महाभारत का सबसे
उपेक्षित,लांछित और बदनाम पात्र दुर्योधन है.उसे खलनायक कहा गया है.किंतु सत्य तो
यही है कि महाभारत की संपूर्ण कथा के केंद्र में जितना वह है,उतना कोई अन्य पात्र
नहीं.यदि उसे कथा से निकाल दिया जाय तो महाभारत का आधार ही नष्ट हो जाता है.
हमारे काव्यशास्त्र की ही
नहीं,मानव स्वभाव की यही प्रवृत्ति है कि स्तुति-गान विजेता का हो,पराजित का
नहीं.और फिर विजेता को नायक बनाकर धीरोदात्तता के जितने काव्यशास्त्रीय लक्षण
हैं,वे उस पर आरोपित कर दिए जाएं.वरना ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ के स्थान पर संसार की
गति तो यही है कि जहां जय है वहीँ धर्म है.इसी न्याय के अनुसार पांडवों को धर्म का
पक्षधर और कौरवों को अधर्म का पक्षधर माना जाता है.
दुर्योधन का अर्थ है – बड़ा कठिन
योद्धा.’दुः’ उपसर्ग का इसी अर्थ में प्रयोग दुर्गम,दुर्लभ,दुरारोह आदि शब्दों में
होता है.महाभारत में दुर्योधन की भूमिका और उसके कृत्य के कारण वह हिकारत का पात्र
ही रहा है.उसकी पूजा- स्थली के बारे में सोचना भी आश्चर्यजनक लगता है.
लेकिन हमारे देश में एक ऐसा
भी स्थान है जहां पर महाभारत के खल-पुरुष दुर्योधन का मंदिर है.वहां उसकी भगवान के
रूप में बड़ी भक्ति-भाव से पूजा भी की जाती है.महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के करजत
तहसील के अंतर्गत दुरगांव एक छोटा सा गांव है.इसी गांव के एक छोर पर एक मंदिर
है,जिसे दुर्योधन भगवान का मंदिर कहा जाता है.इस क्षेत्र के लोगों की भगवान
दुर्योधन के प्रति अटूट आस्था है.उनका विश्वास है कि वे उनकी मनोकामनाएं बहुत ही
जल्दी पूर्ण करते हैं.
प्रत्येक सात वर्ष के बाद
आने वाले अधिक मास में यहां पर बहुत बड़ा मेला लगता है.संपूर्ण भारत में दुर्योधन
की मूर्ति वाला यह एकमात्र मंदिर है.दुरगांव का पत्थरों द्वारा निर्मित यह मंदिर
एक चबूतरे पर बना हुआ है.इस मंदिर की रचना हेमाड़पंथी मंदिरों के समान है.मंदिर के
गर्भगृह में दो शिवलिंग हैं.एक शिवलिंग का आकर गोलाकार है तथा दूसरा शिवलिंग
चौकोना है.
मंदिर के ऊपरवाले भाग में
दुर्योधन की बैठी हुई अवस्था में मूर्ति विराजमान है.पत्थर की बनी यह मूर्ति दो
फुट ऊँची है और इस मूर्ति पर चूना पुता हुआ है तथा वह तैल रंगों से रंगी हुई
है.मूर्ति का मुंह पूर्व दक्षिण दिशा की ओर है तथा प्रवेश द्वार पूर्व की ओर
है.इसका शिखर काफी ऊँचा है.अनुमान है कि इस मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में
हुआ होगा.लेकिन यह मंदिर किसने बनवाया तथा क्यों बनवाया,इस बारे में कोई ठोस
जानकारी उपलब्ध नहीं है.
आमतौर पर देवी-देवताओं के
मंदिरों के प्रवेश द्वार रात्रि में ही बंद रहते हैं,लेकिन इस मंदिर की परंपरा ही
कुछ अलग है.इसका प्रवेश-द्वार बरसात के पूरे चार माह तक बंद रहता है.बरसात के
प्रारंभ में ही यह प्रवेश-द्वार ईट-पत्थरों से बंद कर दिया जाता है और बरसात का
मौसम समाप्त होने के बाद फिर से खोल दिया जाता है.इस तरह भगवान दुर्योधन चार माह
कैद रहते हैं.
