Monday, April 20, 2015

चम्मच नियरे राखिए....


आजकल आदमी से ज्यादा चर्चा चम्मचों की होती  है,कोई समझ नहीं पाता कि चमचे इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं कि उनकी सार्वजनिक रूप से चर्चा हो.शायद चम्मच शब्द से चमचा बना होगा.जब से हमें आधुनिक होने का भ्रम होने लगा,चम्मच हमारे जीवन में प्रवेश कर गया.डाईनिंग टेबल के साथ-साथ चम्मच हमारे जीवन में प्रवेश कर गया.इससे पहले तो हम पीढ़े या मोढ़े पर बैठकर खाना खाने के आदी रहे हैं.

चम्मच परिवार में कई भाई-बहन हैं.ज्यादातर चम्मच से बड़े हैं,उनकी चर्चा कभी नहीं होती.दरअसल उन भाई-बहनों का कार्य भोजन बनाने और टेबल पर सुव्यवस्थित करने का है.ये भाई-बहन कड़छा,बटलोई, खोंचा आदि हैं.इन्हें भोजन करने के काम में नहीं लेते.चम्मच ही ऐसा उपकरण है जो भोजन के समय काम में लाया जाता है.

चम्मच भी कई प्रकार के हैं.आजकल टेबल पर चम्मच का उपयोग तो होता ही है,बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों,बड़े अभिनेताओं,अधिकारियों और सुविधाभोगी वर्ग के अलावा अघोषित राष्ट्रीय खेल क्रिकेट में भी मनुष्य रूप चमचों का उपयोग होने लगा है और यही कारण है कि चमचों के मूल्य में भारी वृद्धि हुई है.चम्मच उपयोगिता और हैसियत के अनुसार रखे जाते हैं,वे स्टील के भी हो सकते हैं और चांदी के भी.

सोने के चम्मचों के जिक्र नहीं मिलता.यदि सोने के चम्मच होते तो उनकी चोरी के अनेक किस्से मिलते.चम्मच छोटे,बड़े,मध्यम आकार के हो सकते हैं,किन्तु उनकी बनावट और चरित्र में भी अंतर पाया जाता है,जो जब उपयोग में लाया जाए तभी महत्वपूर्ण होता है.चम्मच की अपनी कोई उपयोगिता नहीं होती.अवसर उनकी उपयोगिता का निर्धारण करता है.चम्मच चौड़े मुंह का,गोल,आड़ा कटा,तिरछा भी हो सकता है.चम्मच अवसर पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हैं.

यदि आप चिंतन करें तो पाते हैं कि चम्मच में बड़े-बड़े गुण हैं.चमचे आदमी के स्तर को सूचित करते हैं.सामान्य स्तर का आदमी एक सेट चमचे ही रखता है किंतु उच्च श्रेणी के राजनेता के असंख्य चमचे पाए जाते हैं.बड़े राजनेता के चमचे डायनिंग टेबल के साथ बदल जाते हैं.यह उसकी सुधा का सवाल है,किंतु राजनेता का स्तर हमेशा उसके उपलब्ध चमचों से नापा जाता है.

चमचे वह कार्य करते हैं जो कोई कर ही नहीं सकता.चमचे अपने चहेते व्यक्ति के हाथ में आकर उसके मुंह तक भोजन पहुंचाते हैं.चाहे वह रिश्वत खाएं या अन्न,चमचे उनके मुंह तक ले जाकर ही संतुष्ट होते हैं.वे अपने चहेते राजनेता या अधिकारी के हाथ गंदे नहीं होने देते.जमकर खाएं फिर भी कोई साक्ष्य न रहे इस बात की गारंटी चमचे ही देते हैं.इसलिए बदनामी का ठीकरा उन्हीं के सर फूटता है.

चम्मच सदा से ही निःस्वार्थ सेवा करते हैं.कितना ही गर्म मसाला हो वे अपना सर उसमें डाल देंगे और माल उठाकर मालिक तक पहुंचा देंगे.कभी उसमें हिस्सा नहीं मांगेंगे.वे कितने ही कष्ट उठाएं अपने मालिक के आगे कभी इसका उल्लेख नहीं करेंगे.

