तुलसीदास कृत रामचरित मानस की आभा में उनकी अन्य कृतियां दब सी गयी मालूम पड़ती हैं.गोस्वामी तुलसीदास की प्रथम
रचना ‘रामलला नहछू’ मानी जाती है.इस लघु कृति के बीस सोहर छंदों में नहछू लोकाचार का
वर्णन हुआ है.’सोहर’ अवध क्षेत्र का प्रख्यात छंद है,जो मुख्तया बच्चे के जन्म पर
गाया जाता है,हालांकि यह अन्य क्षेर्त्रों में भी समान रूप से प्रचलित है.इसके
अतिरिक्त यह कर्णवेध,मुंडन और उपनयन संस्कारों तथा नहछू लोकाचारों पर स्त्रियाँ
इसे गाती हैं.
तुलसीदास ने जीवन में
शास्त्रसम्मत विधानों के साथ लोकाचार के परिपालन का भी महत्त्व निरूपित किया
है.......
लोक वेद मंजुल दुइ कूला
वेदाचार लिखित नियमों की
भांति ग्रंथबद्ध और व्यापक हैं,लेकिन लोकाचार परंपराओं पर आधारित होता है.नहछू
लोकाचार का शास्त्रीय विधान न होते हुए भी अवध में कम से कम पांच सौ वर्षों से
व्यापक रूप से प्रचलित है.
नहछू दो शब्दों से बना
है-नख और क्षुर.नहछू की रस्म में नायिता ससुराल जाने के लिए सजते समय दुल्हे के
पैर से नख,नहनी से काटती है,इसके उपरांत उसके पांवों में महावर लगाती है.दूल्हा
सजाने का आमंत्रण पाते ही पास-पड़ोस की स्त्रियां रस्म पूर्वक गालियों की बौछार
करती हैं.मां के लिए अश्लील गालियां गाये जाने पर दूल्हे को लज्जा और संकोच की
विचित्र प्रथमानुभूति होती है, जो थोड़ी ही देर में विनोद के ठहाकों में घुल जाती
हैं.
लोकगीतों में रामकथा
सहस्त्रमुखी धाराओं में प्रवाहित हुई है.समाज के हर वर्ग ने उसे अपनी मान्यताओं के
अनुकूल गढ़ा है,अपनी भावनाओं के रंग में रंगा है.गोस्वामी तुलसीदास की काव्य
प्रतिभा ने नहछू लोकाचार का अत्यंत सजीव वर्णन किया है-राजा दशरथ के आँगन में
कच्चे बांस का मंडप छाया गया है.मणियों,मोतियों की झालर लगी है.चारों और कनक-स्तंभ हैं,जिनके मध्य राजसिंहासन है.गजमुक्ता,हीरे और मणियों से चौक पूरी गयी है.
भागीरथी जल से राम को स्नान
कराया गया है.युवतियों ने मांगलिक गीत गाये.राम सिंहासन पर विराजमान हैं.हाथ में
नवनीत लिए अहीरिन खड़ी है,तांबूल लेकर तम्बोलिन,जमा जोड़ा लिए दरजिन,कनक रत्न मणिजटित
मयूर लिए मालिन आ पहुंची है.बड़ी आँखों वाली नायिता भौंह नचाते हुए भाग-दौड़ कर रही
है.सारी तैयारी हो जाने पर कौशल्या की ज्येष्ठ,कुल की पुरखिन उन्हें आज्ञा देती
है-जाओ सिंहासन पर बैठे रामलला का नहछू करा दो.
मां कौशल्या रामलला को गोद
में लिए बैठी है.दूल्हा राम के सिर पर उनका आंचल छत्र की भांति सुशोभित है.नहछू के
लिए नायिता को पुकारा जाता है.बनी-ठनी,हंसती-मुस्कुराती नायिता कनकलसित नहनी हाथ
में लिए खड़ी दुल्हे राम की शोभा निहार रही है.अब बड़भागी नायिता राम के पांवों के
नख काटने लगी है.बीच-बीच में वह मुस्कुराते हुए तिरछे नयनों से उन्हें निहारते भी
जाती है.नहछू शुरू होते ही उपस्थित युवतियां सोहर गाने लगती हैं.सबसे पहले कौशल्या
की खबर ली जाती है,फिर सुमित्रा की......
काहे राम जिउ
सांवर लछिमन गोर हो
की दहु रानी कौउसिलहीं परिगा भोर हो |
राम अहहिं दशरथ
के लछिमन आनि क हो
भरत सत्रुहन भई
सिरी रघुनाथ क हो ||
(एक ही पिता
के पुत्र होकर राम सांवले क्यों हैं और लक्ष्मण गोरे क्यों हैं?कहीं दशरथ के धोखे
में कौशल्या से चूक तो नहीं हो गयी? अरे नहीं-नहीं ! राम तो दशरथ के ही पुत्र
हैं.लक्ष्मण संभव है – दूसरे के पुत्र हों ! भरत और शत्रुघ्न भी राम के भ्राता
हैं.)
अगले छंद में उपस्थित मां
के प्रति सोहर सुनकर रामलला के सकुचाने का मनोवैज्ञानिक चित्र है..........
गावहिं सब रनिवास देहिं
प्रभु गारी हो
रामलला सकुचाहिं देखि
महतारी हो |
नख काटने के बाद नायिता ने
राम के पैरों की अँगुलियों को जावक से चर्चित कर सूख जाने पर उन्हें पोंछ
दिया.नहछू संपन्न हो जाने पर नेग की बारी आयी.कवि ने इस अवसर पर नेग की प्रचुरता
और विपुलता का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है.अंत के दो छंद में मां कौशल्या की
प्रसन्नता और कृति की फलश्रुति का वर्णन हुआ है.