मंदिर के चार महीने इस
प्रकार बंद रहने की परंपरा के बारे में मान्यता यह है कि युद्ध में पांडवों से
पराजित होने के बाद दुर्योधन ने अपनी जान बचाने के लिए एक तालाब का आश्रय लिया
था.लेकिन तालाब के जल ने दुर्योधन को आश्रय नहीं दिया.परिणामस्वरूप दुर्योधन को
मजबूर होकर तालाब से बाहर आना पड़ा.तालाब के इस कृत्य पर दुर्योधन को बहुत गुस्सा
आया,जो अभी तक नहीं उतरा है.जलवाहक बादलों को देखकर उन्हें आज भी क्रोध आ जाता है.उनकी क्रोधित आंखें देखकर जलवाहक बादल इस क्षेत्र में बिना बरसे ही भाग जाते
हैं.दुर्योधन की दृष्टि इन बादलों पर न पड़े,इसलिए एक मंदिर का प्रवेश-द्वार बरसात
के मौसम में बंद रखा जाता है,ताकि इस क्षेत्र में भरपूर वर्षा हो.
दुर्योधन का मंदिर यहां पर क्यूं बनवाया गया,जबकि ऐतिहासिक या पौराणिक दृष्टि से इस स्थान का दुर्योधन के साथ कोई
संबंध नहीं है.यह भी कहा जाता है कि दुर्योधन ने इसी स्थान पर भगवान शंकर की
आराधना की थी.भगवान शंकर ने दुर्योधन को जो वरदान दिया वह पार्वती को अच्छा नहीं
लगा और वह अपने पति से रूठकर रासीन के जंगल में चली गयीं.आज भी वह इसी जंगल में
यमाई देवी के नाम से विद्यमान हैं.
आगे चलकर दुर्योधन का पराभव
हुआ और महाभारत के युद्ध में भीम के हाथों पूर्ण रूप से परास्त हुआ.उसने अपने
अंतिम समय में भगवान शंकर का ध्यान किया.इसलिए भगवान ने दुर्योधन को अपने यहां शरण
दी.यही कारण है कि भगवान शंकर के मंदिर में ही दुर्योधन को भी विराजमान किया गया.
यह भी कहा जाता है कि बिहार
तथा उड़ीसा की कुछ जनजातियां दुर्योधन को भगवान मानती हैं.दुरगांव में किसी विशेष
जाति के लोग भी नहीं रहते,मराठा तथा बंजारी जाति के लोग यहां पर रहते हैं,लेकिन
इनमें दुर्योधन की पूजा प्रचलित नहीं है.
दुरगांव जैसे गांव में
दुर्योधन का मंदिर पाया जाना तथा दुर्योधन को भगवान के रूप में स्वीकार करना अवश्य
ही आश्चर्यजनक है.
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (15.05.2015) को "दिल खोलकर हँसिए"(चर्चा अंक-1976) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteसादर आभार.
Deleteकुछ नया जानने को मिला - अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeleteलेकिन हमारे देश में एक ऐसा भी स्थान है जहां पर महाभारत के खल-पुरुष दुर्योधन का मंदिर है.वहां उसकी भगवान के रूप में बड़ी भक्ति-भाव से पूजा भी की जाती है.महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के करजत तहसील के अंतर्गत दुरगांव एक छोटा सा गांव है.इसी गांव के एक छोर पर एक मंदिर है,जिसे दुर्योधन भगवान का मंदिर कहा जाता है.इस क्षेत्र के लोगों की भगवान दुर्योधन के प्रति अटूट आस्था है.उनका विश्वास है कि वे उनकी मनोकामनाएं बहुत ही जल्दी पूर्ण करते हैं.बहुत ही नयी , अनोखी और विशिष्ट जानकारी दी है आपने अपनी पोस्ट में श्री राजीव जी ! आपने देखा है ये मंदिर ? एक दो फोटो भी साथ लगाईं होती तो और भी ज्यादा बेहतर होता ! बहुत ही बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteदुर्योधन का मंदिर अपने समाज की विविधता और अनोखी सोच का परिचय देता है ... खोज के प्रति कितनी लालसा रही होगी उस समय समाज में की एक खल-नायक में भी कुछ नायक की प्रवृति खोज ली होगी ... रोचक और अच्छी जानकारी ...