वे अपनी समस्त सफलताओं का अधिकारी अपने हितकारी को मानते हैं.स्वाद लेने का अधिकार चमचे को नहीं है,वह तो अपने आका को स्वाद पहुंचाने का कार्य करते हैं.चमचे इस मामले में मौन साधक हैं.वे अपने उल्लेखनीय कार्यों का कभी उल्लेख नहीं करते.

चमचे बड़े त्यागी होते हैं.वे अपना काम करने के बाद,कहीं भी रखिए,चुपचाप पड़े रहते हैं.वे कभी मांग पेश नहीं करते.वे भाग्य के भरोसे रहते हैं.बारह बरस में घूरे के दिन फिर जाते हैं पर उनके भी भाग्य फिरेंगे,यह उनका विश्वास रहता है.

ऐसा भी नहीं है कि चमचे मौन रहकर सब चुपचाप सहन करते हैं,इसलिए उनका कोई मूल्य नहीं है.चमचों को संभालकर रखना अपने आप में बड़ी जिम्मेवारी वाला काम है.जरा सी गफलत हुई और अच्छा-भला चमचा गायब.चम्मचों की सफाई,धुलाई का नित्य प्रतिदिन का कार्य होता है.समझदार व्यक्ति चमचों की धुलाई,सफाई कर न सिर्फ उन्हें चमकाता है,उन्हें ऊँचे स्थान पर स्थापित भी करता है.वे चमकते-दमकते, अच्छे स्थान पर काबिज  होकर चमचे रखने वाले की प्रतिष्ठा भी बढ़ाते हैं.

चमचे रखना एक गंभीर मामला है,यदि चमचा उचित स्थान पर स्थापित न किया जाय,उसके साफ़-सफाई एवं स्वच्छता पर ध्यान न दिया जाय तो वह चमचा खतरनाक सिद्ध हो सकता है,वह स्वास्थ्य बिगाड़ सकता है,उसे देखकर उसके आका की इज्जत दो कौड़ी की हो सकती है,वह भले ही कुछ बोले नहीं लेकिन उसका अबोला भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.

चमचे रखना साधारण आदमी का काम नहीं है.आम आदमी चमचों के प्रति उत्सुक तो रहता है,किंतु चमचा बनना पसंद नहीं करता.हर कोई चमचे के प्रति घृणा या मजाक की धारणा बनाए रखना दिखाता है पर कौन कब अनायास चम्मच धर्म निभाने लगता है,कोई नहीं जानता.बुद्धिहीन चमचे जब किसी बड़े आदमी के हाथ में पड़कर चमकते हैं तो अच्छे विचार करने लगते हैं कि काश ! हमें भी यह सौभाग्य मिलता.वीतरागी और वैराग्य धारण करने वाले भी आजकल चमचे रखने लगे हैं.चम्मच आधुनिक युग की आवश्यकता है,कह सकते हैं कि यह एक आवश्यक बुराई है.

Keywords खोजशब्द :- Value of Spoons,Yes Man Tradition

Thursday, April 9, 2015

इक हंसी सौ अफ़साने

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“आह ! तुम्हारे उजले दांतों के बीच फंसी दूब के साथ
वह हंसी आज भी मेरी नींद में गड़ती है.”

प्रसिद्ध कवि स्व. शमशेर बहादुर की यह पंक्तियाँ हमारे मानवीय जीवन के अन्तःस्थल में हंसी की परतें भले ही न खोलती हों,पर हंसी के भीतर छिपे प्रेम के आशय को जरूर प्रकट करती हैं,जो आदमी की नींद में भी दूब की तरह गड़ रही है.

आमतौर पर जब हम मुस्कुराते हैं उसका सामान्य आशय हम दुसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते हैं या प्रसन्न होते हैं.इसलिए सामान्य हंसी के पीछे छिपी होती है- हमारी प्रसन्नता.मसलन जब किसी किलकते हुए बच्चे को देखकर मां हंसती है,दो हमजोली बच्चे गेंद पाने पर एक साथ उछलकर हँसते हैं या जब हमारी कोई प्रिय चीज खो जाए और हम उसे बेतहाशा खोज रहे होते हैं,लेकिन कई दिनों के बाद वह अचानक मिल जाए तो हम अकेले ही प्रसन्न होकर हंस पड़ते हैं.

