Tuesday, January 13, 2015

गुमशुदा बौद्ध तीर्थ

स्तूप का अवशेष 


उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद का संकिसा गाँव बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थ होने के साथ ही एक अति प्राचीनकालीन महानगर रहा है,जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण के आदिकांड के पचीसवें सर्ग में मिलता है.इसके पास में बहने वाली वर्तमान काली नदी उस समय इक्षुमती नाम से जानी जाती थी.
मिथिला के राजा जनक अपने पुरोहित शतानंद से कहते हैं.......

भ्राता मम महातेजा वीर्यवानति धार्मिकः
कुशध्वज इति ख्यातः पूरीम धवसच्छुभाम ||
वार्या फलक पर्यतां पिवन्निक्षमती नदीम |
सांकाश्यां पुण्य संकाशां विमानमिव पुष्पकम् ||

(महातेजस्वी पराक्रमी अति धार्मिक मेरे भाई कुशध्वज सुंदर संकाश्य नगरी में हैं.वह नगरी आक्रमण को रोकने के लिए चारदीवारी की ढाल से सुरक्षित है.उस नगरी में से होकर इक्षुमती नदी बहती है.जिसका मधुर जल कुशध्वज पीते हैं और वह नगरी पुष्पक विमान के समान सुखदायिनी है.)

पाणिनि की अष्टाध्यायी और चीनी यात्री फाह्यान एवं ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में इस नगर का  सविस्तार विवरण मिलता है.
बुद्ध के साथ ब्रह्मा एवं इंद्र की मूर्ति 
बौद्ध साहित्य में  सांकाश्य को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है,क्योंकि भगवान् बुद्ध यहाँ स्वर्ग से सीढ़ी द्वारा उतरे थे.बौद्धों की प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान् बुद्ध अपनी माता महामाया को धर्म का उपदेश देने के लिए त्रयस्त्रिंश स्वर्ग गये थे.पारिजात वृक्ष के नीचे पांडु कंबल शिलासन पर बैठे उन्होंने अपनी माता को सम्मुख कर सभी उपस्थित देवों को तीन माह तक धर्म का उपदेश दिया.वर्षाकाल समाप्त होने पर आश्विन पूर्णिमा के दिन वे सांकाश्य नामक स्थान में पृथ्वी पर उतरे.

उस समय देवताओं ने सांकाश्य में तीन बहुमूल्य सीढ़ियाँ लगा दीं,जो क्रमशः मणियों,सोने और चांदी की थी.इस प्रकार भगवान् बुद्ध सद्धर्म भवन से चलकर देव मण्डली के साथ बीच वाली सोने की सीढ़ी से उतरे,उनके साथ दायीं ओर ब्रह्मा चांदी की सीढ़ी पर चंवर लेकर एवं बायीं ओर इंद्र बहुमूल्य छत्र लेकर मणियों वाली सीढ़ी से उतरे.उस समय उनके दर्शन के लिए देश-देशांतर के राजा एवं जनता इकट्ठी हुई.

साँची स्तूप के उत्तरी तोरण द्वार के खंभे पर बुद्ध अवतरण की घटना पत्थर पर खुदी हुई चित्रित है.इसमें ऊपर से नीचे तक एक लम्बी सीढ़ी लगी दिखाई गयी है.ऊपर और नीचे की दोनों सीढ़ियों पर वज्रासन और बोधिवृक्ष बने हैं.यह दिखाने की कोशिश की गयी है कि भगवान बुद्ध भूमि पर आ गये हैं.

देवावतरणकी यह घटना भगवान् बुद्ध के जीवन काल की अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक मानी गयी है और सांकाश्य का नाम उन आठ महातीर्थों में से एक माना जाता है, जहाँ बौद्ध लोग अपने जीवन में एक बार अवश्य जाना चाहते हैं.आठ महातीर्थों में यही ऐसा स्थान है,जो लगभग अज्ञात सा है.

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि भगवान् बुद्ध के उतरने के बाद ये सीढ़ियाँ कई शताब्दी तक दिखायी देती रहीं और बाद में लुप्त हो गयीं.सम्राट अशोक स्वयं सांकाश्य में पधारे थे.उन्होंने इस सीढ़ियों वाले स्थान को यहाँ तक खुदवाया कि नीचे पीले पानी का सोता निकल आया लेकिन सीढ़ियों का कोई पता नहीं चला.तब उन्होंने निराश होकर उसी स्थान पर रत्नजड़ित ईटों तथा पत्थर से वैसी ही सीढ़ियाँ,जिनकी ऊंचाई 70 फुट की बताई गयी है,बनवायीं और उनके ऊपर बौद्ध विहार बनवाया जिसमें भगवान बुद्ध की मूर्ति और अगल-बगल सीढ़ियों पर ब्रह्मा एवं इंद्र की पत्थर की मूर्तियाँ बनवायीं.

