लोदी गार्डन में सिकंदर लोदी का मकबरा |
कहते हैं कि अपने
इल्म,रूप,सौंदर्य पर कभी इतराना नहीं चाहिए,यही कभी आपकी मुसीबत का वाइस बन सकता
है.इतिहास के अनेक पन्ने इस तरह की गाथाओं से भरे पड़े हैं.दिल्ली के 90 एकड़ में
फैले लोदी गार्डन में मोहम्मद शाह का मकबरा,शीश गुंबद और बड़ा गुंबद है जिसे आर्कियोलोजिकल सोसायटी ऑफ़ इंडिया द्वारा संरक्षित किया गया है.इसी में एक अजीम सुल्तान का मकबरा है जो अपने अप्रतिम सौंदर्य के लिए
विख्यात था.
सुल्तान सिकंदर लोदी अपने अद्वितीय सौंदर्य के लिए बहुत प्रसिद्ध था.जो भी उसे देखता,उसके रूप पर मुग्ध हो जाता.उन्हीं दिनों एक फ़क़ीर शेख हसन भी अपनी मस्ती में घूमा करता.वह प्रसिद्ध फ़क़ीर अबुलाला का पोता था.अबुलाला एक पहुंचा हुआ पीर था.उसकी मजार पर हर धर्म के लोग मन्नत मांगने आया करते थे.
एक दिन अचानक शेख हसन ने
सिकंदर लोदी को देख लिया.उस दिन के बाद से हर समय शेख हसन सिकंदर लोदी की याद में
खोया रहता.खुदा को याद करने के बदले वह हर समय सिकंदर लोदी को याद करता और सुल्तान का प्रारंभिक नाम निजाम खां बार-बार
दोहराता.
एक बार शेख हसन निजाम खां
से मिलने चल ही पड़ा.पहरेदारों ने शेख हसन को बहुत अदब के साथ रास्ता दे
दिया.सर्दियों के दिन थे.सुल्तान अपने निजी कमरे में बैठा हुआ था.वह सुल्तान को
अपलक निहारने लगा,अचानक सुल्तान की नजर उस पर पड़ी.
सुल्तान ने हैरानी से पुछा,’कौन
हो तुम? इतने पहरेदारों के रहते तुम यहां कैसे पहुंच गए?’
फ़क़ीर बोला’मैं तुम्हारा
आशिक हूं.तुम्हारी खूबसूरती देखने आ गया हूं.’ अच्छा ! तो तुम मुझसे इश्क करते हो
?’ सुलतान ने क्रूरता से पूछा.
‘हां मैं तुमसे इश्क करता
हूं और खुद को रोक नहीं पाया हूं.’
‘तो थोड़ा आगे आ जाओ.’
फ़क़ीर के आगे आते ही सुल्तान
ने उसके सिर पर हाथ रख उसके सिर को पास सुलगती हुई अंगीठी पर झुकाकर टिका
दिया.इतने में वहां एक अमीर मुबारक खां लोहानी आ गया.उसने शेख हसन को पहचान लिया
और सुल्तान से बोला, ”आपको खुदा का डर नहीं है क्या? इतने पवित्र आदमी से ऐसा
व्यवहार कर रहे हैं.’
सुल्तान क्रूरता से बोला,’यह
अपने आपको मेरा आशिक कहता है.’ मुबारक खान बोला,’फिर तो आपको अपनी खुशकिस्मती
समझना चाहिए कि ऐसा पवित्र आदमी तुम्हें खूबसूरत मानता है.अब उठाओ इसका सर आग से.’
शेख हसन का चेहरा देखते ही
सभी लोग आश्चर्य चकित रह गए.आग की लपटों ने उसके चेहरों या बालों पर कुछ भी असर
नहीं किया था.
सुल्तान को अब भी चैन नहीं
आया था.उसने शेख हसन को जंजीरों में जकड़ कर तहखाने में डलवा दिया.एक हफ्ते बाद सुल्तान
को खबर मिली कि फ़क़ीर तो बाजार में नाच रहा है.सुल्तान ने स्वयं इस बात की जांच
की.जब कुछ भी समझ नहीं आया तो उसने शेख हसन को बुलवाया और पूछा कि तुम काल कोठरी
से बाहर कैसे निकल गए?
शेख हसन बोला,मुझे मेरे
दादा की रूह कैदखाने से बाहर निकाल लायी.इसके बाद सुलतान ने शेख हसन का बहुत
सम्मान किया और अल्लाह का शुक्र अदा किया कि उससे ज्यादा गलत काम नहीं हुआ.
सिकंदर लोदी ने अंत तक दाढ़ी
नहीं रखी.दरअसल उसकी दाढ़ी उगती ही नहीं थी.एक बार हाजी अब्दुल बहाब ने सिकंदर लोदी
से दाढ़ी नहीं रखने की वजह पूछा.सुल्तान ने वजह बताया तो पहुंचे हुए फ़क़ीर हाजी ने
कहा,लाओ अपना चेहरा.मेरे हाथ घुमाते ही तुम्हारे चेहरे पर इतनी अच्छी दाढ़ी उग आएगी
कि सारी दुनियां की दाढ़ियां तुम्हें सलाम ठोकेंगी.
सिकंदर लोदी तिलमिला कर रह
गया.हाजी के जाते ही उसने हाजी के बारे में काफी अपमानजनक शब्द कहे.किसी ने यह बात
हाजी तक पहुंचा दी.हाजी ने सिकंदर लोदी को श्राप दिया,उसके मेरे प्रति अपमानजनक
शब्द अपने ही गले में चिपक जाएंगे.
और सचमुच उसी दिन से सिकंदर लोदी को गले का रोग हो गया.उसका अंत भी इसी रोग से हुआ.