हंसी का सामान्य मनोविज्ञान तो यही है कि हमारे हंसने में दूसरे का शामिल होना जरूरी है.हम अकेले नहीं हंस सकते.हम प्रायः किसी दुखी व्यक्ति को यह कहता हुआ पाते हैं कि,उसकी हंसी महीनों से गायब है.पर हंसी का असामान्य पक्ष भी है और उसका आशय समझ पाना बेहद कठिन है.एक असामान्य मस्तिष्क का व्यक्ति अँधेरे में अकेले या भीड़ में सार्वजनिक रूप से हँसता दिखाई पड़ जाता है तो उसके असामान्य हंसी की वजह कुछ और है.

आज दुनियां में असामन्य हंसी के अध्ययन को लेकर कई मनोवैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं,लेकिन वे आज तक उन आसामान्य हंसी के अर्थ को आज तक नहीं समझ पाए.सामान्य हंसी का आशय यदि सहज प्रसन्नता है तो असामान्य हंसी का कारण प्रायः दुःख,दुविधा,द्वंद और भयानक अत्याचार हो सकते हैं. प्रायः देखा जाता है कि जब व्यक्ति बहुत बड़े दुःख और मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा होता है तब अपने दिल का हाल हंसकर बताता है.

यह भी विचार करना जरूरी है कि एक दुखी व्यक्ति को अपनी पीड़ा का बयान रोकर करना चाहिए या दुखी आहत स्वर में,पर उसकी जगह वह हंसी को चुनता है.वह हंसी को इसलिए चुनता है कि दुःख को बयान करने के सारे शब्द अपर्याप्त लगते हैं,तब वह हँसते हुए हलके-फुल्के शब्दों से खेल करता है. दरअसल इस हंसी के पीछे एक बड़ा दुःख रिसता हुआ व्यक्ति की वाणी में हंसी का ज्वार छोड़ता है.  

हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े शोमैन स्व. राज कपूर की प्रसिद्ध फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की याद हम सबको है.उस फिल्म का मुख्य पात्र  जिंदगी की ‘सर्कस’ का ‘जोकर’ है.जब भी उसके जीवन में विडंबना और ट्रेजेडी के मोड़ दिखाई पड़ते हैं,तब वह ठहाका मारकर हंस पड़ता है.पूरी फिल्म में जोकर के बहाने राजकपूर की हंसी किसी रबाब की तरह बजती रहती है.पर जब उसे अकेलापन घेरता है तब वह खामोश हो जाता है.उस जोकर की हंसी में जिंदगी की अनेक दगाबाज ट्रेजडियां हैं,जिसे भुलाकर वह हमेशा हंसने का अभिनय करता है.

नाटक मंडलियों में जोकर को हमेशा हँसते,मजाक करते,दूसरों को हंसाते हुए पाते हैं.पर उस मजाकिए हंसोड़ और मुंहफट जोकर की जिंदगी में झांकें तो पाते हैं कि वह अपने सीने में कितने गम छिपाए हुए है जिसे दबाकर वह जिंदगी के नाटक में एक विवश कथानक बनकर मंच पर हंस रहा होता है.पर उसकी हंसी के भीतर छिपा है - अथाह दुःख भरा सैलाब और सन्नाटा.

प्रसिद्ध इजराइली संत जरथुस्त्र ने अपने एक शिष्य से कहा था कि – “मुस्कुराना किसे बुरा लगता है किंतु बेवजह मुस्कुराना आपकी संस्कृति के खिलाफ जाता है.” मुस्कुराना तभी न्यायसंगत है जब आपकी मुस्कराहट का प्रभाव दूसरे के अंतर्मन में बैठ जाय.मुस्कान तो आत्मविश्वास की की कुंजी है जिससे समस्याओं के बड़े से बड़े भवन सामान्यतः खुल जाते हैं.

प्रसिद्ध हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन के बारे में कहा जाता है कि वे दुनियां के बेजोड़ हास्य अभिनेता थे.उनके अभिनय में हंसी के फव्वारे या फुलझड़ियाँ ही नहीं फूटती थी बल्कि उनके अभिनय में व्यंग्य और विडंबना का समुद्र हिलोरें मारता था.एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि दरअसल मेरी हंसी के पीछे छिपी होती है मेरी जिंदगी की असफलताएं.मैं अपने हंसी भरे अभिनय में अपनी असफलता को छिपाने की कोशिश करता हूँ.मुझे संतोष है कि मेरी असफलता को छिपाने की कला आज तक दर्शक नहीं जान पाए.

