कई बार इंसान न चाहते हुए
भी किसी ओर खिंचा चला जाता है. बकौल ग़ालिब के ..
खुदाया !
जज्बए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खींचता
हूं और खिंचता जाए है मुझसे
बैठकबाजी के साथ भी यही बात
है.आप जितना बैठकबाजी से दूर रहना चाहते हैं,यह उतनी ही तेजी से आपको अपनी ओर
खींचती है.बैठकबाजी की महिमा अपरंपार है और जितने भी किस्म की बाजियां अपने देश
में प्रचलित हैं,उन सबमें बैठकबाजी सर्वाधिक लोकप्रिय एवं श्रेष्ठ है.इसका अपना
अलग ही आनंद है.
इस स्वर्गिक आनंद को वही
समझ सकते हैं,जिन्होंने कभी इसका लुत्फ़ उठाया है.बाईबिल
की भाषा में कहा जा सकता है – “वे धन्य हैं जिन्होंने बैठकबाजी की है.”और
जिन्हें कभी बैठकबाजी का अवसर ही नसीब नहीं हुआ उनके लिए ‘तू क्या जाने वाइज कि तूने पी ही नहीं.’
अपने देश में बैठकबाजी की
एक सुदीर्घ परंपरा है जो आदि काल से आज तक न केवल जीवित है,बल्कि निरंतर विकासशील
है.बैठकबाजी वस्तुतः हमारी विरासत है,हमारी पहचान है.यह हमारी रग-रग में बसी
है.औसत हिन्दुस्तानी स्वभाव से ही बैठकबाज होता है.जब तक वह दो-चार बैठकबाजी न कर
ले उसका खाना नहीं पचता.
अपने देश का यह परम सौभाग्य
है कि अपने यहां एक से एक इतिहास प्रसिद्ध बैठकबाज हुए हैं.आज भी देश में
बैठकबाजों की कमी नहीं है.गांव की चौपालों से लेकर देश की संसद तक बैठकबाजों के एक
से एक नायाब नमूने बिखरे पड़े हैं.कैसी भी समस्या हो,बैठकबाजी के बिना उसका कोई हल
नहीं निकल सकता.बैठकबाजी हमारे सारे मुद्दों का इलाज है.
दुष्यंत कुमार
सही फरमाते हैं.......
भूख है तो सब्र कर,रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल जेरे
बहस,दिल्ली में है ये मुद्दआ
बैठकबाजी को विज्ञान माना
जाय या कला इसके विषय में विद्वानों में मतभेद हैं.कुछ विद्वान इसे कला मानते हैं
तो कुछ कला.इसके साथ ही एक वर्ग समन्यवादी विद्वानों का भी है जो इसे विज्ञान और
कला दोनों मानते हैं.
बैठकबाजी की कई शैलियां
हैं.इनमें सबसे महत्वपूर्ण है – बैठकबाजी की सरकारी शैली.इस शैली के विकास में केंद्र और राज्य दोनों का बराबर का
योगदान है.बैठकबाजी वस्तुतः सरकारी कार्यप्रणाली का एक अभिन्न अंग है.बिना बैठकों
के सरकार का कोई काम आगे नहीं खिसकता.इसका दुहरा उपयोग है.काम को करने और न करने
दोनों के लिए बैठकबाजी का इस्तेमाल किया जा सकता है.
किसी मामले को लटकाने का सबसे
बेहतरीन तरीका है उसे किसी समिति या आयोग के सुपुर्द कर दिया जाय.बैठकों पर बैठकें
होती रहेंगी और मामला हिन्दुस्तानी अदालतों में फंसे मुकदमों की तरह बरसों खिंचता
रहेगा और जब तक फैसला होगा तब तक मुद्दई और मुद्दालेह दोनों ही न रहेंगे.यानि मर
गया सांप और लाठी भी न टूटी.
बैठकबाजी के लिए प्रसिद्ध
एक राष्ट्रीय आयोग को हाल ही में भंग किया गया जो अपने कार्यों से ज्यादा महंगे
शौचालय के निर्माण के लिए चर्चित रहा.इसके स्थान पर सरकार ने बैठकबाजी का एक और
अड्डा बना दिया.पढ़े-लिखे विशेषज्ञ जमात की भी तो कुछ जरूरतें होती हैं.इनका भी
ध्यान रखना जरूरी होता है.
बैठकबाजी से एक स्वस्थ
राष्ट्रीय दृष्टिकोण के विकास में भी मदद मिलती है.परिपाटी के अनुसार देश के किसी
एक छोर पर स्थित कार्यालय की किसी समिति की बैठक देश के किसी दूसरे छोर पर आयोजित
की जाती है और हर बार बैठक का केंद्र बदलता रहता है.इससे सामान्य सदस्यों को देश
भ्रमण के या यों कहें देश-दर्शन के अवसर प्राप्त होते रहते हैं,जिससे क्षेत्रीयता
जैसी संकीर्ण भावना के उन्मूलन में मदद मिलती है.अब तो इस दिशा में विदेश भ्रमण का
नया क्षितिज खुला है.इससे निश्चय ही अंतर्राष्ट्रीय समझ और भाईचारे के विकास में
मदद मिलेगी.
