“आह ! तुम्हारे
उजले दांतों के बीच फंसी दूब के साथ
वह हंसी आज भी
मेरी नींद में गड़ती है.”
प्रसिद्ध कवि स्व. शमशेर बहादुर की यह पंक्तियाँ हमारे मानवीय जीवन के अन्तःस्थल में हंसी
की परतें भले ही न खोलती हों,पर हंसी के भीतर छिपे प्रेम के आशय को जरूर प्रकट
करती हैं,जो आदमी की नींद में भी दूब की तरह गड़ रही है.
आमतौर पर जब हम मुस्कुराते
हैं उसका सामान्य आशय हम दुसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते हैं या प्रसन्न होते
हैं.इसलिए सामान्य हंसी के पीछे छिपी होती है- हमारी प्रसन्नता.मसलन जब किसी
किलकते हुए बच्चे को देखकर मां हंसती है,दो हमजोली बच्चे गेंद पाने पर एक साथ उछलकर
हँसते हैं या जब हमारी कोई प्रिय चीज खो जाए और हम उसे बेतहाशा खोज रहे होते
हैं,लेकिन कई दिनों के बाद वह अचानक मिल जाए तो हम अकेले ही प्रसन्न होकर हंस पड़ते
हैं.
हंसी का सामान्य मनोविज्ञान
तो यही है कि हमारे हंसने में दूसरे का शामिल होना जरूरी है.हम अकेले नहीं हंस
सकते.हम प्रायः किसी दुखी व्यक्ति को यह कहता हुआ पाते हैं कि,उसकी हंसी महीनों से
गायब है.पर हंसी का असामान्य पक्ष भी है और उसका आशय समझ पाना बेहद कठिन है.एक
असामान्य मस्तिष्क का व्यक्ति अँधेरे में अकेले या भीड़ में सार्वजनिक रूप से हँसता
दिखाई पड़ जाता है तो उसके असामान्य हंसी की वजह कुछ और है.
आज दुनियां में असामन्य
हंसी के अध्ययन को लेकर कई मनोवैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं,लेकिन वे आज तक उन
आसामान्य हंसी के अर्थ को आज तक नहीं समझ पाए.सामान्य हंसी का आशय यदि सहज
प्रसन्नता है तो असामान्य हंसी का कारण प्रायः दुःख,दुविधा,द्वंद और भयानक अत्याचार
हो सकते हैं. प्रायः देखा जाता है कि जब व्यक्ति बहुत बड़े दुःख और मानसिक यंत्रणा
से गुजर रहा होता है तब अपने दिल का हाल हंसकर बताता है.
यह भी विचार करना जरूरी है
कि एक दुखी व्यक्ति को अपनी पीड़ा का बयान रोकर करना चाहिए या दुखी आहत स्वर
में,पर उसकी जगह वह हंसी को चुनता है.वह हंसी को इसलिए चुनता है कि दुःख को बयान
करने के सारे शब्द अपर्याप्त लगते हैं,तब वह हँसते हुए हलके-फुल्के शब्दों से खेल
करता है. दरअसल इस हंसी के पीछे एक बड़ा दुःख रिसता हुआ व्यक्ति की वाणी में हंसी का
ज्वार छोड़ता है.
हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े शोमैन
स्व. राज कपूर की प्रसिद्ध फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की याद हम सबको है.उस फिल्म का
मुख्य पात्र जिंदगी की ‘सर्कस’ का ‘जोकर’ है.जब भी उसके जीवन में विडंबना और
ट्रेजेडी के मोड़ दिखाई पड़ते हैं,तब वह ठहाका मारकर हंस पड़ता है.पूरी फिल्म में
जोकर के बहाने राजकपूर की हंसी किसी रबाब की तरह बजती रहती है.पर जब उसे अकेलापन
घेरता है तब वह खामोश हो जाता है.उस जोकर की हंसी में जिंदगी की अनेक दगाबाज ट्रेजडियां
हैं,जिसे भुलाकर वह हमेशा हंसने का अभिनय करता है.