चार्ली चैपलिन के इस वक्तव्य में यह आशय छिपा है कि जिंदगी के मंच पर जो खूब हंसता दिखता है,वह रोता हुआ नेपथ्य में ओझल हो जाता है.प्रसिद्ध कवि और नाटककार ब्रेख्त ने अपनी एक कविता में कहा था कि ‘जो लोग हंस रहे हैं उन्हें अभी भयानक खबर सुनायी नहीं गयी है.’

अक्सर जब हम दुःख और अवसाद में डूबे आदमी की असामान्य हंसी सुनते हैं तो ताड़ जाते हैं और पूछते हैं कि,क्या बात है? और वह मुंह फेरते हुए जवाब देता है,कुछ नहीं......हम देर तक उसके अधूरे वाक्य का पीछा करते हैं और उसकी हंसी के पीछे दुःख को पकड़ने की कोशिश करते हैं.

जैसे-जैसे जमाना बदल रहा है मनुष्य के स्वभाव में भी काफी परिवर्तन आ रहा है.अक्सर महानगरों में रहने वाले लोगों के बारे में धारणा है कि शहर के लोग हँसते कम हैं.कई बड़े लोग सार्वजनिक रूप से हंसना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं.आम जनजीवन में बेवजह हंसना मूर्खता का प्रतीक भी है और कई जगह उसे आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना गया है.

हंसी के समानांतर मुस्कान सुंदरता का एक अनिवार्य उपकरण हो गया है.उपभोक्तावादी संस्कृति में यह व्यवसाय के रूप में उभर रहा है.विश्व के सौन्दर्य और मुस्कान की चर्चा जब भी होती है तो मोनालिसा की मुस्कान को अप्रतिम माना जाता है.

किसी शायर ने वाजिब ही कहा है .......

खामोश बैठें तो कहते हैं इतनी उदासी अच्छी नहीं 
जरा हंस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं 

Thursday, April 2, 2015

रुके रुके से कदम

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मखमूर देहलवी ने  खूब कहा है.....

एक न एक दिन अपनी मंजिल पर पहुँच लेंगे जरूर
जो कदम उठाते हैं आसानी से मुश्किल की तरफ

कदम तो मंजिल की तरफ सभी उठा लेते हैं लेकिन मंजिल तक पहुंचने का सब में माद्दा नहीं होता.मंजिल तक पहुंचने में कई बाधाएं आती हैं लेकिन जो डटे रहते हैं वे जरूर पहुँचते हैं.सफलता आसानी से नहीं मिलती.

असफलता के नाम से हम सभी डरते हैं.सफलता,समृद्धि तभी मिलती है,जब उसके बारे में सोचते हैं.जो व्यक्ति सिर्फ असफलता की बात सोचता है,सफलता उसके बस का रोग नहीं.सफल चिंतन को ही सफलता का वरदान प्राप्त है.बुरी घटनाओं,बुरी बातों से हमेशा ग्रस्त रहना अज्ञानता है.हमारा मन बहुत जल्दी भयभीत हो जाता है.इसे मन से दूर फेंकने का एक ही रास्ता है कि हम सकारात्मक सोचें.हम चिंतन करें,चिंता नहीं.

जीवन के सफ़र में बहुत से साथी मिलते हैं.कुछ मिलते हैं,जिन्हें दो पल याद रखते हैं.कुछ साथी कुछ दिन याद रहते हैं.फिर उनकी छवि धूमिल पड़ने लगती है.यादों की धुरी में आदर्श या प्रेरणा को संयोग से व्यक्ति बहुत कम अनुभव कर पाते हैं.

कभी-कभी एक साधारण सा व्यक्ति अपनी बातों,अपने काम,और अपने व्यक्तित्व से दूसरों को इस हद तक प्रभावित कर देता है कि अनजाने में ही वह प्ररणा बन जाता है.व्यक्तित्व केवल शारीर का उपरी,उसका बोलना,चलना,उठना,बैठना इन सबके साथ-साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए जरूरी है उसका संबंध,उसके विचारों,उसके मन और उसके भीतर छिपी शक्तियों से है.कई बार हममें आत्मविश्वास की कमी के कारण अपने सामर्थ्य पर ही भरोसा नहीं हो पाता.

