उत्पन्न हुई है.यह
दिवसांत की शोभा सदृश सुंदर है,अतः यह संसार में ‘संध्या’ नाम से जानी
जाएगी.कामदेव ने ब्रह्मा और अन्य प्रजापतियों पर अपने सम्मोहन की जांच की,जिससे
ब्रह्मा सहित सभी प्रजापति संध्या की इच्छा करने लगे.धर्म के आह्वान पर भगवान शिव
ने प्रकट होकर सभी को धिक्कारा.
काम-प्रसंग से संध्या को बहुत ग्लानि हुई.मुझे
देखकर मेरे पिता और भाई काम के वशीभूत हुए.मैं तपस्या कर संसार में मर्यादा
स्थापित करूंगी.संध्या ने चंद्रभाग पर्वत पर जाकर मौन तपकर भगवान शंकर को प्रसन्न
किया,वे प्रकट हुए.तब संध्या ने कहा,यदि मेरे पाप नष्ट हो गए हैं,यदि मैं योग्य
हूँ तो मुझे तीन वरदान दीजिए.इस संसार में कोई भी प्राणी जन्म से ही काम भाव से
युक्त न हो.मेरे सदृश इस संसार में विख्यात व्रत वाली दूसरी न हो और मेरा पति
महाकामी न हो,मित्रवत हो.उसके सिवा जो भी मुझे काम भाव से देखे वह पुरुषार्थहीन हो
जाए.भगवान शंकर ने उसे पवित्र घोषित करते हुए उसके वर के अनुसार संसार में मर्यादा
स्थापित करते हुए कहा कि कोई भी शरीरधारी जन से ही कामी नहीं होगा.तेरा पति
महातपस्वी होगा और तेरे साथ सात कल्प पर्यंत जीवित रहेगा.
शिव से वर पाने के बाद
संध्या ने मेघातिथि मुनि के यज्ञ में अपने उपदेष्टा को पति के रूप में पाने की
कामना मन में लेकर अपना दूषित शरीर भस्म कर डाला.मानवीय भौतिक शरीर से वह यज्ञ से
उत्पन्न हो मेघातिथि मुनि की कन्या हुई.धर्म का अवरोध न करने के कारण अरूंधति नाम
पाया और वशिष्ठ जी ने वरण किया किंतु संध्या की अद्वितीयता की रक्षार्थ शिव की
आज्ञा से अग्नि ने संध्या का शुद्ध शरीर लेकर सूर्यमंडल में प्रवेश किया.सूर्य ने
उसके शरीर के दो भाग कर अपने रथ पर स्थापित किया.शरीर का ऊपरी भाग देवों को प्रिय ‘प्रातः
संध्या’ और नीचे का भाग पितरों को प्रिय ‘सायं संध्या’ हुआ.
यह पुराण कथा ब्रह्मा की
मानसी कन्या संध्या और आकाश की संध्या को एकाकार ही नहीं करती अपितु सांझी पूजा की
परंपरा में,सांझी की परिकल्पना में संध्या है,उसे भी स्थापित करती है.मिथकीय
परम्पराओं और लोकविश्वासों में सत्य जो भी हो,पर कुंआरी कन्याएं शताब्दियों से
ममतामयी देवी के रूप में सांझी की पूजा-अर्चना करती आ रही हैं,सांझी के प्रति उनके
अटल विश्वास को दर्शाता है.
परम्पराओं में आस्था और विश्वास को बताती सुंदर जानकारी भरी पोस्ट
ReplyDeleteहमारे लोक पर्व और उनसे जुड़ी कथाएं मानव स्वाभाव की जटिलताओं पर गहन दृष्टि दर्शाती हैं। संझा पर्व के बारे में विस्तार से जाना।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष कि मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
ReplyDeleteसुंदर लेखन |बधाई |
www.drakyadav.blogspot.in
सादर धन्यवाद ! अजय जी. आभार.
Deleteबढ़िया विस्तृत व रोचक लेख , धन्यवाद राजीव भाई
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: बच्चों के लिये मजेदार लिंक्स - ( Fun links for kids ) New links
सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deleteसुंदर जानकारी !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कहीं ठंड आप से घुटना न टिकवा दे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी मिली ... आभार |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteजानकारी देती सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर जानकारी भरी पोस्ट ...... आभार...... |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजानकारी देती सुंदर पोस्ट
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteआपसे हमेशा नयी जानकारियां प्राप्त होती है... शुक्रिया ज्ञानवर्धन के लिए... सुन्दर लेख
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
DeleteSanzi parv hamare madhya pradesh me bhi khoob manaya jata hai. Usitarah Maharashtra mebhi bhadapad pooranmasi se Sharad purnima takkishori ladkiyan bhulabai Parvatiki pooja krati hain aur gan3 ga kar unki tareef bhee. Bad men prasad witaran ke sath pooja sampt jotihai. AB to hamari paramparaen katm si ho rahee hain .Maine apne bachpan men khoobbhulabai ke geet gaye hain. Aapka lekh wah sabyad dila gaya
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
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ReplyDeleteसुन्दर अभिनव सांस्कृतिक पोस्ट उत्सवी रंग लिए इतिहास लिए
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteएक लोक त्यौहार के बारे में विषद जानकारी...आज की पीढ़ी इन सब से पूर्णतः अनजान है...बहुत सुन्दर आलेख...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeletebadiya
ReplyDeleteबहुत बढियाँ आलेख
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