बैठकबाजी में विमान
कंपनियों और पंचतारा होटलों को बिजनेस मिलता है जो नागर विमानन और होटल व्यवसाय के
विकास में सहायक है.यहां भारतीय रेल को मिलने वाले कारोबार का उल्लेख इसलिए नहीं
किया जा रहा क्योंकि बैठकबाजी के लिए रेल यात्रा का प्रतिशत विमान यात्रा की तुलना
में नगण्य है.
बैठकबाजी प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय
आय बढ़ाने में भी सहायक है.बैठकों में भाग लेने वालों के लिए
आने-जाने,खाने-पीने,ठहरने आदि की व्यवस्था तो सरकारी खर्च पर होती ही है,आयकर
मुक्त यात्रा भत्ता और काल्पनिक टैक्सी बिलों का भुगतान अलग से होता है.कुछ लोगों
ने यात्रा बिल तैयार करने में अच्छी-खासी विशेषज्ञता हासिल कर ली है.
बैठकें सामान्य सदस्यों के
पारिवारिक जीवन की दृष्टि से भी उपयोगी हैं.साहब के साथ मेम साहब और बाबा लोगों का
भी भ्रमण हो जाता है यानि उनके लिए यह सरकारी पिकनिक होती है.जरूरी शॉपिंग भी हो
जाती है और हवा-पानी भी बदल जाता है.बैठकों का इंतजाम भी मौसम देखकर किया जाता
है.गर्मियों में होने वाली बैठकें हिल स्टेशनों पर रखी जाती हैं.वैसे इस काम में
फ्यूचर प्लानिंग भी बहुत जरूरी है.
बैठकबाजी में आदान-प्रदान
की भी काफी गुंजाइश है.आप हमें अपनी कमिटी में रख लें,हम आपको रख लेते हैं.इससे
आपसी भाईचारा बढ़ता है.बैठकबाजी का सरकार के लिए एक और उपयोग यह है कि विपक्ष का या
अपनी ही पार्टी का जो विधायक या सांसद ज्यादा ‘पिटिर-पिटिर’ करता हो उसे उठाकर डाल
दो किसी किसी समिति या उपसमिति में.बच्चू अपने टूर और भत्ते में मगन हो जाएंगे और
आप अपना काम निर्विघ्न चलाते रहेंगे.
कुछ लोग आजकल इसलिए ज्यादा
आवाज उठाते हैं ताकि उन्हें किसी समिति में रख लिया जाय और कुछ तो इसी जुगाड़ में
लगे रहते हैं कि कब और कैसे किसी समिति में अपना नाम फिट करवाया जाय.सो बैठकबाजी
के फायदे ही फायदे हैं.यह भी ध्यान में रखना होगा कि बैठकों में किसी विषय या
समस्या पर विशेषज्ञों की राय तो मिल ही जाती है और जो दूसरे लोग विशेषज्ञ नहीं भी
होते हैं तो वे इन समितियों में शामिल होकर विशेषज्ञों की जमात में शामिल हो जाते
हैं.इस प्रकार राष्ट्रव्यापी विशेषज्ञता का विस्तार और विकास होता है.
तो अगली बार जब आपको किसी
समिति में शामिल होने का अवसर मिलता है तो इसके फायदे जरूर याद रखें.
एक बैठक और होती है
ReplyDeleteजो होती ही नहीं है
बस जिसकी खबर भर
अखबार में ही होती है :)
सुंदर सटीक रचना ।
क्या कहने बैठकबाजी के! बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह भई वाह! बहुत खूब!!
ReplyDeleteसटीक व्यं ये कला और विग्यान दोनो है1
ReplyDeleteसादर आभार.
ReplyDeleteरुचिपूर्ण और बढ़िया रही ये बैठकबाजी आदरणीय।
ReplyDeleteबैठक बाज़ी का सर्वाधिक टिकाऊ और उठाऊ हिस्सा इन दिनों मुख चिठ्ठा बोले तो फेस बुक है यहां दुनिया भर के फेसबुकिये विमर्श करते हैं।
ReplyDeleteबैठक बाज़ी का सर्वाधिक टिकाऊ और उठाऊ हिस्सा इन दिनों मुख चिठ्ठा बोले तो फेस बुक है यहां दुनिया भर के फेसबुकिये विमर्श करते हैं।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा आर्टिकल।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ॥
ReplyDeletebahut koob
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteव्यंग तो सटीक है ही,परम्तु स्वम को
ReplyDeleteदुबारा जानने का एक सूत्र भी है---
क्यॊंकि हम भारतीयों की यही खास व एक
पहचान है---बैठक खाने तक जाते है और
लौट-लौट आते हैं---खाली हाथ.
रोचक विषय
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteबैठकबाजी प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय बढ़ाने में भी सहायक है.बैठकों में भाग लेने वालों के लिए आने-जाने,खाने-पीने,ठहरने आदि की व्यवस्था तो सरकारी खर्च पर होती ही है,आयकर मुक्त यात्रा भत्ता और काल्पनिक टैक्सी बिलों का भुगतान अलग से होता है.कुछ लोगों ने यात्रा बिल तैयार करने में अच्छी-खासी विशेषज्ञता हासिल कर ली है.बैठकबाजी यानी पंचायत करने के भी अपने अपने फायदे हैं ! सुन्दर और गुदगुदाता लेखन है राजीव जी
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