शंख भारतीय संस्कृति का एक पावन प्रतीक है.इसका न केवल सामाजिक महत्व है बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी इसका भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है.
समुद्र में रहने वाला एक जीव, जो अपनी आत्म रक्षा के लिए शरीर के चारों ओर एक आवरण बनाता है. कुछ समय बाद वह इस आवरण को त्याग कर 'नया घर ' बनाने में जुट जाता है. उस जीव द्वारा गया यह खोल देवताओं द्वारा अपनाया जाता है,सामान्यजनों का वह आभूषण भी बनता है और सभ्यता के एक दौर में उसने मुद्रा की भूमिका भी अभिनीत की है. इस आवरण को हम सब शंख के नाम से जानते हैं.
प्राचीन भारतीय संस्कृति में शंख का एक विशिष्ट स्थान रहा है. आज भी शंख हमारे धार्मिक जीवन से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ है. हम शंख की पूजा करते हैं ,देवताओं की पूजा -अर्चना के समय शंखनाद कर मंगल ध्वनि करते हैं. पश्चिमी बंगाल में विवाह के अवसर पर शंख -ध्वनि अनिवार्य मानी जाती है. वहां ,महिलाएँ शंख की चूड़ियाँ ,शंख की मालाएं पहनती हैं. ज्योतिषी भी चंद्रदोष दूर करने के लिए मोती उपलब्ध न पर उसके स्थान पर शंख की अंगूठी पहनने का परामर्श देते हैं.
शंख बौद्ध धर्म के आठ पवित्र चिन्हों में से एक है. इन्हें अष्टमंगल कहा जाता है. शंखों का आयुर्वेदिक दवाईयों के रूप में भी इस्तेमाल होता है. शंख भस्म का उपयोग पेट संबंधी बीमारियों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों में भी उपयोग होता है.
समुद्र के जीव करोड़ों वर्षों से अपनी आत्मरक्षा के लिए इस तरह के खोल बनाते आ रहे हैं. पारिभाषिक शब्दावली में ये जीव मोलस्का और और बोलचाल की भाषा में घोंघा कहलाते हैं. ये घोंघे जैसे -जैसे बड़े होते हैं ,अपने खोल को न केवल बड़ा बल्कि मजबूत भी करते जाते हैं. ये खोल चूने के कार्बोनेट के साथ - साथ कैल्सियम फास्फेट और मैग्नेशियम कार्बोनेट का बना होता है. इसी खोल को हम शंख के नाम से जानते हैं.
कुछ जीवों के एक ही खोल होता है. किसी किसी जीवों के दो खोल होते हैं. इन खोलों पर बल पड़े होते हैं. इनमें से कुछ बल एक ही दिशा में होते हैं तो कुछ दूसरी दिशा में. इन बलों के आधार पर ही इन्हें दायें और बाएं हाथ वाला शंख कहा जाता है.
शंखराज का खोल सबसे बड़ा होता है. इसके अंदर का स्तर मोती जैसा गुलाबी होता है. इसमें कान लगाकर सुनने पर समुद्र जैसा गंभीर गर्जन सुनायी पड़ती है ,क्योंकि बल पड़े खोल में जरा सी आवाज बहुत ज्यादा बढ़ी चढ़ी सुनाई पड़ती है.
अनुमान है की समुद्र में 75 हजार तरह के जीव शंखों और खोलों में रहते हैं. इनमें से बहुतों के सिर तो केवल पिन के बराबर होते हैं.
शंख करोड़ों वर्षों से बनते आ रहे हैं ,लेकिन मनुष्य ने उनका उपयोग लगभग दस हजार वर्ष पहले ही सीखा है. शंखों से उसने आभूषण बनाये ,मुद्रा के रूप में भी उनका उपयोग किया और धारदार शंखों से उसने औजारों का भी काम लिया. अमेरिका ,एशिया ,अफ्रीका ,आस्ट्रेलिया आदि महाद्वीपों में आदिम मनुष्य शंखों के आभूषण पहनता था. फिर ,उसने कौड़ियों के साथ - साथ शंखों को भी क्रय -विक्रय का माध्यम बनाया. अठारहवीं सदी में शंखों का संग्रह करने का फैशन भी चला.
बहुत ही अच्छी जानकारी.शंख के महत्व से परिचित कराने के लिये आभार.
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} परिवार के शुभारंभ पर कर्ता के रूप मे आप को आमंत्रित किया जाता है। यदि आप हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर चर्चा कर्ता के रूप शामिल होना चाहते है तो आप को योगदान कर्ता की सूचि मैं शामिल कर लिया जाएगा औऱ आप किस दिन चर्चा करना पसंद करते है ये आप techeduhub@gmail.com पर भेज दें ।
Deleteधन्यवाद ! सराहना के लिये आभार.
Deleteज्ञानवर्धक जानकारी .शंख का सामाजिक एवं धार्मिक महत्व भी है .
ReplyDeleteधन्यवाद ! सराहना के लिये आपका आभार.
Deleteजानकारी भरी पोस्ट..धन्यवाद।।।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!!अंकुर जी.
Deleteसराहना के लिये आपका आभार
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} परिवार के शुभारंभ पर कर्ता के रूप मे आप को आमंत्रित किया जाता है। यदि आप हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर चर्चा कर्ता के रूप शामिल होना चाहते है तो आप को योगदान कर्ता की सूचि मैं शामिल कर लिया जाएगा औऱ आप किस दिन चर्चा करना पसंद करते है ये आप techeduhub@gmail.com पर भेज दें ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!ललित चाहर जी.आपका आभार.
Deleteसादर धन्यवाद ! सराहना के लिये आपका आभार .
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteउम्दा आलेख
बहुत कोशिश की लेकिन
शंख-ध्वनि नहीं निकाल पाती ....
सादर धन्यवाद ! शंख फूंकना भी एक कला है.सभी ऐसा नहीं कर पाते.इसके लिए विशेष अभ्यास की जरूरत होती है.आभार.
Deleteशंख के महत्व से परिचित कराने के लिये आभार
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! भ्रमर जी .सराहना के लिए आभार .
Deleteसादर धन्यवाद !सक्सेना जी.सराहना के लिए आभार.आपका अनुसरण कर लिया है.
ReplyDeleteसुन्दर आलेख!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! सराहना के लिए आभार.
Deleteज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
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