ReplyDeleteरोचक और नई जानकारी देता आपका यह आलेख, आभार !
ReplyDeleteरोचक एवं अनोखी प्रस्तुति.
ReplyDeleteहिन्दू धर्म की यही विविधता आश्चर्यजनक भी है और आकर्षक भी ! यहाँ जनमानस ने किसीको अपना आराध्य दैवीय या मानवीय गुणों के आधार पर नहीं माना वरन् कदाचित भयभीत होकर अधिक शक्तिशाली, अधिक समृद्ध एवं आतातायी के सामने सिर झुका कर उसे ही अपना देवता मान लिया ! इसीलिये राम, कृष्ण एवम् युधिष्ठिर की इस भूमि पर रावण, कंस और दुर्योधन के मंदिर मिल जाते हैं तो कुछ अजीब नहीं लगता !
ReplyDeleteजी,बिल्कुल. धर्म की उत्पत्ति भी इसी अतीन्द्रिय अवं अलौकिक शक्ति के प्रति भय अवं श्रद्धा के कारण हुई और मानव ने उस अलौकिक शक्ति को प्रसन्न और वश में करने के मार्ग खोज लिए.
Deleteनई और आश्चर्यजनक जानकारी देता आपका ये आलेख भी बहुत पसंद आया आदरणीय ।
ReplyDeleteऔर मंदिर चार महीने बंद रहने के पीछे की मान्यता भी रोचक लगी
Though I live in Maharashtra I was not aware that there is a temple dedicated to Duryodhan. Thank you for sharing this.
ReplyDeleteसुंदर आलेख ।
ReplyDeleteयह हमारे भारत में ही हो सकता है कि यहाँ पर सिर्फ नायक ही नही, खलनायक भी पूजे जाते है!! हम किस की पूजा नहीं करते? हम तो पेड़-पौधे, जिव-जानवर हर चीज को पूजते है. पूजा हमारे खून में बसी है . हा, यदि बात गुणों को आत्मसात करने की आएँगी तब थोडा सोचना पड़ेगा! बढ़िया नवीनतम जानकारी हेतु आभार ...
ReplyDeleteबढ़िया और ज्ञानवर्द्धक जानकारी। दुर्योधन का मन्दिर वाकई अद्भुत रहा होगा। सादर।।
ReplyDeleteज्ञान कॉसमॉस
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मैंने भी कादम्बिनी में इसी आशय का लेख पढ़ा था . यही नही एक जानकारी के अनुसाार तमिलनाडु के एक गाँव में रावण की पूजा की जाती है .
ReplyDeleteबहुत अच्छी व उपयोगी जानकारी है यह...
बहुत रोचक है
ReplyDeleteसुन्दर सटीक और सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
कभी इधर भी पधारें
मे कुरुबंश का बंसज शिवा कौरव भिंड mp से हु कुरुबंश आज भी अपनी प्रतिस्ठा के साथ खडा ह mp मे चंबल संभाग , मालबा संभाग कौरवो से भरा पड़ा ह।
ReplyDeleteजय कुरुबंश जय भीष्म 🚩🚩
दुर्योधन की मूर्ति महाराष्ट्र मे ही नही बल्कि उत्तराखंड के जखोली ग्राम मे भी ह mp मे भी ह।
ReplyDeleteकुरुबंश के इतिहास की किसी भी जानकारी के लिए 8818971385 पर संपर्क करे