नाटक मंडलियों में जोकर को
हमेशा हँसते,मजाक करते,दूसरों को हंसाते हुए पाते हैं.पर उस मजाकिए हंसोड़ और
मुंहफट जोकर की जिंदगी में झांकें तो पाते हैं कि वह अपने सीने में कितने गम छिपाए हुए है जिसे
दबाकर वह जिंदगी के नाटक में एक विवश कथानक बनकर मंच पर हंस रहा होता है.पर उसकी
हंसी के भीतर छिपा है - अथाह दुःख भरा सैलाब और सन्नाटा.
प्रसिद्ध इजराइली संत जरथुस्त्र ने अपने एक शिष्य से कहा था कि – “मुस्कुराना किसे बुरा लगता है किंतु बेवजह मुस्कुराना आपकी
संस्कृति के खिलाफ जाता है.” मुस्कुराना तभी न्यायसंगत है जब आपकी
मुस्कराहट का प्रभाव दूसरे के अंतर्मन में बैठ जाय.मुस्कान तो आत्मविश्वास की की
कुंजी है जिससे समस्याओं के बड़े से बड़े भवन सामान्यतः खुल जाते हैं.
प्रसिद्ध हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन के बारे में कहा जाता है कि वे दुनियां के बेजोड़ हास्य अभिनेता थे.उनके अभिनय में हंसी के फव्वारे या फुलझड़ियाँ ही नहीं फूटती थी बल्कि उनके अभिनय में व्यंग्य और विडंबना का समुद्र हिलोरें मारता था.एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि दरअसल मेरी हंसी के पीछे छिपी होती है मेरी जिंदगी की असफलताएं.मैं अपने हंसी भरे अभिनय में अपनी असफलता को छिपाने की कोशिश करता हूँ.मुझे संतोष है कि मेरी असफलता को छिपाने की कला आज तक दर्शक नहीं जान पाए.
चार्ली चैपलिन के इस
वक्तव्य में यह आशय छिपा है कि जिंदगी के मंच पर जो खूब हंसता दिखता है,वह रोता
हुआ नेपथ्य में ओझल हो जाता है.प्रसिद्ध कवि और नाटककार ब्रेख्त ने अपनी एक कविता में
कहा था कि ‘जो लोग हंस रहे हैं उन्हें अभी भयानक खबर सुनायी नहीं गयी है.’
अक्सर जब
हम दुःख और अवसाद में डूबे आदमी की असामान्य हंसी सुनते हैं तो ताड़ जाते हैं और
पूछते हैं कि,क्या बात है? और वह मुंह फेरते हुए जवाब देता है,कुछ नहीं......हम देर
तक उसके अधूरे वाक्य का पीछा करते हैं और उसकी हंसी के पीछे दुःख को पकड़ने की
कोशिश करते हैं.
जैसे-जैसे जमाना बदल रहा है
मनुष्य के स्वभाव में भी काफी परिवर्तन आ रहा है.अक्सर महानगरों में रहने वाले
लोगों के बारे में धारणा है कि शहर के लोग हँसते कम हैं.कई बड़े लोग सार्वजनिक रूप
से हंसना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं.आम जनजीवन में बेवजह हंसना मूर्खता
का प्रतीक भी है और कई जगह उसे आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद स्वास्थ्य के लिए
उपयोगी माना गया है.
हंसी के समानांतर मुस्कान
सुंदरता का एक अनिवार्य उपकरण हो गया है.उपभोक्तावादी संस्कृति में यह व्यवसाय के
रूप में उभर रहा है.विश्व के सौन्दर्य और मुस्कान की चर्चा जब भी होती है तो
मोनालिसा की मुस्कान को अप्रतिम माना जाता है.
किसी शायर ने वाजिब ही कहा है .......
