ताश के पत्तों के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं. अपने देश में प्रचलित एक लोक कथा के अनुसार एक महाराजा को अपनी दाढ़ी के बाल उखाड़ने की बहुत बुरी आदत थी. वे खाना खाते उठते बैठते,बात करते ,यहाँ तक कि अपनी रानियों से इश्क फरमाते समय भी अपनी दाढ़ी के बाल नोचा करते थे.उनकी एक रानी बड़ी समझदार थी. कहा जाता है कि उसी ने अपने पति की यह बुरी आदत छुड़ाने के लिए, जो वस्तुतः एक बीमारी की तरह उनसे चिपटी हुई थी , ताश का अविष्कार किया. लेकिन उसने कभी नहीं सोचा होगा कि उसका यह आविष्कार ही बीमारी बन कर लोगों से चिपट जाएगा. आविष्कारक ने अविष्कार तो कर डाला लेकिन वह 'तारक' न होकर 'मारक' सिद्ध हो तो उसका क्या दोष. उस महारानी ने एक काम और भी किया कि ताश के पत्तों की आकृति रोटियों की तरह गोल - मटोल बनाई और कहते हैं कि यही आकृति काफी समय तक प्रचलित भी रही.
एक कहानी के अनुसार इन 'शैतान के बच्चों' का अविष्कार 12वीं शताब्दी में किसी चीनी सम्राट की बेगमों के मनोरंजन के लिए किया गया था. प्राचीन कल में ज्योतिष - विध्या में भी किसी प्रकार के पत्तों का अवश्य होता था.
इन कहानियों में कितनी सच्चाई है, इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता,फिर भी इतना तो निश्चय पूर्वक कहा जा सकता है कि 14वीं शताब्दी के प्रारंभ में इटली में ताश के के पत्तों का प्रचलन था और वहाँ इसका नाम 'तारोत' या टैरो था. यही पत्ते आधुनिक पत्तों के पूर्वज भी कहे जा सकते हैं.'तारोत' या टैरो पत्ते आज भी दिख जाते हैं और लोग प्रायः इनका उपयोग भविष्य बताने में करते हैं. तारोत में चार प्रकार के चिन्ह अंकित रहते हैं - प्याला,खड़ग,रुपया,तथा चिड़ियाँ. प्रत्येक चिन्ह के चौदह पत्ते होते हैं- 1 से दस तक गिनती वाले तथा चार अन्य बादशाह ,बेगम ,सरदार और गुलाम. इतालवी और स्पेनी पत्तों पर अब भी यही चिन्ह अंकित रहते हैं,जबकि जर्मन पत्तों पर,जिनकी संख्या केवल 12 होती हैं -1 से 5 तक की की गिनती वाले और शाही पत्ते. पान ,घंटियाँ ,बालें और पंक्तियाँ अंकित रहती हैं। इनके अतिरिक्त ऐसे पत्ते भी देखने में आते हैं ,जिन पर मात्र एक ही चित्र अंकित रहता है और एक ओर आमने सामने के कोनों पर गिनती लिखी रहती है.
अपने देश में जो पत्ते प्रचलन में हैं,वैसे ही पत्ते इंग्लैंड में भी देखने को मिलते हैं. इन पर पान,ईट,चिड़िया,और हुकुम अंकित रहते हैं. इन चिन्हों का अंकन सर्वप्रथम एक फ्रांसीसी ने 16 वीं शताब्दी में किया था.इसलिए शाही पत्तों में ट्यूडर राजाओं की वेशभूषा हमें दिखाई पड़ती है. किन्तु 19वीं शताब्दी के अंत से पहले 'दोमुहें' पत्तों का प्रचलन नहीं था. पहले पत्तों की पीठ खाली रहती थी ,किन्तु दशाब्दियों से इन्हें भी सजाया जाने लगा है और कुछ देशों में यह पीठ विज्ञापन का अच्छा खासा साधन भी बन गयी है.
ताश के पत्तों का संबंध नक्षत्र विद्या से अवश्य है. इसी बात से पत्तों की संख्या 52 निर्धारित होने का कारण भी जाना जा सकता है. कुछ लोगों ने चन्द्र -वर्ष के साथ इसका मिलान भी किया है. इस तरह 12 शाही पत्ते,वर्ष के 12 महीनों के प्रतीक हैं.काला और लाल रंग दो पक्षों कृष्ण और शुक्ल का प्रतिनिधित्व करते हैं. 52 पत्ते वर्ष के 52 सप्ताह हैं. रंग चार ऋतुएँ हैं. यदि गुलाम को 11, बेगम को 12 और बादशाह को 13 तथा जोकर को एक माना जाये, तो अंकित चिन्हों का योग 365 दिन के बराबर बैठता है.
ताश के पत्तों का शैक्षणिक महत्त्व भी कम नहीं है.फ्रांस के राजा लुई 14 वें को इतिहास और भूगोल की शिक्षा इन्हीं के माध्यम से दी गयी थी. इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय के समय में 52 पत्तों पर इंगलैंड और वेल्स की 52 काउंटियों को अंकित किया जाता था.
चार्ल्स द्वितीय,ऒलिवर क्रोमवेल तथा शेक्सपियर भी इन पर अंकित हो चुके हैं.डी. ला. रयू द्वारा निर्मित ताश के 'शाही' पत्तों में कुछ ऐतिहासिक व्यक्तित्व अंकित हैं. हुकुम की बेगम हैं - एलिजाबेथ प्रथम, पान के बादशाह हैं चार्ल्स द्वितीय और जोकर बने हैं - ओलिवर क्रोमवेल. ये पत्ते जहाँ एक ओर मनोरंजक हैं ,वहां एक विशिष्ट व्यक्ति द्वारा इन इतिहास पुरुषों के मूल्यांकन के परिचायक भी हैं.
interesting.
ReplyDeleteधन्यवाद ! सराहना के लिए आभार .
ReplyDeleteविविधता एवं खोजपूर्ण आलेख है.
ReplyDeleteधन्यवाद ! सराहना के लिए आभार .
ReplyDeleteताश के इतिहास के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteसराहना के लिए आपका आभार .
ReplyDeleteआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
सादर धन्यवाद ! आभार .
DeleteI not agree
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