रामलला नहछू में रचना-काल
का वर्णन नहीं है.’गोसाईं चरित’ में लिखा है कि ‘पार्वती मंगल और ‘रामलला नहछू’ की
रचना एक साथ मिथिला में हुई.पार्वती मंगल में रचना-काल का वर्णन किया गया है.....
जय संवत् फागुन सुदि पांचै
गुरु दिन |
अस्विनी विरचेऊँ मंगल सुनि
सुख छिन-छिन ||
विशेषज्ञ ‘पार्वती मंगल’ का
रचना काल 1582 मानते हैं और गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 माना जाता
है.स्पष्ट है कि ‘रामलला नहछू’ कवि के तारूण्य का उद्गीत है,जिसमें एक ओर
अवस्थानुरूप सुलभ श्रृंगारप्रियता है और दूसरी ओर उनकी प्रकृति के अनुरूप
मर्यदावादिता का गंगा-जमुनी संगम है.नव-युवतियों के कोमल सौंदर्य में जो अभिरूचि कवि
ने इस कृति में दिखलायी है,वह उनकी अन्य कृतियों में दुर्लभ है.
‘रामलला नहछू’ के लघुकाय
होने के कारण रचनाकार को यद्यपि यह सुविधा नहीं थी कि ‘रामचरित मानस’ की भांति
बीच-बीच में पाठकों को स्मरण कराते कि राम सच्चिदानंद ब्रह्म हैं,फिर भी इस लोक गीत
में वे अपने उपास्य की लोकोत्तर महिमा का बोध कराना नहीं भूलते हैं........
जो पग नाउनि धोव
राम धोवावइं हो |
सो पगधूरि सिद्ध
मुनि दरसन पावइं हो ||
रामलला कर नहछू
इहि सुख गाइय हो |
जेहि गाए सिधि
होइ परम पद पाइय हो ||
रामलला नहछू की भाषा अवधी
है,'रामचरित मानस' की भांति साहित्यिक अवधी या 'विनय पत्रिका' की भांति संस्कृतनिष्ठ अवधी
नहीं,बल्कि 'पद्मावत' की भांति ठेठ ग्रामीण पूर्वी अवधी जो गोंडा और अयोध्या के
आसपास बोली जाती है.
सुंदर आलेख ।
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है। साधुवाद
ReplyDeleteसादर आभार !
ReplyDeleteइस सुंदर आलेख के लिये बधाई....नवछू विवाह के अवसरों पर स्त्रियों द्वारा गाया जानेवाला मंगलगीत है, संभवत इसकी रचना आनन्दोत्सव पर जनसाधारण के गाने के लिए की गयी हो..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और ज्ञानपूर्ण
ReplyDeleteअभी तक इस कृति का नाम केवल पढ़ा था . यहाँ उसके बिषय में इतनी अच्छी और दुर्लभ जान कारी देने के लिए आभार .
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख। तुलसीदास के विषय में अच्छी जानकारी हासिल हुई।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी देती आलेख ! आंचलिक भाषा के कारण अवध को छोड कर शायद इसका प्रचार नहीं हुआ है!
ReplyDeleteनहछू के बारे में जानकारी मिली, सुंदर आलेख.
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख. रामलला नहछू के बारे में जानने को मिला .. आपका धन्यवाद..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
रामलला नहछू के बारे में जानने को मिला ...जान कारी देने के लिए आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख राजीव जी ।
ReplyDeleteमुझे तो पता ही नहीं था की तुलसीदास जी ने कोई और रचना भी लिखी है ... आपके माध्यम से आज जानकारी भी मिली और कुछ पढने का सौभाग्य भी मिला ... सुन्दर आलेख ...
ReplyDeleteतुलसी के काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा है. जिस प्रकार नहछू के समय समाज के हर वर्ग की उपस्थिति को महत्ता दी जाती थी, आज के समाज में भी कमोबेश वह विद्यमान तो है लेकिन इस पर बाजारवाद जिस तरह से हावी होता जा रहा है, कुम्हार, दरजी, मल्लाह, नाई, लोहार, सुनार, डोम, आदि इस तरह के सामाजिक आयोजनों से कहीं न कहीं दूर होते जा रहे हैं. एक विद्वतापूर्ण पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद!
ReplyDeleteबिल्कुल सही विश्लेषण किया है,आपने.पहले के सामाजिक आयोजनों में विभिन्न तबके के लोगों की सहभागिता होती थी,जो धीरे-धीरे लुप्त होता गया.
Deletegyanwardhak aur anandmayi blog ke liye dhanyawaad..!!
ReplyDeleteavadh me gaari aur sohar ka anand kai dafe liya hai...pr aaka chitran sarahneeya hai.
नहछू दो शब्दों से बना है-नख और क्षुर.नहछू की रस्म में नायिता ससुराल जाने के लिए सजते समय दुल्हे के पैर से नख,नहनी से काटती है,इसके उपरांत उसके पांवों में महावर लगाती है.दूल्हा सजाने का आमंत्रण पाते ही पास-पड़ोस की स्त्रियां रस्म पूर्वक गालियों की बौछार करती हैं.मां के लिए अश्लील गालियां गाये जाने पर दूल्हे को लज्जा और संकोच की विचित्र प्रथमानुभूति होती है, जो थोड़ी ही देर में विनोद के ठहाकों में घुल जाती हैं.ज्ञानवर्धक पोस्ट लिखी है आपने श्री राजीव जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर एव ज्ञानवर्धक आलेख
ReplyDeleteरामलला नहछू में कितने छंद हैं ??
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