खामोश बैठें तो कहते हैं इतनी उदासी अच्छी नहीं
जरा हंस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं
खामोश बैठें तो कहते हैं इतनी उदासी अच्छी नहीं
जरा हंस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं
सुंदर आलेख :)
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeletelovely lines...
ReplyDeleteआनद में रहें . हँसे दिल खोलकर परन्तु प्रस्थितियों को ख्याल में रखें. सुंदर आलेख.
ReplyDeleteBadhiya Post :)
ReplyDeletebahut badhiya ...
ReplyDeleteसे-जैसे जमाना बदल रहा है मनुष्य के स्वभाव में भी काफी परिवर्तन आ रहा है.अक्सर महानगरों में रहने वाले लोगों के बारे में धारणा है कि शहर के लोग हँसते कम हैं.कई बड़े लोग सार्वजनिक रूप से हंसना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं.आम जनजीवन में बेवजह हंसना मूर्खता का प्रतीक भी है और कई जगह उसे आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना गया है.लोगों को मजबूरन हसाने के लिए टेलीविज़न पर कार्यक्रमों की बाढ़ भी इसी जरुरत का हिस्सा बन गयी है ! विस्तृत आलेख लिखा है आपने श्री राजीव जी ! एक अलग और विशिष्ट विषय
ReplyDeleteसादर आभार.
ReplyDeleteजिंदगी के मंच पर जो खूब हंसता दिखता है,वह रोता हुआ नेपथ्य में ओझल हो जाता है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
सार्थक आलेख ! एक मुस्कान के पीछे कितना सुख है या कितना दुःख है इसका आकलन कर पाना आसान नहीं होता ! मुस्कुराने वाला कितना कुशल अभिनेता है इस बात पर निर्भर करता है !
ReplyDeleteकई बार हँसी संतुलन करती है दर्द का....
ReplyDeleteहँसी के कई आयाम समेटे!
मैंने सुना है कि हंसी के पीछे बहुत बड़ा दर्द छुपा होता है,बढ़िया आर्टिकल
ReplyDeleteBahut sundar likha hai!
ReplyDeleteBahut hi sundar prastuti.
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
kitni sarthak abhiwyakti.....
ReplyDeleteदुःख का एहसास हंसी आसानी से कह देती है ... इसके अलावा भी बहुत कुछ है जो हंसी अपने आप ही कह देती है ... जेरूरत पढने वाले की होती है बस ... बहुत ही आच्छा आलेख है ...
ReplyDeleteगुड जॉब सर,
ReplyDeleteहमेशा हसते रहना चाहिए और दुसरो को हसाते रखना चाहिए,
हँसने से जिंदगी बढती हैं .keep it up going on
धन्यवाद
खामोश बैठें तो कहते हैं इतनी उदासी अच्छी नहीं
ReplyDeleteजरा हंस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं
हंसी के देखने को विविध दृष्टिकोण....सुंदर प्रस्तुति।
पता नही इंडिया की मीडिया जनता को क्यो नही बताना चाहती की लोक सभा संसद देश का काला क़ानून नही बदल सकती क्योकि लोक सभा संसद का पास किया हूआ कभी लागू नही हूआ इस लिए लागू नही हूआ क्योकि जो जनता के नही चुनी हूई राज्य सभा संसद ही क़ानून बदल बदल सकती हे अभी मोजूदा सरकार के पास राज्य सभा मे बहुमत नही हे पता नही मीडिया क्या दिखना चाहती हे क्या 65 साल मे जो कुछ हूआ उसको बरकरार रखना चाहती हे क्या मीडिया 65 साल के बाद जो दल बाहूमत मे आया उसको राज्य सभा मे नही लाना चाहता मीडिया एक घंटे के प्रसारण मे जो दल बहूमत मे हे उसके सामने 60 साल राज वाले दल के समर्थन वाले दल को बहस के लिए विराजमान करता ह मीडिया का तरीका जायज़ हे क्या
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