सांप को लेकर कई भ्रांतियां और मिथक लोगों में है.सांप को
देखते ही भय इस कदर व्याप्त हो जाता है कि इसे मारना ही श्रेयस्कर समझते हैं.इसका
कारण अतीत में सर्पदंश से हुई मौतें और जनमानस के जेहन में समाया हुआ डर भी है.यह
धारणा भी लोगों में बनी हुई है कि सांप बदला लेते हैं.इस कारण न केवल गाँव,देहातों
में बल्कि शहरों में भी लोग सांप को मारने के बाद उसके फन को कुचलते और आँख फोड़
देते हैं क्योंकि यह भ्रांतियां फैली हुई हैं कि सांप की आँखों में मारने वाले की
छवि अंकित हो जाती है.
सांप के संबंध में कई विश्वास प्रचलित हैं.इनमें कुछ का
तो खंडन हो चुका है और कुछ अभी भी बरकरार है.जैसे, सांप के संबंध में प्रचलित इस
विश्वास का खंडन हो चुका है कि सर्पों में सम्मोहन शक्ति होती है.इसी तरह यह
विश्वास भी मिथ्या सिद्ध हो चुका है कि सर्प स्त्रियों पर कभी हमला नहीं करते.सांप के बीन की धुन पर झूमने वाली बात में भी कोई सत्यता नज़र नहीं आती क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार सांप बहरा होता है और हवा द्वारा ले जाई गई ध्वनि को नहीं सुन सकता.यह जमीन पर कंपन,तरंग या सुगंध के अहसास से अपना काम चलाता है.
सांप को लेकर न केवल हिंदी सिनेमा बल्कि हॉलीवुड में भी कई हिट
फ़िल्में बनी हैं.सांप के प्रति लोगों के भय,अंधविश्वास और श्रद्धा को फिल्मकारों ने खूब भुनाया है.हिंदी
फिल्मों में सांप के ‘बदले की थीम’ को लेकर बनी कई सुपर हिट फ़िल्मों में दिखाया गया कि किस तरह एक नागिन अपने जोड़े की मौत का बदला लेती है.इसी
तरह एक अंग्रेजी फिल्म ‘द कल्ट ऑफ़ कोबरा’ भी साँपों के बदला लेने से संबंधित है.
‘द कल्ट ऑफ़ कोबरा’ में दिखाया जाता है कि विश्वयुद्ध के समय
कुछ यूरोपीय सिपाही मिस्त्र के एक नगर में सैर-सपाटे के लिये जाते हैं.वहां उन्हें
एक ऐसे गुप्त संप्रदाय का पता चलता है,जो सर्पों की पूजा करते हैं.उन्हें पता चलता
है कि एक विशेष दिन होने वाले समारोह में एक सर्प एक विशाल घड़े के चरों ओर नृत्य
करने वाली नर्तकी के पास आता है और फिर वह धीरे-धीरे मानवाकृति धारण कर लेता है.वे
चारों-पांचों सिपाही वेश बदलकर उस स्थान पर पहुँचते हैं.वहां वे सब देखते हैं जो
उन्हें बताया गया था.उनमें से एक सिपाही इस अद्भुत दृश्य का फोटो लेना चाहता
है.फ़्लैश का प्रकाश होते ही वहां एकत्र लोगों में खलबली मच जाती है.वे उसे पकड़ने
के लिए दौड़ते हैं.भीड़-भाड़ में सिपाही किसी तरह बच निकलते हैं,लेकिन सांप उन्हें
नहीं छोड़ते.उनमें से प्रत्येक को एक-एक कर सर्पों के कारण मरना पड़ता है.
रामोना और डेसमंड मॉरिस की प्रसिद्द पुस्तक ‘मैन एंड स्नेक्स’
में अनायास ही ‘डान्ह-ग्बी’ नामक एक सर्प देवता के बारे में पढ़ने को मिलता है.’डान्ह-ग्बी’
की पूजा में सुंदर स्त्रियों का विशेष स्थान था.कभी-कभी यह सर्प देवता सुंदर
स्त्रियों के सम्मुख प्रकट होकर उन्हें सम्मोहित कर देता.फलतः वे उसकी सेवा में
तैनात हो जातीं.उनकी विभिन्न सेवाओं में एक सेवा विशाल घड़े के चारों ओर नृत्य करने
की भी होती.बाद में नरबलि भी दी जाती.