सीढ़ियों के पश्चिम की ओर थोड़ी ही दूर पर चारों ओर भगवान बुद्ध के बैठने-उठने के चिन्ह बने हुए हैं.इनके निकट ही दूसरा स्तूप है,जहाँ पर स्वर्ग से उतरने के तुरंत बाद तथागत ने स्नान किया.इसी स्थान पर एक मीनार के होने का भी वर्णन मिलता है,जहाँ सबसे पहले शाक्य वंश की राजकुमारी उत्पल वर्षा को बुद्ध के दर्शन मिले थे.

मौर्य सम्राट अशोक तथा उनके पश्चात के राजाओं ने अनेक भवन आदि बनवाये.कहा जाता है कि गाँव के लोगों ने आज तक मकान बनाने केलिए पक्की ईटें एवं मूर्तियाँ नहीं खरीदीं,बल्कि खेत में हल चलाते हुए, भराव के लिए मिट्टी खोदते समय बरसात में टीला धंसने आदि से ईटें एवं मूर्तियाँ मिल जाती हैं.


स्तंभ 
शेरवाले स्तंभ शीर्ष के पूर्व में एक प्राचीन मंदिर का भग्नावशेष है,जिसे अब विषहरी देवी का मंदिर कहा जाता है.वर्तमान में हाल में बने इस छोटे से मंदिर में कोई प्राचीन मूर्ति न होकर एक छोटी सी देवी की मूर्ति है,जिसे विषहरी देवी माना जाता है.यहाँ श्रावण माह में बड़ा देवी मेला लगता है.देवी के प्रति दूर-दूर तक जन–सामान्य में यह आस्था है कि किसी विषैले कीड़े के काटे हुए व्यक्ति को यहाँ पहुँचाने पर विषहरी देवी की कृपा से शीघ्र लाभ मिलता है.विगत कुछ वर्षों में इस मंदिर को लेकर बौद्धों और सनातनी हिंदुओं में विवाद भी रहा है.

इसमें कोई संदेह नहीं सांकाश्य धर्म,शिक्षा,व्यापार आदि की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण नगर रहा होगा,जिसकी प्रसिद्धि सुनकर चीनी यात्री भी यहाँ पहुंचे थे,जबकि यात्रा करना काफी दुरूह था.समय बीतने के साथ यह नगर बिलकुल नष्ट हो गया और इसके स्थान का पता तक नहीं रहा.

1842 में अंग्रेज जनरल कनिंघम ने अपने दौरों के बीच सांकाश्य को खोज निकाला.उन्होंने सांकाश्य की पहचान संकिसा गाँव से की.बौद्धों के तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ संकिसा हिंदुओं के लिए भी एक पवित्र स्थान है.

Keywords खोजशब्द :- संकिसा,सांकाश्य,देवावतरण,बुद्ध 

10 comments:

  1. Shukriya is gumshuda tirtha ki jankari ke liye :)

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  2. गुमशुदा बौद्ध तीर्थ संकिशा (सांकाश्य) के बारे में काफी रोचक जानकारी दी आपने। ऐसे भी तीर्थस्थल भारत में है, लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी की वजह से ये सब धीरे - धीरे विलुप्त हो जाएँगे। एक फिर से आपका सादर ... धन्यवाद।।

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  3. रोचक और ऐतिहासिक स्थानों की अच्छी जानकारी ... पुरातन विभाग को ऐसे नगरों को पुनर्जीवित करना चाहिए ...

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  4. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    उल्लास और उमंग के पर्व
    मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सादर धन्यवाद ! आ. शास्त्री जी. आभार.

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  5. पुरातत्व की ऐसी सामग्री में भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल अध्याय दबे पड़े हैं
    उन्हें प्रकाश में लाकर जाग्रत इतिहास में परिणत करना बहुत महत्व का कार्य है - आपको साधुवाद!

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  6. सराहनीय पोस्ट
    सक्रांति की शुभकामनाएँ।

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  7. इतिहास में गुम हुए सत्य को उजागर करने के लिये
    धन्यवाद.विवरण चित्र की तरह आंखो के सामने
    बहने लगते हैं.

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  8. इसमें कोई संदेह नहीं सांकाश्य धर्म,शिक्षा,व्यापार आदि की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण नगर रहा होगा,जिसकी प्रसिद्धि सुनकर चीनी यात्री भी यहाँ पहुंचे थे,जबकि यात्रा करना काफी दुरूह था.समय बीतने के साथ यह नगर बिलकुल नष्ट हो गया और इसके स्थान का पता तक नहीं रहा. बेहतरीन जानकारी समेटे सार्थक पोस्ट

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