अपने भीतर जब झांकते हैं तो सबसे पहले चिंता और भय की आवाज सुनाई देती है.पूरा शरीर इसी से त्रस्त दीखता है.असफलता के नाम से हम डरते हैं.आज के प्रतियोगी युग ने मनुष्य को उपहार ने निराशा दी है.मन के भीतर किसी कोने में दुबकी ये निराशा मन पर बार-बार चोट करती है.सजे सुन्दर कमरों में बैठा निराशा से ग्रस्त थका-हारा मानव बहुत जल्दी टूटने लगा है.हम अपने ही विचारों से डर गए हैं.आशा एक सशक्त चुंबक है और वह अभ्यास से प्राप्त होती है.यह हमारी सबसे बड़ी पूंजी है.

आशा का दीपक पथ प्रशस्त करता है.आशा बनी रहे,इसलिए स्वामी विवेकानंद के विचार बहुत सुंदर हैं,”वह बात मन में ही न लाओ,जो तुम व्यक्त नहीं करना चाहते.”

सुख-सुविधाओं से पूर्ण आराम का जीवन सभी को प्यारा होता है.अपने लक्ष्य को पाने के लिए जब प्रयत्न करते हैं,तब अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग संपर्क में आते हैं,जो लोग हमारी बुराई करते हैं,उनसे हम दूर रहना चाहते हैं.यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है.यदि हमें अपने आपको तराशना है,तो अपनी गलतियों को सुनिए,समझिए और चिंतन करिए ताकि आप मुक्ति पा सकें.

आज के मशीनी युग ने मनुष्य को यंत्रवत जीवन जीना सिखा दिया है.करुणा,दया,प्रेम,क्षमा ये सब नाम मात्र के लिए रह गई हैं.आज का चतुर मनुष्य समय के महत्त्व को पहचान चतुरता से धन कमाने की बात सोचने लगा है.सुख-दु:ख आपके अपने भीतर हैं.

हमारे मन की जो स्थिति होती है,हम हर एक चीज को उसी के रंग में रंग लेते हैं.हमारे मन के भाव सुंदर हैं तो चीज भी सुंदर है और हमारी मनस्थिति असुंदर तो चीज भी असुंदर जान पड़ती है.हमें अपने लक्ष्य की और बढ़ना है,पर यंत्रवत नहीं बल्कि अपने भीतर छोटी-छोटी खुशियों को समेटकर आगे बढ़ें.

व्यक्तित्व को उभरने के लिए आत्मविश्वास साहस का पर्याय है.मनुष्य की महानता साहस से मापी जाती है.शेक्सपियर ने कहा है कि,’साहस अवसर पहचानता है.’ हर रात सोने से पहले यह सोचें कि ‘मैं कर सकता हूँ और करूंगा.’ आत्मविश्वास से साहस की भावना पढ़ती है.लड़खड़ाते क़दमों से मंजिल तय नहीं की जा सकती है.कार्लाइल का कहना है कि ‘अपने काम को समझो और फिर दानव की तरह उस पर पिल पड़ो.’अपने आप जब अपने मन से बातें करते हैं तो शरीर के सेलों से घृणा,झूठ की बात न करके श्रेष्ठ भावना की बात करें.

मकड़ी के जालों की तरह विचार हमारे चारों ओर मंडराते हैं.अपने आपको प्रधानता देने के लिए बार-बार हमारी सोच अपने आप पर केंद्रित हो जाती है.दिन भर में ढेर सारे सही-गलत कार्यों को करने के बाद आत्मचिंतन जरूरी है.आदर्शों के विरुद्ध कोई भी काम करने पर मन में अंतर्द्वंद च्क्ल्ता रहता है.इससे बाहर निकलने के लिए जरूरी है कि अपनी गलती को स्वीकार कर आगे बढ़ने का प्रयास किया जाय.

अपने भीतर जो भी सृजन का अंकुर फूटा है,उसे दबाएं नहीं.कला,चित्रकारी,लेखन,कविता जिस भी रूप में धारा प्रवाहित हो उसे बहने देना ही उचित है.हम स्वयं ही पहचान सकते हैं कि कला का कौन सा कोना अपने मन को छूता है.जीवन अमूल्य है,समय की गति के साथ अपनी रचनात्मक क्षमता को पहचानना चाहिए.

Keywords खोजशब्द :- Key to Positive Thinking,Creativity