लेकिन क्या सर्प बदला लेते हैं? क्या वे रूप भी बदल सकते
हैं? सर्प-विशेषज्ञों की खोज जारी है.सर्प-विशेषज्ञ यूनान के एक द्वीप में
प्रतिवर्ष घटने वाली एक घटना का रहस्य अभी तक नहीं समझ पाए हैं.इस द्वीप का नाम है
सेफालोनिया.पहाड़ों से भरे द्वीप में दो छोटे-छोटे चर्च भी हैं.प्रति वर्ष 6 अगस्त
से 15 अगस्त के बीच सैकड़ों छोटे-बड़े विषैले सर्प पहाड़ियों में बने अपने बिलों से
निकलते हैं और चर्चों की ओर बढ़ते हैं.यूनानी पंचांग के अनुसार 6 अगस्त ईसा मसीह का
दिन है,और 15 अगस्त वर्जिन मेरी का.
इन सर्पों के बारे में एक और विचित्र बात कही जाती है कि
प्रत्येक सर्प के सर पर क्रॉस बना हुआ होता है.चर्चों में पहुँचने वाले इन सर्पों
के बारे में एक किवदंती भी प्रचलित है.कहते हैं,वर्षों पहले समुद्री डाकू
सेफालोनिया पहुंचा करते थे और द्वीप पर बसे दो गांवों मार्कोपोडलो और अर्जेनिया के
मध्य रहने वाली ननों को परेशान किया करते थे.समुद्री डाकुओं के व्यवहार से ननें
बेहद परेशान थीं.एक दिन मंदर सुपरियर ने ईश्वर से प्रार्थना की कि अगली बार जब
समुद्री डाकू आएं, तो वह हमें सर्प बना दें.और कहते हैं,जब समुद्री डाकू अगली बार
आए,तब उन्हें कान्वेंट में ननों की बजाय चौबीस सर्प दिखाई दिए.
ग्रामीणों का विश्वास है कि ईश्वर के प्रति उनकी आस्था
पुष्ट करने के लिए हर वर्ष 6 से 15 अगस्त के मध्य सर्प पहाड़ियों से उतारकर चर्चों
में पहुँचते हैं.कई लोगों ने दोनों पर्वों के बाद इन क्रॉस धारी सर्पों को खोजने
की कोशिश की लेकिन उन्हें एक भी सर्प दिखाई नहीं दिए.6 अगस्त को गाँव वाले चर्च
में एकत्र होते हैं और उसकी घंटी बजते ही सर्प अपने बिलों से निकलकर चर्चों की ओर
रेंगने लगते हैं.सर्पों की संख्या का भी महत्व है.जिस वर्ष बड़ी संख्या में सर्प
आते हैं,गाँव वाले संतुष्ट होते हैं,क्योंकि उन्हें लगता है कि उस वर्ष उन्होंने
अपने धर्म का पालन अच्छी तरह किया है.जिस वर्ष कम संख्या में सर्प आते हैं,गाँव
वाले सोचते हैं कि उस वर्ष उन्होंने धर्म-पालन में कोताही बरती है.
डेसमंड ने अर्जेनिया के मेयर बाल्लास के हवाले से लिखा है
कि वर्ष में पूरे द्वीप में कहीं सर्प दिखाई नहीं देते,चर्च की बात तो दूर है.यह
चमत्कार सैकड़ों वर्षों से होता आया है,और अब तो दोनों पर्वों पर अन्य देशों के लोग
भी यहाँ पहुँचने लगे हैं.
एथेंस के एक पत्रकार डेविड बारिट ने स्वयं इन द्वीपों में
सर्पों के इस रहस्यमय आगमन को देखा है.इन सर्पों के संबंध में एक और उल्लेखनीय बात
है कि ये सर्प विषैले होते हुए भी किसी को डसते नहीं.
यह भी कहा जा सकता है कि शायद पर्यटकों को आकर्षित करने के
लिए ही यह पूरा किस्सा गढ़ा गया हो.लेकिन इस बारे में कुछ भी कहना कठिन है.
डेसमंड मॉरिस का कहना है कि ‘इतिहास के उदय काल से ही सर्प
को देवता के रूप में पूजा जाता रहा है.नाग आरंभिक द्रविड़ों का प्रतीक चिन्ह था और
जब कबीले के प्रमुख की मृत्यु हो जाती थी,उसे अर्द्ध-देवता मान लिया जाता था.लोगों
का विश्वास था कि दिवंगत प्रभुत्व कभी-कभी सर्प की आकृति धरकर प्रकट भी होता है.’ डेसमंड
ने अपनी पुस्तक में नागपंचमी का भी जिक्र किया है.
(जनवाणी - रविवाणी में दिनांक :- 30.03.2013 को प्रकाशित)